ता दाय अन्ह की कहानी 'गाँव की सबसे सुंदर लड़की'
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Ta Duy Anh |
ता दाय अन्ह का जन्म 1959 में हुआ था उन्होंने गुयेन दू रचनात्मक लेखन स्कूल, हनोई में अध्ययन किया और फिर वहीं 1994 से 2000 तक अध्यापन किया। 2000 से उन्होंने वियतनाम लेखक संगठन में संपादक का काम किया। उनके कई उपन्यास और कहानियां प्रकाशित हुई और अक्सर राजनैतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों जैसे भ्रष्टाचार इत्यादि पर लिखा। परिणामस्वरूप उनकी कई पुस्तकें प्रतिबंधित की गई। “गांव की सबसे सुंदर लड़की” उनकी वियतनाम में बहुत प्रतिष्ठित और सर्वाधिक पढ़ी गई कहानी है। वियतनाम के उत्तरी इलाके के एक गांव की पृष्ठभूमि पर, जहां जीवन अपेक्षाकृत सरल और धीमा है, यह कहानी टुक नाम की युवा स्त्री के इर्दगिर्द रची गई है। टुक का चरित्र हावो के संदर्भ में सिंड्रेला जैसा हो सकता था किंतु विरोधाभास यह है कि टुक कहानी के अंत में एक दुखद चरित्र रह जाती है, मुख्यतः अपनी नैतिक परिशुद्धता के कारण। कहानी का कालखंड अमेरिका– वियतनाम युद्ध (1955–1975) के दौरान और उसकी समाप्ति के समय का है। इस कहानी का उम्दा अनुवाद किया है कवि, अनुवादक श्रीविलास सिंह ने। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं वियतनामी कहानीकार ता दाय अन्ह की कहानी 'गाँव की सबसे सुंदर लड़की'।
वियतनामी कहानी
'गाँव की सबसे सुंदर लड़की'
ता दाय अन्ह
हिंदी अनुवाद : श्रीविलास सिंह
टुक एक फूल की भांति सुंदर थी। वह अपनी युवा, कोमल देह और मजबूत कंधे एक हल्के भूरे ब्लाउज में छिपाए रहती थी। अठारह की उम्र में कोई उस की ओर आकर्षित होने से स्वयं को रोक नहीं पाता था; पुरुष उस पर से अपनी निगाहें नहीं हटा पाते थे, और बहुत से तो अवश ही अपनी भावनाएं उससे व्यक्त भी कर देते थे।
“क्या तुम एक क्षण के लिए रुकोगी?”
यह गांव के एक व्यक्ति की टुक से विनती करती हुई बेचैन और क्षुब्ध सी आवाज थी, मानो वह लंबे समय से अपनी भावनाएं दबाए हुए था।
धीरे धीरे टुक उस की ओर मुड़ी। उसने अपने होंठ खोले और कोमलता से मुस्कराई। उसकी आँखें ऐसी थी मानों कुशलता से तराशे हुए सुपारी के दो फल हों। वह खूबसूरत थी, किंतु उलझी हुई नहीं। उसने पलकें झपकाई और उसके बोलने की प्रतीक्षा करती हुई उस व्यक्ति से परे जमीन पर देखने लगी। किंतु वह व्यक्ति उसकी सुंदरता से भयभीत सा लग रहा था। इसलिए बस अपनी जगह खड़ा रहा, खामोश, जब तक टुक ने फिर से चलना न जारी कर दिया।
अपराह्न में, टुक सामान्यतः गांव के कुएं से पानी लेने जाया करती थी। सामान्य रूप से, अच्छे आचरण वाली लड़कियों को सिखाया जाता था कि वे दर्पण में अपनी सूरत न देखती रहा करें। जब वह पानी की बाल्टी कुएं में से खींचने के लिए झुकी, टुक ने पानी में दिखते अपने प्रतिबिंब से निगाहें बचानी चाही। किंतु ऐसा लग रहा था मानों लहर उठते पानी की सतह उसके साथ छेड़छाड़ कर रही थी, उसे देखने को ललचाती हुई। उसने अपना सिर तेजी से ऊपर उठाया और हँसी। उसकी हँसी मासूम थी। जब वह बांस के लठ्ठे के दोनों ओर संतुलित पानी की बाल्टियों को लिए कुएं से जा रही थी, उसके नंगे, सफेद पांव शांति से धूल भरे रास्ते पर पड़ रहे थे। वह जहाँ भी जाती थी, कोई न कोई उसे सदैव आवाज दिया करता था, और टुक प्रत्युत्तर में बस अपना सिर थोड़ा सा झुका दिया करती थी।
फिर गांव के लोगों ने सेना में भर्ती होना शुरू कर दिया। युद्ध उनके घरों तक आ पहुंचा और अट्ठारह साल तक के बच्चों को युद्धभूमि में घसीट ले गया। हर बार जब टुक नए रंगरूटों को अलविदा कहती, वह तब तक रोती रहती जब तक उसकी आँखें सूख न जाती।
***
मैं ठीक ठीक नहीं जानता कि जो सैन्य टुकड़ी मेरे गांव आई थी, वह कहाँ से आई थी। वे सामान्यतः कुछ महीने रुकते थे — उनके अंततः चले जाने पर, जैसा कि वे हमेशा करते थे, उनकी अनुपस्थिति महसूस करने के लिए पर्याप्त समय होता था। कभी कभी हम सुबह को उठते और पता चलता कि वे पहले ही अदृश्य हो चुके हैं, मानों किसी जादू से।
एक बार, मैने पाया कि मेरी मां एक पत्र पढ़ते हुए अपने आंसू पोंछ रही थी। उन्होंने कहा कि यह मिस्टर कियू का है, उन सैनिकों में से एक जो पहले हमारे साथ रहे थे। जब वह वहाँ से कहीं गई थी, मैने उस पत्र को ढूंढ कर गुप्त रूप से पढ़ा। फिर मैने उसे जोर से गांव के कुछ लड़कों के सामने पढ़ा और वे आँखें फैलाए सुनते रहे।
“जब हमने कुआंग ट्री छोड़ा, हमारी बटालियन में बस कुछ दर्जन सैनिक बचे थे। शत्रु बहुत क्रूर था। भूमि का एक विशाल टुकड़ा बार बार बर्बाद किया गया। और अब उस भूमि का रंग बारूद जैसा हो गया है।
अपने पत्र के अंत में — यह लिखने के पश्चात कि “तुम्हे और तुम्हारे बच्चों को अलविदा” — मिस्टर कियू ने कहा, “ओह, मैं भूल गया था। मिस टुक को मेरी शुभकामनाएं दीजिएगा।”
वहाँ, हम उन पंक्तियों में वर्णित युद्ध की क्रूरता से उबर नहीं सके। हमारे लिए युद्ध एक प्रेत था जिससे हम डरते अवश्य थे लेकिन उसके साथ छेड़छाड़ करना और खेलना अभी भी चाहते थे।
अगले दिन, मां ने वह पत्र टुक को दिया। वह बिस्तर पर लेट कर इसे बार बार पढ़ती रही, निरंतर उसे आगे पीछे पलटती हुई, मानो वह लिखावट की पंक्तियों के बीच में कुछ छिपा हुआ तलाश रही हो। जब उसने वह पत्र मेरी मां को लौटाया, टुक कुछ बेचैन सी लगी। किंतु, हमारी ही भांति, अपेक्षाकृत युवा बच्चों की भांति, उसके पास यह सोचने का समय नहीं था कि उसे मिस्टर कियू के पत्र में क्या दिखा था। समस्त गांव फिर से एक नई बटालियन के स्वागत के लिए तैयारी करने लगा।
कुछ सैनिक जो लगभग टुक की उम्र के थे, शतरंज खेलने मेरे घर आया करते थे, लेकिन यह बस एक बहाना था। जब भी टुक घर में कदम रखती, शतरंज के बोर्ड पर मेरा और बाकी बच्चों का कब्जा हो जाता और हम उसके साथ जो चाहते वह कर सकते थे। हम उस पर रथ तैनात करते, और तोपें। और घोड़ों वाले मुहरे अपनी जेबों में रख लेते और उन मोहरों से जैसे मन में आता वैसे खेलते, मानों वे हमारे ही खिलौने थे।
कुछ महीनों पश्चात, जैसा कि सामान्य था, सैनिक अदृश्य हो गए। गांव पुनः शांत हो गया और हर कोई, विशेषतः हम जैसे युवा बच्चे, उनकी बहुत कमी महसूस करते। जब किसी के पास किसी सैनिक का पत्र आता, एक शोर सा उठता। जब कोई किसी पत्र को जोर से पढ़ता होता, हम छोटे छोटे समूहों में एकत्र हो कर सुना करते।
किंतु टुक को एक ऐसा पत्र मिला जो सीधे उसी को संबोधित था और लिफाफे पर उसका ही नाम लिखा हुआ था। उस रात वह मेरी मां से बात करने आई। मेरी मां उससे बस पांच वर्ष बड़ी थी, लेकिन टुक फिर भी उन्हें आंटी कहती थी। टुक का चेहरा गंभीर दिख रहा था। बाहर चमक रहे शीत के चंद्रमा का प्रकाश हमारे घर में छन छन कर आ रहा था। टुक कुछ देर चुप रही; फिर उसने अनाड़ियों की भांति अपनी कमीज में से, वहाँ अपनी छाती के घोंसले में से, एक मुड़ा हुआ लिफाफा निकाला।
जब उसने फुसफुसाते हुए मेरी मां से कुछ पूछा, मैं महसूस कर सकता था कि वह मुझे देख रही थी; “क्या वह सो गया है?”
