कमलजीत चौधरी से प्रचण्ड प्रवीर की बातचीत
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कमलजीत चौधरी |
संक्षिप्त परिचय:
कमल जीत चौधरी हिन्दी कवि-लेखक व अनुवादक हैं। अब तक लगभग साठ साहित्यिक पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ, आलेख, अनुवाद और लघु कथाएँ छप चुकी हैं। इनके दो कविता संग्रह- हिन्दी का नमक (2016), दुनिया का अंतिम घोषणापत्र (2023) प्रकाशित हुए हैं। इसके अलावा इन्होंने जम्मू-कश्मीर की कविताई को रेखांकित करते हुए; 'मुझे आई डी कार्ड दिलाओ' (2018) शीर्षक से एक कविता-संग्रह संपादित किया है। दस साझे संकलनों में इनकी कविताएँ संकलित की गई हैं। इसके अलावा चयनित कविताओं का एक संग्रह भी प्रकाशित है। इनकी कविताएँ मराठी, उड़िया, बंगला, पंजाबी और अँग्रेज़ी में अनूदित व प्रकाशित हुई हैं।
किसी भी रचनाकार से बातचीत का यही उद्देश्य होता है कि उसके व्यक्तित्व और कृतित्व के उन पहलुओं को सामने लाया जाए जिससे पाठक आम तौर पर परिचित नहीं होता है। बातचीत से रचनाकार की प्रतिबद्धता और सरोकारों के बारे में भी पता चलता है। प्रचण्ड प्रवीर ने लिखित प्रश्नोत्तरी के जरिए संवाद करने की पहल शुरू की है। इस क्रम में उन्होंने पहली बातचीत कवि कमलजीत चौधरी से की है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कमलजीत चौधरी से प्रचण्ड प्रवीर की बातचीत।
एक न एक दिन चीज़ें समझी जाएँगी, और नया तथा सुन्दर घटित होगा
प्रचण्ड प्रवीर : साहित्यिक साक्षात्कार को ले कर मेरे कुछ विचार इस तरह के हैं। साक्षात्कार का उद्देश्य ही अन्तरङ्ग के महत्त्वपूर्ण सूत्र को पकड़ना होता है जो कि असावधानी से या किसी अन्य तरीके से सामने आ जाए जो कि अब तक छुपा रह गया हो। यहाँ हम लिखित प्रश्नोत्तरी में संवाद करने की पहल शुरू कर रहे हैं। हमने एक प्रश्नोत्तरी बनायी है। कोई भी साहित्यकार जिनकी जैविक आयु 45 वर्ष से कम हो, और रचनाधर्मिता की आयु लगभग पन्द्रह साल हो, वे निम्न नियत प्रश्नोँ का उत्तर देकर संपादक को भेज सकते हैं, मगर साक्षात्कार को छापने-नहीं छापने का निर्णय संपादक का होगा।
जम्मू में रहने वाले हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि-लेखक व अनुवादक ‘कमलजीत चौधरी’ ने इस प्रश्नोत्तरी का उत्तर दिया है। सम्भवत: यह 'बातचीत' एक कड़ी का रूप ले ले।
प्रश्न - हिन्दी साहित्य की उन पाँच रचनाओँ (कृतियोँ) का उल्लेख करें जो आपके लिए महत्त्वपूर्ण होँ।
उत्तर - समय विशेष में अलग-अलग रचनाएँ महत्त्वपूर्ण होती हैं। अनेक रचनाएँ महत्वपूर्ण हैं। इस समय भी अनेक रचनाएँ याद आ रही हैं, इनमें से पाँच का नाम यहाँ बता रहा हूँ:
आषाढ़ का एक दिन (नाटक) - मोहन राकेश, पाज़ेब (कहानी) - जैनेन्द्र, अँधेरे में (लम्बी कविता) - मुक्तिबोध, मैला आँचल (उपन्यास) - फणीश्वर नाथ रेणु और कबीर के कुछ दोहे, जैसे :
(1) कबीर यहु घर प्रेम का, ख़ाला का घर नाँहि।
सीस उतारै हाथि करि, सो पैठे घर माँहि॥
(2) कबीरा खड़ा बाज़ार में, लिए लुकाठी हाथ।
जो घर फूंके आपनौ, चले हमारे साथ।।
प्रश्न : अपनी दो रचनाओं का उल्लेख करें जो आप पाठकों को बताना चाहते हैं।
● यह आवश्यक नहीं कि आप अपने सर्वश्रेष्ठ का निर्णय करें। आशय यह है कि यदि पाठक आपसे संक्षिप्त रूप में परिचित होना चाहें, इसमेँ आप उनकी सहायता कीजिए।
उत्तर : प्रिय भाई, सिर्फ़ दो रचनाओं के नाम-उल्लेख से किसी के लेखन के विषय में क्या जाना जा सकता है? मगर आपने दो ही रचनाओं के नामोल्लेख की बात की है, तो यहाँ अपनी दो कविताएँ दे रहा हूँ, इन्हें मेरी कविताई का प्रवेशद्वार कह सकते हैं। और कविताएँ पढ़ कर आप अगले दरवाज़ों तक पहुँच सकते हैं, जो एक दस्तक पर खुल जाते हैं; आगे आँगन हैं, चरागाह हैं, मैदान हैं, खेत हैं, पुस्तकालय हैं, संकरी गलियाँ हैं, घर-बेघर हैं, सिसकियां हैं, बंदीगृह, यातनाएँ और एक ग़ुलाम होती जाती दुनिया है, और इसी दुनिया में बुलंद आवाज़ और एक सुन्दर स्पर्श का निग्घापन भी उपलब्ध है।
यक़ीनन
दुनिया की सबसे खूबसूरत कविता
लिखी जाना बाकी है
उसे कौन लिखेगा?
