परिचय दास का भोजपुरी स्मृति-लेख 'शारदा सिन्हा के गायिकी के अर्थ'

 

परिचय दास 



भोजपुरी स्मृति-लेख        


'शारदा सिन्हा के गायिकी के अर्थ'



परिचय दास 



।।एक।।


शारदा सिन्हा भोजपुरी संगीत जगत के एगो अनमोल रत्न हई, जिनकर गायिकी में भोजपुरिया संस्कृति, परंपरा आ लोकजीवन के सौंदर्य समाहित बा। ओकर विस्तार मैथिली, बज्जिका, अंगिका, हिन्दी गायिकियो में पुरहर बा। उनकर आवाज के मिठास आ सहजता, जेकरा में गहरी भावनात्मक अभिव्यक्ति बा, भोजपुरी लोकसंगीत के एगो नया ऊँचाई पर पहुँचावे में मदद कइलस। उनकर गायिकी से भोजपुरिया समाज के न खाली गर्व महसूस होला बल्किन इ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भोजपुरी भाषा के पहचान दियवहू में अहम भूमिका निभावेले। शारदा सिन्हा के संगीत के विशेषता इ बा कि उहां भोजपुरी गीतन के न खाली प्रस्तुत कइली बल्किन ओह में अपन पूरा आत्मा उढ़ील देहली। ऊ गीत के सुर आ लय में अइसन डूब जालीं कि सुनने वाला ओह गीत के हिस्सा बन जाला।


शारदा सिन्हा के संगीत के शुरुवात उनके खुद के संघर्ष से भइल। बिहार के सुपौल जिला के एगो साधारण परिवार में जनमल शारदा जी के संगीत के प्रति प्रेम बचपन से रहे। हालांकि उनकर परिवार में संगीत के औपचारिक परंपरा ना रहे बाकिर उनका अंदर संगीत के प्रति एगो गहिर अनुराग रहे। शुरू में उनकर संगीत-शिक्षा बहुत सीमित साधनन से भइल, बाकिर अपन अदम्य साहस आ कड़ी मेहनत के बदौलत उ आपन गायिकी के दुनियाभर में स्थापित कर सकलीं। इ उनके संगीत के प्रति निष्ठा आ समर्पण के नतीजा बा कि आज शारदा सिन्हा के नाम से भोजपुरिया लोकगीतन के धरोहर जियत बा।


शारदा सिन्हा के गायिकी के प्रमुख सौंदर्य इ बा कि ऊ भोजपुरिया जीवन के हर पहलू के गीतन में अपने आवाज के मधुरता आ भावनात्मक शक्ति के साथ उतार देली। चाहे उहां छठ गीत होखे, कजरी होखे, सोहर होखे, ना जाने कइसे-कइसे पारंपरिक गीत उ गवलीं, हर गीत में उनके आवाज एगो नया जीवन दे देला। छठ पूजा के गीतन में जवन भावनात्मक गहराई बा, ऊ सीधे भोजपुरिया संस्कृति आ धार्मिक आस्था से जुड़ल बा। जब शारदा सिन्हा छठ के गीत गावत बाड़ी, त लागेला कि ऊ अपन गायिकी से सीधे छठी मइया के अराधना कर रहल बाड़ी। ऊ गीत मात्र एक धार्मिक अनुष्ठान के हिस्सा ना रह जाता, बल्कि ओकरा में एगो गहरा सांस्कृतिक आ आध्यात्मिक अनुभव समाहित हो जाला।


शारदा सिन्हा के छठ गीत भोजपुरिया समाज के जीवन के अभिन्न हिस्सा ह। छठ पर्व के समय उनका गीतन के बिना पूजा अधूरा लागेला। उनका गीत में जवन भक्ति आ समर्पण बा, ऊ भोजपुरिया संस्कृति के धार्मिक धरोहर के संजीवनी देवे वाला बा। छठ गीतन में उ सजीव चित्रण करेली ओह भावनात्मक समर्पण के, जेकरा से भोजपुरी क्षेत्र के लोग छठी मइया के पूजा करत बा। इहे कारन बा कि उनका गीतन के सुनते लोगन के आंखि में आँसू आ जाला आ लोग खुद-ब-खुद छठ के महत्ता के समझे लागेला। उनका छठ गीतन में ना केवल भोजपुरिया धार्मिकता के अनुभव होला बल्किन उ भोजपुरिया लोकजीवन के संघर्ष आ आसो के  प्रतिनिधित्व करेला।


शारदा सिन्हा का गायिकी का एगो अउर महत्वपूर्ण पहलू बा कि उनकर गीतन में महिला जीवन के विभिन्न पहलू के बहुत गहराई से उभारे के कौशल बा। उनकर गीतन में शादी-बियाह के सोहर, विदाई के गीत, बेटी के ममता आ पीड़ा, ई सबकुछ एक-एक करके सामने आ जाला। जब शारदा सिन्हा शादी के सोहर गावेलीं, त लागेला कि ऊ समाज के एगो अंश पर कथा कह रहल बाड़ी। ई गीत भोजपुरिया समाज के पारंपरिक संबंधन आ मानवीय भावना के सजीव रूप में सामने ले आवेला। उनका गायिकी में एगो विशेष प्रकार के कोमलता बा, जे भोजपुरिया मेहरारू के जीवन के संघर्ष आ सौंदर्य के समेटले बा।


शादी-बियाह के समय गावल जाए वाला सोहर गीतन में उहां ममता आ वात्सल्य के जवन चित्रण करेली, ऊ भोजपुरिया समाज में माँ के महत्त्व के खास रूप से उभारेला। ई गीत भोजपुरिया समाज के एगो मजबूत स्तंभ ह, जेकरा में परिवार आ संबंधन के गहिरा जुड़ाव देखल जाला। शारदा सिन्हा के सोहर गीत में जवन माँ के ममता उभर के आवेला, ऊ भोजपुरिया समाज के मातृत्व आ ओह से जुड़ल संस्कृति के प्रतीक बा। उनके गीतन में ना केवल पारंपरिक गीतन के पुनर्जागरन भइल बा बल्किन ऊ गीतन के माध्यम से महिला जीवन के संघर्ष आ सौंदर्य के खास रूप में प्रस्तुत कइले बा।


शारदा सिन्हा के गायिकी के सबसे बड़ा योगदान इ बा कि उनकर संगीत से भोजपुरिया संस्कृति के हर वर्ग के लोग आपन जान रहल बा। उहे गँवई जीवन होखे चाहे शहरी, हर जगह लोग उनका गीतन में अपन संवेदनशीलता के अनुभव कर रहल बा। भोजपुरिया लोकगीतन में उ जवन नया आयाम जोड़ले बा, ऊ ओकरा के केवल पुरान धरोहर ना बल्किन एक सजीव आ समकालीन रूप देवे में सक्षम भइल बा। उनका गायिकी में जवन संजीवनी बा, ऊ भोजपुरिया समाज के भविष्य के प्रति आशा आ विश्वास के प्रतीक बा।


शारदा सिन्हा के गायिकी के कौशल में एगो खास बात इ बा कि उ गीतन में अपन आवाज के इस्तेमाल एतना खूबसूरती से करेली कि हर गीत में नयापन आ मिठास अनुभव होखेला। चाहे उ 'पहिले पहिल हम कइनी छठ बरतिया' होखे चाहे 'दरश दिअs  छठी मइया' होखे, शारदा सिन्हा के हर गीत में एगो भावनात्मक तरंग बा। उनके आवाज के मिठास आ स्वर के संतुलन गीतन के एकदम जीवंत बना देला। उ भोजपुरी गीतन में केवल गावे वाला गायिका ना रह गइल बाड़ी बल्किन एगो संवेदनशील कलाकार बन गइल बाड़ी, जिनकर हर गीत में एगो खास कहानी बा। उनका गायिकी में संगीत के जवन ठहराव आ लय बा, ऊ भोजपुरिया लोकसंगीत के एकदम नया आयाम दे देला।