“वह पूरे दिन खेलता रहता है,” मेरी मां ने उत्तर दिया, “इसलिए लेटते ही सो जाता है।”
“मैं आप से कुछ कहना चाहती हूँ,” टुक ने कहा, उसकी आवाज में कम्पन था।
मैने अपनी आधी बंद आंखों से देखा कि मेरी मां ने टुक के हाथ से पत्र झपट लिया। मेरी मां दीपक को उसके करीब लाई, पत्र को आगे पीछे पलट कर परीक्षण किया। फिर उसने उसे टुक को दे दिया।
“इसे पढ़ो। यहाँ बस हम दो ही हैं। चिंता मत करो।”
“आप वादा करिए कि आप इस बात को किसी से नहीं कहेंगी,” टुक ने जिद सी की।
“इसकी बात तो सुनो,” मेरी मां ने कहा, “क्या लड़की है!”
टुक ने गहरी सांस ली और फिर पत्र पढ़ने लगी: “मेरी प्यारी…”
“यह पत्र किसने लिखा है?” मेरी मां ने एकाएक पूछा।
टुक ने ऐसे दिखाया मानो उसने प्रश्न सुना ही न हो और व्यग्र सी आवाज में पढ़ना जारी रखा:
“संभवतः शीघ्र ही, मैं इस पृथ्वी पर नहीं रहूंगा। आज की बमबारी ने मेरी यूनिट के बीस सैनिकों की जान ले ली। युद्ध एक क्रूर खेल है जिसमें तुम या तो असीमित लाभ उठा सकते हो अथवा सब कुछ गंवा सकते हो। मुझे महसूस होता है कि मेरे पास अभी भी अपनी मृत्यु के लिए तैयारी करने हेतु समय है, चाहे वह कितनी भी अप्रत्याशित क्यों न हो। आज रात चंद्रमा आकाश में चमकता हुआ निकला है। विचित्र रूप से मुझे महसूस हो रहा है जैसे हर चीज एकदम शांत है, मानों युद्ध स्थाई रूप से निलंबित कर दिया गया है, जैसा यह पूर्व में था उसकी प्रतिध्वनि मात्र। और मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ — प्रतीक्षा कर रहा हूँ उजाले में से तुम चमकते चांद की भांति आओ, और मरहम रख दो हमारे घावों पर, शीतल कर दो युद्ध से क्षतिग्रस्त, घायल जमीन को….”
टुक इसके आगे न पढ़ सकी, इसलिए मेरी मां ने पत्र का शेष हिस्सा पढ़ा, चुपचाप, स्वयं में। मुझे पता नहीं पत्र के शेष हिस्से में क्या लिखा था, किंतु उसके पढ़ लेने के पश्चात, मेरी मां और टुक दोनों मौन बैठी रहीं।
अकस्मात, मेरी मां ने आह भरी और बोली, “हे भगवान! पता नहीं कब यह युद्ध समाप्त होगा?” वह टुक की ओर मुड़ी। “क्या यह पत्र कमांडर का है?”
“हां,” टुक ने कहा। “यह उसी का है।”
“मुझे याद है,” मेरी मां ने कहा। “वह लंबा, सुदर्शन आदमी। कोई आश्चर्य नहीं…” उनकी आवाज बीच में ही कमजोर पड़ गई, फिर बोलीं, “मुझे तुम दोनों के लिए दुख है।”
टुक ने रोना शुरू कर दिया। “जिस रात हमने उन्हें विदा दी,” उसने हकलाते हुए अपने आंसुओं के मध्य कहा, “उसने मुझसे मेरा हाथ पकड़ने को कहा था, लेकिन मैने उसे ऐसा नहीं करने दिया। वह बहुत दुखी हुआ होगा।”
“चिंता मत करो,” मेरी मां ने, उधर आते हुए कहा, जहाँ मैं सोते हुए होने का नाटक कर रहा था। “वह तुम्हें और भी अधिक प्रेम करेगा यदि…”
लेकिन वह अपना वाक्य पूरा न कर सकी। जब मेरी मां मेरे कंधों पर कंबल ठीक करने के बहाने झुकी, मैने देखा कि उन्होंने जल्दी से अपनी कमीज की बांह से अपने आंसू पोंछे थे।
***
टुक ने वे सारे पत्र, जो उसे प्राप्त हुए थे, उनके लिखे जाने की तिथि के हिसाब से व्यवस्थित किए। कुछ ग्रीष्म में लिखे गए थे, किंतु वे हमारे गांव तक कई महीने बाद ही पहुंच पाए, जाड़े में। कुछ सबसे उत्तर की सीमा पर स्थित गहन जंगलों में लिखे गए थे। कई बार पत्र खो गए थे, एक डाक पते से दूसरे डाक पते तक भटकते, उसके लिफाफे पर लोग “आवश्यक” लिख देते। एक और डाक घर में कोई कर्मचारी लिखता, “सेंसर किया हुआ और डिलीवर किए जाने योग्य,” अथवा यह भी, “युद्ध काल में प्रेम को प्राथमिकता के आधार पर डिलीवर किया जाना चाहिए। मेरे उत्तरी देशवासियों को लाखों चुंबन भेजें।” यह अंतिम बात किसी सैनिक द्वारा लिखी गई होनी चाहिए।
सैकड़ों पत्र जो उसे प्राप्त हुए, मात्र दस ऐसे थे टुक के लिए जिनका जवाब देना संभव हो सका। अन्य पत्रों पर भेजने वालों का कोई पता नहीं था, जिसने टुक को चिंतित कर दिया। केवल मेरी मां जानती थी कि यह बात उसे कितना विचलित करती थी।
कमांडर, मिस्टर कियू ने उस पहले पत्र के पश्चात टुक को कोई पत्र नहीं लिखा। उस समय, बी1 मोर्चे पर युद्ध अपने क्रूरतम स्तर पर था।
***
हमारे गांव में, टुक स्थानीय प्रशासन के समूह “जासूसी प्रतिबंध एवं सैन्य सूचना संरक्षण एकक” की प्रमुख थी। उस समूह के पास किसी भी अजनबी को, जो सात बजे के पश्चात गांव से हो कर गुजरता, रोक कर पूछताछ करने का अधिकार था। युद्ध उत्तर में भी फैल चुका था और संवेदनशील सूचनाओं की तलाश में जासूस कहीं भी हो सकते थे। टुक के समूह ने पहले ही ऐसा एक जासूस पकड़ा था जिसने स्वयं को भिखारी के रूप में छिपा रखा था।
किंतु अधिकांशतः गांव शांत लगता था। शांत रात्रि के आकाश में चंद्रमा चमक रहा था। बाहर खेतों में, गांव के बाहर की ओर, वह समूह जिस पर रात में धान की फसल काटने की जिम्मेदारी थी, लोकगीत गा रहा था जो कर्णकटु और साथ ही रोमांटिक लग रहे थे। वे सभी स्त्रियां थी, तेज और कठोर, मुंहफट और अक्सर शब्द चयन में लापरवाह। टुक उनसे डरती थी। एक बार समूह की कुछ अपेक्षाकृत युवा लड़कियों ने टुक को घेर लिया था और उससे उसके प्रेमी का नाम और आयु जानने का प्रयत्न किया। घिरी हुई टुक ने स्वीकार किया कि वह “एक सैनिक” से प्रेम करती थी। उसने सोचा उसका उत्तर पर्याप्त था, किंतु उन सबने उससे प्रश्न करना जारी रखा।