यक़ीनन एक औरत लिखेगी।
अंगूठों के हक़ में
ऐतिहासिक हस्ताक्षर कौन करेगा?
यक़ीनन उस औरत का प्रेमी करेगा।
उस औरत से प्रेम कौन करेगा?
यक़ीनन वही करेगा
जो बुलेटप्रूफ गाड़ियों
खून सनी आरियों के सामने
नाक रगड़ती आत्माओं को देख कर भी
सीना ठोक कर कहेगा :
आत्मा नहीं
सपने अमर होते हैं।
छोटे बड़े
उन्होंने छोटी छोटी बातें कीं
छोटी नहीं
उन्होंने छोटे छोटे काम किए
छोटे नहीं:
वे छोटे छोटे थे
छोटे नहीं थे
...
उन्होंने बड़ी बड़ी बातें कीं
बड़ी नहीं
उन्होंने बड़े बड़े काम किए
बड़े नहीं:
वे बड़े बड़े थे
बड़े नहीं थे।
प्रश्न : आप जिन शहरों, गांवों, महानगरों में रहे हों, आपकी दृष्टि से वहाँ की पाँच प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
● यह समाज विज्ञान का प्रश्न नहीं है। सरस संस्मरणात्मक विवरण से हम सभी लाभान्वित हो सकते हैँ।
उत्तर: मेरा उत्तर पढ़ कर; प्रश्न न पढ़ें। इससे प्रश्न ग़लत लग सकता है। उत्तर पढ़ें :
अपने जिले (साम्बा), जम्मू खित्ते (प्रोविन्स) और राज्य से बाहर कहीं पर भी; ज़्यादा दिन नहीं रहा हूँ। सबसे अधिक समय अपने घर और अनेक हृदयों में रहा हूँ, और रह रहा हूँ। मेरे लिए इनसे अधिक सुन्दर जगहें कहीं और नहीं हैं। इनसे मुझे; ऐसे औज़ार प्राप्त हैं, जिनसे नई सृष्टि रची जा सकती है। इन्होंने ही मुझसे ऐसी कविताएँ लिखवाई हैं :
जो प्यार में होते हैं
जो प्यार में होते हैं
चाँद उनकी शाम में बिखरे पत्तों से
निकलता है
और उठ कर खेतों में चला जाता है
जो प्यार में होते हैं
पूरी-पूरी रात गेहूँ की बालियाँ बीनते हैं
जो प्यार में होते हैं
उनका जहाज़ भले डूब जाए
पर उनका सूर्य कभी नहीं डूबता।
नौकरी करते हुए लेह में एक साल से ज़्यादा समय तक रहा। ज़्यादातर नौकरी आस-पास के जिलों में ही की है, अभी भी घर से मात्र चालीस किलोमीटर की दूरी पर कार्यरत हूँ। इस तरह साम्बा, जम्मू, उधमपुर, कठुआ, कश्मीर और लद्दाख के बारे में कुछ कह सकता हूँ। साम्बा; धर्म और देश को ले कर अत्यधिक भावुक है। बहादुर और मुँहफट है। साम्बा को; साम्बा होने का दर्प है। जम्मू शहर इतना छोटा है कि आप कहीं भी घूमें, आपको कोई न कोई परिचित अवश्य मिल जाएगा। यह शरणदाता है। इसने अनेक विस्थापित समुदायों को आश्रय दिया है। कठुआ-उधमपुर की बोली-वाणी बहुत अच्छी है। लद्दाख दुर्गम है, इसलिए बहुत सुन्दर है। इसका वर्क कल्चर ग़ज़ब है। इसके लोग ईमानदार, भोले और अपनी संस्कृति से प्यार करने वाले हैं। कश्मीर में ज़्यादा दिन कभी नहीं रहा, फिर भी इसे बहुत जानता हूँ। इसकी मेज़बानी लाजवाब है। अपनी कश्मीरियत से यह बहुत प्यार करता है। इसे दुनिया के किसी भी मंच पर सुना जाता है, और कहीं पर भी खारिज कर दिया जाता है। पूरे जम्मू-कश्मीर की बात करूँ तो यह विभिन्न बोलियों, भाषाओं-संस्कृतियों, धर्मों, विचारों और मान्यताओं का प्रदेश है। इसकी स्थलाकृति बहुत आकर्षित करती है। इसने अपने अलग, सुन्दर और दुर्गम होने की भारी क़ीमत चुकाई है। इसे भोगने वाले अधिक; और प्यार करने वाले कम मिले हैं। दुनिया के इतिहास में सबसे अधिक खून यहाँ बहा है। लगभग पाँच दशकों से