सिमोन की टिप्पणी 'अमरीका में दिन प्रतिदिन' अनुवाद : अंकित अमलताश
सिमोन के नाम से भला कौन
परिचित नहीं होगा। स्त्री स्वतन्त्रता की पक्षधर सिमोन ने अपनी बात स्पष्ट तरीके से
पूरी दुनिया के सामने
रखी। उनकी 'द
सेकेण्ड सेक्स' एक
अप्रतिम पुस्तक मानी जाती है। यहाँ पर हम सिमोन की अमरीकी यात्रा पर टिप्पणी प्रस्तुत कर रहे
हैं। अनुवाद अंकित
अमलताश का है। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं सिमोन की टिप्पणी 'अमरीका
में दिन प्रतिदिन'।
अंकित अमलताश
अमेरिका में दिन प्रतिदिन... (सिमोन)
1 फरवरी,
मैंने न्यूयार्क की
कला वीथिकाओं और संग्रहालयों की सैर की. मैंने पूरी ईमानदारी के साथ एक सैलानी का
काम निभाया. समय-समय पर मैं एक प्रकाशक या पत्रिका के संपादक से मिलने जाती रहती
हूँ और इन कामों में भी मैं एक सैलानी ही हूँ. उदाहरण के लिए जब मैं लेक्जिंग्टन एवेन्यू पर स्थित एक बड़ी
इमारत में प्रवेश करती हूँ, तो मुझे भवन के सभी कार्यालयों का नाम बताने वाली एक
सूचीबद्ध पट्टिका दिखती है. कार्यालय का भवन अपने आप में एक पूरा शहर है. इसके
अलावा, मेट्रो में एलीवेटर को ‘लोकल्स’ और ‘एक्सप्रेस’ में बांटा गया है जो क्रमशः
सातवीं और आठवीं मंजिल तक जाता है. यहाँ व्यापार के मकसद से की गई बैठक किसी भ्रमण
की तरह है. यहाँ के विश्राम कक्ष प्लेटफॉर्म की तरह दिखते हैं. मुझे न्यूयॉर्क के
घरों के बारे में सोलहवीं मंजिल से देख कर सोचना अच्छा लगता है. वहां की छतें सपाट होती हैं, लेकिन वे असली नहीं होती
बल्कि सीमेंट और डामर की बनी होती है. ये छतें प्रायः पार्किंग स्थल का भी काम
करती हैं और सोलहवीं मंजिल की छत पर पार्क कतारबद्ध कारों को देख कर बड़ा अजीब लगता है.
मैं अमेरिकियों से मिलने
का कोई अवसर नहीं गंवाती हूँ. कल शाम मैं ए. एम. में थी जहाँ रिचर्ड राईट अपने
फ़्रांसीसी अनुभवों के बारे में बता रहे थे. उनकी बातचीत के अलावा बाकी मजलिस बकवास
थी. लेकिन मैं आर. सी. (लियोनेल एबल) से मिली, जिनका नाम मैंने ध्यानपूर्वक अपनी
पते वाली डायरी में लिख रखा था. वह एक कवि और निबंधकार हैं जो फ्रांसीसी साहित्य
का अनुवाद अंग्रेजी में करते हैं और जाहिर तौर पर वे बेहतर फ्रेंच बोलते हैं. आज
हम लोगों ने दोपहर का भोजन एक साथ किया जहां पर उन्होंने मुझे एक अमेरिकी
बुद्धिजीवी के घर पर शाम की पार्टी के लिए न्योता दिया. मैंने उनका न्योता
उत्सुकतापूर्वक स्वीकार कर लिया. शाम सात बजे के करीब मैं बीसवीं गली के एक छोटे
से अपार्टमेंट में पहुंची जो किताबों, तस्वीरों और फर्नीचरों से भरा हुआ था जो
पेरिस में प्रचलित आतंरिक साज सज्जा से भी पुराना प्रतीत हो रहा था. आर. सी. के
अलावा वहां मेरे लिए सभी अपरिचित थे और वहां पर कोई फ्रेंच भाषी भी नहीं था. ये
मैं कहाँ पहुँच गई थी? मुझे फिर लगने लगा कि मैं कोई भूत हूँ, एक ऐसा भूत जो
दीवारों से घुस कर मानवीय दुनिया में बिना भाग लिए उसे देखता
है. यह जादुई लेकिन भ्रामक प्रतीत हो रहा था, कि आप बिना समझे बूझे सब कुछ कैसे
देख सकते हैं?