“क्या तुम लोगों ने चुंबन लिया था?”
टुक को लगा जैसे वह बेहोश हो जाएगी। उनमें से एक युवा लड़की ने उसकी जगह जवाब दिया: “हां, उन्होंने लिया था! मैं जानती हूँ।”
“कैसा लगा था?”
“बिजली के झटके जैसा!” एक दूसरी लड़की चिल्लाई, इसके पूर्व कि टुक किसी तरह उनके चंगुल से छूट कर वहाँ से भाग गई।
समूह का गायन रात्रि में गांव भर में प्रतिध्वनित होता रहता था, इस बात पर निर्भर कि हवा किस ओर बहती थी। टुक को महसूस हो रहा था जैसे वे अजनबी गीत उसकी ओर लहरों की भांति आ रहे थे। हवा धान की बालियों की महक लिए हुए थी। टुक ने अपनी रायफल कंधे पर रखी और बाहर खेतों को आच्छादित किए कुहासे के समुद्र की ओर देखा।
बाहर घास पर किसी के कदमों की आहट आ रही थी। चांदनी में, टुक ने एक विशालकाय पुरुष की देहाकृति सी देखी जो उसी की तरफ आ रही थी। जब वह पास आ गई, परछाई रुक गई और वहीं खड़ी रही। टुक ने रायफल अपने कंधे पर व्यवस्थित की। वह कांप रही थी। फिर भी उसने सख्त आवाज में पूछा,
“कौन है?”
“मैं हूँ।”
“तुम कौन हो?”
“मैं एक एकाकी आदमी हूँ।”
“साफ साफ बताओ, वरना मैं तुम्हें गोली मार दूंगी,” टुक ने अपनी रायफल संभालते हुए कहा। “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”
“टुक, तुम तो मुझे रोज ही गोली मारती हो। क्या वह पर्याप्त नहीं है?”
उसका उत्तर भावात्मक और उदास लग रहा था, किंतु स्पष्ट था कि वह उसे जानता था। फिर टुक ने एकाएक उसे पहचान लिया। यह हावो था, उप–प्रमुख डॉक का बेटा, गांव का सबसे शक्तिशाली और पहुंच वाला व्यक्ति। हावो, कुछ छैला टाइप युवा था, उसके लंबे बाल सदैव सफाई से कंघी किए हुए होते थे, जब वह भात पकाने की वार्षिक प्रतियोगिता के दौरान उसका पीछा किया करता था। यद्यपि वे एक ही उम्र के थे और एक ही गांव में रहते थे, लेकिन टुक ने उसे मुश्किल से ही देखा था, क्योंकि हावो अन्य युवाओं के साथ नहीं रहता था। जब सेना में भर्ती का समय आया, हावो ने बहाना बनाया कि उसे अपने पिता की राह पर चलना था और वह गायब हो गया।
फिर एकाएक वह कुछ सप्ताह पूर्व भात पकाओ प्रतियोगिता के दौरान प्रगट हो गया, किसी शहरी बुद्धिजीवी की भांति सजा संवरा हुआ। वह टुक को अकेला नहीं छोड़ता था, जिससे वह परेशान थी। फिर भी उसने प्रतियोगिता का पहला राउंड जीता था। जब टुक के बर्तन का ढक्कन हटाया गया, पके हुए चावल की खुशबू हवा में फैल गई। टुक ने चावल इतनी कुशलता से पकाया था कि एक एक दाना मुलायम और अलग अलग था। उसके पकाए हुए चावल से भरा कटोरा रुई के कटोरे जैसा लग रहा था। जज भी गांव के अनुभवी और बुजुर्ग ग्रामीण थे, उन्होंने उसे सबसे ऊपर रखा।
दूसरे राउंड में चावल को पानी पर पकाना था। हर प्रतियोगी को गन्ने का एक बंडल, एक बर्तन, और एक माचिस दी गई। पहले गन्ने को चूसना था ताकि उसके डंठल जलने योग्य हो सकें। प्रतियोगियों को चतुराई से यह गणना करनी थी कि गन्ने के कितने डंठल प्रयोग किए जाएं ताकि चावल समयबद्ध तरीके से पक सके।
टुक जानती थी जब वह तरबूज के आकार की बांस की टोकरी में, जो पानी पर नृत्य कर रही थी, चावल पकाने का प्रयत्न कर रही होगी, हजारों आँखें उसे देख रही होंगी।
किंतु उसने प्रथम पुरस्कार जीता और तीसरे राउंड में चली गई — यह संभवतः सब से विचित्र राउंड था। इस बार, प्रतियोगियों को मां की भूमिका निभानी थी। इस बार भी उन्हें गन्ने के डंठलों से पानी के ऊपर चावल पकाना था, बस इस बार हर प्रतियोगी को एक शरारती बच्चा और मिलता। और यदि वह चावल पकाए जाते समय रो देता तो प्रतियोगी हार जाता।
अतीत में किस के दिमाग में यह अजीब सी चुनौती आई थी? टुक ने शर्माते हुए सोचा। किंतु वह स्वभाव से ही एक विनम्र और दयालु स्त्री थी, इसलिए पूरे राउंड तीन के दौरान उसको मिला बच्चा बस उसके गले लगा रहा और खुशी से भीड़ की ओर देख कर हंसता रहा, जब उसने चावल पकाना पूरा किया। उसके बर्तन से निकलती भाप में से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी।
जब उन्होंने टुक को प्रतियोगिता का विजेता घोषित किया, भीड़ ने बादल के गरजने जैसा शोर किया, जिससे वह और उसको मिला बच्चा दोनों पानी में गिरते गिरते बचे।
“तुम निश्चय ही जादूगरनी हो, हजारों जादुई गुणों वाली। तुम हाड़ मांस से नहीं बनी हो।”
यह बात हावो ने कही। जब टुक भीड़ में से गुजर रही थी, उसने कुछ फीट पीछे रह कर उसका अनुगमन किया। जिस तरीके से वह चलता था वह ढीला ढाला और शोक से भरा हुआ लगता था, मानों वह कोई परित्यक्त मनुष्य हो। टुक को उसके लिए कुछ कुछ दुःख होता था। किंतु वह सेना में क्यों नहीं गया? उस समय किसी युवा के लिए जो “पीछे छोड़ दिया गया” था, यह एक खतरनाक प्रश्न था। क्या वह मृत्यु से डरता था? अथवा क्या वह बीमार अथवा अपंग था?
