नीतेश व्यास की कविता 'राग, रंग और आग : विन्सेंट वाॅन गाग'
'लस्ट फ़ॉर लाइफ़' (1934) एक जीवनीपरक उपन्यास है जिसे इर्विंग स्टोन द्वारा प्रख्यात डच चित्रकार विन्सेंट वान गॉग के जीवन और उनकी कठिनाइयों पर केन्द्रित करते हुए लिखा गया। यह उपन्यास काफी हद तक विन्सेंट वान गॉग और उनके छोटे भाई, थियो वान गॉग के बीच के पत्रों के संग्रह पर आधारित है। 'लस्ट फॉर लाइफ’ के लिए इर्विंग स्टोन ने बहुत गहराई तथा विस्तार से शोध किया। इस किताब को प्रकाशकों ने सात बार प्रकाशित करने से मना कर दिया था। लेकिन जब प्रकाशित हुई तो कला, साहित्य और संस्कृति की दुनिया में तहलका मच गया। इसके बाद इर्विंग स्टोन ने कई प्रसिद्ध लोगों की जीवनियां लिखीं। 1962 में उन्होंने एकेडमी ऑफ अमेरिकन पोएट्स तथा कई अन्य साहित्यिक संस्थाओं की स्थापना की। लॉस एंजेल्स में 26 अगस्त 1989 को इर्विंग स्टोन की मृत्यु हो गई।
विंसेंट की जिंदगी तो त्रासद थी ही, उसका अंत और भी त्रासद था। बीस साल के अन्तराल में उसने अपने छोटे भाई थियो को लगभग सात सौ पत्र लिखे और छोटे भाई थियो ने वे सारे पत्र संभाल कर सिलसिलेवार रखे। उसने यथासंभव भाई की सहायता तथा देखभाल भी की। अंत समय तक वह विंसेट का हाथ थामे रहा। 29 जुलाई 1890 को विंसेंट के गुजरने के छ: महीने बाद थियो 25 जनवरी 1891 को मर गया। दोनों भाइयों को आस पास दफना दिया गया।
'लस्ट फाॅर लाइफ' आठ हिस्सों में विभक्त है। जिसका बेहतरीन अनुवाद अशोक पांडे ने किया है। नीतेश व्यास ने इसे दो बार पढ़ने के क्रम में आठ भागों में ही सौ कविताएं लिखने का प्रयास किया है, जिसे उन्होंने 'कविता शतक' का नाम दिया है। यह पूरी कविता एक कलाकार के कला-जीवन के साथ साथ उसके मनुष्य जीवन, उसकी दुश्वारियों, प्रेम की चाह, रोज़गार और अभिरुचि के बीच संघर्ष और सबसे ऊपर मनुष्य के अन्तर्मन की धुंधली-उजली, दबी-उलझी ग्रंथियों में फंसी विचार की अंगुलियों से रेशे रेशे को अलग करने की व्यथा है। उनमें से कुछ चुनिंदा कविताएं यहां प्रस्तुत की जा रही हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं नीतेश व्यास की कविता 'राग, रंग और आग : विन्सेंट वाॅन गाग'।
'राग, रंग और आग : विन्सेंट वाॅन गाग'
नीतेश व्यास
1
चाहता हूं
कलाकार के जीवन को कविता में ढालना
जो शब्दों से कम बोला
चित्रों में मुखर
अभिव्यक्त किया या खोजता रहा
स्वयं को,
स्वयं को या उस प्रेम को जो उसके
गृह-द्वार पर बार बार
अनेक रूपों में आया
लौटने के लिए
एक पागल चित्रकार जो अपने होने में था विचित्र
2
प्रेम का अभाव
किसी फोड़े-सा ठहरा
उसके भीतर
दुखता रहा उम्र भर
रिसता रहा नासूर बन कर
एक एक कर सात प्रेमिकाओं ने
उसकी आत्मा के लहू में
अपने नाखून भिगोए
वो भागता-भिगता रहा स्वयं ही, स्वयं से
3
प्रेम में ठुकराये हुए व्यक्ति को
सहारा दे देती
कोई न कोई कला
वह प्रेम से खाली था
खाली था स्वयं से भी
चीड़ और बांज के पेड़ों ने उसे शरण दी
