रोहित ठाकुर की कविताएँ



 
रोहित ठाकुर


परिचय 

जन्म तिथि - 06/12/ 1978
शैक्षणिक योग्यता - परा-स्नातक राजनीति विज्ञान

विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र - पत्रिकाओं हंस, बया, दोआब, समकालीन हिन्दी साहित्य, अक्षर पर्व, ककसाड़, समहुत, सदानीरा आदि में कविताएँ प्रकाशित 

मराठी और पंजाबी भाषा में कविताओं का अनुवाद प्रकाशित 

विभिन्न ब्लॉगों पर कविताएँ प्रकाशित 

वृत्ति - सिविल सेवा परीक्षा हेतु शिक्षण  

रूचि - हिन्दी-अंग्रेजी साहित्य अध्ययन 



मशहूर नाट्यकर्मी और कलाविद हबीब तनवीर का मानना है कि 'उत्कृष्ट साहित्य समग्र समाज की संस्कृति से अनुप्राणित होता है'। भारतीय समाज उस बागीचे की रूपाकृति जैसा रहा है जिसमें विविध किस्म, जाति प्रजाति और आस्वाद वाले पेड़ पौधे एक साथ निर्द्वन्द्व भाव से फलते फूलते और जीते रहे हैं। राजनीतिज्ञों ने इस रूपाकृति को संकीर्ण बनाने का काम किया है। इसे आगे बढ़ाने का दायित्व रचनाकार बखूबी निभा रहे हैं। रोहित ठाकुर ऐसे ही युवा कवि हैं जिनके यहाँ उस घर की संकल्पनाएँ हैं जिसे कभी कबीर ने इस रूप में वर्णित किया था कि 'मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।' रोहित चाहते हैं कि 'घर के कोने में/ बची रहे धूप/ चावल और आटा बचा रहे/ जरूरत भर के लिए।' लेकिन साथ में वे उस सहकार को याद करते हुए अपने को और विस्तृत करते हुए कहते हैं 'पृथिवी कुछ हरी रहे'। वे उस घर लौटने के पक्षधर हैं 'नमक के साथ/ उन्माद के साथ नहीं।' आज जिस तरह से हमारे समाज में जाति, धर्म, बोली, भाषा और राष्ट्र के नाम पर लोगों को उन्मादित किया जा रहा है ऐसे में रोहित की पृथिवी और प्रकारान्तर से जीवन के प्रति पक्षधरता पूरी तरह स्पष्ट है। जिस राष्ट्र और समाज के पास ऐसे सकारात्मक सोच वाले युवा रचनाकार हों उसके पास उम्मीदें हमेशा बची बनी रहती हैं। आज पहली बार प्रस्तुत है रोहित ठाकुर की कुछ तरोताज़ी कविताएँ।
 


रोहित ठाकुर की कविताएँ 
  

विष्णु खरे का जाना 



एक कवि का जाना 
एक कवि का इस धरती से जाना 
सितम्बर के महीने में 
धूप के सुनहलेपन को कम कर देती है 
मस्तिष्क पर आघात खाये कवि की कविताएँ 
सुरक्षित रहती है उसकी आत्मा में 
कवि का जाना सितम्बर के महीने में 
महज़ एक सूचना नहीं है 
एक घटना है 
जिसमें भाषा, संवेदना और कविताएँ 
खो देती है सुरक्षा का भाव 
कवि जब सितम्बर के महीने में जाता है तो 
कविताएँ सूखे पत्ते की तरह गिरती है 
स्मृतियों के घाव पर 
उस कवि की कविता 
जो एक पुल था थके हुए आदमी के 
अंधेरे से रौशनी की ओर आने के लिए 
वहाँ अब कुछ दिनों तक सन्नाटा पसरा रहेगा 
सितम्बर के महीने में किसी 
कवि का जाना 
सारी दुनिया के विस्थापित हो जाने जैसा है।


घर 


कहीं भी घर जोड़ लेंगे हम
बस ऊष्णता बची रहे 
घर के कोने में  
बची रहे धूप 
चावल और आंटा बचा रहे 
जरूरत भर के लिए


कुछ चिड़ियों का आना-जाना रहे
और 
किसी गिलहरी का


तुम्हारे गाल पर कुछ गुलाबी रंग रहे 
और 
पृथ्वी कुछ हरी रहे
शाम को साथ बाजार जाते समय 
मेरे जेब में बस कुछ पैसे

 

लौटना


समय की गाँठ खोल कर 
मैं घर लौट रहा हूँ 
मैं लौटने भर को 
नहीं लौट रहा हूँ 
मैं लौट रहा हूँ 
नमक के साथ 
उन्माद के साथ नहीं


मैं बारिश से बचा कर ला रहा हूँ 
घर की औरतों के लिये साड़ियाँ
ठूंठ पेड़ के लिये हरापन 
ले कर मैं लौट रहा हूँ


मैं लौट रहा हूँ 
घर को निहारते हुए खड़े रहने के लिए 
मैं तुम्हारी आवाज
सुनने के लिए लौट रहा हूँ  




