लोक, जीवन और प्रतिरोध के कवि केदार नाथ सिंह, प्रस्तुति : कौशल किशोर






विगत 19 मार्च को कवि केदार नाथ सिंह को गुजरे एक साल हो गये। बलिया उनके लिये वह जमीन रही जो उनकी कविताओं के लिये हमेशा उर्वर धरातल प्रदान करती रही। कवि केदार नाथ सिंह की स्मृति में बलिया में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रस्तुत है इस कार्यक्रम की एक रपट।

लोक, जीवन और प्रतिरोध के कवि केदार नाथ सिंह


प्रस्तुति : कौशल किशोर 




केदार जी से हमारी पीढ़ी ने बहुत कुछ सीखा - निलय उपाध्याय 

केदार नाथ सिंह भोजपुरी के हिंदी कवि - डॉक्टर बलभद्र

केदार जी लोक, जीवन और प्रतिरोध के कवि - कौशल किशोर

केदार जी की कविताओं में गांव की स्वाभाविकता है- यशवंत सिंह


बलिया,  हिंदी की जन कविता की परंपरा के महत्वपूर्ण कवि हैं केदार  नाथ सिंह। वे नागार्जुन और त्रिलोचन की परंपरा को आगे बढ़ाते हैं। 19 मार्च को उनकी पहली पुण्यतिथि थी। इस अवसर पर उनके गृह जनपद बलिया में उनकी स्मृति में कार्यक्रम हुआ। यह दो सत्रों में आयोजित था। पहले सत्र में विचार गोष्ठी का कार्यक्रम था और दूसरे सत्र में कविता गोष्ठी हुई। पहले सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार यशवंत सिंह ने की। संचालन किया कवि और लेखक अजय पांडे ने।


गोष्ठी की शुरुआत करते हुए कवि निलय उपाध्याय ने कहा कि हमारी पीढ़ी ने केदार नाथ सिंह  से बहुत कुछ सीखा है।  उनकी  हिंदी कविता में  भोजपुरी की मिठास है।  इस मायने में  वे  भोजपुरी और हिंदी में  सेतु का काम करते हैं  । वहां  लोक भाषा की  गहरी समझ और पकड़ है।


इस चर्चा में भाग लेते हुए कवि और आलोचक  डॉक्टर बलभद्र ने कहा कि केदार नाथ सिंह की कविताओं में गाँव और गाँव के लोगों की केवल स्मृतियाँ नहीं है। वे सब कवि की चेतना में  हैं, काव्य-चेतना के अनिवार्य हिस्से हैं। 'गड़रिए का चेहरा' कविता का उदास किंतु जीवन-राग से सम्पन्न गड़रिए का चेहरा कवि की चेतना में है और कवि दिल्ली की भीड़ भरी सड़क पर बेचैन है। इस बेचैनी को 'कुदाल' में भी देख सकते हैं। केदार जी को समझने के लिए 'मिथक' कविता को देखना अनिवार्य है। इस कविता में 'बटन' का जिक्र है। कवि के कुरते की बटन टूटी है और उसे कहीं जाना है। यहाँ उसे अपने गांव-जवार के वे लोग याद आते हैं जिनके कहीं आने-जाने में बटन बाधक नहीं है। बिना बटन के कुरते में भी वे निस्संकोच कहीं आना जाना कर लेते थे। कवि के भीतर का 'रक्त -किसान' प्रश्न करता है संभ्रांतता को लेकर और उसे खारिज करता है। 




डॉक्टर बलभद्र का आगे कहना था  के  केदार जी की कविता भूख, गरीबी और अन्य तरह की लाचारियों को लेकर प्रश्न भी करती है। वे गीत भी लिखते थे और उनके "धानों के गीत" को कथाकार मार्कण्डेय ने एक टिप्पणी में "लोकगीतों की नागरिक प्रतिध्वनि" कहा था। केदार जी की कविता पर बात हो और भोजपुरी की चर्चा नहीं करना, थोड़ी बेईमानी होगी। वे भोजपुरी के हिंदी कवि थे। कई कविताएँ भोजपुरी पर हैं। उन्होंने तो भोजपुरी में लिखना भी आरम्भ कर दिया था।




इस मौके पर लखनऊ से आए कवि और जन संस्कृति मंच के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने कहा कि जब पाश्चात्य आधुनिकता के प्रभाव में कविता लिखी जा रही थी, कविता में मौन और सन्नाटा बुना जा रहा था, केदार नाथ सिंह की तीसरे सप्तक की कविताएं इनसे अलग थी। वहां लोक संस्कृति और सामूहिकता की भावना कविता में व्यक्त हो रही थी जो समय के साथ सघन होती गई। केदार जी लोक, जीवन और प्रतिरोध के कवि हैं। वे जीवन के हाहाकार और संघर्ष से मुंह चुराने वाले नहीं बल्कि उससे दो-दो हाथ करने वाले हैं। वह कहते भी हैं 'उठता हाहाकार जिधर है, उसी तरफ अपना भी घर है'। वे कविता में साहस की बात करते हैं और कवियों से इस साहस के प्रदर्शन की उम्मीद करते  है। वे मानते हैं कि साहित्य और संस्कृति का काम समाज को सचेत करना है, सजग करना है। जैसे कविता कभी खत्म नहीं हो सकती वैसे ही केदार नाथ सिंह को भी भुलाया नहीं जा सकता। वह हमेशा हमारे बीच रहेंगे अपनी कविताओं के साथ रहेंगे। अपने कवि कर्म के साथ रहेंगे और समाज को राह दिखाते रहेंगे। 



कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार यशवंत सिंह ने कहा कि केदार नाथ सिंह का गांव से जुड़ाव उन लोगों की तरह नहीं था जो शहरों में रहते हैं कभी-कभार गांव आते हैं और उसी नजरिए से गांव को देखते हैं उस पर लिखते हैं। केदार जी गांव में शहर को फैलते तथा शहर में गांव को बसते देखते हैं। उनकी कविताओं में गांव की स्वाभाविकता है। कोई बनावटीपन नहीं, कोई अतीत मोह नहीं। वहां गांव अपनी जीवंतता के साथ उपस्थित है।


विचार गोष्ठी के बाद कवि गोष्ठी का कार्यक्रम था। इसकी अध्यक्षता निलय उपाध्याय ने की। इसका संचालन  भी अजय पांडे ने किया। इस मौके पर विमल किशोर, रामजी तिवारी, बलभद्र, कौशल किशोर, निलय उपाध्याय, अजय पांडे, अशोक तिवारी, भोला प्रसाद आग्नेय, पवन तिवारी, छपरा से आये पी. राज सिंह, सुशांत भारत, बलवंत यादव, असित मिश्र आदि ने कविता पाठ किया।

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-03-2019) को "गीत खुशी के गाते हैं" (चर्चा अंक-3283) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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