अब, धान के वीरान पड़े खेत में, चमकदार चंद्रमा के नीचे, टुक ने स्वयं को हावो द्वारा इस तरह आश्चर्यचकित करने से नर्वस और नाराज महसूस किया।
“तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे थे?” टुक ने अपनी आवाज धीमी रखते हुए पूछा।
“अतः मेरे धीरज का पुरस्कार मिल गया,” हावो ने कहा।
“कोई तुम्हें धीरज रखने को और एक जगह रह कर प्रतीक्षा करने को मजबूर नहीं कर रहा है,” टुक ने विनम्रता से कहा।
हावो ने तत्काल समझ लिया कि उसका क्या मतलब था। उसने तेजी से जवाब दिया, “मत सोचो कि मैं मौत से डरता हूँ। कल सुबह मैं अपना बैग पैक कर के लड़ाई के मैदान में चला जाऊंगा। बस आज की रात….”
टुक की रीढ़ में एक ठंडी लहर सी दौड़ गई। हावो उस की ओर बढ़ा।
“आज की रात चंद्रमा कितना प्यारा है,” हावो ने धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ते हुए कहा। “लेकिन तुम्हारी आत्मा बर्फ जैसी ठंडी क्यों है?”
“अपने मुंह पर नियंत्रण रखो, अन्यथा मैं तुम्हें गांव के पदाधिकारियों के सामने ले चलूंगी,” टुक ने कहा।
“टुक तुम मुझे एक मौका क्यों नहीं देती? क्या तुम जानती हो मैं पहले क्यों नहीं गया? क्योंकि मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ।”
“बकवास मत करो!” टुक ने कहा। “क्या तुम्हें इस तरह की बात करते शर्म नहीं आती?”
“मैं कही नहीं जाऊंगा जब तक तुम बता नहीं देती कि तुमने कभी भी किसी को प्रेम नहीं किया है,” हावो ने अकस्मात जिद सी करते हुए कहा।
“मुझे अच्छा लगेगा यदि तुम मेरा ध्यान बस एक मित्र की भांति रखो,” टुक ने अभी भी विनम्र किंतु दृढ़ रहते हुए कहा।
“तुम कितनी क्रूर हो! तुम अच्छे से जानती हो कि मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ और तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता। तुम जानती हो कि यदि मैं तुम्हें, उन सारे कामों में जो मैं करता हूँ, सम्मिलित नहीं करता तो मेरा जीवन अर्थहीन होगा। आगे बढ़ो और मुझे गाली दो, एक कुत्ते की भांति हड़काओ, किंतु कृपया मेरे साथ क्रूरता मत करो।”
एक स्त्री के रूप में टुक ने अकस्मात हावो के प्रति बहुत दुखी महसूस किया। वह देख सकती थी कि वह निश्चय ही बहुत अकेला व्यक्ति था। वह एक आकर्षक, सुदर्शन व्यक्ति था जिसे एक स्त्री बहुत आसानी से मिल सकती थी, खास तौर से तब जब सारे युवा मर्द जा चुके थे। उसे उस पर दया आ रही थी।
“मैं तुम्हारे साथ ईमानदार रहना चाहती हूँ,” टुक ने कहा। “मेरा हृदय पहले से ही किसी के प्रति समर्पित है। तुम्हारे प्रेम के लिए वहाँ कोई स्थान नहीं है, यद्यपि मैं विश्वास करती हूँ कि यह सच्चा है।”
“मुझ से झूठ मत बोलो!” हावो एकाएक किसी ढीठ बच्चे की तरह अभिनय करता हुआ चिल्लाया। “मैं तुमसे भीख मांगता हूँ! मुझसे कहो कि तुम मुझे प्रेम करती हो, और कल मैं बिना किसी पछतावे के युद्ध के मैदान में चला जा सकता हूँ। मैं बहुत बड़ा योगदान दूंगा, मैं….”
हावो ने जब टुक की आंखों में दूर कहीं देखती दृष्टि देखी तो बात करनी बंद कर दी। वह उसे नहीं समझ सका। वह नहीं जानता था कि केवल एक ही व्यक्ति था, जो अपने हाथ में नीले रेशमी फीते में बंधा फूलों का गुच्छा लिए उससे मिलने की इच्छा लिए दूर कहीं खड़ा था, जब उसने चंद्रमा के प्रकाश में पांव रखे। हावो मात्र एक ऐसा व्यक्ति था जिसने इस दूसरे व्यक्ति की छवि को जगाया था।
टुक की आँखें और दूर होती गई। ऐसा लग रहा था जैसे वह ब्रह्मांड के रहस्यों के संबंध में चिंतन कर रही थी।
तभी अकस्मात उसने गिरने की अनुभूति महसूस की, जैसे वह किसी अंधेरे रसातल में गिरती जा रही हो। तारों भरी रात का आकाश उसके चारों ओर अनियंत्रित तरीके से घूम रहा था और उसने भारी पैरों के नीचे कुचली जाती घास की आवाज सुनी। वह लगभग चीखने ही वाली थी, लेकिन हावो के हाथों ने पहले ही उसका मुंह बंद कर लिया था। एक विशाल सरीसृप की भांति वह उसकी देह पर रेंग रहा था, उसके हाथ जहाँ भी संभव था वहाँ रेंग रहे थे। टुक ने महसूस किया कि उसका दम घुट रहा था। वह उल्टी करना चाहती थी। उसने अपनी देह को अपने आप में ऐसे ऐंठते हुए महसूस किया जैसे देर तक धूप में पड़े रहने के कारण फल का टुकड़ा ऐंठ गया हो। उसने ऊपर आकाश में चंद्रमा को टुकड़े टुकड़े टूटता और रक्तरंजित होते महसूस किया। किंतु उसी क्षण, उसने अपने भीतर कुछ ऐसी शक्ति महसूस की जिसे वह पहले नहीं जानती थी। हावो के वजन से दबी वह करवट बदल कर उसके नीचे से बाहर आने में सफल रही और फिर उसने उसे अपनी पूरी शक्ति से ठोकर मारी। हावो किसी पिटते हुए कुत्ते की भांति चिल्लाया। टुक ने अपनी रायफल उठाई और खड़ी हो गई।
“क्या मुझ से प्रेम अभिव्यक्त करने का तुम्हारा यही तरीका है?” उसने पूछा, उसकी आवाज आग की लपट जैसी थी।
हावो उस जगह अपना पेट पकड़े हुए था, जहाँ टुक ने उसे ठोकर मारी थी, और पीड़ा के मारे जमीन पर लोटने लगा।
“तुम मौत से मात्र इसलिए बचना चाहते थे ताकि और भयानक काम कर सको।”
“मैं बस तुम्हें अपना प्रेम दिखाना चाहता था,” हावो ने दयनीय तरीके से कहा।
“यह बहुत वाहियात तरीके का प्रेम है,” टुक ने रायफल अपने कंधे तक उठाई और हावो की ओर निशाना लगाया। “यहाँ से दफा हो जाओ इसके पहले कि मैं बोल्ट खींचूं।”
हावो फूहड़ तरीके से उठ कर खड़ा हुआ। उसके कपड़े अस्त व्यस्त थे। अपना सिर झुकाए वह रायफल की नाल से दूर चल दिया। फिर वह रुका और रात के अंधेरे में भाग जाने से पूर्व बोला, “तुम बस नखरे कर रही हो।”
