विनोद विश्वकर्मा का उपन्यास अंश
राजनीति का मूल उद्देश्य सामान्यतया लोक-हित होता है. लेकिन जब राजनीतिज्ञ इसे अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने लगते हैं तब इसके मायने बदल जाते हैं. तीन-तिकड़म से ले कर तमाम भ्रष्ट उपाय किए जाते हैं सत्ता प्राप्त करने के लिए. इसी का नतीजा था राजनीतिज्ञों और आपराधिक किस्म के लोगों के बीच का सम्बन्ध. आज अपने यहाँ यह और विकृत स्वरुप में दिखायी पड़ रहा है. विनोद विश्वकर्मा ने अपने हालिया प्रकाशित उपन्यास 'ठहरा हुआ देश' में इस मुद्दे को करीने से उठाया है. आज पहली बार प्रस्तुत है इसी उपन्यास का एक अंश.
एक फैसला.... जो सुरक्षित था..... आदमी
क्या सुरक्षित थे... नहीं पता......!
विनोद विश्वकर्मा
दिल्ली, स्थान, भारत का सर्वोच्च न्यायालय......!
“जज साहब मेरा पहला गवाह है, जो बताएगा कि बिसाखू लाल रविदास ही बाप है, विजय कुमार रविदास का.”
“बिसाखूलाल रविदास विटनेस बॉक्स में
हाजिर हों.”
बिसाखू मटमैली धोती पहने, और उसी तरह मटमैला कुरता पहने चलता है, पैरों में ज्यादा
दम नहीं है, इसलिए कोई एक उसे पकड़े है, और धीरे-धीरे ले जा कर उसे विटनेस बॉक्स में खड़ा कर जाता है. उसके गले में काला
धागा है, उसे ही वह बार-बार पकड़ता है. वह काँप रहा है.
“आपका नाम.”
“बिसाखूलाल रविदास...!”
“पिता का नाम....!”
“कचरुआ रविदास.....!”
“आपकी उम्र कितनी है.....!”
“पचहत्तर से अस्सी बरिस के करीब होगी....!”
“जन्म तिथि क्या है...?”
“नहीं जानित हमन ...!”
“आपकी पत्नी का क्या नाम है...?”
“छोटकइवा रविदास....!”
“आप के बच्चों का क्या नाम है....?”
“सिसिया रविदास औउर विजयकुमार रविदास ....!”
“तो आप यह स्वीकार करते हैं कि विजयकुमार रविदास आपका बेटा है.....!”
“हओ माई बाप....!”
“दैट्स इट ...माई लार्ड ..... दैट्स इट ...माई लार्ड .....!”
“अब आप जा सकते हैं....?”
“हम औउर कुछ कहै चाहित हमन ...जज साहिब....!”
“नहीं, अब आप जा सकते हैं.”
“काहे, हमही औउर कुछ बताना हय, हम बोलई चाहित हमन ...जज साहिब....!”
“जज साहब आपकी भाषा नहीं जानते हैं, मैं आपकी भाषा अनुवाद
कर उनको बताता हूँ.”
“जज साहिब ने कछु कहा ...!”
“मैंने नहीं समझा....”
“वह कहि रहे हैं , इसे बोलने दीजिए.”
“त जज साहिब इ बात रही कि विजय कुमार हमार लड़िका आहई ई
बात का हम मानित हमन ....इहऊ बाति सच आहई .... कि जब हमरी शादी छोट...कई ..वा से भई
...त ...उआ चालिस-बयालिस साल के रही, और हम रहेन पचास-पचपन के ...उ समय जब हमार
शादी भई रही ...ई ...लड़िका एके साथ रहा....!!”
लोग इआ कहत हमा कि ईआ ..एकर लड़िका न होय....एका गाँव के शिव मंदिर माहीं मिला
रहा ....
ऊ ...मन्त्री साहिब के. के. कोचर जउन ऊ बैठ हमा उहाँ ....ईआ.. पहिले ओनकर रखईइल रही हवई....हमार कउनऊ...माई बाप रहा नहीं ...हम त .. भिखारी
रहेन ...गाँव माहीं एह्मू-ओहमूं बागत रहें.....त हमार ...बिआह ..ई...मन्त्री ...साहिब एही ..से कराई दिहिन....इ लड़िका जब एका मिला रहा त दु-तीन साल के
रहा,
जब हमार बिआह भा ता दस-ग्यारह सालि के रहा.....!!!!!!!!!!!!!”
