प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'बेताल की शरारत'
प्रचण्ड प्रवीर |
धार्मिक विश्वास एवम परंपराएं मूलतः आस्था पर आधारित होती हैं। इनका तर्क से कुछ भी लेना देना नहीं होता। विज्ञान का मानना है कि हर घटना के लिए कोई न कोई कारण जिम्मेदार होता है जबकि धर्मभीरू लोग उसके पीछे देवी देवता या भूत प्रेत को जिम्मेदार मानते हैं। प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'बेताल की शरारत' ऐसी ही कहानी है जिसमें खराब खाना बनने के पीछे छठ माता के रुष्ठ होने को माना जाता है। प्रवीर बखूबी कहानी को बरतते हैं और इसके पीछे के वास्तविक कारण को उभरते हैं जो इन मान्यताओं को हास्यास्पद बना देती है। 'कल की बात' शृंखला के अन्तर्गत प्रवीर ने महत्त्वपूर्ण कहानियां लिखी है जिसे ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'बेताल की शरारत'।
कल की बात – 262
'बेताल की शरारत'
प्रचण्ड प्रवीर
कल की बात है। जैसे ही मैंने मौसी के घर मेँ डाला लिए कदम रखा, किसलय ने राहत की साँस लेते हुए कहा, “हो गयी छठ पूजा।" पीछे-पीछे किसलय की बड़ी और मेरी मौसेरी बहन कोमल, उनकी छोटी बहन सुरभि, किसलय की पत्नी प्रमिला, कोमल और सुरभि के पति और मेरी मौसी सभी गङ्गाजी से घर लौट आए। सुबह के साढ़े सात बज गए थे। मौसी ने छठ व्रत किया था और अभी उन्हेँ पूजा करनी थी, फिर प्रसाद बाँटना था। जितनी सुबह-सवेरे घाट पर अफरा-तफरी मची हुई थी, उतनी ही अब घर मेँ जल्दी मची हुई थी कि कोमल और सुरभि के पूरे परिवार को ग्यारह बजे की ट्रेन से वापस लौटना था। जल्दी-जल्दी खाना बनाना और पैक करना है। घर पर रह जाएँगे, किसलय, प्रमिला, मौसी और मैँ। मेरी रेल की कन्फर्म टिकट अगले दिन की थी, इसलिए एक दिन और रुकना था।
किसलय और प्रमिला की शादी का साल भी नहीं लगा था। प्रमिला झट से रसोई में खाना बनाने में जुट गई। कोमल अपने बच्चोँ का सामान पैक करने में व्यस्त हो गई। सुरभि प्रमिला का हाथ बँटाने के लिए सब्जी काटने लगी। छठ के समय घरेलू सहायिका ने भी छुट्टी ले रखी थी। खाना बनाने का, घर सँभालने का सारा भार प्रमिला, कोमल और सुरभि पर आ गया था। उस पर छठ!
रसोई से आवाज़ प्रमिला ने किसलय को आवाज़ लगाई, “सुनिए, घर में नमक खत्म हो गया है। बाज़ार से सेन्धा नमक लेते आइए।" किसलय भुनभुना कर कहने लगा, “सुबह-सवेरे कौन सी दूकान खुली होगी? उसमेँ भी सेन्धा नमक? कोई दूकान खुली भी हो तो वहाँ साधारण नमक तो मिल भी जाए, सेन्धा नमक मिलना मुश्किल है।" उधर से सुरभि तमतमाती आई और झोला पकड़ा कर किसलय से बोला, “ज्यादा बहस मत करो। जल्दी जाओ और जल्दी आओ। जैसा हो फोन से बता देना।" किसलय चुपचाप झोला ले कर घर से बाहर चला गया। फूलगोभी के टुकड़े करते हुए सुरभि ने प्रमिला को कहना शुरू किया, “इतने दिनोँ तक हमने घर सँभाल लिया। अब हमारी नाक मत कटा देना। कविराज भैया कल जाएँगे। खाना अच्छे से बनाना। दिल्ली में जा कर लोग से हमारी शिकायत न करे। तुम्हें पता है कि भैया कविराज ही नहीँ, बहुत जानकार हैं। योगी है, साधक हैं, तान्त्रिक भी हैं। सुना है कि इन्होँने तीन-चार भूत साध रखे हैं। उन भूतों मेँ से एक बेताल भी है, जो भैया को बिना मोबाइल, बिना इंटरनेट के सब बता देता है। इनको नाराज़ होने का मौका मत देना।"
