गौरव पाण्डेय की कविताएँ

गौरव पाण्डेय
मानव जीवन में रिश्तों का बहुत महत्व है. रिश्तों के अहसास की वजह से ही आदिमता को छोड़ कर हम मनुष्य बने. सभ्यता की राह में यह मनुष्य का एक बड़ा कदम था. निश्चित रूप से भाई-बहन का रिश्ता उन कुछ रिश्तों में प्रबल और प्रगाढ़ रिश्ता है जो आजीवन और अटूट बना रहता है. यह दो परिवारों को एकजुट करता है और मेल-मिलाप की परम्परा को साकार करता है. अपने यहाँ तो हम इस रिश्ते  को एक पर्व के रूप 'रक्षाबंधन' के रूप में अरसा पहले से ही मनाते आये हैं. बहनें जिनमें अपनत्व का एक समूचा अक्स उभरता है. युवा कवि गौरव पाण्डेय ने बहन पर कुछ कविताएँ लिखी हैं जिन्हें हम पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं.  तो आइए पढ़ते हैं गौरव पाण्डेय की कविताएँ.


गौरव पाण्डेय की कविताएँ      


बहन पर कुछ कविताएं..

- माँ ..*

हम शिखरों से पुकारते हैं
.      . ....माँ..........

घाटियाँ गूंजती रहती हैं
माँ ........ .माँ ...... ..माँ.....


घाटियों में बहनें रहती हैं!



- बहन_पिता_और_मोबाईलगेम

बहन और पिता
मोबाइल मेँ गेम खेलते हैं
दोपहर भर
अपनी-अपनी बारी का इन्तजार करते हैं

बहन गेम खेलने में तेज है
बनाती है नये रिकार्ड
पिता भी कम नहीं
दो-चार बार मेँ तोड़ देते हैँ बहन का रिकार्ड

बहन और पिता
दोपहर भर रिकार्ड बनाते तोड़ते हैं
एक दूसरे को चिढ़ाते हैं

चतुर बहन
शाम को अतिरिक्त समय निकाल कर
चुरा कर मोबाईल बनाती है रिकार्ड
पिता सोने से पहले माँगते है मोबाइल
और देर रात तक खेलते हैँ गेम

सुबह उठ कर
बहन खोजती है सबसे पहले मोबाईल ...
और फिर पिता के बनाए रिकार्ड को
तोड़ने की कोशिश करती है....


- भैया_लौटे_हैं

भैया लौटे हैं
लौटी हैँ माँ की आँखें
पिता की आवाज मेँ लौटा है वजन

बच्चोँ की चहक लौटी है
भाभी के होँठो पर लौट आई लाली

बहुत दिन बाद
हमारी रसोई में लौटी खुशबू
आँगन में लौटा है परिवार

नया सूट पा कर
मैँ क्योँ न खुश होऊँ
बहन हूँ
शहर से मेरे भैया लौटे हैं .!


४. बहन चुप है"

पिता परिवार की बात करते हैं
भाई घर की बात करता है
दादा जी गाँव की बात किया करते थे
उसने चार अक्षर पढ़ लिया है
उसकी जगह उसकी पत्नी बात करती है
न घर की, न परिवार की
वह अपने बच्चोँ की बात करती है

इन सबके बीच
बहन चुप है.......

अब देश एवं समाज की बात
भला कौन करे!