टुक ने अपने होंठ काटे और रायफल लिए हुए हावो की काली छाया के पीछे चल दी। उसने सीधे उसकी पीठ पर निशाना लगाया और अपनी आँखें बंद कर ली।
नहीं, उसने अंततः सोचा, उसकी पकड़ ढीली पड़ने लगी। उसे जीने दो, ऐसे लोग मृत्यु की अपेक्षा जीवन में अधिक कष्ट उठाते हैं।
***
मुझे स्मरण नहीं कि ठीक ठीक कितनी सैन्य इकाइयां हमारे गांव में युद्ध के दौरान टिकी थी। संभवतः कम से कम दो दर्जन। युवा सैनिकों ने सदैव वादा किया कि वे एक दिन लौट कर आएंगे। और वह “एक दिन” बहुत अनिश्चित लगता था। जैसे जैसे वर्ष बीते, हमने उन्हें लौटते हुए नहीं देखा।
लेकिन हमारा गांव सैनिकों के पत्र प्राप्त करता रहा। कुछ उत्तर से थे, जिसका अर्थ था कि भेजने वाला पहले ही मर चुका था। अन्य पत्रों में मात्र कुछ पंक्तियां लिखी हुई होती थी, मानो ये मृत्यु पूर्व के अंतिम शब्द थे। टुक वह व्यक्ति थी जिसने सर्वाधिक ऐसे पत्र प्राप्त किए थे। इनमें से बहुत से सैनिक संभवतः जंगल में ही मर गए, उससे किसी प्रकार का जवाब प्राप्त किए बिना।
जब युद्ध अंततः समाप्त हुआ, टुक उस समय पैंतीस साल की हो गई थी, लाखों लोग खुशी से मुस्कुरा और रो रहे थे। जब भी वे एक दूसरे को देखती, टुक और मेरी मां एक दूसरे का कस कर आलिंगन करती और रोती हुई एक दूसरे के साथ बिस्तर पर पड़ी रहती। वे विजय के गौरव के कारण आनंद से रोया करती, लेकिन वे थोड़ा दुख और उदासी के आंसू भी बहाया करती। जब उसने फिर से स्वयं को व्यवस्थित कर लिया, टुक दक्षिण से भेजे गए पत्रों के बारे में जानने को पोस्ट ऑफिस जाया करती। एक महीने से अधिक समय तक उसने पत्रों को देखना जारी रखा किंतु उन सैनिकों के संबंध में कोई निशान नहीं मिला जो कभी हमारे गांव आए थे और जिन्होंने वापस आने का वादा किया था। क्या युद्ध ने उन सब को निगल लिया था?
इस बीच हर कोई कानाफूसी करने लग गया। गांव की स्त्रियों ने सोचा कि हर व्यक्ति की एक जिम्मेदारी होती है, और टुक की जिम्मेदारी यह थी कि वह किसी से विवाह करे, जो भी उपलब्ध था उनमें से किसी से, स्वर्ग द्वारा प्रदत्त अपने स्त्री के कर्तव्य निर्वहन हेतु। किस बात की प्रतीक्षा थी? और वह क्या सोचती थी कि उसे अंततः क्या मिलेगा? क्या एक एकाकी, थकी हुई स्त्री होना ही उसके भाग्य में था?
फिर एक दिन टुक ने एक खोई हुई चिड़िया की भांति चुपचाप गांव छोड़ दिया। जैसा कि सामान्य था, अफवाहें सर्वव्यापी थी। एक ने दावा किया कि टुक अपनी यौनेच्छा की संतुष्टि हेतु आदमियों की तलाश में चली गई। एक और ने कहा कि टुक से शादियों के मौसम में पटाखों की आवाजें बरदाश्त नहीं होती थी। तब मौसम ठंडा था और उत्तरी हवाओं के कारण कष्टदायक भी। पैंतीस साल की स्त्री के लिए अकेले यह सब कठिन ही रहा होना चाहिए।
टुक के चले जाने के कई महीनों बाद, हावो एकाएक गांव में लौट आया। सब ने मान रखा था कि वह युद्ध मारा गया होगा, इसलिए उसका लौट आना हमारे गांव में एक विशिष्ट अवसर था। हावो एक मेजर की पट्टियों वाली पोशाक पहने हुए था और ‘67 मॉडल की हॉन्डा मोटरसाइकिल पर सवार था जो बहुत धूल उड़ाती थी। हावो की मोटरसाइकिल के पीछे एक बड़ा, आधुनिक सा सूटकेस था। शारीरिक रूप से हावो मजबूत और स्वस्थ दिख रहा था, जिसके कारण युद्ध एक बड़े खेल जैसा लगने लगा था। वह जोर जोर से बातें करता और हंसता था और लड़कियों के गालों पर चिकोटी काट लिया करता था। उप प्रमुख डॉक का घर आकर्षण और जिज्ञासा का केंद्र बन गया था। लोग गांव की एकता के नाम पर रूबी सिगरेट पीने, जो कुत्तों के जलते हुए बालों जैसी बदबू करती, और पलकें झपकाने वाली जापानी गुड़िया, जिसे हावो दक्षिण से खरीद कर लाया था, को छूने के लिए वहाँ आया करते थे। “क्या यह सच है,” लोग पूछते, “कि दक्षिण में मूल्यवान चीजे उत्तर में कचरे जैसे फेंक दी जाती हैं?” हर कोई यह जानने को जिज्ञासु था कि हावो ने कैसे इतनी संपत्ति जमा कर ली थी। और निश्चय ही, वे मिस्टर डॉक को उनके बेटे की मेजर के पद तक पदोन्नति की बधाई भी देते थे।
गांव में हावो, एक तरह का “आदर्श” बन गया था। “हावो को देखो,” लोग कहते, “ न केवल वह सफल है, बल्कि वह अपना एकत्र किया हुआ खजाना अपने पिता के लिए ले कर आया है।” हावो के शब्द गांव वालों पर और भी अधिक प्रभाव डालते थे। वह युद्ध की लूट के बारे में ऐसे बात करता जैसे बाजार में औरतें चीजों के दामों के बारे में मोलभाव करती थी। त्याग दिए गए फ्रांसीसी शराब के कारखाने में जितनी चाहो उतनी शराब ले सकते थे। एक स्टोर का मालिक जिसे भी पसंद करता था इसे सोने की घड़ियां देता था। स्पष्टतः 67 मॉडल हॉन्डा मोटर बाइक जिसे हावो चलाता था, कोई फिजूलखर्ची नहीं थी, क्योंकि दक्षिण में हर परिवार के पास चार या पांच मोटर साइकिलें थी जिन्हें वे अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए प्रयोग किया करते थे। हावो इन चीजों के बारे बहुत उत्साह से बात किया करता था, मानों लाखों लोगों के जीवन का बलिदान उसके लिए समृद्ध कुलीनों और जमींदारों से कीमती चीजें एकत्र करने का एक अवसर मात्र रहा हो।
