चैतन्य नागर का आलेख 'अवसाद की बुनावट'।


चैतन्य नागर


जीवन खुद एक ऐसी पहेली है जिसे जानने समझने की कवायद शताब्दियों से मनुष्य करता रहा है। मौत और उसके बाद जीवन का क्या होता है? इससे अधिक जटिल पहेली है जिसके बारे में ठीक ठीक कुछ भी नहीं कहा जा सकता। धर्म और दर्शन में इसके बारे में बहुत कुछ कहा गया है जबकि विज्ञान मौत के बाद सब कुछ ख़त्म मानता है। यही तो इस जीवन की खूबसूरती है कि यह एक ऐसी अनसुलझी पहेली की तरह है जिसे सुलझाने में मनुष्य आज भी लगा हुआ है। कुछ लोग आत्महत्या के जरिए इस जीवन को निर्ममता से ख़त्म कर डालते हैं। हाल ही में वालीवुड के एक चर्चित अभिनेता सुशान्त सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर अपने जीवन पर पूर्ण विराम लगा दिया। आखिर लोग क्यों करते हैं आत्महत्या? मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि आत्महत्या के पीछे कहीं न कहीं अवसाद की स्थिति काम कर रही होती है। कवि विचारक चैतन्य नागर ने अवसाद और आत्महत्या के बारे में सोचते हुए एक आलेख लिखा है। आज पहली बार के पाठकों के प्रस्तुत है चैतन्य नागर का आलेख 'अवसाद की बुनावट'


अवसाद की बुनावट

चैतन्य नागर

अवसाद के होठों पर मुस्कुराहट होती है। अवसाद खूब मिलनसार होता है। अवसाद लोगों को प्रेरित करता रहता है जीवन को ज्यादा अर्थपूर्ण बनाने के लिए। अवसाद भारी झोले के साथ शॉपिंग मॉल में घूमता-फिरता दिखता है। अवसाद बहुत सुंदर और बहुत लोकप्रिय भी हो सकता है। उसमे दैहिक और बौद्धिक आकर्षण भी हो सकता है। अवसाद खुद को हर उस रूप में दिखा सकता है जो उसका अपना है ही नहीं। और इन सब के बीच जब अवसाद एक दिन ख़ुदकुशी कर लेता है तो लोगों को ताज़्ज़ुब होता है। आवाज़ों और चमक दमक के शोर के बीच चुपचाप सिसकते अवसाद को सुनना सब के वश का नहीं। अवसाद मुखौटे पहन कर इसलिए भी घूमता फिरता है क्योंकि कहीं अपने अंतरतम में उसे अपनी परिसीमा अपनी ही व्यर्थता दिखाई देती है। यदि अवसाद मुखौटों के पीछे छिपता न फिरता तो कोई जान न लेता कि सुशांत के दिल में कौन सा तूफ़ान व्याकुल था खुद को व्यक्त करने के लिए! यह एक बड़ा सवाल है, पर अब दे भी कौन सकता है इसका जवाब। शायद स्वयम को व्यक्त करने में अवसाद असुरक्षित महसूस करता है, क्योंकि उसे लगता है कि उसे समझने वाला कोई नहीं दुनिया में।



छिछोरे फिल्म में जिस अभिनेता ने ख़ुदकुशी के ख्याल से बाहर आने की हिदायत दी, जब उसने खुद ही ख़ुदकुशी कर ली, तो सभी को ताज्जुब हुआ। क्या यह रील और रियल जीवन का फर्क दर्शाता है? क्या अभी का समय ही कुछ ऐसा है कि अच्छे खासे समझदार लोग भी भीतर तक हिल गये हैं, उनका भविष्य बिलकुल अनिश्चित हो गया है और उन्हें स्वयं को भौतिक स्तर पर ख़त्म करने के अलावा कुछ सूझता ही  नहीं? या फिर यह फैसला निपट व्यक्तिगत फैसला होता है क्योंकि इन्ही हालातों में कई लोग अपनी जीने की ऊर्जा बचा ले जाते हैं और किसी भी तरह के संकट उनको और अधिक मांज कर निखार भी देते हैं।

  

रॉबिन विलियम्स हॉलीवुड के एक मशहूर कमीडियन थे। 2014 के अगस्त महीने में उन्होंने खुदकुशी की थी। लोगों को बड़ी हैरत हुई थी यह जान कर कि जो सबको हंसाता था, वह खुद भीतर से कितना दुखी, टूटा हुआ था, खासकर अपने अंतिम दिनों में। शायद ऐसा लगा होगा सुशांत और रॉबिन विलियम्स को कि मौत ही सभी गमों से निजात का रास्ता है। क्या ग़ालिब ने ठीक ही कहा था कि मौत से पहले आदमी ग़म से निजात पाये क्यूँ? ग़ालिब ने भी अपने जीवन में काफी दुख सहे, मुफलिसी देखी, पर उन्होंने आत्महत्या नहीं की। मर-मर कर जीने से होने वाली पीड़ा के बारे में उन्होंने लिखा जरुर:

मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता।

यह तो उन्होंने साफ़ कहा कि घुट घुट कर जीने की स्थिति बहुत ही बुरी है।



सिनेमा की चकाचौंध के पीछे शायद पर्वत-सा दुःख छिपा रहता है! हॉलीवुड के रॉबिन विलियम्स, मर्लिन मुनरो और हिंदी फिल्म के गुरु दत्त और कुछ समय पहले जिया खान ने ख़ुदकुशी की। जितनी शोहरत मिलती है, शायद भीतर से इंसान अपने अकेलेपन का दंश उतना ही अधिक झेलता है। फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों के लिए यह दंश कुछ ख़ास तरह से दुखदायी होता होगा। शोहरत के शिखर पर पहुंची 34 वर्षीय अमेरिकन गायिका लेडी गागा ने एक भेंटवार्ता में बताया था कि वह पूरी ज़िन्दगी अवसाद और दुश्चिंताओं में डूबी रहीं हैं। लेडी गागा ने बताया कि मैं बच्चों को यह बताना चाहती हूँ, यह आधुनिक जीवन जहाँ सभी लोग सतही और बहुत ही कम संसक्त होते हैं, यह मानवीय नहीं।



जिम कैरी हॉलीवुड के इतिहास के सबसे प्रभावी हास्य अभिनेताओं में रहे हैं। उन्होंने भी यह स्वीकारा है कि पूरे जीवन उन्हें सुबह उठ कर खुद को याद दिलाना पड़ता है कि जीवन अच्छा-भला है, हालांकि यह आसान काम नहीं। उन्होंने भी लगातार अवसाद में रहने की बात स्वीकार की है और लम्बे समय तक वह दवाइयों पर भी रहे हैं। एंजेलिना जॉली और बॉलीवुड की दीपिका पादुकोण ने भी अवसाद में होने की बात स्वीकार की है। हर तरह के ऐशो आराम से लदे-फंदे जीवन को जब खालीपन और ऊब का सामना करना पड़ता होगा तो बड़ी ही दुखदायी स्थिति बनती होगी। लगता होगा अब तो सब कुछ है, हर वह चीज़ जिसे पैसों से हासिल किया जा सकता था, खरीदा जा सकता था, अब मेरी है, पर फिर भी यह तन्हाई, या ऊब, यह अस्तित्वगत जिद्दी अकेलापन, प्रेम पाने की भूख, प्रेम न मिलने की अथाह कुंठा, जो मिल गया उसे खो देने का अंतहीन भय और उँगलियों के बीच से रेत की तरह रीतता समय। कितना भयावह होता होगा सब कुछ! संपन्न लोगों की अंदरूनी गरीबी कितनी जानलेवा, कितनी भयावह होती होगी! लगता है अब कई लोग इसी तरह के किसी अस्तित्ववादी नुस्खे पर आ रहे हैं धीरे-धीरे। महामारी ने पहले ही ज़िन्दगी को बहुत अधिक जटिल बना रखा है, और उस पर से अपनी व्यक्तिगत समस्याएं इंसान को बहुत ज्यादा असहाय महसूस कराती होंगी। अल्बेयर कामू कहता था कि यदि वास्तव में कोई दार्शनिक समस्या है तो वह है आत्महत्या की। बाकी सभी प्रश्न बाद में आते हैं, पर पहले इस सवाल का जवाब देना ज़रूरी है कि ख़ुदकुशी सही है या नहीं। वह ऐसा क्यों सोचता था, यह तो विवाद और संवाद का विषय है।

    