शारदा सिन्हा के संगीत के एगो अउर महत्त्वपूर्ण पहलू बा कि उनका गायिकी के माध्यम से भोजपुरिया समाज के संस्कार आ परंपरागत जीवनशैली के नया आयाम मिलल बा। उनका गीतन में जवन सामाजिक आ सांस्कृतिक परंपरा समाहित बा, ऊ भोजपुरिया समाज के जड़ से जुड़ल बा। चाहे उ छठ के गीत हो, चाहे विदाई के, चाहे कजरी हो, हर जगह शारदा सिन्हा के आवाज भोजपुरिया संस्कृति के सजीव रूप से प्रस्तुत कर रहल बा। उनके गायिकी के माध्यम से भोजपुरिया समाज के लोग आपन संस्कृति से जुड़ल महसूस कर रहल बा। ई उनका गायिकी के सबसे बड़ा सौंदर्य बा कि ऊ भोजपुरी भाषा के गीतन के माध्यम से ना खाली मनोरंजन देत बाड़ी बल्किन ओह गीतन के माध्यम से भोजपुरिया समाज के गौरवशाली इतिहास आ परंपरागत जीवनशैली के नवा रूप में पेश कर रहल बाड़ी।


शारदा सिन्हा के योगदान भोजपुरिया संगीत जगत में अतुलनीय बा। ऊ खाली एगो गायिके ना बाड़ी बल्किन भोजपुरिया संस्कृति के जियत जागत उदाहरण हईं। उनका गायिकी से भोजपुरिया/ मैथिली/ बज्जिका/ अंगिका/ हिन्दी आदि समाजन के सांस्कृतिक पहचान के एगो नया मुकाम मिलल बा। आज उनके गीतन के बिना भोजपुरिया संगीत अधूरा लागेला। शारदा सिन्हा के आवाज भोजपुरिया समाज के हर घर में गूंजत बा, आ उनकर गायिकी से भोजपुरिया संस्कृति के महत्व आ सौंदर्य के नवका रूप में लोगन तक पहुँचावल जा रहल बा।


शारदा सिन्हा के गायिकी के योगदान भोजपुरिया समाज में केवल संगीत के सीमित ना बा, बल्कि उहां भोजपुरिया समाज के संस्कार आ लोकजीवन के एगो महत्वपूर्ण हिस्सा बन गइल बाड़ी। उनका गायिकी से भोजपुरिया समाज के न केवल संगीत के सौंदर्य के अनुभव होखत बा, बल्कि उ संस्कृति आ परंपरा के भी नवा सजीव रूप मिलल बा। शारदा सिन्हा के गायिकी भोजपुरिया समाज के सांस्कृतिक धरोहर के नवा रूप देत बा, आ ई उनकर सबसे बड़ा योगदान बा।


'मैंने प्यार किया', 'हम आपके हैं कौन' आ 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' जइसन फिलिमन में उनुकर गावल गीत काफी लोकप्रिय भइल बा। उहाँ के गावल गीतन के कैसेट संगीत बाजार में आसानी से मिल जाला। दुल्हिन, पिरितिया, मेहंदी जइसन कैसेट बढ़िया जनता में बहुते लोकप्रिय बा। 


 ।।दू ।।


शारदा सिन्हा के गायिकी में भोजपुरिया समाज के जीवन के अनेक रंग देखे के मिलेला। उनकर गीतन में गाँव के धूल-धूसरित गलियन से लेके खेत-खलिहान के गंध ले, सबकुछ महसूस होखेला। उ गीतन में भोजपुरिया समाज के साधारण जीवन, संघर्ष, प्रेम, और सामूहिकता के रूप में पेश करेली। शारदा सिन्हा के गायिकी में पारंपरिक गीतन के पुनरुत्थान भइल बा, जेकरा के ऊ आज के युवा पीढ़ी से भी जोड़ल चाहेली। उनकर गायिकी में एगो ऐतिहासिक चेतना बा, जे भोजपुरिया संस्कृति के गौरवशाली परंपरा के संरक्षित आ प्रसारित करे में मदद कर रहल बा। ऊ एगो माध्यम बन गइल बाड़ी, जे भोजपुरी लोकसंगीत के न केवल जिंदा रख रहल बा, बल्कि ओकरा के भविष्य में भी स्थायी बनावे के कोशिश कर रहल बा।


भोजपुरी समाज में शारदा सिन्हा के गायिकी के महत्व केवल सांस्कृतिक संरक्षण तक सीमित ना बा, बल्कि ऊ एगो प्रेरणा के रूप में भी देखल जाला। भोजपुरी समाज में विशेष रूप से महिलाएं, जे अक्सर लोकसंगीत में एक माध्यमिक भूमिका में देखल जालीं, शारदा सिन्हा के गायिकी से प्रोत्साहित होके आगे बढ़ल चाहेली। उनका गायिकी के सफलता आ लोकप्रियता से भोजपुरिया महिलाएं भी संगीत के क्षेत्र में अपना के प्रस्तुत करे खातिर आत्मविश्वास महसूस करेली। शारदा सिन्हा के योगदान के असर न केवल भोजपुरी क्षेत्र में, बल्कि अन्य लोकभाषाओं और लोकसंगीत के संरक्षण और प्रसार में भी देखे के मिलेला।


शारदा सिन्हा के गायिकी के कौशल उहे तक सीमित ना बा कि ऊ भोजपुरिया लोकगीतन के गावत बाड़ी। उनकर आवाज में एगो बहु-आयामी शक्ति बा, जेकरा से ऊ आधुनिक संगीत शैलीओ के अपनावे में सक्षम बाड़ी। उनका गायिकी में पारंपरिक आ आधुनिकता के बीच एगो संतुलन देखे के मिलेला, जे भोजपुरिया समाज के विकासशील संस्कृति के भी प्रतिनिधित्व कर रहल बा। शारदा सिन्हा के संगीत में ना केवल पुराने गीतन के नवा रूप में प्रस्तुत करे के क्षमता बा बल्किन ऊ आधुनिक समाज आ लोकजीवन के भी अपन आवाज से सजावे में सक्षम बाड़ी। इहे कारण बा कि उनका गायिकी में हर पीढ़ी के लोगन के जुड़ाव देखे के मिलेला।


शारदा सिन्हा के संगीत भोजपुरी समाज के आंतरिक संघर्षन के भी प्रतिनिधित्व करेला। भोजपुरिया लोकजीवन में जवन सामाजिक आ सांस्कृतिक बदलाव भइल बा, ओकरा के ऊ अपन गीतन के माध्यम से सजीव रूप में सामने ले आवेली। चाहे ऊ गांव के सादगी होखे या शहर के आधुनिकता, उनका गायिकी में हर तरह के भावनात्मक आ सामाजिक चित्रण के देखे के मिलेला। ऊ भोजपुरिया समाज के बदलल सामाजिक ढांचे आ परंपरागत मूल्यन के बीच एगो सामंजस्य स्थापित करे के कोशिश कर रहल बाड़ी। उनका गायिकी में भोजपुरिया समाज के बदलल जीवनशैली के भी स्पष्ट रूप में देखल जा सकेला।