नदी के तटबंधों ने उसकी कलाई थामी
मकई के खेल मे लहराती फसल ने उसे हाथ से इशारा किया
उर्सुला का चेहरा उसे हर दम दीखता
वो चित्रों से उन्हें ढांपने की कोशिश करता
भटकता फिर-फिर वहीं लौट आता
उसके घर को दूर से देखता
जैसे क्षितिज पार से सूरज
झांकता है धरती की खिड़की में
4
उसकी आत्मा दुखती थी
चीखती थी भीतर जब आर्टगैलरी का मालिक
धनवानों के सम्मुख
घटिया चित्र को श्रेष्ठ कलाकृति बता कर
बेच देता था
वह चीखता था भीतर बाहर कि
क्या वे ही सच्ची कला के पारखी हैं जो सूट-बूट में है
कला को सर्वसाधारण के लिये होना चाहिए
कला का मन्दिर किसी साहूकार की ड्योढ़ी न हो कर
किसी सार्वजनिक वाचनालय-सा होना चाहिए जिसे राह चलता कोई भी प्रवेश कर सके
जिसके भीतर जल रहा है
कला-संस्कृति के प्रति प्रेम दीपक
पूंजीवाद के शैशव काल में भी
आज ही की तरह
उसे निकाल दिया गया हर उस जगह से
जहां कलाएं अपनी आत्मा ढूंढती
आज भी भटक रहीं हैं
5
सचाई की एक लपट
जन्म से ही उसके भीतर सुलग रही थी
अच्छी किताबों ने उसमें घी डालने का काम किया
किताबों ने रची है क्रान्तियां
वह व्यक्ति की हो या समाज की
विन्सेन्ट खाली समय में खूब पढ़ता
वह पढ़ रहा था- दुनिया में काम करने के लिये आदमी को अपने ही भीतर मरना पड़ता है।
'वह बाहर हर बार डरा
भीतर कभी नहीं मरा'
6
कला
अपने साथ आने वाले को पहले भटकाती है
विन्सेन्ट गूपिन्स की कला विथिका से निकला
तो उसे एक इवांजलिस्ट (धर्म प्रचारक) का काम करना पड़ा
कलाकार के आस-पास जो भी घटित होता
वो उसकी संवेदना को पुष्ट ही करता
दुख उसे मांजता हैं
पीड़ा दृष्टि देती है जो आंख नहीं दे पाती
बाइबिल की पंक्तियां उसे ईश्वर के पास ले गयी
या ग़रीब कामगारों की भूख, उनका बासी भोजन
एक चारदिवारी में ठिठकती बीसियों आत्माएं
ईश्वर को उसके भीतर लाई
या ले गयी बहुत दूर
पास छोड़ गयी तड़पती मनुष्यता
जो मरते दम तक रही उसके भीतर
7
उसे डच पादरी नहीं बनना था
हम रोज़ बनते हैं बिगड़ते हैं पल-पल
विन्सेन्ट धर्मोपदेश नहीं था
उसे क्या होना था उसे अभी नहीं पता था
बाइबिल का एक वाक्य उसके सामने खुला-
मैं इस धरती पर एक अजनबी हूं
अपने आदेशों को मुझसे छिपाओ मत प्रभु...
यह उसकी आखिरी सामूहिक प्रार्थना थी
या एकाकी कारुणिक याचना
कौन जानता होगा?
8
अचानक आने वाले तूफान की सूचना
हमें कभी-कभी बिल्कुल नहीं होती
हम कोट-हैट साथ रखना भूल जाते
तभी तूफान किसी तबाही की शक्ल में
हम पर टूट पड़ता
वह खुश था अपने प्रवचनों से
उसने लोगों का मन जीत लिया था
वह अपने नंगे निकम्मेपन पर
सफलता की सुनहरी पोशाक डाले
भीगता हुआ पहुंचा ही था कि उर्सुला बग्घी में
विदा हो रही थी
विदा हो रहा था उसका अप्राप्य प्रेम
जिसके चरणों में वह अपनी सद्य:प्राप्त
सफलता का अर्घ्य चढ़ाने आया था
उसकी पोशाक तार-तार थी
उसके आंसुओं ने बारिश को
ओर तेज़ कर दिया था
9
चर्च की पढ़ाई
वाॅनbगाग परिवार के एक सदस्य ने
हमेशा ईश्वर की सेवा की है
तुम भी करोगे ना?
