विजेन्द्र जी की किताब 'आधी रात के रंग' पर रश्मि भारद्वाज की समीक्षा
विजेन्द्र जी |
पाब्लो पिकासो ने कभी कहा था कि ‘कुछ पेंटर सूरज को
एक पीले धब्बे में बदल देते हैं जबकि अन्य पेंटर एक पीले धब्बे को सूरज में।’ यानी
कला जितनी आसान दिखती है वह अपने में उतनी ही मुश्किल होती है। लेकिन कवि जो वस्तुतः
एक कलाकार ही होता है इस मर्म को भलीभांति जानता-समझता है। और वह हुनर जानता है
जिसके द्वारा वह पीले धब्बे को भी सूरज में ढाल देता है। वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी उम्दा
कवि होने के साथ-साथ एक चित्रकार भी हैं। उनकी पेंटिंग में रेखाओं और रंगों का
अद्भुत संयोजन जैसे दर्शक को अपने में डूबने के लिए विवश कर देता है। सारी
पेंटिंग्स अपने आप में जैसे एक स्वतन्त्र कविता लगती हैं। विजेन्द्र जी की एक अनूठी कृति
है 'आधी रात के रंग।' आधी रात में रंग के चितेरे ने इसमें पेंटिंग्स के साथ-साथ कविताओं
के रंग भी बिखेरे हैं। कविताएँ हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी में भी हैं जिसे स्वयं
विजेन्द्र जी ने ही अनुवादित किया है। कवयित्री रश्मि भारद्वाज ने इस कृति की एक
समीक्षा लिखी है जो वागर्थ (अगस्त 2015) के विजेन्द्र पर केन्द्रित हालिया अंक में
प्रकाशित हुई है। आज रश्मि का जन्मदिन भी है। रश्मि को जन्मदिन की बधाईयाँ देते
हुए हम प्रस्तुत कर हैं उनकी लिखी यह समीक्षा।
आधी रात के रंग लेकर कैनवास पर लिखा जाता समय : कवि
विजेंद्र का रंग संसार
रश्मि भारद्वाज
आधी रात जब दुनिया नींद की ख़ुमारी में डूबी सुख-स्वप्नों
में खोयी रहती है, कोई
साधक कहीं जाग रहा होता है। वह गहन तिमिर में भी रंगों की एक दुनिया देखता है। वह
उस अनिर्वचनीय शांति के पलों में हमारे जीवन में व्याप्त विसंगतियों के तम को चीर
कर उजास बुनना चाहता है। वह अपने मन की उद्विग्नता तथा परिवेश की विषमताओं से
व्यथित होने के बाद भी परिवर्तन के लिए आशान्वित है और कुछ ऐसी ही धुन,
कुछ ऐसी ही साधना के साथ उपजती है,
एक अद्भुत रंगों की दुनिया जिसे ‘*मिडनाइट
कलर्स’ का नाम दिया जाना बहुत
सार्थक लगता है। कवि विजेंद्र जी की एक दुनिया वह रेखाएँ, वह
रंगों का अपरिमित प्रवाह है, जिनमें
जितना डूबा जाए, एक नया अर्थ,
जीवन की एक नयी दृष्टि से साक्षात्कार होता है। ज्यों जीवन कई रंगों की परतों में
स्पंदित हो और हर परत अपने समय को,
अपने परिवेश और मानव मन की गहन जटिलताओं को सूक्ष्मता से कैनवास पर बयां कर रही हो।
कविता जिनके जीवन में कुछ ऐसी रही हो,
ज्यों कि साँसें लेना होता है,
जैसे कि हृदय का स्पंदन होता है। वह एक स्थिति है जिसके हम इतने अभ्यस्त होते हैं
कि उसे अलग से याद नहीं करना पड़ता है। एक ऐसा सत्य जीवन का, जो नहीं हो तो जीवन ही
नहीं रहे। कविता को अपने जीवन का कुछ ऐसा पर्याय मान बैठे यह कवि जब रंगों की ओर