“...............................!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!”
“एकर नाम सकूल माहीं नाहीं लिखा जात रहा बिना बाप के नाम के त हमार शादी एसे
भई
......त हमार नाम एकरे ...साथ ....जुड़ा ....बस.......!!!!!!!!!!!!!!!!”
“..................!!!!!!!”
“इहई...सच आहई ...माई ...बाप....!”
कुछ देर तक बिसाखू उसी तरह, वहीँ खड़ा रहा.जज के बगल में बैठे व्यक्ति को उनसे बात करते देखता रहा. फिर उसने देखा....जज के
बगल में बैठे व्यक्ति ने कुछ कहा.
“आपको और कुछ कहना है.”
“हाँ साहिब ..हाँ..!”
“कहिए ..!”
“निचली अदालत मा नहीं मिला, बड़ी अदालत मा नहीं मिला, अब ई सबसे बड़ी अदालत माहीं निआय ई लड़िका का मिलई का चाही....!”
“जो सबूतों पर साबित होगा, वही निर्णय दिया जाएगा.”
बिसाखू ने देखा कि जज साहिब के बगल में
बैठे व्यक्ति ने यह कहा. उसे जाने के लिए कह दिया
गया. वह यह सोचता हुआ चला आया कि – ‘इ कईसन विडम्बना हवइ की अपनेन देश माहीं अपनी भाषा के जज नहीं आहीं ...अपने
ऊपर भए अनिआव केर फईसला हमहीं अपनी भाषा माहीं सुनई का नाहीं मिलत ....!!!”
बिसाखू के जाने से पहले वादी वकील से पूछा गया कि आपको इनसे कुछ पूछना है, और उसने मना कर दिया. हालाँकि वह प्रश्न पूछना
चाहता था लेकिन जाते-जाते बिसाखू ने कह दिया जो वह पूछना चाहता था.
बिसाखू-छोटकई रविदास पहले दिल्ली आये थे, तो दिल्ली इन्हें
अपनी नहीं लगी थी. विजय के पक्ष वाले दस-बीस लोग गाँव से आए थे वह
इस न्यायालय के अंगरेजीमय वातावरण के कारण
यह सोच रहे थे कि शायद उन्हें विदेश की किसी अदालत में लाया गया है. वैसे भी ये लोग दिल्ली पहली बार आए थे और इनको दिल्ली विदेश से कम नहीं लग रही
थी.
प्रतिवादी वकील ने छोटकई को बुलाया, अन्य
औपचारिकताओं के बाद पूछा.
“क्या आपके साथ बलात्कार हुआ है...?”
“हाँ...हुआ था....” उसने चिट लिख कर दे दिया.
“क्या विजय कुमार रविदास आपका बेटा है....?”
“हाँ है.” उसने चिट लिख कर दे दिया.
“पहले मुझे यह बात पता नहीं थी कि यह मेरा बेटा है, वह मुझे गाँव के शिव मंदिर में ही मिला था.जब के के कोचर मन्त्री नहीं थे तो अपने किसी काम के सिलसिले में हमारे गाँव में आते थे, आज से करीब पैंतालीस-पचास साल पहले. एक दिन गर्मीं की दोपहरी में मुझे कोचर ने बताया था कि एक लड़का है मंदिर में
तुम चाहो तो उसे ले आओ. और मैं ले आई. तब मैं नहीं जानती थी कि यह मेरा बेटा है, लेकिन मैने इसे
अपने साथ रख लिया, इसी कारण मुझे मेरे घर से निकाल दिया गया. इसके
करीब सत्ताईस साल बाद इन्होंने मुझे और मेरे
बेटे को कैद कर लिया, इनके खिलाफ मेरा बेटा लड़ रहा था, यह महाभ्रष्टाचारी थे सरकार के साथ कई धोके किये थे. लोगों का हाथ-पाँव काट कर भिखारी बनाते थे, इसी के खिलाफ मेरा
बेटा इनसे लड़ रहा था.इनके ऊपर कई जनहित याचिकाएं लगी थीं. एक दिन इन्होंने हमें कैद करवा लिया और इलाहाबाद के इनके घर में बने तहखाने में....कोचर
ने ही मुझे बताया कि वहीँ पर मेरा बलात्कार हुआ है, इनके अनुसार यह
बात आज से करीब पैतालीस-पचास साल पुरानी है, सात-आठ लोगों ने
मिलकर मेरा बलात-कार किया. उसके बाद मैं पागल हो गई, और इलाहाबाद की सड़को में ही गर्भावस्था में भीख मांगती थी. भीख का पैसा भी यही रख लेते थे. मुझे कुछ याद नहीं था कि
उन दिनों मेरे साथ क्या-क्या हुआ. मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि मैं गर्भवती कब थी, तहखाने में यह लड़का पैदा हुआ था, मैं इन्हें बहुत पसंद थी. मैं बहुत खूबसूरत थी और मेरी खूबसूरती के कारण
ही इन्होंने मेरा इलाज कराया था........... जिस दिन इस घटना की जानकारी इन्होने मुझे दी...............