मुझे एक बड़ी
मैनहट्टन (एक तरह की शराब) दी गई. पार्टी में परिचायिकायें काले और लाल टाफेटा की
एक लम्बी ड्रेस पहनी हुईं थीं. घने घुंघराले बाल उनके कन्धों तक गिर रहे थे, और
उनकी काली आँखें मदहोश करने वाली थी. महिला मेहमान कम अजीब लग रहीं थीं लेकिन लगभग
सभी ने एक अजीब सा बुना हुआ स्कार्फ पहना था, जो बहुरंगी था, और उनके सामने के बाल
माथे तक लटक रहे थे जो उनकी पहचान जाहिर कर रहे थे कि यह एक लेखकों और कलाकारों का
जमावड़ा है. ये सभी औरतें शालीन थीं. आर. सी. की पत्नी एक दवाखाने में वेट्रेस का
काम करती है. एक और घुंघराले बालों वाली युवा महिला प्रचार विभाग में काम करती है,
वहीँ दूसरी औरत एक फैशन राइटर है. उनकी पोशाक और स्वभाव से उनके जिंदगी की
जद्दोजहद का कोई अंदाजा नहीं लगता है. और पुरुषों के लिए, मुझे नहीं लगता है कि मेरी
आँखें कहाँ पर जा कर टिकेंगी, इतने सारे चेहरे हैं पर सभी अलग-अलग,
फिर भी सभी मेरे लिए अर्थहीन हैं. अमेरिकी मेरे आस-पास ऐसी गुफ्तुगू कर रहे थे जो
मैंने पहले कभी न सुनी थी. मैं खुद को तन्हा महसूस कर रही हूँ, फिर भी ऐसे क्षण
में मेरे लिए ये सब एक शुरुआत है, एक तरह का वादा है. मैं यह स्वीकार नहीं कर पा
रही थी कि मेरे आस-पास ये जो लोग हैं उन तक मैं कभी पहुँच नहीं पाउंगी. मैंने दो
और मैनहट्टन का पान किया. अगर मैं अंग्रेजी बोलती हूँ तो मैं इन लोगों के साथ
घुलमिल सकती हूँ. लेकिन अमेरिकियों को अमेरिका में पहल करनी चाहिए.
चौथी मैनहट्टन पीने
के बाद मैंने खुद को आर. सी. और एक दाढ़ी वाले व्यक्ति डी. मैकडोनाल्ड, जो एक
वामपंथी विचार के बौद्धिक जर्नल के संपादक थे, के साथ अंग्रेजी में बात करते हुए
पाया. हम लोग फ्रांस के वामपंथी बुद्धिजीवियों से जुड़ी हुई एक समस्या पर बात कर
रहे थे. वह समस्या थी- हिंसा की समस्या. आर. सी. और उसके एक इतालवी दोस्त (एन. सी.) की मिलीजुली समझ यह थी कि हिंसा को हर कीमत पर
नकारा जाना चाहिए. एन. सी. का ये मानना है कि हिंसा के बिना भी कार्य किया जा सकता
है, जिसके लिए उसने गाँधी का उदाहरण दिया. आर. सी. एक यहूदी हैं और वह अमेरिका के
प्रति काफी आलोचनात्मक है. वह खुद में कोई समस्या नहीं देखता और न ही उसे सुधारने
की कोशिश करता है. उसकी स्थिति पूर्णतः व्यक्तिवादी है. डी. मैकडोनाल्ड एक सक्रिय
व्यक्ति हैं, वे अपने द्वारा संपादित जर्नल के प्रति और अपने लेखों के प्रति
राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध हैं. लेकिन मुझे लगता है कि उनकी कोशिश उन्हें अकेला
महसूस कराती है. सैद्धांतिक बहसों को छोड़ते हुए मैंने उनसे कुछ विशिष्ट जानकारी
मांगी कि मुझे न्यूयॉर्क में क्या देखना चाहिए? वे मुस्कुराते हुए कहते हैं कि
यहाँ कुछ भी देखने लायक नहीं है. मैंने उनसे किसी फिल्म देखने का सुझाव माँगा,
उन्होंने कहा- कोई नहीं. मैंने फिर से पूछा कि हाल ही में कौन सी अच्छी किताब
प्रकाशित हुई है? उनका जवाब था कि अच्छी किताबें अब नहीं प्रकाशित होती हैं. वे
मुझे बताते हैं कि अमेरिकी साहित्य के साथ फ्रांसीसी बदमाशी उन्हें खिन्न करती है.