उसके चाचा ने कहा
वह कुछ नहीं बोला
वह भी तो सेवा ही करना चाहता था
मगर अपनी तरह से
10
प्रेम कुछ-कुछ खाली करता है
भरता है बहुत कुछ
विन्सेन्ट खाली था प्रेम से
अपने पास कुछ देर के लिए ही आने वाली
हर स्त्री में उसने प्रेम की भरपूर तलाश की
वह कितनी ही नदियों के पास गया
प्यासा ही लौटा
यह प्यास उसके लिए अभिशाप थी
उसकी कब्र के पास ही सोये हुए
उसके भाई थियो ने
उसकी आत्म-वल्ली को
अपने नेह-वारि से जीवन भर सींचा
अब भी सींच रहा था
लेकिन अफ़सोस कि थियो एक स्त्री नहीं था
11
इमां मुझे रोके है तो खींचे है मुझे कुफ्र
एक तरफ पादरी बनने की विश्वविद्यालयीय पढाई
जिसमें
व्याकरण और गणित के कभी न समाप्त होने वाले
लम्बे लम्बे उबाऊ सूत्र
फ्रेंच और लेटिन सीखने की सनक
दुसरी ओर उसकी आत्मा की अस्पष्ट पुकार
उसके अंकल उसके निर्णयों से परेशान रहते
सड़क पर चलते-चलते उन्होंने विनसेन्ट को
तम्बाकू भरा पाइप बढ़ाया
वह बोला-मैं पी रहा हूं श्रीमान्
वह अपनी आंखों से दृश्य पी रहा था
जहाजों के मस्तूल
पुराने मकानों की कतारें
सूर्यास्त की पृष्ठभूमि में खडे़ पेड़
और जल में प्रतिबिंबित होती प्रत्येक वस्तु
वह हर दृश्य पी गया
12
मेन्डेंस एक मित्र एक गुरु उसकी आत्मा का झरोखा
हम जीवन में हजारों से मिलते
कोई होता जो झांकता हमारे भीतर
हम कैसे हैं? इससे आगे चल कर
हम क्या हो सकते हैं, उस संभावना को हममें टटोलता हुआ
वे चलते हुए रैम्ब्रा की चित्रकारी पर बात कर रहे थे
कला स्वयं को अभिव्यक्त करती ही हैं
कला की सम्पूर्णता है उसकी समग्र अभिव्यक्ति
पीछे छूटा हुआ तरल कैनवास
गा कर छूटी-बिखरी राग की पंखुड़ियों की तरह
भभक कर जलने के बाद बची लपट-आग की तरह
वही कलाकार का सर्वस है
किसी ने कैसा भी जीवन जिया हो
उसे बड़ा करती हुई कला
उसके जीवन से बहुत बड़ी होती
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वान गॉग द्वारा बनाई गई सेल्फ पोर्ट्रेट |
13
योग्यता का पैमाना
खुद से बात करना एक कला है
जैसे आत्मा के बर्तन को मांजना हर रोज़
कोई उसे पागलपन भी कह सकता
फिर भी वह कला है
योग्यता का मानदंड कोई डिग्री
और कुछ भाषाओं का ज्ञान भर नहीं
मनुष्यता और प्रेम
ये दो ही सबसे ऊपर के मापदंड
जिन्हें तुमने उम्र भर अपनाया
तभी तो भाषाएं जहां पहुंच कर चुप हो जाती
वहां से बोलते तुम्हारे चित्र
जिनमें दीखता एक भरा-पूरा
वेदनापूर्ण जीवन अपने होने में सम्पूर्ण
14
वाॅन गाग परिवार का खोटा सिक्का
समझते होंगे कुछ लोग उसे
खोटा सिक्का
पिता और सात चाचाओं के भरे-पूरे परिवार रूपी
स्वर्ण-सन्दूक में अनायास प्रकट हुआ
कला पारखियों के घर एक नौसिखिया
जैसे तैराकों के मध्य एक उबाऊ डूब