उसी दिन इन्होंने मेरे दोनों हाथों की उंगलियां काट दी, मेरी जीभ काट दी.... यही कारण है कि
अब मैं बोल नहीं पाती हूँ .....पैरों से लिखती
हूँ, इन्होंने कहा था कि मैं तुझसे प्यार करता हूँ....लेकिन क्या करूँ मुझमें मेरा
ही बस नहीं है... अब तू एक सबूत है. इस लिए तेरे साथ
ऐसा कर रहा हूँ....” उसने चिट लिख कर दे दिया.
“फिर सोच कर बताइए... क्या आपको मालूम है कि यह लड़का आपके साथ हुए बलात्कार का ही परिणाम है.....!!!!!!!!!”
“हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ..................................................................................................................................................!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!”
उसने चिट लिख कर दे दिया.
छोटकई .....गों...गों... करते रोने लगी. उसने लिखा.
“क्या मजाक है..... आप को शर्म नहीं आती कि आप एक सत्तर साल की बुढ़िया
से वही बात बार-बार पूछ रहे हैं. जो पहले पूछ चुके हैं........!”
छोटकई विटनेस बॉक्स में बैठी, अपने पैरों से कागज़ पर पूछे गए प्रश्नों के जवाब
लिख रही थी. इसके बाद एक व्यक्ति उसे पढ़ कर न्याय-सदन में
सुनाता था.
प्रतिवादी वकील प्रश्न पूछता और छोटकई जवाब देती जाती. वह अंगरेजी में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर अंगेरजी
में ही देती. वह बचपन से ही खूब
अंग्रेजी जानती थी. उसे गाँव में ‘अंगरेजी-रानी’ कहा जाता था. इस कारण उसका बाप चिलोथरा और बड़ा भाई बड़ोखरा बहुत
खुश रहते थे. कहते थे बड़ी अफसर
बनेगी हमारी छोटकई. तब वह यह नहीं जानते थे कि छोटकई के साथ यह सब होगा.
अब बारी वादी वकील की थी.
“जज साहब! पिछली पांच सुनवाइयों में इस केस की बहुत सारी
बातें साफ़ हो चुकी हैं. पिछले दिनों बलात्कार की पीड़ित अन्य
करीब बीस महिलाओं ने अपने बयान दिए हैं और के. के. कोचर और अन्य के खिलाफ यह केस बड़ी मजबूती से
खड़ा हो गया है, सबूत के तौर पर करीब चालीस साल पुराना वीडियो रील
प्राप्त हुआ है. आपकी अनुमति के
बाद आज उस वीडियो को प्ले करने की व्यवस्था की गई है. मैंने एक सर्वे से पता किया है कि आज तक जो बलात्कार
नाबालिग लड़कियों, युवा लड़कियों और औरतों के साथ हुए हैं वह करीब
पचहत्तर प्रतिशत दलितों के साथ हुए हैं, यह रिपोर्ट
प्रस्तुत है. वास्तव में यह चिंताजनक
है कि देश की आजादी के इतने वर्षों बाद, आज भी इन वर्गों
के प्रति लोगों में सम्मान का भाव नहीं आ पाया है, अतः यह जरूरी है
कि आज इस मुकदमे का फैसला होना चाहिए जिससे
भारत की न्याय व्यवस्था के प्रति इन वर्गों का विश्वास जागे. और यह बात गलत हो जाए कि न्याय केवल धन वालों को
मिलता है.