ज़िन्दगी में तो हमेशा कभी असुविधा, कभी दिक्कतें और कभी संकट आते रहते हैं, पर व्यक्ति और समाज कभी ऐसे मुकाम पर भी पहुँचते हैं जहाँ लगता है: अब और नहीं, बस! ऐसे में मौत के आगोश में सर छुपाने का दिल करता होगा। ऐसी सोच बनने लगती होगी कि ज़िन्दगी अब संभाले नहीं संभल रही, शायद मौत में ऐसी कोई पनाह मिल जाए कि यह सारा दुःख दर्द मिट जाए। पता नहीं यह सच है भी या नहीं। धर्म की परम्पराएँ मानने वाले कहते हैं कि जीवन को अचानक, अप्राकृतिक रूप से ख़त्म करना सही नहीं है। यह जीवन आपका नहीं, इसलिए आपको कोई हक़ नहीं बनता कि आप इसे ख़त्म कर दें। वैसे भी मौत का पूरा इलाका अज्ञात का है। कोई नहीं जानता मौत के बाद क्या होता है। मौत पनाह देती है या फिर चीज़ों को व्यक्तिगत और सामाजिक तौर पर और अधिक जटिल बना डालती है, यह भी एक बड़ा सवाल है। धर्म आत्महत्या को हिंसा के रूप में भी देखता है। आप बस इस देह के न्यासी हैं, और जिस तरह किसी और की हत्या करने में हिंसा है, ठीक वैसे ही खुद को ख़त्म करना भी बड़े ही खतरनाक किस्म की हिंसा समझी जाती है।



पर जब इंसान अपनी ज़िन्दगी को ख़त्म करने की सोचता होगा, वह सच में बहुत असहाय होता होगा। उसकी बेबसी बस वही समझ सकता होगा। नहीं तो जीवन से, अपने शरीर से गहरा मोह होता है सब का। थोड़ी सी तकलीफ में लोग परेशान हो जाते हैं, थोड़े से दर्द को ले कर इधर उधर डॉक्टरों के पास दौड़ने लगते हैं। सच में बड़ा परेशान हो कर ही कोई इस नतीजे पर पहुँचता होगा, कि अब ख़त्म कर लिया जाए यह सारा कारोबार। उस पीड़ा के चलते वह अपने परिवार, साथी संगियों के बारे में भी उस समय नहीं सोचता होगा। सारे मोह टूट जाते होंगे एकबारगी। कितना भारी लगने लगता होगा जीवन!




विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू. एच. ओ.) के मुताबिक भारत में ख़ुदकुशी की दर प्रति एक लाख लोगों में सबसे ज़्यादा 21.1 फ़ीसदी है। 2013 में 134,799 लोगों ने भारत में आत्महत्या की। 2012 की तुलना में यह 11.9 प्रतिशत ज़्यादा था। दुनिया में हर साल 800000 लोग ख़ुदकुशी करते हैं। इसका अर्थ है हर 40 सेकंड में एक इंसान खुद की हत्या कर लेता है।

 

ज़िन्दगी के बारे में बुनियादी सवाल उठाती है किसी की भी आत्महत्या। ख़ास कर वह सुशांत जैसे मशहूर सेलेब्रिटी का मामला हो तो लोग ज्यादा ही चिंतित हो उठते हैं। क्योंकि दूर से ऐसा ही लगता है कि उन जैसों के पास तो सब कुछ होगा, उन्हें क्या पडी थी अपनी ज़िन्दगी ख़त्म करने की। कौन जानता है कि कहीं उनके भीतर का इंसान हार मान ले रहा है। करीब से देखने से भी पता नहीं चल पाता कि किसी के साथ कितने ग़मों की भीड़ चलती है। पर ख़ुदकुशी का ख्याल आते समय इंसान को कई कई बार सोचना चाहिए। जीवन यदि समस्याएं देता है तो उनका हल भी देता है। कहीं न कहीं जीवन की उलझनों के बीच ही उनका समाधान भी निकल आता है। ऐसे में थोड़े अधिक धैर्य की जरुरत है। थोडा रुकना चाहिए था, थोडा ठहरना चाहिए था। बताते हैं कि वह दर्शन में भी बड़ी रूचि रखते थे। जरुर कहीं किसी गहरी पीड़ा परेशान किया होगा, नहीं तो ऐसे ही कोई अपनी जान नहीं देता। अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने "ओल्डमैन ऐंड द सी" में लिखा है : इंसान को हरा सकते हो, उसे नष्ट नहीं कर सकते।" पर सुशांत जैसे कइयों को ऐसा लगता होगा कि खुद को नष्ट करने में ही जीत है। क्यों ऐसा लगता है वह हो वही बता सकता था जो अब नहीं रहा, पर जीवन के घोर अन्धकार के बीच कहीं प्रकाश हो ही नहीं, यह मानना भी बड़ा मुश्किल है। एक बार तो हताशा से निकलने के लिए पूरी ऊर्जा झोंक देनी चाहिए, और फिर भी कोई मार्ग न दिखे तो थोडा ठहर जाना चाहिए। इस उदास ठहराव की अपनी ऊर्जा होती है, और वह कहीं न कहीं से कोई मार्ग अवश्य दिखा जाती है। पर मृत्युकामी की अधीरता उसके लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाती है। यही उसके सभी मार्ग बंद कर देती है। 
     

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