शारदा सिन्हा के योगदान न केवल गायिकी में बा, बल्कि ऊ भोजपुरिया लोकसंस्कृति के एक प्रतिनिधि चेहरा बन गइल बाड़ी। ऊ भोजपुरिया समाज के सांस्कृतिक धरोहर के ना केवल संजोली, बल्कि ओकरा के राष्ट्रीय आ अंतर्राष्ट्रीय मंचन पर पेश करके एगो नया ऊँचाई तक पहुँचवली। उनकर गायिकी भोजपुरिया समाज के आपन परंपरागत मूल्यन से जुड़ल रखे खातिर प्रेरित करेला, जबकि ओही साथे उहां आधुनिक समाज के बदलल संदर्भन में भी आपन जगह बनावे के कोशिश कर रहल बाड़ी।


शारदा सिन्हा के संगीत के सौंदर्य के अगर देखल जाव त उनका गायिकी में भोजपुरी लोकसंगीत के मौलिकता आ नव्यता के अद्भुत संगम बा। उनके गायिकी के सबसे खासियत इ बा कि ऊ पारंपरिक गीतन के केवल दोहरावे ना, बल्कि ओकरा में अपन सृजनात्मकता आ व्यक्तिगत अनुभव जोड़ के प्रस्तुत करेली। ई उनका गीतन में एगो खास संवेदनशीलता आ गहराई के पैदा करेला, जे भोजपुरिया लोकगीतन के आम आदमी के जीवन से सीधे जोड़ देला। उनकर आवाज में भोजपुरिया समाज के जवन संघर्ष आ सजीवता बा, ओकरा के ऊ संगीत के माध्यम से बहुत ही प्रभावी ढंग से पेश करेली। उनका गीतन में भोजपुरिया भाषा के मिठास आ अपनापन के जवन अनुभूति होला, ऊ भोजपुरिया संस्कृति के सबसे बड़ा सौंदर्य ह।


शारदा सिन्हा के गायिकी भोजपुरिया समाज के अलग-अलग अवसरन पर आधारित गीतन के खास महत्व देला। छठ, कजरी, सोहर आ विदाई जइसन गीतन में ऊ भोजपुरिया समाज के रीति-रिवाज आ परंपरागत जीवनशैली के सजीव रूप में प्रस्तुत करेली। उनका गायिकी में हर गीतन के विशेषता बा कि ऊ भोजपुरिया समाज के खास अवसरन के भावनात्मक आ सांस्कृतिक महत्ता के संजीव रूप से उभारेली। छठ गीतन में ऊ भोजपुरिया धार्मिक आस्था के जवन संजीव चित्रण करेली, ऊ ना केवल धार्मिकता के प्रतीक बा, बल्कि समाज के गहराई से जुड़ल भावना आ विश्वास के भी प्रतीक बा। कजरी आ सोहर गीतन में ऊ भोजपुरिया परिवारन के बीच के स्नेह आ संबंधन के सजीव रूप में प्रस्तुत करेली।


शारदा सिन्हा के गायिकी भोजपुरिया समाज के सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षित रखे के साथे ओकरा के नवा पीढ़ी से जोड़ के रखे के महत्वपूर्ण भूमिका निभावत बा। भोजपुरिया संगीत, जेकरा के कभी केवल ग्रामीण आ पारंपरिक मानल जात रहे, उ शारदा सिन्हा के प्रयासन से नवा पीढ़ी आ शहरी समाज में भी लोकप्रिय हो गइल बा। ई उनके गायिकी के सबसे बड़ा योगदान बा कि ऊ भोजपुरिया संगीत के केवल एक पीढ़ी ले सीमित ना रखली बल्किन ओकरा के आधुनिकता के संदर्भ में प्रस्तुत करके हर वर्ग के लोगन तक पहुँचवली। उनका गायिकी के आधुनिक समाज में एगो नया संदर्भ मिलल बा, आ उ भोजपुरिया संस्कृति के भविष्य के प्रति एगो सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहल बा।


शारदा सिन्हा के गायिकी के एगो अउर महत्वपूर्ण पक्ष इ बा कि ऊ भोजपुरी संगीत के दुनिया के अन्य भाषा आ संगीत शैली से जोड़ के एक नवा आयाम देल कइली। उनका गायिकी में भारतीय शास्त्रीय संगीत के तत्व भी देखे के मिलेला, जे भोजपुरिया लोकगीतन के शास्त्रीयता से भी जोड़ेला। ई उनकर गायिकी के अनूठापन बा कि ऊ भोजपुरिया लोकगीतन में शास्त्रीय संगीत के तत्व जोड़ के ओकरा के अधिक समृद्ध बनवली। उनकर गायिकी में जवन विविधता आ संगीत के नवा प्रयोग देखे के मिलेला, ऊ भोजपुरिया संगीत के परंपरागतता से आधुनिकता तक के यात्रा के प्रतीक बा। शारदा सिन्हा के संगीत भोजपुरिया समाज के आधुनिक संदर्भन में प्रस्तुत करे के एक नवा माध्यम बा आ ऊ भोजपुरिया संस्कृति के हर स्तर पर प्रासंगिक बनावे में सक्षम बाड़ी।


शारदा सिन्हा के गायिकी के कला आ योगदान पर जवन भी शब्द कहाइल जा सकेला, ऊ हमेशा कम होई। उनकर गायिकी भोजपुरिया समाज के सांस्कृतिक जीवन के अभिन्न हिस्सा बन गइल बा। उनका योगदान न केवल भोजपुरी संगीत के संदर्भ में बल्किन भारतीय लोकसंगीत के संपूर्ण परिदृश्य में बहुत महत्वपूर्ण बा। ऊ भोजपुरिया संगीत के एगो वैश्विक पहचान दिलवली, आ उनका गायिकी से भोजपुरिया समाज के सांस्कृतिक आ सामाजिक धरोहर के संरक्षित आ विस्तारित कइल गइल बा।○


 ।। तीन।।


शारदा सिन्हा के गायिकी के कला आ योगदान के विस्तार भोजपुरिया समाज के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ में गहराई से देखल जा सकेला। उहां भोजपुरी समाज के हर वर्ग, चाहे ऊ ग्रामीण जीवन होखे या शहरी, चाहे ऊ परंपरागत सोच के लोग होखे या आधुनिकता के समर्थक, सबके बीच आपन जगह बना चुकल बाड़ी। उनका गायिकी के जादू इ बा कि ऊ हर श्रोता के दिल में बस जालीं। जब ऊ गावत बाड़ी, तब ना केवल उनका आवाज सुनाई देला, बल्कि ओह आवाज में भोजपुरिया जीवन के संघर्ष, प्रेम, आशा, आ उमंगो देखल जा सकेला। उनकर गायिकी में भोजपुरिया संस्कृति के जीवल जा रहल बा आ इहे उनकर गायिकी के सबसे खास विशेषता ह।


शारदा सिन्हा के संगीत केवल भोजपुरिया लोकगीतन तक सीमित ना बा। उनकर संगीत भारतीय शास्त्रीय संगीत से भी प्रभावित बा। उनका गायिकी में जवन लय आ ताल के उपयोग देखल जा सकेला, ऊ उहे शास्त्रीयता के ओर इशारा करेला। उ जब भोजपुरिया पारंपरिक गीत गावत बाड़ी, तब ओह में शास्त्रीय संगीत के ठहराव आ संयम के एहसास होला। ई दर्शावे ला कि उनका संगीत के प्रशिक्षण गहरा आ विस्तृत रहल बा। शारदा सिन्हा के गायिकी में शास्त्रीयता आ लोकसंगीत के मिश्रण बहुत सहज रूप से हो रहल बा, आ ई मिश्रण उनके गायिकी के एक नया आयाम दे रहल बा। ऊ केवल परंपरागत लोकगायिका ना रह गइल बाड़ी, बल्किन एक सशक्त संगीतकार बन गइल बाड़ी, जिनकर गायिकी में विविधता आ नवाचार साफ देखल जा सकेला।