हालाँकि यह बहुत ही वीभत्स वीडियो है लेकिन फिर भी सबूत के तौर आप इसे देखें. और इसके लिए कृपया
बनाए गए कक्ष में चलें. इसके पहले यह कार्य करने की अनुमति प्रदान करें.”
और फिर वादी-प्रतिवादी वकील तीन जज और कुछ अन्य उस गुप्त कक्ष में गए.
वह वीडियो चलाया गया. उसमें कोई तहखाना था और उसमें यह दृश्य था. स्कूल ड्रेस में
एक लड़की थी,
लड़की से कोचर ने कहा.......
“बेटी कुछ गाना जानती हो.......!”
“हाँ......जानती ...........हूँ......!”
“गाओ.....!”
“जन गण मन .....जय हे..........
भारत...........भाग्य विधाता...........!”
“ठीक है.......ठीक है.........!”
“इतनी उमर में यह गाना गाती हो........
“हाँ यह तो किसी भी उम्र का गान है.....!”
“कोचर जी अब मैं जाऊं.....!”
“हाँ चली जाना............पहले यह जूस पी लो.....!!”
कुछ देर बाद.........
“रुख से जरा नकाब हटा दो मेरे हुजूर...............
जलवा फिर एक बार दिखा दो मेरे हुजूर............!!!!!!”
और फिर ठहाके गूंजने लगे.......
नशा चढ़ने लगा......
और कुछ देर बाद लड़की के साथ बलात्कार........... का दृश्य ..... उसके साथ बारी-बारी से बलात्कार
करने वाले थे, उसमें साफ़ दिख रहे थे मन्त्री के. के. कोचर और उसके साथी. करीब सात-आठ लोग. अट्टहास, हंसी, गालियाँ, वीभत्स दृश्य का चरम था. और इसके साथ थीं दारू की बोतलें, जाति सूचक गालियाँ. इसके साथ थी उस लड़की की पीड़ा, चीख, छटपटाना, भागने की कोशिश करना. बेहोश होती लड़की, फिर भी उसके शरीर
के साथ खेलते लोग.
तीनों जजों ने धैर्य से देखा था और अंत तक रो पड़े थे. और इसके कुछ पल बाद ये लोग अपनी सीट पर आ गए थे. अभी कुछ और जांच
जरूरी थी.
फोरेंसिक एक्सपर्ट को बुलाया गया. डी. एन. ए. रिपोर्ट और प्राप्त वीडियो रील की जांच रिपोर्ट
प्रस्तुत करने के लिए.
वादी वकील ने इसके पहले एक व्यक्ति को बुलाने की अनुमति मांगी और उनका नाम पुकारा
गया.
“काकादीन विटनेस बॉक्स में हाजिर हों”
अन्य औपचारिकताओं के बाद उनसे प्रश्न
किया गया.
“यह रील जिसमें इस मुकदमे का अहम् सबूत है, आपके पास पत्रकार
जनतन्त्र कुमार को मिला, यह आपको कैसे मिला जरा विस्तार से बताएँ.”
काकादीन के चेहरे पर चमक बिलकुल नहीं थी, उसका चेहरा मुरझाया
हुआ था, दुखी मन वह बोल रहा था.
“जज साहब यह मेरे ही पापों की करतूत है, उन दिनों आज के
केंद्रीय मन्त्री के के कोचर के कई धंधे
थे. स्थानीय गाँवों
से मुझ जैसे कई लोगों का दल तैयार किया जाता था. और हम लोग गाँव से लड़कियां लाया करते थे. छोटकई मेरे गाँव
की है,
मेरे मित्र बड़ोखरा की बहन है, उसने बड़ी मेहनत से इसे पढ़ाया था. और मेरे साथ इलाहाबाद
पढ़ने के लिए भेजा था. वह मुझे बहुत मानता था.कहता था आप तो मेरे देवता हैं, लेकिन मेरे दिमाग में कोचर का दिया सपना लहरा रहा था. इस कारण मैंने उसके साथ दगा किया.कोचर का कहना
था,
कि इस काम में बड़ा पैसा है, और बाद में राजनीति का सुख, यह काम करो और सुख पाओ. विदेश घूमो, डालर कमाओ, पाउंड कमाओ.
