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मार्च, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सिमोन की टिप्पणी 'अमरीका में दिन प्रतिदिन' अनुवाद : अंकित अमलताश

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सिमोन के नाम से भला कौन परिचित नहीं होगा। स्त्री स्वतन्त्रता की पक्षधर सिमोन ने अपनी बात स्पष्ट तरीके से पूरी दुनिया के सामने रखी। उनकी ' द सेकेण्ड सेक्स ' एक अप्रतिम पुस्तक मानी जाती है। यहाँ पर हम सिमोन की अमरीकी यात्रा पर टिप्पणी प्रस्तुत कर रहे हैं। अनुवाद अंकित अमलताश का है। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं सिमोन की टिप्पणी ' अमरीका में दिन प्रतिदिन ' । अंकित अमलताश  अमेरिका में दिन प्रतिदिन... (सिमोन) 1 फरवरी, मैंने न्यूयार्क की कला वीथिकाओं और संग्रहालयों की सैर की. मैंने पूरी ईमानदारी के साथ एक सैलानी का काम निभाया. समय-समय पर मैं एक प्रकाशक या पत्रिका के संपादक से मिलने जाती रहती हूँ और इन कामों में भी मैं एक सैलानी ही हूँ. उदाहरण के लिए जब मैं लेक्जिंग्टन एवेन्यू पर स्थित एक बड़ी इमारत में प्रवेश करती हूँ, तो मुझे भवन के सभी कार्यालयों का नाम बताने वाली एक सूचीबद्ध पट्टिका दिखती है. कार्यालय का भवन अपने आप में एक पूरा शहर है. इसके अलावा, मेट्रो में एलीवेटर को ‘लोकल्स’ और ‘एक्सप्रेस’ में बांटा गया है जो क्रमशः सात

अष्टभुजा शुक्ल की कविता 'चैत के बादल'।

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अष्टभुजा शुक्ल हिन्दू पंचांग की शुरुआत चैत के महीने से होती है। चैत का यह महीना किसानों के लिए नई फसलों की सौगात ले कर आता है। सरसों, गेहूँ जैसी रब्बी की फसलें पूरी तरह पक जाती हैं। किसान इन्हें जल्द से जल्द काट कर अनाज और भूसा घर में रख देना चाहते हैं। साल भर के अपने भोजन छाजन का उन्हें इंतज़ाम जो करना होता है। अपने मवेशियों के लिए भूसे का स्टॉक बनाना होता है। लेकिन सब कुछ मन के अनुरूप कहाँ हो पाता है। जब वे अपने खेतों में पकी फसल देख कर उल्लसित होने को होते हैं आसमान पर घिर आते हैं काले कजरारे चैत के बादल। इनका बरसना किसानों के लिए त्रासदी की तरह होता है। बारिश इन फसलों के अन्न को सड़ाने लगती है। किसानों को अपनी मेहनत पर पानी फिरता हुआ सा दिखता है। वे हताश हो इन बादलों को कोसने लगते हैं। वे उन्हें इस बात के लिए भी कोसते हैं कि जब सिंचाई के लिए पानी की जरूरत थी तब आसमान में ये बादल कहीं नहीं दिखते। और जब जरूरत नहीं तब तबाही फैलाने के लिए आ गए। किसानों के इन सूक्ष्म मनोभावों को गँवई कवि अष्टभुजा शुक्ल ने अपनी कविता 'चैत के बादल' में करीने से संजोया है।

लोक, जीवन और प्रतिरोध के कवि केदार नाथ सिंह, प्रस्तुति : कौशल किशोर

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विगत 19 मार्च को कवि केदार नाथ सिंह को गुजरे एक साल हो गये। बलिया उनके लिये वह जमीन रही जो उनकी कविताओं के लिये हमेशा उर्वर धरातल प्रदान करती रही। कवि केदार नाथ सिंह की स्मृति में बलिया में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रस्तुत है इस कार्यक्रम की एक रपट। लोक , जीवन और प्रतिरोध के कवि केदार नाथ सिंह प्रस्तुति : कौशल किशोर  केदार जी से हमारी पीढ़ी ने बहुत कुछ सीखा - निलय उपाध्याय   केदार नाथ सिंह भोजपुरी के हिंदी कवि - डॉक्टर बलभद्र केदार जी लोक , जीवन और प्रतिरोध के कवि - कौशल किशोर केदार जी की कविताओं में गांव की स्वाभाविकता है- यशवंत सिंह बलिया ,   हिंदी की जन कविता की परंपरा के महत्वपूर्ण कवि हैं केदार   नाथ सिंह। वे नागार्जुन और त्रिलोचन की परंपरा को आगे बढ़ाते हैं। 19 मार्च को उनकी पहली पुण्यतिथि थी। इस अवसर पर उनके गृह जनपद बलिया में उनकी स्मृति में कार्यक्रम हुआ। यह दो सत्रों में आयोजित था। पहले सत्र में विचार गोष्ठी का कार्यक्रम था और दूसरे सत्र में कविता गोष्ठी हुई। पहले सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार यशवंत सिंह ने