प्राणवायु से परिपूर्ण फेफड़ों के गले में अटका
छोटा सुपारी का दाना कैंसर की शक्ल लेता हुआ
सुगन्धित माहौल को अपनी उपस्थिति से दूषित करती कोई खट्टी दुर्गंध
उस पर सलाहें बरसती
उसकी आत्मा तरसती
मेंडेस के कथन उसके कान में गूंजते-
'एक दिन श्रेष्ठ अभिव्यक्ति तुम्हारे जीवन को अर्थ प्रदान करेगी'
तुम भटकते रहे उसी की तलाश में
तुम्हारी ही तरह भटकता हूं मैं भी
शब्द-वीथियों में
निःशब्द
पाने उस अभिव्यक्ति को
15
तुम बोल ही नहीं पाते, तुम्हें सुनेगा कौन
तुम्हें बोलना ही नहीं था
तुम सुनने के लिए पैदा हुए थे
कान से नहीं
आंख से सुनने के लिए
वे तुम्हारे मुंह से धार्मिक भाषण सुनना चाहते थे
तुम बोलना चाहते थे
अंगुलियों से
नया धर्म रचते हुए
तुमने मुंह से ख़ूब वाइन पी
तुम्हारी अंगुलियां जीवन.भर रंग-रस में डूबी रहीं
ईजल को धारण किया धनुष की तरह
ब्रश को बाण की तरह
एकलव्य तो तुम भी हुए
अंगुठे की जगह कान काट कर दे दिया
किसी शस्त्र की शिक्षा के बदले नहीं
प्रेम की भिक्षा के बदले
तुम्हें सही नाम दिया था उसने-ओ सनकी पागल
16
ईश्वर
हमेशा उसके पास आया
जैसे आई स्त्रियां
समय-समय पर
बाइबिल की पंक्तियां बन कर
क्या वे ईश्वर थी?
17
बेल्जियम के दक्षिण में
कोयले की खदानों का इलाका
जहां के मजदूर बिना आत्मा के
हड्डियों पर चमड़ी चिपकाए
दिन-रात गहरी काली खदानों में काम करते हैं
वहां बच्चा, आदमी ही पैदा होता
झोंक दिया जाता अनन्त कालिख में
उन्हें उपदेशों की आवश्यकता थी
विन्सेन्ट को ईश्वर की
ईश्वर उसे वहां शायद ही मिला हो
लेकिन वह ख़ुद स्वयं से वहीं मिला था पहली बार
18
उसने वहां उपदेश दिये
लोगों को उनका खोया हुआ ईश्वर लौटाया
कोयले की कालिख से सना उसका चेहरा
वह साबुन से धोने को हुआ
पर धो नहीं पाया
वो उनके जैसा ही दिखना चाहता था
जिन्होंने उसे स्वीकार किया था
चेहरे की बदसूरती बढ़ने के साथ
उसके मन और आत्मा की कालिख उतर रही थी
वह खुश था
19
अनजानी खोह
कोयले की सैंकड़ों फीट गहरी खदानें
अंधेरी खोह के समान
भय और संदेह से भरी
मौत के मुंह से ग्रास भर की दूरी पर
वो आज उतरा था
रोज़ उतरते थे सैकड़ों मजदूर
डबलरोटी, खट्टा पनीर और काफी के बदले
दिन के चौदह घंटे काम करने वाले मजदूर
कभी किसी दिन वे ऊपर ही नहीं आते
बच्चे भी उनके साथ ही दब जाते
चट्टानों के नीचे
नहीं मिलती उनकी लाशें
क्या वे सब कोयला बन गये
वह अंधेरे मे सोच रहा था
करुणा ने उसके हृदय को चीर दिया
20
धारणात् धर्म:
वह नाममात्र का इवांजलिस्ट नहीं था
धर्म ने उसके भीतर गहरे में
अपना स्थान बनाया था
उसने अपने जीवन को वैसा ही सादा सरल कर लिया
जैसा उन खान मजदूरों का था