उनका गायिकी में जवन ध्वनि विन्यास आ स्वर संलाप बा, ऊ भोजपुरिया समाज के सांस्कृतिक धरोहर के नए सिरे से परिभाषित कर रहल बा। ऊ अपने गायिकी के माध्यम से भोजपुरिया समाज के गीतन में एगो नया दृष्टिकोण जोड़ रहल बाड़ी। उदाहरण स्वरूप, छठ गीत के जवन ध्वनि संरचना बा, ऊ परंपरागत रूप से एकल गायन से संबंधित रहे, बाकिर शारदा सिन्हा ओह गीतन में शास्त्रीयता के नयापन जोड़ के ओकरा के एकदम नया रूप देल कइली। ई नवाचार भोजपुरिया लोकसंगीत के न केवल आधुनिक समाज से जोड़ रहल बा, बल्कि ओकरा के अंतरराष्ट्रीय मंचवो पर  ले जा रहल बा।


शारदा सिन्हा के गायिकी के अद्वितीयता इ बा कि ऊ केवल भोजपुरिया लोकजीवन के गाथा ना गावत बाड़ी, बल्कि ऊ समाज के सामाजिक आ सांस्कृतिक बदलावन के भी आवाज दे रहल बाड़ी। भोजपुरिया समाज, जे बहुत तेजी से बदल रहल बा, ओह बदलावन के ऊ अपन गायिकी के माध्यम से पकड़े के कोशिश कर रहल बाड़ी। उनका गीतन में परंपरा आ आधुनिकता के बीच के संघर्ष आ सामंजस्य साफ देखल जा सकेला। ऊ जब विदाई के गीत गावत बाड़ी, तब ओहमें परंपरागत विदाई के दर्द आ आधुनिक समाज में बदलत रिश्तन के नया स्वरूप दोनों के देखल जा सकेला। शारदा सिन्हा के गायिकी भोजपुरिया समाज के बदलत सामाजिक संरचना के भी सजीव रूप में सामने रख रहल बा।


उनका गायिकी में सामाजिक मुद्दन के भी चित्रण देखे के मिलेला। भोजपुरिया लोकगीत, जे परंपरागत रूप से प्रेम, संघर्ष, आ धार्मिक आस्थावन के गाथा गावत रहे, ओहमें शारदा सिन्हा के नवाचार के चलते समाज के नवा मुद्दा, जइसे महिला सशक्तिकरण, शिक्षा, आ पर्यावरण संरक्षण जइसन विषय भी देखल जा रहल बा। उनकर गायिकी के नवाचार के सबसे बड़ा उदाहरण इ बा कि ऊ छठ पूजा के पारंपरिक गीत में भी महिला सशक्तीकरण करण के संदेश जोड़ के प्रस्तुत कइले बाड़ी। उनका गायिकी के ई बदलाव भोजपुरिया लोकसंगीत के अधिक व्यापक आ प्रासंगिक बनावत बा, खासकर आज के दौर में जवन मुद्दा सामने आ रहल बा।


शारदा सिन्हा के गीतन में लोकजीवन के खुशियाली आ दुख-दर्द, दोनों के एक साथ देखल जा सकेला। ऊ भोजपुरिया जीवन के हर पल के गीत बनाके गवली, चाहे उ खेती-किसानी के गीत होखे, चाहे माटी के खुशबू से जुड़ल गीत होखे, चाहे ऊ करुणा आ प्रेम के गीत होखे। उनकर गीतन में भोजपुरिया माटी के आवाज सुनाई देला। उनकर गायिकी में गँवई जीवन के सादगी आ शहरी जीवन के संघर्ष, दूनो के अद्भुत संतुलन बा। ई संतुलन उनकर गायिकी के एगो विशेषता बना देले बा, जे भोजपुरिया समाज के हर वर्ग आ पीढ़ी के लोगन से जोड़ रहल बा।


संगीत के क्षेत्र में शारदा सिन्हा के योगदान केवल भोजपुरिया लोकगीतन के सीमित ना बा। उनका गायिकी के प्रभाव समूचा उत्तर भारत में देखल जा सकेला। चाहे उ कजरी होखे, चाहे सोहर, चाहे बरहमासा, उनका हर गीत में एगो खास प्रकार के मिठास आ गहराई बा। उत्तर भारतीय संगीत में लोकगीतन के महत्व हमेशा से रहल बा, लेकिन शारदा सिन्हा के गायिकी से इ महत्व आओर बढ़ गइल बा। उनकर आवाज में जवन मिठास बा, ऊ ना केवल भोजपुरिया लोगन के दिल छू लेवेला, बल्किन अन्य प्रदेशन के लोगन पर भी गहरा असर छोड़त बा।


शारदा सिन्हा के गायिकी में एह बात के विशेष महत्व बा कि ऊ अपने संगीत में समाज के जवन चित्रण करेली, उहे समाज के असल चेहरा के सामने ले आवे के कोशिश कर रहल बाड़ी। ऊ अपने गीतन में भोजपुरिया समाज के संघर्ष, प्रेम आ सांस्कृतिक जड़न के जवन चित्रण करेली, ऊ सजीव आ वास्तविक बा। उनके गायिकी में एगो खास प्रकार के संवेदनशीलता आ मानवीयता बा, जे हर श्रोता के दिल तक पहुँचे में सक्षम बा। ऊ भोजपुरिया समाज के समस्यावन के भी आपन गायिकी में बहुत सहज रूप से उभार के सामने रखली। इहे कारण बा कि उनका गीतन में हर आदमी आपन दुःख, दर्द, आ खुशी के झलक देख सकेला।


उनका गायिकी के एगो अउर महत्वपूर्ण पहलू इ बा कि ऊ भोजपुरी भाषा के मिठास आ गहराई के संजीव रूप में प्रस्तुत करेली। भोजपुरी भाषा के जवन लचीलापन आ संवेदनशीलता बा, ऊ शारदा सिन्हा के गायिकी में बहुत साफ देखल जा सकेला। ऊ अपने गायिकी में भाषा के जादूगरिन हईं, जिनकर आवाज में भाषा के हर स्वर आ ध्वनि संजीव हो उठेला। ऊ केवल गायक के रूप में ना बल्किन एगो सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में भी देखल जाली। उनका गायिकी के माध्यम से भोजपुरिया समाज के भाषा, संस्कृति आ परंपरा के नवा पीढ़ी तक पहुँचावल जा रहल बा आ ई भोजपुरिया समाज के सांस्कृतिक धरोहर के बचावे के एक महत्वपूर्ण प्रयास बा।


शारदा सिन्हा के गायिकी के योगदान के इहे विशेषता बा कि ऊ केवल पुरान गीतन के दोहरावे में विश्वास ना रखेली। ऊ हमेशा नया प्रयोग करे के कोशिश करेली, चाहे ऊ धुन होखे, लय होखे, या फिर शब्दन के चयन। ऊ हर गीत में कुछ नया जोड़ देली, जेकरा से उ गीत आओर ज्यादा जीवन्त हो जाला। इहे कारण बा कि उनका गीतन में हर बार सुनते नयापन महसूस होला। उनका गायिकी में ई नयापन आ नवाचार भोजपुरिया संगीत के सजीव आ समकालीन बनावत बा, आ ई उनके सबसे बड़ा योगदान ह।