वे फाकनर को नकारते हैं जबकि हेमिंग्वे, डॉस पस्सोस, काडवेल और स्टीनबेक को एक
पत्रकार और यथार्थवादी के रूप में स्वीकार करते हैं. और हमारे लिए जेम्स केन,
मैककॉय और दशील हम्मेट को फ्रेंच में अनुवाद करने का तात्पर्य यह था कि हम यह
सोचें कि अमेरिकी बर्बर लोग होते हैं. यह परेशान करने वाली बात है कि हम ऐसी
बड़बड़ाहट को पसंद कर रहे थे तब जब एक अमेरिकी साहित्य यूरोप के मेलविले, थोरो, विला
केथर और हथोर्न से ज्यादा योग्य था. मैंने कहा कि मैं उन्हें भी पसंद करती हूँ, और
मैं उनसे इस बारे में बात करना चाहती हूँ, लेकिन वे बहुत तेज गति से बातचीत कर रहे
थे जो मेरे लिए समझ पाना मुश्किल है. मैं पहले ही हार चुकी थी, विशेषकर उनकी
दयालुता से. वे अपने अपार्टमेंट जाते हैं और ढेर सारी किताबों के साथ वापस आते
हैं. वे मुझे किताबें तब तक रखने को कहते हैं जब तक वे मुझे अच्छी लगें. और तब
मैंने और भी चीजों के अलावा जो बात उनसे पूछी वह थी ‘जैज’ के बारे में. वे दूसरे
कमरे में जैज पर लिखी हुई एक किताब लेने के लिए जाते हैं और वे मुझसे किसी शाम एक
अच्छा बैंड सुनाने के लिए ले चलने का वादा भी करते हैं. वे मुझे अपना टेलीफोन नंबर
देते हैं जिसे मैं अपने बैग में ख़ुशी से रख लेती हूँ. किताबें, जैज भरी शाम सुनने
देखने का वादा और शायद कुछ दोस्त.... ऐसी यादों को ले कर थोड़ा चकित होकर मैं ख़ुशी से घर लौटी. मुझे महसूस हुआ कि
मैंने एक बड़ा कदम उठाया है.
3 फरवरी
मैंने खोजबीन की
अपनी यह यात्रा पैदल, टैक्सी से, बसों के ऊपरी हिस्से में बैठ कर और मेट्रो के जरिए रखी. यहाँ की मेट्रो बहुत तेज है
लेकिन मैं इसे पसंद नहीं करती. पेरिस में, मैड्रिड में, लन्दन में, एक स्टेशन बंद
दरवाजों और पत्थर की फर्श से युक्त एक आरामदेह हॉल होता है. लेकिन यहाँ भूमिगत
स्टेशन सभी एक जैसे हैं, उनमें कोई अंतर नहीं है. यहाँ के स्टेशनों पर कोई
कर्मचारी भी नहीं होता है. केवल बड़े से गलियारे के प्रवेशद्वार पर एक छतरीनुमा जगह
होती है जहाँ पर आप थोड़ा आराम कर सकते हैं. वहां कोई साइनबोर्ड नहीं थे. सौभाग्य
से मैनहैटन में सिर्फ एक ही दिशा ऊपर से नीचे की ओर है. हडसन और ईस्ट नदी के बीच
आपको बस लेनी पड़ती है जो हर दो ब्लॉक के बाद रुकती है. यह यातायात का एक खुशनुमा
माध्यम है लेकिन काफी धीमा है.