मुड़ते हैं तो वहाँ कागजों पर धड़कती है कविता। वहाँ काले अक्षर विभिन्न रंगों का
आकार ले एक समानान्तर दुनिया रचने लगते हैं। लियोनार्डो दा विंची ने कहा है “चित्र
कविता है जो महसूस करने से ज्यादा देखने की वस्तु है और कविता वह चित्र है जो
देखने से ज्यादा महसूस की जाती है।“
विजेंद्र जी के रंग संसार में रंगों और शब्दों का
यही तारतम्य देखने को मिलता है। जहां शब्द चुप होते हैं,
वहाँ से रंग बोलने लगते है और जो अनकहा रह उठता है,
शब्द उसके पूरक बन जाते हैं। उनकी अपने आप में अनूठी पुस्तक ‘मिडनाइट
कलर्स’ में यह संयोजन,
रंगों और शब्दों का यह विलक्षण साहचर्य हर पन्ने पर स्पंदित है। अनूठी किताब इसलिए
कि चित्रों का साथ देते यहाँ जीवंत शब्द भी हैं और साथ ही हिन्दी नहीं जानने वाले
कलाप्रेमियों के लिए उन कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद भी।
विजेंद्र ख़ुद कहते हैं “चित्रकर्म मेरे लिए कविता
का पूरक है। कविता में शब्द–बिम्ब और रूपक बनते हैं। चित्र में रंग,
रेखाएँ, टेक्स्चर और स्थापत्य
मिलकर बिंबों और रूपकों को रचते हैं। मेरे लिए वही चित्र आकर्षित करता है जो मुझे
एक बौद्धिक चुनौती के रूप में सोचने को प्रेरित करे। मेरे सरल सामान्य भावों को
औदात्य देकर मेरे मन को नया विस्तार दे। चित्र मुझे वही नहीं बताता जो मेरे सामने घटित
हुआ है। बल्कि वह भी जो बार बार घटित हो सकता है। यानि होने से होने की संभावना जगा
पाना किसी भी रचना की बड़ी सार्थकता है।“
फेसबुक पर जब पहली बार विजेंद्र जी के चित्रों को
देखा तो जिस चीज़ ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया,
वह था उनका अद्भुत रंग संयोजन। रंगों का प्रवाह और उन पर बेधड़क चले ब्रश स्ट्रोक्स
जो चित्रों की गहन समझ नहीं रखने वालों को अनियंत्रित भी लग सकते हैं और अगर भावों
की गहनता नहीं या विचारशून्यता है तो एक अबूझ पहेली से। वस्तुतः ये चित्र उन
चित्रों की श्रेणी में नहीं रखे जा सकते जो आँखों के जरिए मन में स्थान बनाते हैं।
इसके विपरीत ये चित्र एक चुनौती की तरह विचारों को आलोड़ित करते हैं और रंगों के
पीछे छिपी उद्दात संवेदनाओं तक पहुँचने का आह्वान करते से प्रतीत होते हैं। बिना
इनमें डूबे, इसके अर्थ तक पहुँच पाना नामुमकिन। साथ ही यह भी कहना लाज़िमी होगा कि
जो अर्थ किसी एक मस्तिष्क ने ग्रहण किए हों,
वह अंतिम और अकाट्य सत्य की तरह प्रस्तुत नहीं किए जा सकते। मेरी दृष्टि में
विजेंद्र जी के चित्रों का सबसे सक्षम और सकारात्मक पहलू यही है कि हर व्यक्ति
यहाँ अपनी समझ और परिस्थिति के अनुसार अर्थ ग्रहण करने के लिए स्वतंत्र है। सार्थक
कला उसे ही माना जाना चाहिए जो अपने संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को कुछ
उत्प्रेरक देकर अपना संदेश, अपना समाधान
खोजने के लिए प्रेरित करे। विज्ञान की तरह कला चीज़ों और परिस्थितियों को किसी