शारदा सिन्हा के गायिकी केवल भोजपुरिया लोकसंगीत के सजीव रखे तक सीमित ना बा। ऊ अपन गायिकी के माध्यम से एगो सांस्कृतिक आंदोलन के हिस्सा बन गइल बाड़ी, जे भोजपुरिया समाज के हर आदमी तक पहुँच रहल बा। उनका गायिकी से भोजपुरिया समाज के गर्व आओर बढ़ गइल बा। ऊ केवल एगो गायिका ना, बल्कि भोजपुरिया संस्कृति के जीवल प्रतीक बाड़ी। उनका योगदान भोजपुरिया समाज के न केवल सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनावत बा, बल्कि ऊ एगो सांस्कृतिक चेतना के जागृत करे में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभावत बा।


आज शारदा सिन्हा के गायिकी भोजपुरिया समाज के एगो अमूल्य धरोहर ह। ऊ भोजपुरिया संगीत के एक नया रूप देत बाड़ी, आ उनकर गायिकी से भोजपुरिया संस्कृति के समृद्धि के जवन धारा बह रहल बा, ऊ भोजपुरिया समाज के भविष्य के भी नया दिशा दे रहल बा। शारदा सिन्हा के गायिकी के सौंदर्य, गहराई, आ योगदान के तुलना भोजपुरिया समाज के सांस्कृतिक जीवन के एगो महत्वपूर्ण अध्याय से कइल जा सकेला।○


।।चार।।


शारदा सिन्हा के गायिकी के संगीत शास्त्र के दृष्टिकोण से देखल जाव त उनकर संगीत के गहराई, शास्त्रीयता आ लोकसंगीत के सजीवता के अद्भुत मिश्रण देखे के मिलेला। ऊ भोजपुरिया लोकसंगीत के शास्त्रीय संगीत के सिद्धांतन से जोड़ के एक नया रूप देली, जेकरा से भोजपुरिया संगीत के नव आयाम मिलल बा। शारदा सिन्हा के गायिकी में जवन शास्त्रीयता बा, ऊ केवल ध्वनि, स्वर, आ ताल के संतुलन तक सीमित ना बा, बल्कि संगीत के गहरा भावनात्मक आ सांस्कृतिक अर्थन के भी दर्शावत बा। उनका गायिकी के प्रभाव भोजपुरिया लोकसंगीत के नया दिशा दे रहल बा, आ ऊ शास्त्रीय संगीत के सिद्धांतन के भोजपुरिया लोकसंगीत में सजीव रूप में प्रस्तुत कर रहल बाड़ी।


संगीत शास्त्र के दृष्टि से शारदा सिन्हा के गायिकी में जवन सबसे प्रमुख पहलू बा, ऊ बा राग आ ताल के संतुलन। ऊ अपन गीतन में भारतीय शास्त्रीय संगीत के रागन के बहुते सहजता से अपनावत बाड़ी। उदाहरण स्वरूप, उनका कई गीतन में राग भैरवी, यमन, आ दरबारी के प्रयोग देखल जा सकेला। ई रागन के इस्तेमाल से उनका गायिकी के प्रभाव आओर बढ़ जाला, आ श्रोतन के ध्यान गहराई तक खींच लेवेला। भोजपुरिया संगीत में शास्त्रीय रागन के इस्तेमाल बहुत कम देखल गइल बा, लेकिन शारदा सिन्हा इ प्रयोग बहुत सहजता से कइलीं, आ ऊ पारंपरिक लोकसंगीत में एगो नया दृष्टिकोण जोड़ देलीं।


शारदा सिन्हा के गायिकी में ताल के जवन संरचना बा, ऊ भी शास्त्रीय संगीत के सिद्धांतन के आधार पर देखल जा सकेला। ऊ अपन गीतन में दादरा, कहरवा, आ झपताल जइसन तालन के उपयोग बहुत कुशलता से कइली। ताल के ई संरचना उनका गायिकी के लयात्मकता आ संगीत के प्रवाह के बढ़ावा देला। शास्त्रीय संगीत में तालन के बहुत महत्व बा, काहे कि ऊ संगीत के ढांचा तय करेला, आ शारदा सिन्हा ई शास्त्रीय सिद्धांत के अपना गायिकी में बहुत प्रभावी ढंग से लागू कइलीं। उनका गायिकी में ताल के जवन प्रवाह बा, ऊ श्रोता के मन के गहराई तक पहुँच जाला, आ इहे संगीत शास्त्र के दृष्टिकोण से उनका गायिकी के खासियत बा।


शारदा सिन्हा के गायिकी में शास्त्रीय संगीत के एक अउर महत्वपूर्ण तत्त्व बा आलाप। ऊ अपन कई गीतन में आलाप के बहुत खूबसूरती से इस्तेमाल कइलीं। आलाप, जवन शास्त्रीय संगीत में एक महत्वपूर्ण हिस्सा होला, ऊ संगीत के आरंभ के लयात्मकता आ स्वर के स्पष्टता तय करेला। शारदा सिन्हा आलाप के माध्यम से अपना गीतन के आरंभ में एक शास्त्रीयता जोड़ देलीं, जेकरा से उ गीत शास्त्रीय संगीत के साथे लोकसंगीत के भी अद्भुत संगम के रूप में सामने आवेला। ई आलाप के प्रयोग उनका गायिकी के गहराई आ शास्त्रीयता के बढ़ावेला, आ ऊ भोजपुरिया संगीत में नवा रूप में आलाप के प्रस्तुत करेली।


शारदा सिन्हा के गायिकी में सुर के उपयोग भी बहुत महत्वपूर्ण बा। शास्त्रीय संगीत में सुरन के महत्व बहुते बढ़ल मानल जाला, काहे कि सुरन के सही प्रयोग से संगीत के सौंदर्य आ प्रभाव तय होला। शारदा सिन्हा अपन गायिकी में सुरन के बहुते कुशलता से इस्तेमाल कइलीं। उनका गायिकी में सुर के आरोह-अवरोह बहुत सजीव बा आ ऊ सुरन के माध्यम से अपने गायिकी में गहराई आ प्रभाव जोड़ेली। उनका सुर के स्पष्टता आ सही प्रयोग से भोजपुरिया संगीत में एगो नवा मानदंड स्थापित भइल बा। संगीत शास्त्र के दृष्टि से सुरन के सही प्रयोग संगीत के सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू बा, आ शारदा सिन्हा ई सिद्धांत के अपना गायिकी में बहुत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कइलीं।


शास्त्रीय संगीत के एगो अउर महत्वपूर्ण सिद्धांत ह आरोहण आ अवरोहण के संतुलन। शारदा सिन्हा के गायिकी में ई संतुलन बहुत साफ देखे के मिलेला। ऊ जवन भी राग गवलीं, ओकरा में आरोहण आ अवरोहण के लयात्मक संतुलन उनका गायिकी के खास पहचान बा। ई आरोहण आ अवरोहण के संतुलन से उनका संगीत में शास्त्रीयता आ भोजपुरिया लोकजीवन के मिठास, दूनो के सजीव रूप में देखल जा सकेला। संगीत शास्त्र में ई संतुलन बहुत जरूरी बा, आ शारदा सिन्हा इ सिद्धांत के बहुत सहजता से अपन गान शैली में जोड़ के एक नया आयाम देलीं। उनके गीतन में आरोहण आ अवरोहण के स्पष्टता आ लयात्मकता से श्रोतन के मन में एगो गहिरा असर पैदा होखेला।