मैं एम्पायर स्टेट
भवन की ऊपरी मंजिल पर गई. भूतल में स्थित एक टूरिस्ट ब्यूरो जैसा दिखने वाले
कार्यालय से आपको टिकट लेना होता है. टिकट का दाम एक डॉलर है जो कि फिल्म के टिकट
से दोगुना है. यहाँ पर आये हुए ज्यादातर पर्यटक सेंट लुईस और सिनसिनाटी से हैं.
हमें एक एक्सप्रेस एलीवेटर पर ले जाया गया जो सीधा अस्सीवें मंजिल पर पहुंचा. यहाँ
से एकदम ऊपरी मंजिल पर जाने के लिए हमें एलीवेटर बदलना पड़ता है. यह एक लंबवत (वर्टिकल) यात्रा थी. एम्पायर स्टेट बिल्डिंग की लघु-कृति और कई तरह के स्मृति-चिन्ह से सजी एक लॉबी को पार करते हुए हम एक शीशे से घिरे
बड़े हाल में पहुँचे. यहाँ पर मेंज और कुर्सियों से सजा हुआ एक बार है. यहाँ लोग
शीशे में अपनी नाक दबा कर देखते हैं. तेज हवाओं के बावजूद मैं बाहर निकल कर गैलरी में घूमने लगी जहाँ से आत्महत्याओं की कोशिश साल
में कई बार की जाती रहती है. मैंने मैनहैटन को प्रायद्वीप की ओर दक्षिण में
सिकुड़ते हुए और उत्तर की ओर फैलते हुए देखा. मैंने ब्रुकलिन, क्वींस, स्टेटेन
द्वीप, और महाद्वीपीय किनारे को समुद्र में ढलते हुए देखा. यहाँ की भूआकृति बेहद
स्पष्ट है, यहाँ पानी बेहद चमकदार है जो जमीन के तत्वों को इतनी सफाई से दिखाता है
कि न्यूयॉर्क के घर दिखाई नहीं पड़ते और यह एक अप्रवासी द्वीप की तरह दिखता है.
मैंने शहरों के भीतर
गई. बहुत समय तक मैं रॉकफेलर सेंटर के निचले तल में घूमती रही. यह बहुत बड़ी जगह है
और यहाँ पर मौजूद भूलभुलैया कम भ्रामक है. यहाँ बड़े लंबे गलियारे हैं जहाँ पर
बैंक, कॉफ़ी सेंटर, रेस्तराँ, पोस्ट ऑफिस, दुकानें और टेलीफोन बूथ हैं. कई बार
घूमते मुझे यह लगा कि मैं एक ही जगह पर बार बार आ जा रही हूँ. इसी बिल्डिंग से सटी
हुई एक और जगह पर मैंने खुला हुआ वर्फ का मैदान देखा. जहां पर गुजरते हुए लोग थोड़ी-थोड़ी
देर रूक कर स्केटिंग देख रहे थे और वहीँ पर एक
कैफेटेरिया में बैठ कर आइसक्रीम खाते थे.
मैं सत्तावनवीं गली
की गैलरी में गई जहाँ कई तरह की सजावटी सामानों की दुकानें थी. लेकिन उनका दरवाजा
गली की तरफ न होकर दसवीं और बारहवीं मंजिल पर खुलता था. अमरीकियों के बीच अमूर्त
चित्रकला को ले कर एक तरह का सम्मान है और यहाँ के युवा
कलाकारों ने अतियथार्थ को जीवित रखा है. दे चिरीको, मैक्स अर्नेस्ट, डाली, टाँगे
और मिर्रयो जैसे चित्रकारों की कलाकृति दीवारों पर न टंग कर, कुर्सियों और स्टूल के सहारे रखी गई थी जो डॉ. कलिगरी
की दुनिया से ताल्लुक रखती हैं. यहाँ से निकलते हुए एक विचित्र किस्म का आकर्षण
मिलता है जिससे आप यह कह सकते हैं कि इन कलाकृतियों के जरिए इस भवन को सजाया गया
है. यहाँ पर मूर्तियों और चित्रों के अलावा कई तरीके की वस्तुयें हैं जिनमें एक
बड़ा जहाज का पहिया और बोतल में रखी गई शंख है.