वह उनके घर जाता उन्हें ईश्वर का संदेश देता
उनके दुःख बांटता उनके चित्र बनाता
एक टूटी-फूटी झोपड़ी, ब्रेड के सड़े-गले टुकड़े
आधा कप काॅफी पर पूरा दिन और पूरी रात बिताता
विन्सेन्ट ने इसे धारण किया था
यही उसका धर्म था
21
दोहरी सृष्टि का दोहरा ईश्वर
एक ईश्वर नहीं हो सकता
खदान में शताब्दियों से पीढ़ियों को झोंकने वाले
मज़दूरों का और खदान की मालकियत रखने वाले
धन्ना सेठों का एक ही ईश्वर हो
कदापि नहीं हो सकता
एक शताब्दियों की थकावट को पीठ पर ढो रहा है
पापी पेट को रो रहा है और
दूसरा खा पी कर चैन की नींद सो रहा है
उसके भीतर कला बाद में आई
मनुष्यता सबसे पहले
ईशता कभी नहीं
22
त्याग
आग की भांति
उसके भीतर जल रहा था
ईश्वर पिघल रहा था
मनुष्य ढ़़ल रहा था
23
ज्यों ज्यों वह
ईश्वर से मनुष्य और प्रकृति की तरफ आ रहा था
कला उसके पास उसके भीतर उतर रही थी
कला ईश्वर की दुश्मन नहीं
वह अपरा प्रकृति है
समानान्तर सृष्टि
जिसका स्रष्टा होता कलाकार
अपने कला जगत का स्वयं ईश्वर
ऐसे ईश्वरों से प्रकृति रूठी रहती
अपनी पोष्य सन्तति की सूची से उसका नाम
मिटा देती
अज्ञेय की शेखर-प्रकृति भी ऐसी ही तो है
यही प्रकृति की नियति है
कला और कलाकार की भी
24
चित्र बनाए
तुमने चित्र बनाएं
तरह तरह के चित्र खान मजदूरों के
कोयला चुगती उनकी पत्नियों के
स्टोव पर झुकी बुढ़िया
और फटेहाल बूढ़े का चित्र
अपने में सब विचित्र
अब वो उन्हें किसी चित्रकार को दिखाना चाहता था
नहीं थे पैसे रेल यात्रा के
फटे जूते अस्सी किलोमीटर पैदल यात्रा
पानी और ख़ून से लथपथ छाले
लेकिन उसे दिखाने थे चित्र
मिटानी थी बरसों की भूख
उसने भी शायद सुना हो अपने यहां के किसी कालिदास से कि"आ परितोषाद् विदुषां न साधु मन्ये प्रयोगविज्ञानम्" किसी जानकार को प्रसन्न किये बिना वह भी अपनी कला को कैसे सफल मान लेता
लेकिन जीते जी उसे ऐसा कोई नहीं मिला
जो भी मिले छिद्रान्वेषी
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इर्विंग स्टोन |
25
भूख
भूख को तुमने बहुत करीब से देखा
वह भेस बदल-बदल आई तुम्हारे पास
बासी ब्रेड के एक टुकड़े और सडे़ हुए पनीर
का स्वाद भी तुम्हारी अंतड़ियों को पता था,
एकाध स्कैच के बदले मिलने वाले ब्रेड के टुकड़े पर
कैसे किया होगा सत्तर मिल का पैदल सफर
तुम देख चुके थे पेट की भूख का भूखापन
प्रेम की भूख तुम्हें
बार-बार सताती
लेकिन उसकी तृप्ति किसी मृगतृष्णा-सी
दूर झिलमिलाती
शरीर की भूख
कुछ चुम्बनों,
संश्लिष्ट आलिंगनों के पाश-बन्ध में
कभी कभार ठौर पाती
भूख की इस त्रिवेणी के भीतर
एकाकार हो बहती थी
तुम्हारी आत्मा की भूख
जिसे तुम्हारी कला ही भर सकती थी, मगर कैसे?