एक बार जब गांव वालों की परेड का डॉक के घर आना कम हो गया, कस्बे के बाहर के अजनबियों का आना जाना शुरू हो गया। वे चुपचाप प्रवेश करते थे और संवाद के लिए आंखों के संकेतों का सहारा लेते थे, वापस तभी जाते थे जब डॉक के घर के मुख्य द्वार पर खड़े गार्ड्स संकेत करते कि अब जाना सुरक्षित था। मिस्टर डॉक ने अपना नक्काशी करने का काम छोड़ दिया था और शनिवार को वे एक छोटा पर्स जैसा झोला अपने साथ रखते थे। कोई ठीक ठीक नहीं जानता था कि वे कहाँ जाते थे। पर जांच करती हुई सी गांव वालों की निगाहों से कुछ भी छुपा नहीं रह सकता था, जिन्होंने अनुमान लगाया कि मिस्टर डॉक उन चीजों को बेच कर खूब पैसा बना रहे थे जो उनका बेटा दक्षिण से लाया था। यह एक रहस्य था कि हावो ठीक ठीक किस तरह सेना में मेजर की रैंक तक पहुंच गया था, क्योंकि हर कोई जानता था कि उसे अब भी बंदूक कैसे चलाई जाती है इसका आधारभूत ज्ञान भी नहीं था।
कोई भी, डॉक सहित यह नहीं समझा कि हावो अब भी क्यों विवाह करने में बिलंब कर रहा था। निश्चय ही, कारण यह था कि हावो टुक की प्रतीक्षा कर रहा था। वह अब भी उस रात जो कुछ धान के खेतों में हुआ था, उससे क्रोधित था। किंतु कुछ था जो उसके सुंदर, फरिश्तों जैसे चेहरे को चुनौती देता और उसकी लपलपाती लालसा से पराजित करता सा लगता था। यदि आवश्यक हुआ, वह उसके समक्ष घुटनों के बल बैठ कर गिड़गिड़ायेगा, जैसे कि उसने पहले किया था।
जब एक दिन टुक अकस्मात गांव में वापस आई, हावो पहले ही अपने अवकाश से तीन दिन अधिक रुक चुका था। दस मिनट में हावो और उसके समानों के मुद्दे की जगह टुक के मुद्दे ने गांव वालों की गप में ले ली। लगभग तुरंत ही हावो ने अपनी लाल पट्टियों और शिफॉन के स्कार्फ वाली मेजर की वर्दी पहनी और उसे ढूंढने चला गया। वह सिर से पांव तक पसीने से भीग हुआ था। यह सुनना विचित्र था कि गांव वाले उसे दीदी टुक के नाम से संदर्भित कर रहे थे। किंतु यह ठीक बात थी, हावो को भान हुआ, क्योंकि इस समय तक वह लगभग चालीस साल की हो चुकी थी। यह तथ्य वह कैसे भूल गया था? हावो बाहर धान के खेतों में टुक की प्रतीक्षा करता रहा, उसी जगह के निकट जहाँ कभी टुक ने उसकी जान बख्श देने से पूर्व अपनी रायफल का निशाना उसकी पीठ पर लगाया था। चूंकि उसे डर था कि वह उसे नहीं पहचान पाएगा, इसलिए उसने अपनी सहायता के लिए एक रूबी सिगरेट पर एक युवा लड़के को किराए पर रखा था। जब लड़का चिल्लाया,” वो वहाँ है!” हावो ने महसूस किया कि उसका हृदय उछल सा पड़ा था और अनियंत्रित गति से धड़कने लगा था। क्या वह टुक है? एक बदरंग, ढीले से चेहरे वाली स्त्री सीधे उसी की तरफ आ रही थी। उसे अकस्मात वहाँ से भाग जाने की इच्छा हुई, किंतु उसके लिए समय नहीं था। जब स्त्री उसको पार कर आगे चली गई तो हावो ने राहत की सांस ली; फिर वह अपने पिता के घर की ओर वापस चल दिया।
हावो नहीं जानता था कि टुक पीछे मुड़ी थी, उसने उसका गोल मटोल चेहरा देखा था, और उस पर कोई असर नहीं पड़ा था।
हावो ने अगले दिन बहुत तड़के ही गांव छोड़ दिया, जब मुर्गे बांग दे रहे थे। गांव के कुत्ते उसकी मोटर साइकिल का बाहर धान के खेतों तक पीछा करते रहे थे। भैंसों के चलने से उनके भारी पैरों के निशानों के कारण सड़क गड्ढों से भरी हुई थी, इसलिए मोटर साइकिल तेजी से जाते हुए झटके और हिचकोले खा रही थी। हावो ने फिर कभी वापस मुड़ कर नहीं देखा।
***
टुक की डायरी से:
मैं ने हनोई पोस्ट ऑफ़िस में पत्रों के बड़े बड़े बंडल देख डाले थे। डाक विभाग के कर्मचारी बहुत सहृदय थे। प्रतिदिन वे बहुत से ग्राहकों के अनुरोधों को पूरा करते थे। मैं अभी भी उसे नहीं पा सकी थी। मैने एक और पत्र उठाया जो कि उसका हो सकता था। यह कौन सा कियू है? यदि यह वही मिस्टर कियू हैं जिन्हें मैं जानती थी, फिर हो सकता है मुझे उनके संबंध में कुछ सूचना मिल सके। मेरा हृदय पागलों की भांति धड़कता है। मैं थोड़ा अस्वस्थ और अव्यवस्थित सा महसूस करती हूँ। क्या हो रहा है? नर्वस सी मैं लिफाफे को अपने हाथों में उलटती पलटती हूँ। भाड़ में जाए! यह तो मिस कियू हैं, मिस्टर नहीं।
वहाँ चिट्ठियों के बंडल उलट पलट कर किसी को खोज रहे और भी लोग थे। कभी कभार उनमें से एक जोर से चीखता और पागलों की भांति पोस्ट ऑफिस के बाहर भाग जाता। मेरा नंबर कब आएगा?
गांव छोड़े हुए दो दिन हो चुके हैं। मुझे आश्चर्य है वे लोग अब मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे। हो सकता है वे सोचें कि मैं पागल हूँ? खैर, परवाह किसे है? मैं अपने को अपने बजाय अपनी मित्र ली के बारे में सोचता हुआ पाती हूँ। मैं उसे कितना प्यार करती हूँ। उसने बहुत सी तकलीफें झेली हैं। ली का विवाह हुए सात वर्ष हो गए लेकिन अभी तक वह संतानहीन है, इस कारण उसे गांव की तमाम अफवाहों का सामना करना पड़ता है। उसके ससुर एक बुरे आदमी हैं, मनुष्य के रूप में छिपा एक शैतान। उसने अपने बेटे को अपना बिस्तर उलट देने और ली को तूफानी रात में घर से बाहर फेंक देने के लिए समझा लिया था। लेकिन यही ससुर साहब नित्य गांव के पूजा स्थल पहुंचने वाले सबसे पहले व्यक्ति हुआ करते हैं। ली ने मुझ से यह बात नहीं स्वीकार की थी, लेकिन मैं इसे उसके चेहरे पर लिखा देख सकती थी: उसने अपनी देह उसे समर्पित कर उससे बदला लिया था। वह उन सभी को कौटुंबिक व्यभिचार की एक ऐसी भूल भुलैया का कैदी बना देना चाहती थी कि एक दिन उनका परिवार ही समाप्त हो जाए।
गांव अब बहुत अलग हो गया है। लोग अब हर चीज के प्रति उदासीन रहने लगे हैं।
….