उन दिनों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, आदि क्षेत्रों से विभिन्न वर्गों से ऐसे ही लड़कियां
लाई जाती थी. कुछ को तो बेंच दिया जाता था, और कुछ को इसी तरह बलात्कार करने के बाद फिल्म बना कर बेचा जाता था, बलात्कार हुई लड़कियां
या तो पागल हो जाती थीं, या उन्हें भी बेंच दिया जाता था. विदेशों में इसकी
सप्लाई होती थी. इसमें पैसा खूब
मिलता था. पैसे की खातिर लोग
रिश्ते-नाते ताक पर रखकर यह सब काम करते थे. जो बच्चे आते थे उन्हें भिखारी बना दिया जाता था, दिन भर जो भीख मांगते थे उसे कोचर अपने पास रखते.
जिस दिन यह रील बनी तो कोचर ने मना कर दिया था कि इसकी रील मत बनाना लेकिन मैंने
इसकी रील बना ली, और अपनी रक्षा के लिए इसे अपने पास रख लिया. कोचर को कुछ दिनों
बाद पता चल गया, फिर उसने इसे प्राप्त करने कि बहुत कोशिश की लेकिन
यह रील इसे प्राप्त न हो सकी. इसका फायदा मुझे यह हुआ कि इनकी टीम में मेरा कद
बढ़ गया. अभी कुछ दिनों पहले
मैंने इसका सौदा सौ करोड़ रुपये में इससे किया था.
और इसे ले कर मैं दिल्ली आया था. रास्ते में मुझे जनतन्त्र आज तक के पत्रकार जनतन्त्र मिले. मैंने उन्हें प्रड्यूस करने के लिए दे दिया. बदले में मैं इन्हें
दस करोड़ दे रहा था. लेकिन इन्होंने यह रील जनतन्त्र आज तक की हेड विनी जी को दे दिया. इस रील में एक दो
जगह पानी देते, शराब देते, अन्य खाने की चीजें
सप्लाई करते मैं भी हूँ अतः जनतन्त्र ने कहा कि आप भी इसमें फंस जायेंगे. मुझ पर और भी कुछ दबाव
थे इस कारण मैं सरकारी गवाह बन गया.
मैं यह शपथपूर्वक कहता हूँ कि इस वीडियो
के एक-एक दृश्य सही हैं, और मन्त्री के के कोचर बहुत बड़े घोटालेबाज हैं और सामाजिक अपराधी
हैं. इन्हें कठिन से
कठिन सजा मिलनी चाहिए. और मुझे भी मैं भी इसमें अपराधी हूँ. और सभी छोटे-बड़े कारनामों में इनका इनके साथियों
का साथी हूँ.
आज जो इनका पचास हजार करोड़ से भी ज्यादा का कारोबार है, वह जनता के खून का पैसा है, जनता को लूटने का पैसा है, लोगों को भिखारी बना कर उनसे कमाया गया पैसा है, लड़कियों की इज्जत को बेंच कर उससे कमाया गया पैसा है. शीलभंग होती लड़कियों
की पीड़ा, चीख का पैसा है, रोटी को तड़पते हुए बच्चों की भूख का पैसा है. इसने अपने आस-पास
अपने चरित्र के दो रूप बना रखे हैं एक देवता का है. जिसे यह धार्मिक गुरुओं से पोषित करवाता है. दूसरा दानव का है
जिसे यह अपराधियों से पोषित करवाता है. इसका एक रूप ही सही है. अपराधी का, इसे दंड मिलना ही
चाहिए.”
प्रतिवादी वकील.
“काकादीन यह सब आप क्या बके जा रहे हैं, और बिना अपराध साबित
हुए आप मन्त्री जी को अपराधी करार दे रहे हैं, यह संविधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन है, माई लार्ड यह आदमी अपने आपको बचाने के लिए झूठ बोल रहा है. यह सब अपराध इसने
किये हैं, और आरोप मन्त्री जी पर लगा रहा है.”
“नहीं जज साहब मैं भगवान् शिव की शपथ लेता हूँ कि मेरी एक-एक बात सही है, मेरे लिए भगवान् शिव से बड़ा कोई नहीं है.”
जज – “ठीक है आपकी बातों
के प्रमाण के लिए, फोरेंसिक एक्सपर्ट जॉर्ज पीटर अब इस केस में प्रस्तुत
सबूतों की सही-गलत कि जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे.”