उधर मौसी से प्रसाद लेने वालों की अलग कतार लगी थी। कोमल के दूल्हा के साथ मैं भी ठेकुआ खाते-खाते वहाँ आते-जाते लोग को देखने लगा। तभी किसलय का फोन आया। वह कहने लगा, “प्रमिला या सुरभि फोन नहीं उठा रही। कहिए कि सेन्धा नमक नहीं मिल रहा है। पाँगा नमक ले लूँ?” यही बात मैंने फोन लिए-लिए सुरभि से पूछी, तब उसने कहा, “नहीं, रहने दो। आजकल पाँगा नमक और सेन्धा नमक के दाम में ज्यादा अन्तर नहीं है। फिर सेन्धा नमक ही खाना चाहिए। घर में ढेला वाला सेन्धा नमक रखा है। उसी को पीस कर काम चला लेंगे। कह दीजिए कि शाम में ले आए। अभी घर आ जाए।" मैंने किसलय को घर आने को कह दिया। सुरभि ने प्रमिला को सेन्धा नमक पीस कर सब्जी बनाने को कहा। बेचारी प्रमिला हल्दी पीसने में लगी थी कि ताजा सिलबट्टे पर पिसी हुई गीली हल्दी से सब्जी में वो जान आती है जो हल्दी के सूखे चूरे से नहीं होती।
कोमल के दुल्हा न जाने किस बात से खफा थे। सुनने में आया था कि वो हर बार ससुराल आते हैं बिना चप्पल के। नई चप्पल खरीदते हैं और वही पहने, पुराना जूता यहीँ छोड़ कर चले जाते हैं। इस बार सुरभि ने सोच रखा था कि उनके पुराने जूते गिफ्ट पैक में उनको भेँट कर दिए जाएँगे। वे हमसे बहुत देर तक छठ पूजा के माहात्म्य और अपने शहर की गुणगाथा कहते रहे। इसी बीच कोमल ने खाने के लिए आवाज़ लगायी कि मौसी ने पारण कर लिया है, अब हम लोग खाने के लिए बैठे।
सबसे पहले हम बैठे और खाना शुरू किया। मैंने पहला कौर लेते ही कहा कि लगता है नमक नहीं पड़ा है। सुरभि बोली ऐसा हो नहीँ सकता है। मैंने कहा कि कुछ खराब लग रहा है। किसलय ने खाना चखते हुए कहा, “कुछ कड़वाहट है।" मैँने दही माँगा और सब्जी में मिला कर खाने लगा। सुरभि के पति ने खाना चखते हुए बोले, “मैं यह खाना नहीँ खा सकता। अजब सा लग रहा है।" प्रमिला एकदम दोषी की तरह सिर झुका कर देखने लगी। कोमल ने कहा, “जरूर मसाला ठीक से नहीँ दिया होगा।" सुरभि दौड़ी-दौड़ी आई और खाना चख कर बोली, “अरे, लगता है हल्दी ज्यादा पड़ गई है। इतना ज्यादा कि खाया नहीँ जा रहा है।" कोमल के पति ने कुर्सी से उठते हुए कहा, “वह बात नहीं। इस शहर मेँ सड़ी हई फूलगोभी मिलती है जिसमेँ कीड़े होते हैं। मैंने कल दुपहर मेँ किसलय को गोभी लेने से मना किया था। गोभी का मौसम है अभी? गोभी गठी हुई थी ही नहीं।"
बाकी सब खाने से उठ गए। पूरी सब्जी फेँक दी गई। सुरभि ने अफसोस किया कि प्रमिला की मेहनत बेकार गई। सबने केले और हलवे के साथ रोटियाँ खाई। सवा दस बजते-बजते कोमल और सुरभि अपने परिवार के साथ रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हो गए। त्योहार के साथ खुशी आती है लेकिन उसके समाप्त होते ही उदासी घेर लेती है।