बेशक, मुझे हार्लेम
के बारे जानना है. यह न्यूयॉर्क के आसपास की उन कई जगहों में से है जहाँ काले लोग
रहते हैं. ब्रुकलिन, ब्रोंक्स और क्वींस में भी काले समुदाय निवास करते हैं. खुद
न्यूयॉर्क में ही कोई भी काले लोगों को यहाँ वहां रहते देख सकता है. वर्ष 1900 तक
ब्रुकलिन के अलावा न्यूयॉर्क के काले लोगों का समुदाय पश्चिमी सत्तावनवीं गली के पास
रहती है. हार्लेम की अपार्टमेंट बिल्डिंग मुख्य तौर पर श्वेत किराएदारों के लिए
बनाई गई थी. शताब्दी की शुरुआत में यहाँ यातायात अपर्याप्त था जिससे मकान मालिकों
को पूर्वी छोर में अपने मकानों को किराए पर देने में दिक्कत होती थी. काले लोगों
को 134वीं गली में मकान दिए जाते थे. बाद में यहाँ काले लोगों की तादाद और बढ़ने
लगी जिसे गोरों ने अतिक्रमण की तरह लिया, शुरू में उन्होंने रोकने का प्रयास किया
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. काले लोगों ने धीरे-धीरे सारे मकानों को किराए
पर ले लिया और निजी मकानों को बेंचना शुरू कर दिया. गोरों ने यहाँ से भागना ही
उचित समझा. जैसे ही पूरी बिल्डिंग में एक भी घर काले लोगों द्वारा ले लिया जाता,
वैसे ही गोरे पूरी बिल्डिंग खाली करने लगते थे, मानो की वे किसी महामारी से खुद को
बचा रहे हों. जल्दी ही काले लोगों ने पूरे जिले को अपने कब्जे में ले लिया.
हार्लेम वर्ष 1914 तक काफी बड़ा और देखने लायक हो गया था.
कई सारे फ़्रांसीसी
जो अमेरिकी पूर्वाग्रहों के सामने घुटने टेक देते हैं, उनमें से कुछ लोगों ने
मुझसे कहा कि यदि आप काले लोगों की बस्ती में जाना चाहती हैं तो कार से जाएँ, पैदल
न जाएँ और बड़ी बस्तियों में ही जाएँ, ताकि कुछ अशुभ होने पर आप सबवे में रुक सकें.
एक ने तो मुझे यहाँ तक भी बताया कि यहाँ कई दफा भोर में गोरों की कटी गर्दन भी
मिली है. लेकिन इसके बावजूद भी मैं जानबूझ कर हार्लेम गई.
मैं थोड़े डरे सहमे
क़दमों के साथ हार्लेम में प्रवेश कर रही थी, यह डर कभी मुझे पीछे खींचता है, पर
मैं आगे बढती रही, हालाँकि यह डर उन गोरे लोगों का था जो कभी हार्लेम नहीं आते थे
और शहर के उत्तरी हिस्से में मौजूद इस जगह को रहस्यमई और वर्जित क्षेत्र मानते थे.
एकाएक मुझे कुछ बदला हुआ लैंडस्केप दिखाई देने लगा, मुझे यह भी बताया गया था कि
हार्लेम में कुछ भी देखने लायक नहीं है, यह मात्र न्यूयॉर्क का एक कोना है जहाँ
काली चमड़ी वाले लोग रहते हैं. 125वीं गली में मैंने सिनेमाघर, दवाखाना, दुकानें,
शराबघर देखा. लेकिन यहाँ का वातावरण इतना भिन्न है कि जैसे मैं यहाँ सात समुंदर
पार कर आई हूँ. एकाएक मैंने कुछ काले बच्चों को लाल और हरे पट्टी वाले चमकीले
कपड़ों में देखा, मुझे कुछ घुंघराले बाल वाले छात्र भी इधर उधर बात करते हुए दिखे.
कुछ काले लोग अपने दरवाजों पर बैठ कर सपनों में खोये हुए थे और कुछ इधर उधर जेब में हाथ डाले घूम रहे थे. मुझे
यहाँ कुछ भी डरावना नहीं लग रहा था, बल्कि मुझे यहाँ यहाँ एक नए तरह का आराम मिल
रहा था जो मुझे न्यूयॉर्क में नहीं मिला था.