बुद्ध 


मैं बुद्ध नहीं हो सका
एक मामूली आदमी के भीतर जो उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव है 
वहाँ से पिघलता है दुःख का ग्लेशियर 
मैं एस्किमो भी नहीं हो सका जिसके सुख और दु:ख दोनों के रंग एक हैं
मेरा शहर खिड़की पर टंगा एक उदास चेहरा है 
जो लालटेन की रोशनी में 
एक नयी आकाश गंगा ढूंढ़ रहा है।।



शहर


उसने धीरे से कहा -
शहर यहीं से शुरू होता है 
और हम लोगों के चेहरों पर दिखा भय 
हम ने एक दूसरे का नाम पूछा 
हम ने महसूस किया कि
घर से चलते समय हमने जो
सत्तू पी वह कब की सूख चुकी 
हम घर से छाता लाना भूल गये थे
हम ने मन ही मन आकाश से की प्रार्थना 
हम दोनों अलग-अलग दिशाओं में बढ़ रहे हैं 
हमारी जमा पूंजी हमारी प्रार्थनायें हैं 
किसी ने कहा था  - शहर की भीड़ में हमारा गाँव - घर बहुत याद आता है 
यहाँ सिर्फ गर्म हवा बह रही है   
कोलतार की सड़क पर चलते हुये हमारे पाँव पिघल रहे हैं   
एक दिन हम इस अनजाने शहर में भाप बन कर उड़ जायेंगे।।



कविता 


यूरोप में बाजार का विस्तार हुआ है 
कविता का नहीं 
कुआनो नदी पर लम्बी कविता के बाद 
कई नदियों ने दम तोड़ा 


लापता हो रही हैं लड़कियाँ 
लापता हो रहे हैं बाघ
खिजाब लगाने वालों की संख्या बढ़ी है 


इथियोपियाई औरतें इंतजार कर रही हैं 
अपने बच्चों के मरने का 
संसदीय इतिहास में भूख 
एक अफ़वाह है 
जिसे साबित कर दिया गया है 


सबसे अधिक पढ़ी गई प्रेम की कविताएँ 
पर उम्मीदी से अधिक हुईं हैं हत्यायें 
चक्रवातों के कई नये नाम रखे गये हैं 
शहरों के नाम बदले गये 
यही इस सदी का इतिहास है  
जिसे अगली सदी में पढ़ाया जायेगा
इतिहास की कक्षाओं में


राजा के दो सींग होते हैं 
सभी देशों में 
यह बात किसने फैलायी है 
हमारी बचपन की एक कहानी में 
एक नाई था बम्बईया हज्जाम उसने।।





यादों को बाँधा जा सकता है गिटार के तार से 


प्रेम को बाँधा जा सकता है 
गिटार के तार से 
यह प्रश्न उस दिन हवा में टँगा रहा
मैंने कहा -
प्रेम को नहीं 
यादों को बाँधा जा सकता है 
गिटार के तार से  
यादें तो बँधी ही रहती है  -
स्थान, लोग और मौसम से
काम से घर लौटते हुए
शहर ख़ूबसूरत दिखने लगता था 
स्कूल के शिक्षक देश का नक्शा दिखाने के बाद कहते थे 
यह देश तुम्हारा है 
कभी संसद से यह आवाज नहीं आयी 
कि यह रोटी तुम्हारी है
याद है कुछ लोग हाथों में जूते ले कर चलते थे
सफर में कुछ लोग जूतों को सर के नीचे रख कर सोते थे 
उन लोगों ने कभी क्रांति नहीं की 
पड़ोस के बच्चों ने एक खेल ईज़ाद किया था 
दरभंगा में 
एक बच्चा मुँह पर हथेली रख कर आवाज निकालता था  -
आ वा आ वा वा
फिर कोई दूसरा बच्चा दोहराता था 
एक बार नहीं दो बार -
आ वा आ वा वा 
रात की नीरवता टूटती थी 
बिना किसी जोखिम के 
याद है पिता कहते थे  -
दिन की उदासी का फैलाव ही रात।।



नींद


नींद बारिश की बूँदों की तरह है 
एक नितांत 
अकेले आदमी के लिए


पिता की पुरानी कमीज़ 
मेरे लिए 
यादों का गुलदस्ता है 


मैं पिता की आवाज 
बोना चाहता हूँ 
अपने मस्तिष्क में।।



एकांत में उदास औरत 


एक उदास औरत चाहती है 
पानी का पर्दा 
अपनी थकान पर 
वह थोड़ी सी जगह चाहती है 
जहाँ छुपा कर रख सके
अपनी शरारतें 
वह फूलों का मरहम 
लगाना चाहती है 
सनातन घावों पर 
वह सूती साड़ी के लिए चाहती है कलप 
और 
पति के लिए नौकरी 
बारिश से पहले वह 
बदलना चाहती थी कमरा 
जाड़े में बेटी के लिए बुनना 
चाहती है ऊनी स्कार्फ 
बुनियादी तौर पर वह चाहती है 
थोड़ी देर के लिए  
हवा में संगीत 




(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेंद्र जी की हैं।)



सम्पर्क



जयंती- प्रकाश बिल्डिंग, काली मंदिर रोड,

संजय गांधी नगर, कंकड़बाग,

800020, बिहार 



मोबाइल नंबर-  7549191353



मेल  : rrtpatna1@gmail.com 

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