कट्टरपंथी ताकतों और राजनीति ने; जम्मू-कश्मीर को; जम्मू बनाम कश्मीर, डोगरा बनाम कश्मीरी, हिन्दू बनाम मुस्लिम में बांटने का घिनौना कार्य किया है। जम्मू प्रांत को कश्मीर संभाग के सामने हमेशा पहचान का संकट और भारी भेदभाव झेलना पड़ा है। कश्मीर का नाम बिकता है। किसी के पास कश्मीर का टैग होना अतिरिक्त सुविधा और दुविधा (खतरा); दोनों हैं। इसके विशेषज्ञ बहुत हैं, मगर इसे जानते कम लोग हैं। दरअसल यह कम लोग भी कश्मीर को जानते हैं, जम्मू-कश्मीर को नहीं। इस सन्दर्भ में मेरी एक कविता पढ़े:
हिन्दी के हरफ़नमौला
ऑर्थो सिर्फ हड्डियों का इलाज करता है
न्यूरो सिर्फ सिर का
ई. एन. टी. प्रसव नहीं कराता
यह सभी मिल कर भी
बीमार नवजात को इंजेक्शन नहीं लगाते
रोगियो,
चन्दर केमिस्ट सब बीमारियों के लिए
दवाई अनुशंसित कर देता है
अभिभावको,
मिस रजनी अंग्रेज़ी के साथ-साथ
गणित, भूगोल और पर्यावरण विज्ञान भी पढ़ा रही हैं
पाठको,
जम्मू कश्मीर पर लिखी उन कविताओं को खारिज कर दें
जो चन्दर केमिस्ट और मिस रजनी की तर्ज पर
हिन्दी के हरफनमौला कवि लिख रहे हैं।
इसके अलावा दिल्ली बार-बार गया हूँ, मगर लौट आने के लिए। दिल्ली की विशेषता है कि यह किसी एक की नहीं है। उत्तर प्रदेश में जहाँ-जितना गया/ रहा, उस पर यही राय बनी कि उसकी यही विशेषता है कि उसकी अनेक विशेषताएँ हैं, और पूरे देश की नीवों में सबसे अधिक पत्थर उसके हैं। पंजाब के बिना हमारा कोई इतिहास पूरा नहीं हो सकता। खेत की मेड़ के अलावा; इसे कोई सीमा नहीं बांध सकती। यह भारत की उस परम्परा में अग्रणी पंक्ति में है, जिसमें 'वसुधैव कुटुम्बकम'और 'विश्वबंधुत्व' की भावना निहित है। उपरोक्त कही गई सारी जगहें, और मेरा घर और वे हृदय जिनमें रहता हूँ, सभी दुनिया का प्रतिनिधित्व करते हैं।
प्रश्न : जीवन में घटी कोई ऐसी घटना बताइए जिसने आपके विचारोँ पर गहरा प्रभाव डाला।
● यहाँ पर सरस व्यक्तिगत अनुभव अपेक्षित है, जिससे आत्मपरिष्कार हुआ हो।
उत्तर : एकदम, ऐसी अनेक घटनाएँ घटित हुईं हैं, जिनसे मेरा जीवन बदला। यहाँ दो-तीन बातें बता देता हूँ। बचपन में धनुष-बाण से खेलने का बहुत चाव था। मुझसे ग़लती से एक चिड़िया को तीर लग गया था। तीर लग कर नीचे गिर गया। घायल चिड़िया उड़ गई। उसका क्या हुआ, नहीं पता; मगर खून से सने उस तीर ने मेरे मन पर गहरा प्रभाव डाला। इसके अलावा तीन बार मौत के मुँह में जाते-जाते बचा। यह घटनाएँ (दुर्घटनाएं) बहुत रोचक, प्रेरक और डरावनी हैं। विस्तार से बताने का यहाँ अवकाश नहीं है, बस इतना कहूँगा कि ट्रक और बस के बीचों-बीच आने पर, सांप के मोटरसाइकिल में घुस जाने पर, और रेल के रुक जाने पर; मुझे जीवनदान मिला है। इन सभी घटनाओं का प्रभाव भी मेरे विचारों पर पड़ा। बचपन में एक बार पानी में डूबने से भी बचा हूँ, और साईकल चलाते हुए बिना रेलिंग के एक पुल से नीचे गिर कर घायल भी हुआ था। सात बार मेरा सिर भी फटा है। रगों में ही नहीं, धरती पर बहते मेरे खून ने भी मुझे बदला है।
प्रश्न : समकाल मेँ आपकी दृष्टि मेँ पाँच प्रमुख समस्याएँ कौन सी हैँ और वही समस्याएँ आपकी दृष्टि मेँ प्रमुख क्योँ हैँ?