मैं बड़े गली की तरफ
के बड़े रास्तों की तरफ चलने लगी. जब मैं थक जाती हूँ तो चौराहों पर बैठ कर आराम करती हूँ. सच तो यह है कि मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं
हो सकता और हालाँकि मैं खुद को पूरी तरीके से सुरक्षित भी नहीं महसूस कर रही थी.
ऐसा इसलिए था क्योंकि यह डर गोरे लोगों ने ही मेरे भीतर पैदा किया था. यह डर उन
बुर्जुवा लोगों के दिलों में होना स्वाभाविक है जो भूखे लोगों की गलियों से गुजरते
हैं, वे लोग जो एक दिन इन्हें हरा कर इनकी दुनिया को उजाड़ देंगे. लेकिन हार्लेम एक भरा पूरा समाज है जहाँ
बुर्जुवा हैं, सर्वहारा हैं, गरीब हैं, अमीर हैं जो किसी भी क्रांतिकारी कारवाई को
ले कर बंधे हुए नहीं हैं. वे अमेरिका के अभिन्न अंग
हैं, उनका अमेरिका को बर्बाद करने का कोई इरादा नहीं है. अपनी प्रजाति के लोगों के
बीच अमेरिकी अच्छे हास्य, परोपकार और दोस्ती के खूबसूरत सपने को साकार करते हैं.
यहाँ तक की वे इन गुणों को व्यवहार में भी लाते हैं. लेकिन यह सबकुछ हार्लेम की
सीमा तक आ कर दम तोड़ देता है. एक सामान्य अमेरिकी दुनिया
के साथ समरसता में यकीन करता है, लेकिन वह यह भी जानता है कि इन सीमाओं के पार
उनके शोषक, उनके दुश्मनों के खूंखार चेहरे हैं. और यही चेहरा एक सामान्य अमेरिकी को
डराता है.
हार्लेम में बोवेरी
की तुलना में काफी कम अपराध है, और ये सारे अपराध मात्र प्रतीकात्मक हैं.
प्रतीकात्मक इस लिहाज से कि क्या हो रहा है? और क्या हुआ है? समय दर समय यहाँ पर
लोग एकदूसरे के दुश्मन होता जाते हैं और वे सारे गोरे जिनके अन्दर भाईचारे की
इच्छा रखने की हिम्मत नहीं हैं, वे अपने शहर के बिखराव को नकारने लगते हैं और
हार्लेम को भूल जाने की कोशिश करते हैं. यह भविष्य के लिए खतरा ना होकर वर्तमान का
नासूर है, एक शापित शहर, एक शहर जहां गोरे लोगों को शाप दिया गया है. और खुद गोरे
होने के कारण यह शाप मेरे ऊपर भी उतना ही असर करता है. मैं चौराहों पर खेल रहे
बच्चों के साथ हंस कर वक्त बिताने का साहस नहीं कर सकती. मैं यह
सोच भी नहीं सकती कि मैं यहाँ की गलियों में घूम सकती हूँ, जहाँ के रंग मुझे
अन्याय, घृणा और गुस्से से भरे दिखते हैं.
और इसी बेचैनी के
कारण मैं खुश हूँ कि आज शाम मुझे रिचर्ड राईट ने सेवॉय तक पहुंचाया, जो रिचर्ड
मेरे लिए थोडा विश्वसनीय है. रिचर्ड ने मुझे अपनी पत्नी से मिलवाया. वह ब्रुकलिन
की एक गोरी महिला है, जिसने मुझे हार्लेम के अपने अनुभवों के बारे में बताया. अपनी
छोटी सी लड़की के साथ जब वह गलियों से गुजरती है तो उस पर फब्तियां कसी जाती हैं.
वह यह भी बताती है कि एक काले मर्द के साथ दो गोरी महिलाओं को वहां के टैक्सी
ड्राइवर घृणित नजरों से देखते हैं. ऐसी स्थिति में मैं भला कैसे खुद को हार्लेम के
इस वातावरण से जोड़ सकती थी.