उनका गायिकी में शास्त्रीयता के एगो अउर अनूठा पहलू बा बंदिश के प्रयोग। शास्त्रीय संगीत में बंदिश के विशेष महत्व होला, आ शारदा सिन्हा कई गीतन में बंदिशन के बहुत सजीव रूप में प्रयोग कइलीं। उनका बंदिश में शास्त्रीय संगीत के परंपरागत शैली के साथे भोजपुरिया लोकसंगीत के लयात्मकता के अद्भुत संगम देखल जा सकेला। बंदिश के प्रयोग से उनका गायिकी में संगीत के जवन ठहराव आ गहराई बा, ऊ श्रोतन के मन में एगो विशेष प्रभाव छोड़ेला। बंदिश के प्रयोग से शारदा सिन्हा अपना गायिकी के और भी समृद्ध आ गहन बनवलीं, जेकरा से ऊ भोजपुरिया लोकसंगीत के एक नया दृष्टिकोण दे सकलीं।


शारदा सिन्हा के गायिकी में ध्वनि के नियंत्रण भी संगीत शास्त्र के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण बा। शास्त्रीय संगीत में ध्वनि के नियंत्रण से संगीत के प्रभाव आ सौंदर्य निर्धारित होला। शारदा सिन्हा अपन गायिकी में ध्वनि के बहुत सटीकता से इस्तेमाल कइलीं। उनका ध्वनि के उतार-चढ़ाव आ नियंत्रण से उनका संगीत में शास्त्रीयता आ लोकसंगीत के मिठास, दूनो के अद्भुत संगम देखे के मिलेला। ऊ ध्वनि के माध्यम से अपन गीतन में एगो गहराई पैदा करेली, जेकरा से श्रोता के मन के गहराई तक संगीत के असर पहुँचेला।


शारदा सिन्हा के गायिकी में ध्वनि नियंत्रण के विशेषता इ बा कि ऊ हर सुर आ ताल के बीच के अंतर आ लय के बहुत साफ समझ रखेली। ई ध्वनि नियंत्रण संगीत शास्त्र के आधारभूत सिद्धांतन में से एक बा, आ शारदा सिन्हा ई सिद्धांत के बहुत प्रभावी ढंग से अपन गायिकी में लागू कइलीं। उनका ध्वनि के उतार-चढ़ाव आ आरोह-अवरोह के नियंत्रण से संगीत के सजीवता आ मिठास में बढ़ोत्तरी होखेला, आ श्रोतन के मन के गहराई तक असर डालेला।


शारदा सिन्हा के गायिकी के शास्त्रीय संगीत में खास महत्व इ बा कि ऊ भोजपुरिया लोकसंगीत के केवल शास्त्रीय संगीत के सिद्धांतन से जोड़ के प्रस्तुत ना कइलीं, बल्कि ऊ लोकजीवन के भावनात्मक आ सांस्कृतिक पहलूओ के अपने गायिकी में संजोलीं। उनका संगीत में भोजपुरिया समाज के जीवन के गहराई, संघर्ष, आ प्रेम के अद्भुत चित्रण देखल जा सकेला। ऊ अपन गायिकी में शास्त्रीय संगीत के सिद्धांतन के बहुत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कइलीं, जेकरा से भोजपुरिया लोकसंगीत के एक नया आयाम मिलल बा।


शास्त्रीय संगीत के सिद्धांतन के अलावा, शारदा सिन्हा के गायिकी में रागदारी के बहुते महत्व बा। ऊ अपन गीतन में भारतीय शास्त्रीय संगीत के रागदारी के प्रयोग बहुत कुशलता से कइलीं। रागदारी के ई प्रयोग से ऊ अपन गीतन में शास्त्रीयता आ भोजपुरिया लोकजीवन के भावनात्मक गहराई के अद्भुत समन्वय पैदा करेली। उनका गायिकी में रागदारी के ई संतुलन से संगीत के गहराई आ सौंदर्य में बढ़ोत्तरी होखेला आ ई श्रोतन के मन में एगो विशेष प्रकार के सुखद एहसास पैदा करेला। शास्त्रीय संगीत में रागदारी के प्रयोग से संगीत के स्वरूप अधिक सजीव आ प्रभावी बन जाला, आ शारदा सिन्हा ई सिद्धांत के बहुत प्रभावी ढंग से अपन गायिकी में लागू कइलीं।



 ।।पाँच।।


शारदा सिन्हा के गायिकी के विशेषता एह बात में छिपल बा कि ऊ भोजपुरी संगीत के मान-सम्मान आ सांस्कृतिक गरिमा के हमेशा ऊंचा राखे में सफल भइली। भोजपुरिया लोकसंगीत के बारीक समझ आ सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य के ध्यान में राखत, ऊ ए तरह के गीतन के प्रस्तुत करेली, जे भोजपुरिया समाज के वास्तविकता, भावना आ सौंदर्य के प्रतिबिंबित करेला, फूहड़पन से कोसों दूर। एही कारण से शारदा सिन्हा के गायिकी के खास महत्त्व बा, आ ऊ भोजपुरी संगीत के धारा में एगो शुद्धता आ गरिमा के कायम रखे में सक्षम भइली।


भोजपुरी लोकसंगीत में जहां एक ओर कुछ गायन धारा में फूहड़ता के प्रवेश भइल बा, ऊहां शारदा सिन्हा के गायिकी एगो साफ-सुथरा, शुद्ध आ मर्यादित स्वरूप प्रस्तुत करेला। एह बात के चर्चा कइल जरूरी बा कि उनका गायिकी में फूहड़ गीतन के अभाव बा। ए प्रकार के गीत, जे भोजपुरी संस्कृति में विकृत धारा के रूप में देखल जाला, अक्सर समाज के सांस्कृतिक मूल्यों के नुकसान पहुंचावेला। शारदा सिन्हा के संगीत के दृष्टि से ई देखल जाव कि ऊ केवल शुद्ध आ लोककंठ से निकसल गीतन के ही प्रस्तुत कइलीं, जेकरा में समाज के उच्च आदर्श, भावना आ संस्कृति के सौंदर्य छलकत बा। फूहड़ता के अभाव उनका गायिकी के ई खासियत बा कि ऊ भोजपुरिया समाज के सकारात्मक पहलु के उजागर करेली।


शारदा सिन्हा के गीतन में भोजपुरी समाज के जिनगी के विविध रंग-रूप आ अनुभव छलकत बा, लेकिन एक बात साफ बा कि ऊ गीतन के चयन आ प्रस्तुति में हमेशा सांस्कृतिक शालीनता के ध्यान राखेली। भोजपुरी समाज में परंपरा आ संस्कृति के बड़का योगदान रहल बा, आ शारदा सिन्हा हमेशा ए परंपरा के समृद्ध करे में लागल रहलीं। उनका गीतन में प्रकृति, प्रेम, त्योहार, परिवार आ समाज के जवन मिठास आ सहजता बा, ऊ श्रोता के मन में एक तरह के स्वच्छता आ आनन्द भर देला। एही के चलते उनका गायिकी के अलग महत्त्व बा कि ऊ भोजपुरिया समाज के गरिमा के कायम राखलीं, आ फूहड़पन से दूर रहल गइलीं।


एकर अउर कारण भी बा कि शारदा सिन्हा के गायिकी में फूहड़ गीत के अभाव बा, आ ऊ बा उनकर संगीत के गहराई। शारदा सिन्हा शास्त्रीय संगीत आ लोकसंगीत के जवन सजीव रूप प्रस्तुत कइलीं, ऊ भोजपुरिया संगीत के केवल मनोरंजन के साधन ना बनावेला, बल्कि समाज के सांस्कृतिक संपदा के भी प्रस्तुत करेला। उनका संगीत में एह गहराई के वजह से ऊ हमेशा गीतन के गुणवत्ता पर ध्यान देलीं, आ फूहड़ता के कोई जगह ना दीहलीं। भोजपुरिया समाज में जवन सांस्कृतिक मूल्यों के पतन के ओर ले जाए वाला धारा बा, शारदा सिन्हा ओकरा से दूर रहल गइलीं आ अपन गायिकी के माध्यम से एगो सजीव सांस्कृतिक धरोहर के प्रस्तुत कइलीं।