● समस्याएँ आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक आदि कुछ भी हो सकती है। यह सजगता से जुड़ा प्रश्न है।
उत्तर : अनेक समस्याएँ सामने हैं। ज़्यादा खतरा हिन्दू-मुस्लिम को नहीं; हमारी प्यारी पृथ्वी को है। हम जिस शाख पर बैठे हैं, उसी को काट रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण ज़रूरी है। आदमी एक मशीन बनता जा रहा है। उसके सेंसस पर क़ब्ज़ा कर लिया गया है। दुनिया को एक जुआघर बना दिया जा रहा है। अमीर होने के सपने बेचे जा रहे हैं, और हक़ीक़त में ग़रीबी, बेरोज़गारी और लाचारी बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य-चिकित्सा और शिक्षा क्षेत्र शुद्ध मुनाफ़े की भेंट चढ़ गए हैं। नैतिक मूल्यों की कोई क़ीमत नहीं रही, बड़े-छोटे की परिभाषा बदल दी गई है। बस पैसा, पैसा और सिर्फ़ पैसा कमाना ही ध्येय बन गया है। धार्मिक संकीर्णता, कट्टरता और अंधविश्वास बढ़ता जा रहा है। अध्यात्म कहीं नहीं दिख रहा। हर लिंग, जाति, धर्म, नस्ल में मानव-प्रतिष्ठा व अधिकारों का हनन हो रहा है। हमने अपने आपको ऐसे कलाकारों-खिलाड़ियों को सौंप दिया है, जो हमें एक कला-खेल विहीन दुनिया में ले जाना चाहते हैं। यह सारी समस्याएँ मनुष्यता को खंडित कर रही हैं।
आने वाले दिनों में धर्म, ईश्वर और भाषा; शोषण के प्रमुख हथियार नहीं होंगे। नई दुनिया में नया जिन्न, ए. आई. है। इसका चिराग जिसके हाथ में होगा, वह पूरी दुनिया का मालिक बन सकता है। यह भी संभव है कि स्वयं ए. आई. ही दुनिया का मालिक बन बैठे। एक शिक्षक और कवि होने के नाते इस सबमें भी अलग रास्ते देख सकता हूँ। देखूँगा ही। फ़िलहाल यह कहूँगा कि बॉस बदलते रहे हैं, इनमें मेरी कोई रुचि नहीं है। बॉस नहीं; व्यवस्था बदलने की ज़रूरत है। विद्रोह को क्रांति समझने की भूल के कारण ही अनेक क्रांतियां स्थगित चल रही हैं। मगर विश्वास है कि एक न एक दिन चीज़ें समझी जाएँगी, और नया और सुन्दर घटित होगा। अपनी एक कविता से इस बातचीत को विराम देता हूँ:
जबकि
एक पंख माँ बोली का गिरा
एक पंख पुरखों की मिट्टी का गिरा
कलेजा हूक उठा
एक पंख आँसू का गिरा
सारी सड़कें ऊँची होते जाने के बीच
एक एक पंख हरेक घर का गिरा
लहूलुहान पंखों को आत्मा के पन्नों में संजोकर
कविता के पंख से लिख रहा हूँ:
उस दिन एक पंख; पंछी का गिरा था
जबकि यह टेकऑफ करते बमवर्षक का गिरना चाहिए था।
सम्पर्क :
कमल जीत चौधरी
काली बड़ी, साम्बा-184121 (जम्मू-कश्मीर)
मेल आई. डी. - kamal.j.choudhary@gmail.com
प्रिय पहली बार, इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद! पाठकों और आपको शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएं~ कमल जीत चौधरी