बारह बजते-बजते मौसी कुछ राहत महसूस कर रही थीं। ढाब नीँबू का शरबत निकाल कर प्रमिला ने हम सब को पिलाया। दुपहर के खाने के समय सबसे पहले पुरुषोँ को खिलाना था, इसलिए मुझे और किसलय को खिलाया जाने लगा। मैने चख कर कहा, “लगता है दाल मेँ नमक कम है या कुछ गड़बड़ है।" किसलय ने देख कर कहा, “दाल ठीक से पकी नहीं। प्रमिला क्या हो गया है तुम्हें? खाना बनाना भूल गयी?” फिर उसने चख कर कहा, “दाल का स्वाद ठीक नहीँ है। कुछ गड़बड़ है।" किसलय एकदम से खड़ा हो गया। किचन में जा कर वाटर प्यूरीफायर का थोड़ा सा पानी पी कर उसने कहा, “यह पानी खराब है। इसी के कारण सुबह का खाना भी खराब हो गया था। दाल भी नहीँ पकी। कल से यह आवाज़ कर रहा था। मैँने मेकैनिक को बोला था पर छठ के दिन कौन आता है। मैँ अभी बुलाता हूँ।“
एक घण्टे मेँ मेकैनिक ने आ कर वाटर प्यूरीफायर ठीक किया। आवाज़ आनी बन्द हुई। सर्किट मेँ कुछ खराबी थी और अन्दर कहीँ-कहीँ पानी भी चू भी रहा था। किसलय ने मेकैनिक को साढ़े तीन सौ रुपए चुका कर कहा, “यहाँ का पानी बहुत खराब है।" मौसी ने हलुआ-रोटी खाया। प्रमिला ने दूध-भात खाया। मेरा मन कुछ खाने से उचट गया था।
शहर में कुछ दोस्तों से मिलना था। जब वापस लौटा तब तक किसलय भी बाजार से लौट आया था। मैंने बाजार में कुछ खा लिया था इसलिए खाने का मन नहीं कर रहा था। लेकिन मौसी अपनी बहू की प्रशंसा करने से रुके तब तो। प्रमिला लाखों में एक है। शिक्षिका भी है और घर भी सँभालती है। कितना अच्छा खाना बनाती है। शाम में ज्यादा नहीँ खाते तो क्या हुआ, दो रोटी खा लो। मौसी, किसलय और हम खाने पर बैठे। पहले कौर में मैंने कहा, “परवल की सब्जी ठीक नहीँ लग रही।" किसलय ने शर्मिन्दा होते हुए कहा, “सब्जी जरा जल गई थी। मुझसे ही गैस बन्द करने में थोड़ी देर ही गयी थी।" मौसी ने सब्जी चख कर कहा, “नहीं, यह तो खाने लायक नहीँ है। अजीब लग रही है। फेंको इसे।" तब तक मैँने एक रोटी खा ली थी। किसलय ने प्रमिला को घूरा तब मुझे बुरा लगा।
मौसी मेरे पास आई और कहने लगी, “सुना है तुम तान्त्रिक भी हो। ज़रा बताओ हमारे घर में किसने जादू-टोना कर दिया है कि तीनोँ वक्त का खाना खराब हो गया है। आखिर समस्या क्या है? सुबह हल्दी ज्यादा थी। दोपहर में पानी खराब था। अभी न जाने क्या हो गया है।" यही बात फोन पर सुरभि को पता चली। उसने मुझे फोन किया, “भैया, पता कीजिए कहीं छठ मइया तो हमसे नाराज़ नहीं हो गईं? क्या गलती हुई है?” इधर मौसी किसलय से कहने लगी, “लगता है अगली बार कष्टी व्रत करना पड़ेगा। घाट तक लेट-लेट कर जाएँगे। न जाने क्या गलती हो गई है।"
