हिन्दी लघु पत्रिकाओं के सम्पादक अपनी पत्रिका निकालने में प्रतिबद्ध दिखाई पड़ते हैं। यह प्रतिबद्धता विचारधारा की होती थी जिसके मूल में मनुष्यता दिखाई पड़ती। ये लघु पत्रिकाएं सुविचारित तरीके से निकाली जातीं। इन पत्रिकाओं की सामग्री देख कर इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इन पत्रिकाओं के आवरण पृष्ठ भी बहुत हद तक पत्रिका के परिवेश को बयां कर देते थे। ये आवरण पृष्ठ सादगी से भरे होते थे। यह सादगी दिखावे का प्रतिरोध करती थी। इनके आवरणों में एक खास किस्म की कलात्मकता होती थी। कुछ पत्रिकाओं के आवरण ही उनकी पहचान बन गए। आज की पोस्ट में हम हिन्दी की कुछ लघु पत्र पत्रिकाओं के आवरण पृष्ठ को साझा कर रहे हैं। कई स्रोतों से हमने ये आवरण पृष्ठ प्राप्त किए। हमारे प्रयासों की सीमा इस बात से भी समझी जा सकती है कि कई ऐसी महत्त्वपूर्ण पत्रिकाएं छूट गई हैं जिन्हें इस फोटो फीचर में जरूर शामिल होना चाहिए था। बहरहाल आज पहली बार पर प्रस्तुत है हिन्दी की लघु पत्र पत्रिकाओं के आवरण।
बहुत ही महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय पहल। एक शानदार और सराहनीय कार्य। हमारी बधाई एवं शुभकामनाएं लीजिए।
जवाब देंहटाएंपरिपत्र और जन संस्कृति का भी संपादन मैंने किया। उसे भी शामिल कर सकते हैं। उसका आवरण चित्र भेजता हूं।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन दस्तावेज़ बन पड़ा, बधाई सर|नई -पुरानी पत्रिकाओं का इतनी संख्या में एकसाथ आवरण देखकर अलग अनुभूति हो रही है |
जवाब देंहटाएंआजकल, उत्तर प्रदेश, मधुमती आदि तो सरकारी पत्रिकाएं हैं, लघु कैसे हो गईं?
जवाब देंहटाएंबाकी सूचनाएं ठीक हैं। कोलकाता से इरा, संप्रदान, दिशा आदि कई पत्रिकाएँ भी निकलती थीं।
शैलेंद्र शांत
पत्रिकाओं की ठीक-ठाक सूची तैयार हो गई। अनुसंधान का विषय बन सकता है।
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