शारदा सिन्हा के गीतन के विषय वस्तु भी एगो महत्वपूर्ण कारक बा, जेकरा से फूहड़ता के जगह ना मिलल। ऊ भोजपुरिया जिनगी के हर पहलु के छूवेली—फिर चाहे ऊ छठ पूजा होखे, होली, या कोई अउर सामाजिक या पारिवारिक प्रसंग। ई गीतन में गहराई, भावना आ सहजता बा, जे भोजपुरिया समाज के सकारात्मक आ उज्ज्वल पहलु के उजागर करेला। फूहड़ता के अभाव के एगो अउर पहलू ई बा कि शारदा सिन्हा हमेशा एही तरह के गीत गवलीं, जेकरा में समाज के आदर्श आ मूल्य के सम्मान मिल सके। ऊ लोकगीतन में जवन सजीवता आ संस्कृति के मिठास बा, ओकरा के प्रस्तुत कइलीं, आ एह बात के खास ध्यान राखलीं कि उनका गीतन में फूहड़पन कवनो जगह ना पावेला।


शारदा सिन्हा के गायिकी के शुद्धता आ गरिमा के एक अउर महत्वपूर्ण पहलू बा कि ऊ हमेशा भोजपुरिया समाज के महिला आ पुरुष के सम्मान आ उनके भावना के संरक्षण में योगदान देलीं। उनका गीतन में स्त्री आ पुरुष के संबंधन के जवन चित्रण बा, ऊ शालीनता आ सौहार्द के आधार पर होला। एह में कहीं भी अश्लीलता या अभद्रता के प्रवेश ना होखे देलीं। ऊ स्त्रियन के स्थिति आ उनकी भावना के बहुत संजीदगी से प्रस्तुत करेली, जेकरा से समाज में स्त्रियन के सम्मान आओर बढ़े। फूहड़ता के अभाव के एगो खास कारण इहे बा कि शारदा सिन्हा हमेशा भोजपुरिया समाज के आदर्श आ सांस्कृतिक मूल्य के संरक्षण कइलीं।


ऊ अपन गायिकी में एगो एहन स्वरूप प्रस्तुत कइलीं, जेकरा से भोजपुरिया लोकसंगीत के गरिमा आ बढ़ल। फूहड़ गीतन के अभाव के एगो अउर कारण शारदा सिन्हा के गहराई आ समझ बा। ऊ भोजपुरिया समाज के जवन वास्तविक स्थिति बा, ओकरा के ध्यान में राखत, ऊ समाज के आगे बढ़ावे वाला संदेश प्रस्तुत करेली। ऊ अपन गीतन में समाज के सकारात्मक पक्ष के उभारे पर ध्यान देलीं, आ फूहड़ता से बचेली। ऊ अपने गायिकी में भोजपुरिया समाज के जीवन के सजीव आ प्रेरक चित्रण करेली, जेकरा से समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन आ सके।


शारदा सिन्हा के गायिकी के एगो अउर खास पहलू बा उनका पारिवारिक आ धार्मिक प्रसंगन के संजीदा आ स्वच्छ चित्रण। छठ पूजा, होली, तीज आ अउर त्योहारन के गीत उनका गायिकी में महत्वपूर्ण स्थान रखेला। एहन गीतन में फूहड़ता के कोई जगह ना होला, काहे कि ई गीत समाज के सांस्कृतिक आ धार्मिक मूल्यों के संरक्षण आ सम्मान में समर्पित होखेला। उनका छठ गीत, जवन अब भोजपुरी समाज में लगभग हर घर में गावल जाला, ऊ गीतन में परिवार आ धार्मिक आस्था के जवन आदर्श रूप बा, ऊ श्रोतन के मन में एक प्रकार के शुद्धता आ भक्ति पैदा करेला। एही के कारण शारदा सिन्हा के गायिकी में फूहड़ता के अभाव रहल बा, आ ऊ हमेशा समाज के उच्च सांस्कृतिक मूल्यन के प्रस्तुति में लागल रहलीं।


शारदा सिन्हा के गायिकी में लोक आ शास्त्रीय संगीत के जवन अद्भुत समन्वय बा, ओकरा में फूहड़ता के कवनो जगह ना मिल पावल। ऊ हमेशा संगीत के गहराई आ स्वरूप के ध्यान में राखत, एही प्रकार के गीत गवलीं, जे भोजपुरिया समाज के असल भावना आ सौंदर्य के दर्शावेला। शारदा सिन्हा के गीतन के प्रभाव एह बात से देखल जा सकेला कि ऊ ना केवल भोजपुरिया समाज में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्य आ सराहल गइल बाड़ी। उनका गीतन में जवन साफ-सुथरापन बा, ऊ भोजपुरिया संगीत के एक नया आयाम देत बा।


संगीत के माध्यम से शारदा सिन्हा भोजपुरिया समाज के नकारात्मकता आ फूहड़ता से दूर रखलीं। ऊ फूहड़ गीतन से दूर रहके भोजपुरिया संगीत के सम्मानित आ गरिमामय रूप प्रस्तुत कइलीं। ए बात के ध्यान देवल जरूरी बा कि भोजपुरिया समाज के संगीत के कुछ धारा में फूहड़ता के प्रवेश भइल बा, लेकिन शारदा सिन्हा हमेशा एहसे दूर रहल गइलीं आ अपने गीतन में सजीवता, सहजता आ सांस्कृतिक आदर्श के स्थापित कइलीं। उनका गायिकी के साफ-सुथरापन आ मर्यादा भोजपुरिया संगीत के नयी दिशा देत बा, आ इहे कारण बा कि उनका संगीत में फूहड़ गीतन के अभाव देखल जाला।


शारदा सिन्हा के गीतन में भोजपुरिया समाज के जिनगी के हर पहलू, चाहे ऊ सांस्कृतिक होखे या सामाजिक, सबके सम्मानपूर्वक प्रस्तुत कइल गइल बा। ऊ हमेशा ई सुनिश्चित कइलीं कि उनका गीतन में समाज के सही दिशा मिले आ समाज के मूल्यों आ आदर्शन के संरक्षण होखे। फूहड़ता के अभाव के मुख्य कारण ऊ लोगन के आदर्श के दिशा देवे वाली गायिका बाड़ी। एह तरह से शारदा सिन्हा ना केवल संगीत के माध्यम से भोजपुरिया समाज के सेवा कइलीं, बल्कि ऊ एक सकारात्मक सांस्कृतिक बदलाव के भी प्रेरणा बनलीं।

शारदा सिन्हा के संगीत के महत्व एह बात से समझल जा सकेला कि ऊ अपन गायिकी में समाज के सांस्कृतिक धरोहर आ गरिमा के हमेशा बनाए रखलीं। फूहड़ गीतन के अभाव उनका गायिकी के  सबसे बड़हन  विशेषता में एगो बा।