मैं उसे कहीं न पा सकी। वहाँ कियू नाम के चालीस व्यक्ति हैं, लेकिन कोई वह नहीं है जिसे मैं जानती हूँ। हो सकता है वह चाहता हो कि मैं उसे पाने के लिए परलोक में जाऊं। कितना दुर्भाग्यपूर्ण है यह सब! यदि वह अभी भी जीवित है, तो मुझे विश्वास है कि वह वापस आएगा।
इस मौसम का चांद नीला है।
…
एक दिव्यांग पूर्व सैनिक एक पत्थर की बेंच पर अकेला बैठा हुआ था, अपने आस पास की दुनिया को विस्मृत किए हुए। वह इतना दुखी क्यों लग रहा था? मैं देख सकती थी कि उसका एक पांव और एक हाथ नहीं था और उसके चेहरे पर घाव के कई निशान थे। उसकी आँखें दुख से भरी हुई थी, चुपचाप गोधूलि में खोया हुआ। वह दूर कहीं देख रहा था, किसी खास चीज को न देखते हुए। मेरे अतिरिक्त किसने उसे नोटिस किया है? जहाँ वह बैठा हुआ था, उससे कुछ फीट दूर एक जोड़ा था, एक दूसरे को बिल्लियों के जोड़े की भांति आलिंगन करता और दुलारता हुआ। हे भगवान! वे इस तरह सार्वजनिक स्थान पर ऐसा कैसे कर सकते हैं, जब कि अभी अंधेरा भी नहीं हुआ था? मैने वहाँ से भागने जैसा महसूस किया, क्योंकि वहाँ उससे अधिक भयानक और क्रूर दृश्य और कुछ नहीं था। भयानक…इसलिए (इसलिए कि मुझे संभवतः उनसे ईर्ष्या हो रही थी?) वे क्रूर थे। उन्हें कम से कम यह सोचना चाहिए था कि वहाँ एक व्यक्ति उनके ठीक बगल में बैठा हुआ था जिसने अपना लगभग सब कुछ खो दिया था। लेकिन कितनी विचित्र बात थी! यह दृश्य भी उस पर कोई प्रभाव बिलकुल नहीं डाल सका था। वह वहाँ अब भी वैसे ही बैठा था, चुपचाप और सांझ के आकाश की ओर देखता हुआ। वह किसी श्वेत श्याम चित्र में परछाई की भांति लग रहा था।
अकस्मात उसने मेरी ओर देखा। (उसने ऐसा क्यों किया?) मुझे यह स्वीकार करने में कठिनाई हुई कि उसकी आँखें कितनी दुखी थी। अब चुपचाप बैठने की बारी मेरी थी। आधुनिक जोड़े ने वह पूरा कर लिया था जो वे करना चाहते थे। अब वे थके हुए और ऊबे हुए लग रहे थे। वे संभवतः किसी रेस्त्रां में जाएंगे और अपना बोझ उतारने का प्रयत्न करेंगे। यह सब ऐसा लगा, मानों वास्तव में, वे लोग भी एकाकी थे।
“अंधेरा होने लगा है।”
मैं आश्चर्यचकित हो गई और उसकी ओर थोड़ा भय से देखा।
“हां, अब अंधेरा होने लगा है,” मैने मशीनी अंदाज में जवाब दिया। “आप किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं?”
“किसी का भी नहीं। मैं बस अकेला रहना चाहता हूँ।”
“हर दिन?” मैने पूछा।
लेकिन उसने जवाब नहीं दिया। इसकी बजाय वह उठ खड़ा हुआ और दूर जाने लगा, उसका लकड़ी का पैर जमीन पर ठक ठक कर रहा था।
हो सकता है, कियू भी इसी पूर्व सैनिक की भांति दिव्यांग हो गया हो। हो सकता है उसने मान लिया हो कि मैने बहुत पहले ही विवाह कर लिया होगा और मेरे ढेरों बच्चे होंगे। क्या उसे अतीत की स्मृतियां सताती होंगी?
नहीं — मैं तुम्हें तलाशती रहूंगी और तुम्हारे सीने पर सिर रख कर आंसू बहाने के पूर्व तुम्हारे चेहरे पर थप्पड़ मारूंगी।
…
मैने अठारह ऐसे अस्पताल देखे जहाँ गंभीर रूप से घायल पूर्व सैनिकों का इलाज हो रहा है, लेकिन वह वहाँ नहीं है। जब मैंने उनसे उसके बारे में पूछा तो दूसरे सभी पूर्व सैनिक कहते हैं, “उसकी शायद मृत्यु हो गई है।” वे अपने कॉमरेड के बारे में ऐसा क्यों कहते हैं। हो सकता है वे अपने बारे में बात कर रहे हों। वे मेरी परीक्षा लेने का प्रयत्न कर रहे हैं। उसे जीवित होना चाहिए, संभवतः तकलीफ में हो — हो सकता है अंतिम सैन्य अस्पताल में हो, जिसे अभी मुझे देखना बाकी है।
“लेकिन तुम्हें कैसे पता कि इस देश में कितने सैन्य अस्पताल हैं?” मैं उन्हें मुझ से ऐसा कहते सुनती हूँ।
मैं इस प्रश्न को बिलकुल पसंद नहीं करती।
…
मुझे पता नहीं कि किस चीज ने मुझे युद्ध संग्रहालय देखने हेतु प्रेरित किया था। जीवन कितना क्रूर खेल है! तमाम निजी वस्तुएं प्रदर्शन हेतु थी — हजारों ऐसे व्यक्तियों की याद दिलाती जो हमारे देश के लिए मर गए। मैं एक युवा स्त्री गुरिल्ला की एक पुरानी तस्वीर के सामने रुक गई। लेकिन रुकिए! हे भगवान — मैने अपनी तस्वीर पहचान ली थी ! मुझ से गलती हो गई हो सकती थी। तस्वीर इतनी विरूपित और धुंधली थी कि लगता था जैसे तस्वीर सड़ रही पत्तियों से बनी हो। लेकिन क्यों — मैं तत्काल उन आंखों से दूर भागना चाहती थी जो तस्वीर में से मुझे घूर रही थी।
अकस्मात मैने अपने पीछे संग्रहालय के गाइड की आवाज सुनी।
“यह युद्ध के सबसे मूल्यवान क्षणों में से एक है,” उसने कहा। “यह सैगोन के बाहरी इलाके में मारे गए एक सैनिक के पास से मिली थी।”
मैं उस तस्वीर से अपनी निगाहें न हटा सकी।
“संभवतः वह ये तस्वीर समूचे युद्ध के दौरान अपने साथ रखे रहा था,” गाइड कहता रहा। “उस देश से, जो युद्ध में पराजित हो गया है, आए एक पर्यटक ने इस तस्वीर को खरीदने के लिए दस लाख डॉलर देने चाहे थे और इसे अपने साथ वापस अमेरिका ले जाना चाहता था, किंतु हमने इसे बेचने से मना कर दिया।”
अंततः मैं वहाँ से चली आई, क्योंकि मैं स्वयं को किसी धोखे में नहीं रखना चाहती थी। यह कोई और स्त्री होनी चाहिए। क्योंकि यदि यह मैं होती तो…
नहीं, यह असंभव है! वह अभी भी जीवित है और उन में से किसी एक सैन्य अस्पताल में है जहाँ अभी मैं नहीं जा पाई थी।
लेकिन तस्वीर में उस औरत के निचले होंठ के नीचे का वह तिल …
मैने उस तिल को पहले कभी क्यों नहीं देखा था? मैं धोखेबाज दर्पण को चूर चूर कर देना चाहती थी!