परिभाषा या किसी दायरे में नहीं बांधती बल्कि जीवन की तरह एक बहाव,
एक लय देकर छोड़ देती है ताकि आगे का सफ़र ख़ुद तय किया जा सके। यह चित्र भी हमारे
विचारों, हमारी भावनाओं,
हमारी संवेदनाओं को सोच की एक दिशा,
एक प्रवाह देते हैं और यही वजह है कि हरेक चित्र अपने आप में कई अर्थ और कई
परिभाषाएँ समाहित किए हुए हैं। 20 वीं सदी के मशहूर फ्रेंच चित्रकार और मूर्तिकार जार्ज
ब्रेक की बात इन चित्रों के संदर्भ में पूरी तरह लागू होती लगती है कि कला वही
उल्लेखनीय है जिसे परिभाषित नहीं किया जा सकता। अगर उनमे कोई रहस्य नहीं,
तो उनमें कोई कला, कोई
कविता भी नहीं और इस एक तत्व को कला में मैं सबसे ज्यादा महत्व देता हूँ।“
विजेंद्र के चित्र मूलतः एब्स्ट्रैक्ट शैली के हैं
जहां अमूर्त आकारों और रेखाओं द्वारा अपनी बात कही जाती है लेकिन ब्रश स्ट्रोक्स
की महीन और दक्ष कारीगरी और रोशनी को उसके विभिन्न आयामों द्वारा मुख्यता से
प्रस्तुत करना इन्हें कहीं–कहीं 19वीं सदी के फ्रेंच इंप्रेशनिस्ट शैली के करीब भी
ला खड़ा करता है। गहन अमूर्तन होने की उपरांत भी इन चित्रों पर कलाकार के अपने लोक,
अपने वातावरण का गहरा प्रभाव परिलक्षित होता है। लोकधर्मी कवि विजेंद्र तमाम विषम परिस्थितियों
में भी आशा और उत्साह का दामन नहीं छोडते। यह मात्र संयोग नहीं कि इनके अधिकांश
चित्र भूरे रंगों के विविध शेड्स,
धूसर और स्याह रंगों की बहुलता लिए होते हैं। यह उस साधारण जन और उसके जीवन की
विषमताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जो हर क्षण इस विसंगतियों से भरे जीवन में अपना
अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्षरत हैं। यह उस पूंजीवादी शक्ति का प्रतीक है जो
जीवन की हरीतिमा को लीलता जा रहा है। यह विज्ञान और तकनीक के उस स्याह पक्ष की ओर
भी संकेत करता है जिसने दुनिया को परमाणु युद्ध की आशंकाओं में हमेशा के लिए
असुरक्षित छोड़ दिया है। कई बार रंगों से बुनी गयी यह स्याह दुनिया डराती हैं लेकिन
यह बस हम सबके अंदर बैठा वह डर, वह
असुरक्षा मात्र है जो हमारे समय की सबसे वीभत्स देन है और जिसे कलाकार ने बहुत ही
संवेदनशीलता से जीवंत कर दिया है।
लेकिन रंगों से कविता की संगति देने का अनुरोध करते
कवि इनसे “आत्मा का आरोह–अवरोह” सुनते रह सकने की स्वायत्तता भी चाहते हैं। जो व्यक्ति
अपनी आत्मा से संवाद करते रहने के लिए प्रयासरत होगा,
कठिन से कठिन हालातों में भी वह उम्मीद की एक लौ रौशन पाएगा। यही उम्मीद की लौ उनके
रंग बिंबों में बार उभर-उभर आती है। कहीं भूरे रंग की चट्टान के अतल से एक जलधारा
फूटती सी प्रतीत होती है तो कहीं स्याह रंगों के बीच खिले फूल सृजन की उर्वरता,
अवसाद के बीच भी जिजीविषा की रौशनी को दर्शाते नज़र आते हैं। कहीं अमूर्त
मानवाकृतियाँ समय और परिवेश के आघातों से उबरने के लिए संघर्षरत दिखती हैं तो कहीं
