सोनरूपा की कविताएँ
सोनरूपा |
सोनरूपा का जन्म उत्तर प्रदेश के बदायू जिले में हुआ. विख्यात कवि उर्मिलेश ने अपनी पुत्री सोनरूपा को बचपन से ही कविता का संस्कार प्रदान किया. सोनरूपा ने एम. जे. पी. रूहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली से हिंदी में प्रथम श्रेणी में एम. ए. किया. फिर 'आपातकालोत्तर कविता: संवेदना और शिल्प' पर अपनी पी- एच. डी. की. संगीत में रुचि के कारण इन्होने प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से 'संगीत रत्नाकर' की परीक्षा पास किया. आकाशवाणी दिल्ली, लखनऊ, बरेली एवं रामपुर केन्द्रों से कविताओं एवं गजलों का प्रसारण साथ ही गायन का भी प्रस्तुतीकरण. अब तक अनेक संस्थाओं के द्वारा सोनरूपा को पुरस्कृत किया जा चुका है. सामाजिक रूप् से भी सक्रिय सोनरूपा महिलाओं के उत्थान के लिए लगातार प्रयासरत हैं.
सर्दियों का मौसम एक बार फिर दस्तक दे चुका है. सोनरुपा ने इन सर्दियों को कविताओं की गुनगुनी धूप में देखने का एक प्रयत्न किया है. इन सर्दियों में जिनमें खुद सोनरूपा के ही शब्दों में कहें तो "सर्दियों में गीत सी दो पहर के बाद / एक सूफियाना आलम होता है / शाम से रात तक का / और सुबह ग़ज़ल सी" तो आइए पढ़ते हैं सोनरूपा की ये सूफियाना अन्दाज वाली ये नयी कविताएँ.
सोनरूपा की कविताएँ
१
साल का दिसंबर
निश्चित है
और ज़िन्दगी का
दिसंबर
जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, जून, जुलाई,
अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर, नवम्बर में भी हो जाया करता है
२
तीसरी सर्दी
है तुम्हारे बिना
पहली तुम्हारे
साथ थी
मैंने लाल गुलाब
को सफ़ेद होते देखा है
३
तुम तापमान के
घटने-बढ़ने को
सर्दियाँ-गर्मियाँ कहते हो
मुझमें ऐसा
अक्सर होता है
वसंत, पतझड़, सावन,
कभी भी
४-
उँगलियाँ
स्पन्दनहीन
हथेली बर्फ़ हो जाती होंगी
रात गए ठंड से
जो लिख नहीं पा रहे हो न
उसे कह मत देना
तुम्हारा लिखा हुआ
पढ़ सकती हूँ मैं कई बार
तुम्हारा कहा हुआ नहीं
५-
‘हाड़ कँपाती हुई ठंड’
जैसे अधूरे वाक्यांशों
के विराम
फुटपाथों और
सड़कों पर घूमा करते हैं
६-
सर्दियों में
गीत सी दोपहर के बाद
एक सूफ़ियाना आलम
होता है
शाम से रात तक
का
और सुबह ग़ज़ल सी
आफ़रीन आफ़रीन
सम्पर्क-
ई-मेल- sonroopa.vishal@gmail.com
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं)
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं)
कोमल अनुभूतिओं के बिम्ब में कविता व्यापक वितान लिए हुये हैं ,कई अनछूए पहलू भाषा मे सिहर उठे हैं.....................बधाई ! पहली बार !
जवाब देंहटाएंतीसरी सर्दी है तुम्हारे बिना
जवाब देंहटाएंपहली तुम्हारे साथ थी
मैंने लाल गुलाब को सफ़ेद होते देखा है
इन कविताओं में कुछ है जो मन को स्पन्दित करता है ।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar kavitayen hain...delicate...imaginative..!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंBahut achchi tarah se Vicharon ko prastut kiya hai..��
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