उसे अपना पहला निवाला
बड़ी मुश्किल और बहुत देर से मिला
26
दो भाई
आदम और हव्वा के पहले दो बेटे थे
कैन और हाबिल
कैन किसान था, हाबिल चरवाहा
दोनों ने अपने-अपने खेतों में परमेश्वर को
बलि चढ़ाई
परमेश्वर ने हाबिल की बलि पर ध्यान दिया
कैन की नहीं
क्या वह किसान विन्सेन्ट ही था जो कैनवास रूपी धरती पर ब्रश रूपी हल चलाता रहता उम्र भर
उसके जीते-जी ईश्वर उससे नाराज़ रहा
लेकिन उसका भाई उसका ईश्वर था और वो अपने भाई थियो के लिए
27
कोई हमारे भीतर को नहीं जानता
सही कहा तुम ने
मैं भी तुम्हारे साथ हूं
570 पन्नों और आठ खंडों मे बिखरी तुम्हारी कथा
पीड़ा का अग्निकुंड है
पास से निकलने वाले को उठता हुआ
धुआं ही दिखता
लपट देखता कोई कोई
तुम्हारे साथ चल कर मैने देखी है वे ज्वालाएं
जो तुम्हें भीतर जलाती रहीं
तुम जलते रहे अमेज़न के जंगलों की तरह
जबकि सारी प्रकृति अपने समग्र वैभव के साथ
तुम में ही विश्रांति पा रही थी
28
तुम जिसे चित्रों में पकड़ते हो
उसे शब्दों मे बांधने का असफल प्रयास करता हुआ मैं
बोना न होते हुए भी
ऊंचाई पर स्थित फल को प्राप्त करने की इच्छा वाला
हंसी का पात्र बनता हूं
थक हार गिरता हूं फिर-फिर भीतर
जैसे तुम गिरते हो हर बार
दुगुने वेग से कैनवास पर
29
खुद को पाना
कैसे पाया जाता खुद को
"कहे कबीर मैं पूरा पाया"
तुमने भी उस दिन खुद को पा लिया
वह सीढ़ी है पूरा पाने की
जब चित्र कला बन कर तुम्हारे पास आए
गहन अफसोस
हज़ारों अस्वीकृतियों
तानों का एक लम्बा तारतम्य
ख़ुद से, कैनवास से और रंगों से लड़ना
उस दिन पूरा हुआ
मैं इस दुनिया के किसी लायक नहीं?
का उत्तर खुद में ही मिला तुम्हें
उत्तर हमेशा खुद में ही मिलते हैं
"पूछो मत किसी से अपने लेखन के बारे में"
रिल्के ने कहा था फ्रैंज काप्पुस से
और शायद प्रत्येक कलाकार से जो
बिना पंख संशयाकाश में
किसी अदृश्य के सहारे उड़ते हुए
किसी सुखे पत्ते की तरह
कहीं पहुंचने और न पहुंचने के बीच डोलते हैं
और कभी न कभी
अस्तित्व की गोद में अपनी आंखें खोलते हैं
30
मैं नहीं उतर पाया
तुम्हारे भीतर
उतना गहरा
जितनी गहरी तुम्हारी चेतना
एक डूब
बार-बार मुझे बाहर खींच लाती
थोड़े बहुत शब्द-चित्र बना पाया जैसे तैसे
तुम्हारे भीतर हुलसती प्रेम की प्यास, सामाजिक संत्रास,प्रेम जो मुझसे हो नहीं पाया तुम्हें मिल नहीं पाया
प्रेम की उत्कट चाहना के सम्मुख
घुटनों के बल सरकती बोझिल वासना
अभिव्यक्त जिसे पाना था अभी ओर भी उत्कर्ष
मेरे काव्य शब्दों में न सही
तुम्हारे जीवन-चित्रों में
इस अधूरेपन को तलाशता रहूंगा
तुम्हारी चित्र-विथियों में
नीदरलैंड में बने तुम्हारे विश्वप्रसिद्ध संग्रहालय को देख चुके अरबों लोगों की गणना से परे
तुम्हारी आत्मा की संकरी चित्र-वीथि भटकता रहूंगा
आलू खानें वाले,सुरजमुखी और अपने स्वयं के पोट्रेट बनाते मैंने तुम्हें देखा है
तुम्हारी बहती हुई करुणा
आज एकान्त में आ कर
दीवार पर सजी तुम्हारी करोड़ों की पेंटिंग्स में भरती होगी रंग
जिसे तुमने उस समय भूखे रह कर बनाया था
तुम्हारी भूख का रंग झिलमिल करता है किसी-किसी आंख में
तुम्हारी आत्मा की चित्र-दीर्घा में घूम आया हूं दोबारा
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नीतेश व्यास |
सम्पर्क
मोबाइल : 09829831299
अद्भुत कविताएं लिखी हैं नीतेश व्यास जी ने। अचानक अंतिम कविता तक पहुंच गया, दुख हुआ 30 ही क्यूं, पूरा शतक क्यों नहीं। बधाई। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंराजेश्वर वशिष्ठ
प्रख्यात चित्रकार वानगॉग के जीवन, वैचारिकी और कला पर बहुत सुन्दर लम्बी कविता। नीतेश व्यास को बधाई और संतोष जी को साधुवाद।
जवाब देंहटाएं