…
तीन महीने तक मैं इस शोक के साथ इधर उधर बेचैन भटकती रही।
मैं सैन्य अस्पताल के बाहर पत्थर की बेंच तक वापस आ गई। वही पहले वाला पूर्व सैनिक फिर वहाँ बैठा हुआ था। मैने महसूस किया कि वह लंबे समय तक एकाकी रहा था। जहाँ वह दुलार करता जोड़ा पहले बैठा था, वहाँ किसी ने एक फूल छोड़ दिया था, एक लाल फूल जो बिखरे हुए रक्त जैसा दिख रहा था।
“अंधेरा होने वाला है।”
“हां, ऐसा ही है,” मैने कहा।
“तुम यहाँ किस चीज को ढूंढ रही हो ?”
“कुछ भी नहीं। मैं बस वापस आना चाहती थी।”
“मैं जानता था,” उसने कहा।
“आप क्या जानते थे?”
“मैं जानता था कि तुम वापस आओगी।”
“कितनी अजीब बात है,” मैने कहा।
“हां, यह अजीब है। किंतु और किस बात के लिए मैं बम के भारी धात्विक टुकड़े से कुचल जाने के बाद भी जीवित रह गया था? मैं जानता था कि वहाँ कोई मुझे तलाश रहा होगा…”
“वह व्यक्ति जिसे मैं खोज रही थी वह मर चुका है,” मैंने एकाएक कहा, स्वयं को भी आश्चर्यचकित करते हुए। “कई बार मैं सोचती हूँ कि वह बिलकुल तुम्हारे जैसा है। क्या तुम ने कभी कल्पना की है कि कहीं कोई स्त्री होगी जो मेरी तरह तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही होगी?”
“नहीं,” उसने जल्दी से कहा, “हम दोनों झूठे हैं। तुम किसी ऐसी चीज को तलाश रहे हो जो पहले ही खो चुकी है, और इसलिए न बदले जाने योग्य है, और मैं किसी ऐसे की प्रतीक्षा कर रहा हूँ जिसका अस्तित्व ही नहीं है।”
वह अस्थिर सा खड़ा हो गया।
“मैं अठारह का था जब मैं युद्ध में सम्मिलित हुआ,” उसने कहा। “मेरी कोई मंगेतर नहीं थी, जो कि एक भाग्यशाली बात थी। जब मैं सेना में गया तो इससे किसी को तकलीफ नहीं हुई।”
उसने मेरी ओर और गंभीरता से देखा।
“कृपया इस जगह से तुरंत चली जाओ,” उसने कहा। “तुम्हें अपने स्वप्नों में नहीं जीना चाहिए। इसे गुजर जाने दो।” जैसे ही वह चलने लगा, उसने और बात जोड़ी, “मैं संभवतः अधिक समय तक जीवित नहीं रहूंगा।”
जैसे जैसे उसके लकड़ी के पांव की जमीन पर ठक ठक दूर होती गई मैने अपने हृदय को अव्यवस्थित तरीके से धड़कते हुए महसूस किया।
…
कई दिनों बाद, मैने उसे वापस आते हुए सुना, लकड़ी के पांव की जमीन पर वही दृढ़ ठक ठक।
“मैं जानती थी तुम वापस आओगे,” मैने कहा।
“सचमुच ?”
“जब अंधेरा हो जाएगा, तुम मुझे अकेला केवल खुद मेरे भरोसे नहीं छोड़ेंगे।”
उसने मेरी आंखों में गहराई तक देखा, और एक क्षण के लिए उसका चेहरा किसी बच्चे के चेहरे की भांति चमक उठा।
मुझे निश्चित रूप से नहीं पता कि जब मैने स्वयं को उसके आलिंगन में दिया तो मैं इतना क्यों रोई। वह भी रोता रहा। मैं सोचती हूँ, मुझे ईमानदारी से विश्वास था कि उस क्षण यदि मेरे और उसके आंसू एक साथ बहते तो कुछ दैवीय घटित हो गया होता।
…
मैने कभी ऐसे व्यक्ति का ऐसा चेहरा नहीं देखा था जो उसके जैसा विचित्र हो। उसकी आंखों में गुस्सा था, और उसके होठों पर कुछ दुःख जैसा।
“क्या तुम्हें निश्चय है?” उसने पूछा।
“इस बात को एक महीना हो गया,” मैने जवाब दिया।
वह मेरे हाथों की नन्ही धमनियों को स्पर्श करता हुआ, वहाँ चुपचाप बैठा रहा। मुझे आश्चर्य था कि क्या वह भी वह सब सुन सकता था जो मैं सुन रही थी: किसी दूर की दुनिया से आती आवाजें, दो अमर हृदयों का धड़कना।
“तुम गंभीर हो,” उसने पुष्टि के लिए देखते हुए कहा।
“हां, मैं गंभीर हूँ।”
वह अकस्मात खड़ा हो गया और एक पागल की भांति चिल्लाने लगा।
“हां, ओह, हां!”
उसका लकड़ी का पांव इस भांति जमीन पर बज रहा था जो संगीतमय लगा।
तीन दिन बाद वह बार बार हो जाने वाली एक बीमारी से मर गया।
***
जो भी गांव में आता और टुक के बारे में पूछता, उसकी बिना विवाह की गर्भावस्था के बारे में सुनता। वह प्रेम में थी, सनकी सी हो गई थी और गांव छोड़ कर चली गई थी, अफवाहें विवरण देती। जब वह अंततः पुनः वापस आई, उसका एक बच्चा था और वह अपने बाकी के जीवन भर एक मूक और विरक्त स्त्री की भांति जीती रही। लेकिन उसका बच्चा बहुत सुंदर था, मानो वह किसी तस्वीर में से बाहर निकल आया हो।
ठीक, दुर्भाग्य सदैव सौंदर्य से जुड़ा होता है, गप्पबाज आह भर कर कहते। यदि टुक बस इतनी नकचढ़ी न होती और हावो से विवाह कर लेती, तो उसका जीवन शानदार रहा होता। मेरे पूरे गांव में, केवल हावो ही पैसे वाला था। वह सेना में सम्मिलित हुआ, किंतु कभी भी बंदूक नहीं चलाई, न किसी लड़ाई में भाग लिया, फिर भी मेजर की रैंक तक प्रोन्नति पा गया। यद्यपि उसकी पत्नी सनकी और अनाकर्षक थी, पर वह एक शक्तिशाली और समृद्ध परिवार से थी। हावो को अपनी प्रगति के लिए मात्र अपने ससुर पर निर्भर रहना था। हमारे गांव में और कौन था जो इससे बेहतर कर सकता था?
किसी को स्मरण नहीं था कि कभी टुक उस गांव की सबसे सुंदर लड़की हुआ करती थी।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
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श्रीविलास सिंह |
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