।। छ:।।


शारदा सिन्हा के गायिकी भोजपुरी लोकसंगीत के दुनिया में एगो एहन नाम बा, जे ना केवल संगीत के क्षेत्र में मान-सम्मान पवली, बल्कि उनकर गायिकी भोजपुरिया समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक आ मनोवैज्ञानिक स्तर पर गहिर प्रभाव छोड़लस। उनका गायिकी में भोजपुरिया संस्कृति, परंपरा आ लोकजीवन के जवन सजीव आ स्वाभाविक चित्रण बा, ऊ भोजपुरिया समाज के आत्मा के गहराई से जोड़त बा। ऊ समाज के सकारात्मक पहलू के उभारत, एक अइसन सांस्कृतिक माहौल के निर्माण कइलीं, जेकरा से लोग अपना जड़न से जुड़ल रहल आ समाज के आदर्श आ मूल्यों के उच्च स्थान मिलल।


सामाजिक दृष्टि से देखल जाय, त शारदा सिन्हा के गायिकी भोजपुरिया समाज के आत्म-सम्मान आ गौरव के एक नया आयाम दिहलस। ऊ अपन गायिकी में भोजपुरिया जीवन के हर पहलू के छूवलस—चाहे ऊ त्योहारन के उल्लास होखे, या पारिवारिक जीवन के मिठास। उनका गीतन में छठ पूजा, होली, तीज आ अउर कई भोजपुरिया त्योहारन के जवन सजीव आ गरिमामय प्रस्तुति बा, ओकरा से समाज के लोग अपन परंपरा आ संस्कृति पर गर्व महसूस करेला। समाज में कई बार लोग अपना जड़न से दूर होखे लागेला, खासकर जब आधुनिकता आ ग्लोबलाइजेशन के प्रभाव जोर पकड़े लागेला, लेकिन शारदा सिन्हा के गायिकी ए बात के सुनिश्चित कइलस कि लोग अपना संस्कृति आ परंपरा से जुड़ल रहल।


एह बात के भी खास उल्लेख जरूरी बा कि उनका गायिकी के माध्यम से ग्रामीण जीवन के सजीव चित्रण आ शुद्धता प्रस्तुत कइल गइल बा। भोजपुरिया समाज में जे विशेष प्रकार के सामाजिक बंधन, संबंध आ पारिवारिक ताना-बाना बा, ओकरा के उनका गीतन में बखूबी दर्शावल गइल बा। ऊ भोजपुरिया समाज के आर्थिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक स्वरूप के अपने गीतन में उभारत बाड़ी, जेकरा से भोजपुरिया समाज के लोग अपने जीवन के एह विभिन्न पहलून के बारे में गर्व से महसूस कर सके। समाज में जे सामान्य रूप से नैतिकता, पारिवारिकता आ सामाजिक मूल्य के गिरावट देखल जा रहल बा, शारदा सिन्हा के गायिकी एही बिंदु पर मजबूत आ प्रभावी भइली। ऊ लोकगीतन के माध्यम से ई संदेश देलीं कि भोजपुरिया समाज में जवन नैतिकता आ पारिवारिक संबंध के महत्त्व बा, ओकरा के बनावले राखे के जरूरत बा।


सांस्कृतिक दृष्टिकोण से देखल जाय, त शारदा सिन्हा के गायिकी के योगदान अतुलनीय बा। भोजपुरिया संगीत, जेकरा के अक्सर निम्नस्तरीय मानल गइल या फूहड़पन से जोड़ल गइल, ओहमें शारदा सिन्हा एगो गरिमा आ शुद्धता के स्थापित कइलीं। ऊ अपन गीतन के माध्यम से भोजपुरिया संस्कृति के समृद्ध आ रंगीन पहलू के राष्ट्रीय स्तर पर उभारे में सफल भइलीं। उनका गायिकी में छठ पूजा, जवन कि बिहार आ पूर्वांचल में सबसे महत्वपूर्ण त्योहार मानल जाला, ओकरा के लेके जवन गहराई आ भक्ति छलकत बा, ऊ भोजपुरिया समाज के धार्मिक आ सांस्कृतिक धरोहर के सजीव राखे में मददगार साबित भइल बा। शारदा सिन्हा के गीतन के माध्यम से भोजपुरिया समाज के लोग ना केवल अपना धार्मिक आ सांस्कृतिक परंपरा से जुड़ल बा, बल्कि ऊ समाज में आपसी संबंध आ सामंजस्य के भी मजबूत बनावे में मददगार साबित भइल बा।


शारदा सिन्हा के गायिकी के सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव के एगो महत्वपूर्ण पक्ष ऊ बा कि उनका संगीत के माध्यम से भोजपुरी भाषा आ संस्कृति के राष्ट्रीय आ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलल। भोजपुरी भाषा, जेकरा के अक्सर कमतर मानल गइल, ओकरा के ऊ राष्ट्रीय मंच पर स्थापित कइलीं। उनका गायिकी में भोजपुरिया भाषा के मिठास आ सहजता छलकत बा, जेकरा से भोजपुरिया लोग अपने भाषा पर गर्व करे लागल। भोजपुरिया भाषा के प्रति समाज के लोगन के भावना आ जुड़ाव बढ़ल, आ ऊ भाषा के समृद्ध आ सांस्कृतिक धरोहर के रूप में देखे लागल।


मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखल जाय, त शारदा सिन्हा के गायिकी भोजपुरिया समाज के मानसिकता पर बहुत गहिरा प्रभाव छोड़लस। उनका गीतन में जवन सहजता आ सजीवता बा, ऊ श्रोता के मन के भीतर गहिरा तक छूवेला। भोजपुरिया समाज में जहां अक्सर कठिनाई आ संघर्ष के दौर होला, ओह दौरान शारदा सिन्हा के गीत लोगन के मानसिक तनाव से बाहर निकाले में मददगार साबित होखेला। ऊ अपन गीतन में जवन सांस्कृतिक आदर्श आ समाज के सकारात्मकता के उजागर करेली, ओकरा से लोग अपना जिनगी में आशा आ उर्जा के महसूस करेला। उनका गीतन के माध्यम से लोग ना केवल मनोरंजन पावेला, बल्कि ऊ एगो मानसिक शांति आ संतुलन भी पावेला। खासकर छठ पूजा के गीत, जेकरा में एक प्रकार के भक्ति आ धैर्य छलकत बा, ऊ श्रोता के मन के अंदर एगो शांति आ संतोष के भाव पैदा करेला।


एहसे साफ बा कि शारदा सिन्हा के गायिकी केवल संगीत तक सीमित ना रहल, बल्कि समाज के भीतर एगो मानसिक, सांस्कृतिक आ सामाजिक जागरूकता पैदा कइले बा। उनका गायिकी के माध्यम से समाज में एगो सकारात्मक आ शुद्ध वातावरण के निर्माण भइल बा, जेकरा से भोजपुरिया समाज के लोग अपने जीवन में सांस्कृतिक आ मानसिक स्तर पर बदलाव महसूस कर रहल बा। ऊ गीतन के माध्यम से समाज में आपसी सामंजस्य, प्रेम आ आदर के भावना के उभार कइलीं, जेकरा से समाज में आपसी संबंध आ सामाजिक बंधन मजबूत भइल बा।


अंततः शारदा सिन्हा के गायिकी भोजपुरिया समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक आ मनोवैज्ञानिक स्तर पर एगो महत्वपूर्ण योगदान दिहलस। ऊ समाज के लोगन के अपना जड़न से जोड़ल रहल, सांस्कृतिक आदर्श के ऊंचाई पर पहुंचवल आ मानसिक शांति के भाव पैदा कइलीं। उनका संगीत भोजपुरिया समाज के आत्मा के गहराई से जोड़त बा, आ ओकरा से लोगन के आपसी संबंध आ सांस्कृतिक धरोहर के महत्त्व के फिर से समझ मिल रहल बा।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

हर्षिता त्रिपाठी की कविताएं