इधर बैठक में मैँ इस सोच मेँ बैठा था कि अब किस तरह ‘गाइड’ बनने से मना करूँ। तभी मैँने देखा कि प्रमिला दरवाजे पर खड़ी है। मैँने कहा, “आओ बैठो।“ प्रमिला चुपचाप सोफे पर बैठ गई। मैँने पूछा, “तीनों समय के भोजन में क्या चीज है जो मिलती है।“ प्रमिला ने रूआँसी हो कर कहा, “पता नहीँ भैया। क्या गलती हुई है। आप तो तान्त्रिक हैँ ना। पता कर के बताइए।" मैंने पूछा, “किसलय शाम में सेन्धा नमक का नया पैकेट लाया?” प्रमिला ने हाँ में सिर हिलाया। मैंने पूछा, “तुम नया नमक इस्तेमाल किया या पुराना?” प्रमिला ने कहा, “पुराना। ढेला वाला सेन्धा नमक पीस कर दिया है।" मैँने कहा, “एक काम करो, जरा तुम रसोई से नमक ले कर आओ।"
प्रमिला सबकी नजरें बचा कर पीसे हुए नमक का डिब्बा लेते आयी। मैंने नमक को चखा। फिर प्रमिला से कहा, “अरे ये नमक नहीं, ये तो फिटकरी है!" यह सुन कर प्रमिला का मुँह खुला का खुल रह गया। वह घबरा कर बोली, “हाय राम। यह आप किसी को मत बताइए। मैँने ढेले को पहचानने मेँ गलती कर दी। वहीं पर एक और ढेले का बर्तन है। एक छोटा वाला ढेला रखा था मुझे लगा कि यही सेन्धा नमक होगा। अब देखिए, यह बात उनको पता चली तो मुझे बहुत चिढाएँगे।"
मैँने कहा, “घबराओ नहीं।" तब तक मौसी मेरे पास आयी ओर कहने लगी, “बेटा कुछ पता चला?” मैँने घबरायी मौसी को बिठा कर कहा, “मौसी, यह सब मेरा दोष है। मेरा बेताल खाना माँग रहा था पर छठ पूजा के चक्कर में मैंने उसे खाना देने मेँ नागा कर दिया। वही शरारत कर रहा है।" मौसी ने चिन्ता में बेताल को शान्त करने का उपाय पूछा। मैँने दो उपले, कपूर और सेन्धा नमक मँगवाया। रात के धुँधकले मेँ पालथी मार कर बगीचे मेँ धूनी रमा कर बैठ गया। उपले के ऊपर कपूर रख कर जलाने के बाद मैंने मंत्र पढ़े। धधकती लौ पर मैँने एक और उपला रखा और प्रमिला का दिया नमक का डिब्बा उड़ेल दिया। उसके बाद मैँने मौसी से कहा, “मौसी अब बेताल सन्तुष्ट है। अब कोई परेशानी नहीं।" मौसी ने क्रोधित हो कर कहा, “ये तन्त्र-मन्त्र का काम घर से दूर ही रखा करो। तुम अपने चक्कर में हम सबको ले डूबोगे।“ मैँने दरवाजे पर खड़ी प्रमिला की तरफ देखा। उसने अपराध बोध से नजरें नीची और फिर नज़रे मिलते ही धीमे से हँस पड़ी। किसलय बेचारा हम दोनोँ को यूँ मुस्कुराता देखता रह गया।
ये थी कल की बात!
दिनाङ्क : 9/11/2024
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की है।)
प्रचंड प्रवीर कितनी सहजता से कथानक बुनते हैं। संवाद छोटे और प्रभावी। कहानी पढ़ते हुए लगा कि उस माहौल के भीतर ही हूँ और सब कुछ देख रहा हूँ ।
जवाब देंहटाएंत्योहार के बाद उदासी फैल जाती है... कितना सत्य ! मन अभी इस उदासी में डूबा हुआ है!
यक्ष, भूत, प्रेत इत्यादि आज भी लोक जीवन का अंग है। उनका मानव जीवन में हस्तक्षेप रहता है, वे रूष्ट भी होते हैं तो प्रसन्न भी होते हैं। इनके हस्तक्षेप में विश्वास और सच्चाई को रोचकता के साथ कहती इस 'कल की बात' के लिए प्रचंड जी को👍👍👍।
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