जज साहब मैं अब फोरेंसिक एक्सपर्ट जोर्ज पीटर को विटनेस बॉक्स में बुलाने की
इजाजत चाहता हूँ.”
जज की इजाजत के बाद जॉर्ज पीटर कुछ कागज लिए विटनेस बॉक्स में पहुँचे. उनके चेहरे को देखकर
लग रहा था कि इन्हें धमकियाँ मिली हैं. चेहरा पसीने-पसीने हो रहा था. कोचर के सामने बैठे
कुछ व्यक्तियों को वह बार-बार देख रहे थे.
जॉर्ज पीटर रिपोर्ट्स लेकर खड़े थे. न्याय के सबसे बड़े ‘घर’ में भी भयभीत थे, जज के भरोसा दिलाने पर कि आपको कुछ नहीं
होगा आप अपनी बात ईमानदारीपूर्वक कहिए.
वादी वकील ने औपचारिकताओं के बाद पूछा.
“इस केस से जुड़े जितने सैम्पल आप ले गए थे वह क्या कहते हैं...?”
“जज साहब मैंने पहला सैम्पल लिया था वीडियो
रील का जो शत प्रतिशत सही है, और उसके साथ कोई भी छेड़छाड़ नहीं हुई है, यह उसकी रिपोर्ट.”
“दूसरा सैम्पल लिया था डाक्टर के. एस. जैन द्वारा किये गए डी. एन. ए. रिपोर्ट का, इसकी भी मैंने फोरेंसिक जांच की, जो शत प्रतिशत सही है.
डाक्टर के. एस. जैन द्वारा
किये गए डी. एन. ए. रिपोर्ट में पाया
गया है कि छोटकई ही विजय कुमार की माँ हैं, जो शत
प्रतिशत सही है.
डाक्टर के.एस. जैन द्वारा किये गए डी.एन.ए.रिपोर्ट में विजयकुमार का, कि इनके पिता कौन हैं...?
इनके साथ ही मन्त्री के. के. कोचर, शक्ति स्वरूप शंकराचार्य, असलम अलिबेग पूर्व आई. ए. एस., अरुण नायर चौधरी
पूर्व आई. पी. एस., और कुछ अन्य लोगों का, जो शत
प्रतिशत सही है.
विजय कुमार के डी. एन. ए. में करीब आठ लोगों
के जेनेटिक तत्व मिलते हैं, इनके खून में आठ अलग-अलग विशेषताएं हैं.
जेनेटिक रूप से देखा जाय तो मन्त्री के के कोचर, शक्ति स्वरूप शंकराचार्य, असलम अलिबेग पूर्व आई. ए. एस., अरुण नायर चौधरी
पूर्व आई. पी. एस., और कुछ अन्य कुल आठ लोग ही इनके पिता हैं.”
“.....................!!!!!!!!!!!!”
“.........यह रही सभी जांच रिपोर्ट्स, जो आपकी ओर प्रेषित
हैं.”
सभी रिपोर्ट्स अर्दली ने लेकर जज को
दे दी.
“एक अंतिम बात जो मैं कहना चाहता हूँ वह यह है कि मैंने अपना काम पूरी ईमानदारी
से किया है, हालाँकि मुझे और मेरे बच्चों को जान से मारने के लिए धमकियाँ फोन पर मिलती रहीं, मुझे पच्चीस करोड़ की रिश्वत भी आफर की गई
थी. लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया कि रिपोर्ट्स गलत दूँ.”
प्रतिवादी वकील से-
“आपको कुछ पूछना है जॉर्ज पीटर से.”
“नो, नहीं जज साहब.”
जज-
“मिस्टर जॉर्ज पीटर अब आप जा सकते हैं, आप पुलिस की मदद
कीजिए. और उन्हें अपने
ऊपर हुए अत्याचार की जानकारी दीजिए, आपकी सुरक्षा के लिए पुलिस बल दिए जाते हैं. जिन लोगों ने आपके काम को प्रभावित करने कि कोशिश की है उनके खिलाफ
आपराधिक प्रकरण दर्ज किए जायेंगे.”
“जी.....सर..........मैं पूरा सहयोग करूँगा.....!”