. बहन गणित के सवाल हल करती है

बहन अभिज्ञान पढ़ती है
शकुन्तला को सोच कर उदास होती है
दुष्यंत से चिढ़ती है

बहन रीतिकाव्य पढ़ती है
कवियोँ को धिक्कारती है
श्रंगारिकता पर थूकती है

बहन कामायनी पढ़ती है
मनु को एक जोरदार थप्पड़ मारना चाहती है
अंतत: उसकी नियती पर तरस खाती है

कभी-कभी बहन का मन मेघदूत पढ़ने को करता है
और वह आषाढ़ का एक दिन भी पढ़ना चाहती है
लेकिन कुछ सोचते हुए बिना किसी विमर्श के
बहन गणित के सवाल हल करती है।


६. "सरसोँ के फूल और बच्चियोँ के सपने"

घने कोहरे के बीच
खेतोँ से घर लौटती है माँ
बहन पीछे-पीछे

माँ के हाथोँ मेँ हैँ
सरसोँ के कुछ पत्ते
और बहन की अंजुलि मेँ भरे हैँ
बहुत से फूल सरसोँ के

द्वार की नीँम से
दातून तोड़ रहेँ हैँ पिता
पड़ोस की बच्चियाँ दौड़-दौड़ बीनती हैँ
नीँम के सीँके

माँ कतरती है सरसोँ के पत्ते
पड़ोस की बच्चियाँ
बहन को घेर लेती हैँ
सब मिल कर सीँकोँ मेँ पिरोती हैँ
सरसोँ के फूल

पहले कुछ फूलोँ से बनाती हैँ लहरदार झुमका
और लड़ीदार नथिया
एक बच्ची के नाक-कान मेँ लगा कर देखती है
हँसती हैँ खिलखिला कर
बनाती हैँ फिर माँथबेदी, पायल, कर्धनी
और एक बड़े सीँके मेँ पिरोती हैँ
ग्यारह बड़े-बड़े फूल
और सजाती हैँ एक सुंदर हार

सबकी सहमति से
ये हार बहन के हिस्से आता है
वह गले के नजदीक लाती है
रुक कर तलाशती हैँ नजरेँ माँ को

बच्चियोँ के इस कौतुक को
रसोई के रौशनदान से देखती है माँ
और हाथ मेँ नमक लिए सोचती है
'सरसोँ के ये टूटे फूल
कब तक हरे रख पाएँगे
बच्चियोँ के स्वप्नोँ को'

दूर से आवाज आती है
पिताजी के कुल्ला करने की
कड़ाही मेँ नमक डालते हुए
माँ करछुल चलाने लगती है।


७. बहन की शिकायत

अब मैं नहीं लिखता
कॉपी के पिछले पृष्ठों पर
डायरी में
या बेकार पड़े कागजों पर
लिखता हूं कविताएं फेसबुक पर

बहन फेसबुक चलाना नहीं जानती!


. दोस्त_की_बहन_के_लिए

शहनाई बज रही है
बारात है
गाँव के छोर पर
नहीँ आएगी नीँद आज रात

एक चिड़िया अपनी चोँच मेँ
पहला तिनका दबाए
अनजान वृक्ष पर घोसले की नीँव
धरने जा रही है

झरती ओस बूँदोँ से
दरवाजे की लताएँ
अंखुआ रहीँ हैँ

ओ पाठकोँ.. आशीष देँ.!

मेरे गाँव की बहनें
आज फिर से नये स्वप्न रचेँगी
और कई रातोँ तक सुनती रहेँगी
दूर बजती मद्धिम होती
शहनाई की आवाज...

(धरना- रखना)
29/05/2015


सम्पर्क- 

मोबाईल - 09125099299

@गौरव पाण्डेय
ई-मेल - pandeygaurav.au@gmail.com

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की है.)

टिप्पणियाँ

  1. गौरव की ये कविताएँ निश्चित रूप से संबंधों की तरलता और उसकी ऊष्मा को हर कीमत पर बचाए और बनाये रखने की कोशिश है

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी कविताएँ सरल सहज भाषा में होते भी अद्भुत विषयवस्तु समेटे हैं। मेरा मानना है कि अच्छी कविताएँ लो जो अपने पाठक बनाए , नये पाठक जुटाए और ये कविताएँ भरपूर सक्षम हैं इसमें। गौरव के लिये शुभकामनाएं। ये कवि अपने पाठक खुद बनाएगा

    जवाब देंहटाएं

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