सेवॉय में एक बड़ा
सामान्य सा डांस हॉल है जिसके एक तरफ ओर्केस्ट्रा और डांस फ्लोर है और उसके सामने
बैठने के लिए कुर्सियां और मेंज हैं. यहाँ कुछ दुकानें भी हैं जहाँ लोग बैठ कर चाहें तो मदिरापान कर सकते हैं. हमने सोडा ऑर्डर किया और
राइट द्वारा लाइ गई व्हिस्की पी. ताज्जुब की बात है कि यहाँ एक भी गोरा चेहरा दूर
दूर तक नहीं दिख रहा था. यहाँ पर ज्यादातर औरतें युवा हैं जो सामान्य स्कर्ट और
छोटे आस्तीन वाले स्वेटर लेकिन ऊँची हील वाले सैंडिल पहनी हुई हैं. वे सभी प्यारी
और जीवंत दिख रही थी. उल्लेखनीय है कि अमेरिका में नस्लीय हिंसा का एक बहुत छोटा
प्रतिशत ही यौन कुंठा से प्रेरित होता है. लेकिन फिर भी गोरों का यह मूर्खतापूर्ण
विश्वास है कि काले लोग गोरी महिलाओं को वहशीपन से देखते हैं.
यहाँ पर नृत्य देखने
वाली महिलाएं संभ्रांत घरानों से आती हैं और प्रत्येक रविवार वे ईशु दरबार में
अपनी हाजिरी भी लगाती हैं. वे दिन भर अपने कामों में लगी रहती हैं और वे शाम को
यहाँ अपने प्रेमियों के साथ वक्त गुजारने आती हैं. वे खुश हो कर गाने की धुन के साथ नाचतीं भी हैं. यही स्फूर्ति उन्हें
ख्वाब देखने का, महसूस करने का, घुमने टहलने का और हंसने का मौका देती है जिससे
लगभग सारे गोरे अमेरिकी अनभिज्ञ हैं. गोरे लोगों की टिप्पणी यह कहते हुए आती है कि हर समाज में कामगार
और मूल निवासी ही खुश और मुक्त रहते हैं लेकिन इस बात से भी गोरे अपने द्वारा किए
गए शोषण को न्यायोचित नहीं ठहरा सकते.
मैंने जैज देखा,
नृत्य देखा और व्हिस्की पी. मैं बहुत खुश हूँ और अब मैं व्हिस्की को पसंद करने लग
गई हूँ. सेवॉय न्यूयॉर्क का ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का सबसे बड़ा डांस हॉल है और
ये जैज दुनिया का सबसे खूबसूरत जैज है, और किसी भी लिहाज से कोई भी दूसरी जगह अपने
आप में इतनी सच्चाई नहीं रखती जितना कि यहाँ मौजूद लोगों अपने नाचने गाने में और
दिलों में रखा है. मैं जब भी पेरिस में जैज सुनती थी और काले लोगों के नृत्य को
देखती थी, वह लम्हा फिर भी मुझे पूरा नहीं लगता था, क्योंकि वह किसी सच्चाई की
धुंधली सी झलक मात्र दिखा देता था. और वह सच्चाई ये आज की रात है जो मैंने सेवॉय
के इस डांस हॉल में देखी. यहाँ आकर मुझे ऐसा लगा कि मैं किसी गुफा से बाहर निकल आई
हूँ. और न्यूयॉर्क में रहते हुए इसका अंदाजा मुझे प्रायः हो रहा है. यह सब कुछ
मुझे अपने जेहन को खोल कर नए विचारों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित कर रहा है, और
यह इस यात्रा का जादुई लम्हा था जो आज से पहले मेरे साथ कभी नहीं हुआ.
अंकित अमलताश |
अंकित आजकल बॉलीवुड सिनेमा और भारतीय राजनीति के
अंतरसंबंधों पर अध्ययन कर रहे हैं।
यह आलेख हमने रचना समय
के सिमोन अंक से साभार लिया है.
सम्पर्क – 7505832402
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-04-2019) को "वो फर्स्ट अप्रैल" (चर्चा अंक-3292) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'