वादी वकील-
“भारतीय संवैधानिक न्यायिक इतिहास में यह पहला ऐसा आपराधिक मामला होगा जो विजय कुमार रविदास +
छोटकई रविदास वरसिस मन्त्री के के कोचर, शक्ति स्वरूप शंकराचार्य, असलम अलिबेग पूर्व आई. ए. एस., अरुण नायर चौधरी
पूर्व आई. पी. एस., और कुछ अन्य कुल आठ लोग के खिलाफ, जिसमें इतने स्पष्ट
तरीके से आरोपिओं पर लगाए गए आरोप साबित हुए हैं, वरना इस वर्ग और
इससे निचले वर्ग के लोगों पर हुए अत्याचारों की रिपोर्ट्स देश में साल भर में करीब
पचास हजार बार से भी अधिक बार दर्ज की जाती हैं, इनमें से कई मामले
कोर्ट तक नहीं पहुँचते हैं, कई निचली अदालतों में ही दम तोड़ देते हैं, कई इस वर्ग के लोगों के दम तोड़ देते हैं वे धन के अभाव और सामाजिक असुरक्षा के
कारण लड़ ही नहीं पाते, इस देश में न्याय इतना मंहगा है, न्याय इतनी देर बाद मिलता है कि इस वर्ग
और इससे निचले वर्ग के लोगों को न्याय प्राप्त करना ठीक वैसा ही है जैसे आकाश में बिना
हवाई जहाज के उड़ना.
अतः मैं जज साहब से गुजारिश करता हूँ कि विजयकुमार रविदास + छोटकई रविदास के
पक्ष में अपना फैसला सुनाएँ और न्याय की परम्परा को कायम रखें.”
जज-
“दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने और सबूतों की जांच करने के बाद यह लगता है
कि इस प्रकरण में निचली अदालतों में उचित ढंग से विचार नहीं किया गया है............ इस प्रकरण का फैसला
सुरक्षित है. जो दोपहर के भोजन
के बाद पांच सदस्यों की न्यायिक समिति के विचार मंथन के बाद सुनाया जायेगा.”
प्रधान न्यायाधीश उठकर चलने लगे, उनके साथ अन्य
न्यायधीश भी.
बिसाखू उनको गौर से देख रहा था. अनुवादक
ने जज की बातें दोहरा दी. बिसाखू उठकर बोलने लगा.
“जज साहिब....जज साहिब....!!!”
उसे लोगों ने बिठाने की कोशिश की लेकिन
वह नहीं बैठा. वह- “जज साहिब.... जज साहिब....!!!” कहता ही रहा.
जज ने कुछ झुंझलाहट में कहा – “ठीक है आप कहो क्या कहना चाहते हो.”
“साहब का एकर फैसला अबहिन् नाही होई सकता.”
“नहीं....!”
“काहे......जज साहिब........ जब सारी कारवाही पूरी होई चुकी है, तो काहे नाहीं होई सकता.”
“अभी हमारी टीम कुछ अन्य मुद्दों पर विचार करेगी, यह एक हाईलेबल प्रकरण है.”
“हाई.. लेबिल से का मतलब
और मुकदमें भी छोटे अउर बड़े होत हमां.”
“नहीं...... यह एक संवेदनशील
मुकदमा है, इस कारण से इस पर विचार करना पड़ रहा है. हो सकता है कि एक सप्ताह तक या इससे कुछ अधिक समय
तक यह फैसला सुरक्षित रहे. अभी प्रतिवादी वकील की भी तो बात सुननी है. हमें सेकेण्ड हाफ
में इससे भी जरूरी प्रकरणों पर विचार करना है.”
“नाही जज साहिब एकर फैसला अबहीं करी, हमहूँ ऊआआ ...वीडुआ
देखे रही....छोटकईवा के साथ, विजुआ के साथ बहुत बड़ा अनिआय हुआ हैय....एकर फैसला
करी.”
“नहीं ऐसा नहीं होता, हम भावना में बह के फैसला नहीं कर सकते, और तुम कौन होते
हो मुझे यह कहने वाले कि मैं फैसला करूँ, मैं गवाहों-सबूतों
पर ही फैसला करता हूँ.”
“साहिब हमहूँ एहीं देश के आहेन, जब कारवाही पूरी होइगई अपना स्वयं कहेन, ता एकर फैसला करी, भोजन रोक देई. ईया कहै के हक़ हमका हमरा संविधनवा देत हबै.”
