संज्ञा सिंह




० जन्म तिथि --२० जुलाई १९७६
० जन्म स्थान -- मसोढ़ा [ सैदेही ] जौनपुर, उत्तरप्रदेश
० कई हिंदी साहित्य की प्रतिष्ठित पत्रिकों में प्रकाशित, युवा कवयित्री;
० समकालीन कवियों में एक उल्लेखनीय और चर्चित नाम


संज्ञा सिंह हमारे समय की एक महत्वपूर्ण व सशक्त कवियित्री हैं । वह शलभ श्रीराम सिंह की भतीजी हैं। संज्ञा अपने पिता के पास न रहते हुए शलभ जी के साथ उनके अंतिम समय तक रहीं और वहीं उन्होंने कविता के संस्कार पाए। शलभ जी की मृत्यु के उपरान्त लगभग दशक-भर साहित्य-जगत से दूर रह कर अब पुनः सक्रिय हुई हैं। उनकी कविताएँ विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। उनका एक कविता-संग्रह ‘अपने अलावा’ प्रकाशित  हो चुका है।

 संज्ञा ने एक लम्बे अरसे बाद कवितायें लिखी हैं और इसे पहली बार के लिए उपलब्ध कराया है. 

तलाश

जनाब!
क्या आपकी निगाह में कोई
ख्यातिलब्ध नाम है
जो रोशनी और छाया दोनों मुहैया करा सके।

मैं इन दोनों की चाह में
दर-दर भटक रही हूँ

नहीं उछाल रही हूँ
कोई रोड़ा
अटकने के भय से

मेरी झील थम गयी है
उसमें तरंगें नहीं
दुश्चिंताएं उछल रही हैं

हुजूर आप मेरी मदद करें
क्योंकि भारत संस्कृतियों का देश है
बेटी, जमीन और संस्कृति'
सबकी होती है

सुखद सबेरा

खिलखिलाकर उतरी सुबह
उसके होठों पर

खुशी
पसर के बैठी
घर के कोने-कोने

छुमक रही थी
ठुमक रही थी
जैसे नन्हीं बच्ची के पांवों की पैजनिया
उसके भीतर

सुखद सबेरा
झाँक रहा था
उसके मुख पर हौले-हौले





 

नई दुनिया के लिए

भोर के सपने की तरह
अर्थवान है उसका सब कुछ
जिसने ठीक समय पर देखा है सपना

गुलाब के फूल की तरह
खिल रहा है उसका जीवन
हल्की रंगत और खुशबू
फ़ैल रही है उसके आस-पास

रात के पहले पहर के सपनों की तरह
बे-अर्थ हो गए हैं वे 
जिन्हें दिखा दिए गए सपने
समय से पहले

दुश्चिंताए तैर रही हैं उनके आस-पास
जो कच्ची उम्र के हत्यारों
और अँखुवाये सपनों के
सौदागरों के हवाले हुए हैं
अंधे सांप की तरह
जी रहे हैं जीवन

नौजवान सपनों से हरी होती है दुनिया
नयी दुनिया को बचाने वाले विचार
पकी उम्र में आते हैं अक्सर!


याद

जब भी आ जाती है
तुम्हारी याद
बरस जाती हैं आँखे रोकते-रोकते
जब भी आ जाती है
तुम्हारी याद
भर आता है गला
शब्दहीन हो जाती है जुबान

सकते में आ जाती हूँ यूं ही
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
कहीं भी शायद सिरे से हट जाती है
पूरी दुनिया मेरे लिए। 


संपर्क-

संज्ञा
सिंह
मुन्नालाल मदनलाल . मा विद्यालय
रिकाबगंज
फैजाबाद
उत्तर प्रदेश
 

टिप्पणियाँ

  1. Hareprakash Upadhyay ·
    इनका तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत करें फेसबुक पर ऊंघ रहे तमाम लोग..

    जवाब देंहटाएं
  2. Tiwari Keshav

    Bhai k ravindra k jariye 15 sal bad sangya ji se bat ho saki thi. Inki kuchh kawitayen jabani yad han. Kawita ka wahi tewar wahi andaje bayan. Wah swagat ha. Swagat ha aapka. Sanos ji pahli bar ka shukriya.

    जवाब देंहटाएं
  3. sahaj saral bhasha men maanviya samvednaon ki sunder abhivyakti .....badhai sangya ji ...aabhaar santosh ji....

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह ! नई दुनिया के लिए सुखद सवेरे की तलाश करती यह कविताएं अपनी याद के बल पर आसपास के सांसारिक रचाव की एक सहज और सरल संवेदनात्मक अभिव्यक्ति प्रस्तुत करती हैं ... संज्ञा जी को बधाई .. आगे भी यह प्रयास जारी रहे .... संतोष भाई का आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. पहली कविता बहुत सुंदर है .....

    जवाब देंहटाएं

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