“तुम मुझसे बड़े हो....???”
जज खीझ गए. सोच रहे थे- “यह बूढ़ा कैसी-कैसी
बातें करता है.”
अनुवादक भी जज और बिसाखू की बातों का अनुवाद करते-करते खीझ गया था.
“नहीं साहिब न हम अपना से बड़े आहेन, न अपना हमसे बड़े आहेन, बड़ा हमा नियम-कायदा, और अपना से एगो सवाल रहा कि कउनउ क्षेत्र के
फैसला होय ओह्माहीं ऊ क्षेत्र केर पांच-पांच आम लोगन का काहे शामिल नहीं कीन जात.....?”
“सभी मुकदमों में लोग ही होते हैं, उस क्षेत्र के, हाँ वह न्याय नहीं करते हैं, न्याय तो जज ही करता है. आप इसके लिए संसद में पत्र भेजो, अपनी बात कहो, संसद इसके लिए नया कानून लाएगी, तो न्याय देने में आम आदमीं भी शामिल हो सकेंगे.”
“.......हम लिखबाउब ....!!!”
बिसाखू को दो लोग पकड़कर बाहर ले गए, और समझाने लगे की
जज से ऐसी बात नहीं करते, वह कोर्ट की अवमानना पर आपको जेल भी भेज सकता है. न्याय तो जज ही
करता है. उसमें आम आदमीं
का क्या काम.
वह किसी की बात मानने को तैयार नहीं हुआ, उसे देख कर लग रहा था कि
जैसे वह अस्सी वर्ष का बूढ़ा नहीं, आठ वर्ष का बालक है. और वह जिद पर अड़ा है. क्या उसके मन में कोई आशंका थी जिसके कारण वह परेशान
था.
सेकण्ड हाफ़ में उनमें से कुछ ही जज आए. कुछ को किसी पारिवारिक कारणों से जाना पड़ा. उन्होंने अन्य प्रकरण
देखे,
यह सूचना दी गई कि इस प्रकरण की कार्यवाही पूरी हो गई है. इसका फैसला जल्द
ही किया जायेगा. इसका फैसला सुरक्षित
है.
बिसाखू उदास था वह सोचता रहा की- “अपनेन देश माहीं अपनी भाखा में निआव नहीं मिलता, का ऐसा नहीं होई
सकत कि जज को हिन्दी सीखना जरुरी कर दिया जाय, और वह लोग भी हिन्दी में बात करें, अंगरेजी में नहीं, अपने ही देश में अइसन लागत हय कि हम
विदेश मे, अंग्रेजन के देश म हमन.”
उसी शाम को दिल्ली के एक पार्क में, विनी, विजय, छोटकई, बिसाखू, बड़ोखरा तथा अन्य
पंद्रह लोग घूमते देखे गए.कुछ लोग उनके आस-पास उन्हें घूरते पाए गए. कुछ लोग डरे हुए
थे कि कहीं यहीं पर गुम न हो जाएँ.
रात्रि के करीब नौ बजे इन्हें आनंद
विहार रेलवे स्टेशन से शंकरगढ़ भेज दिया गया. वहाँ से ये लोग गाँव कूटरपुर चले जायेंगे.
दिल्ली में रह गए सिर्फ दो लोग.विनी-विजयकुमार. उस रात इन दोनों
का खाने-पीने का मन नहीं हुआ. घर की छत पर अनंत में आकाश में तारे देखते रहे
और सोचते रहे कि शायद आकाश में ही कोई हल इन्हें मिल जाए. फिर वहीँ पर सो गए. यह अगस्त अंत का समय था. बारिश से दिल्ली तरबतर थी. उस रात पानी नहीं
बरसा. शायद जाते-जाते
गाँव वाले अपने आंसुओं से दिल्ली को भिगोकर गए थे. उदासी और दुःख वातावरण में छाये रहे.
शाम तक पूरे देश में सभी न्यूज़ चैनल पर यह खबर भी प्ले होती रही, अगली सुबह सभी पत्रों में कहीं न कहीं जगह बनाने में कामयाब रही. और इसीलिए जनता
का ध्यान इस प्रकरण पर किसी न किसी तरह बना रहा.
विनोद विश्वकर्मा |
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ईमेल : dr.vinod.vishwakarma@gmail.com
मो. : 09424733246
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)
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