स्वयं प्रकृति इंसानों द्वारा रची जा रही आपदा से ख़ुद को बचाने के लिए आतुर नज़र
आती है। संघर्ष, उत्साह,
जिजीविषा और विषाक्त होते समय में अपने हृदय में बहती अविरल स्नेह जलधारा को बचा
लेने का प्रयत्न इन चित्रों का मूल स्वर है। यह चित्र उस समय को रच रहे जो घटित हो
रहा है और जो भविष्य के गर्भ में हैं। यह चित्र मानवीय संभावनाओं को एक अपरिमित कैनवास
देते हैं जहां रंगों और संवेदनाओं के मेल से से एक नयी दुनिया सृजित कर सकने का
आश्वासन है। यहाँ यह उम्मीद जीवित दिखती है कि ‘जीवन
ही है सतत चढ़ना’ और ‘पृथ्वी
के गर्भ में पिघलती चट्टानें और जल प्रवाहित धाराएँ भी हैं।‘
· आधी रात के रंग (मिडनाइट कलर्स) विजेंद्र जी का
का 2006 में आया चित्रों और कविताओं का ऐसा संकलन है जिसमें चित्रों और कविताओं का
सुंदर समन्वय है। अहिंदी भाषियों के लिए कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद भी कवि ने
स्वयं कर के किताब में संकलित किया है। यहाँ उद्धृत कविताओं की सभी पंक्तियाँ इसी
किताब से ली गयी हैं।
रश्मि भारद्वाज |
पता:
129, 2nd फ्लोर,
ज्ञानखंड-3, इंदिरापुरम,
गाजियाबाद,
उत्तरप्रदेश-201014
ईमेल: mail.rashmi11@gmail.com
वेब मैगज़ीन: www.merakipatrika.comका संपादन
ब्लॉग: जाणा जोगी दे नाल (www.rashmibhardwaj.blogspot.in)
रश्मि भारद्वाज
जवाब देंहटाएंउम्दा कवयित्री
समीक्षक
संपादिका
मित्र
यह आलेख समीक्षा कमाल की प्रथमदृष्टया
दुबारा पढ़ने लायक औऱ पढ़ना लाजिमी।
रश्मि जी जन्मदिन की अशेष स्नेहिल् शुभ कामनाएं
समीक्षक जब खुद के भीतर इतने गहरे पैठ रहा है जिस रचनात्मकता के सहारे, कल्पना ही की जा सकती है उस रचना की। अद्भुत, विस्मित कर देने वाला आख्यान~"'रंगों से कविता की संगत करते कवि इसमें आत्मा का आरोह अवरोह सुनने की स्वायत्तता चाहते हैं "यह कह कर रंगों से सजी कविता अपने उच्चतम सोपान पर नज़र आती है। समीक्षा की रवानी और लालित्य तो अनूठे हैं ही जो इस काव्य संपदा तक लाने के क्रम में निरंतर समृद्ध करते हैं। रश्मि में जिस संभावना को मैने पहचाना था वह निरंतर परिपक्व होती हुई उर्ध्वगामी सोपान की सीढ़ियां चढ़ती नज़र आ रही है और यह मुझे चमत्कृत करता है, अभिभूत करता है। तुम्हें कवि, लेखक,संपादक और समालोचक के रूप में पहचान बनाता देखना बेहद रोमांचक है, रश्मि ।
जवाब देंहटाएंBahut achha aalekh. Vijendr ji ke chiton me mujhe kuchh aspasht si manav aakritiyan dikhti hain jo use anivary roop se prakriti ki ek kriti ghoshit karte hain yah ghoshna mani un vijetaon ko chunauti si deti jaan padti hai jo vidhvans par utaru hain jo vijeta hain. Sadhuvad.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरश्मि, बहुत समझदारी भरी समीक्षा है, तुमने सचमुच एक पीले धब्बे को सूरज में बदल दिया है और उसकी रोशनी से ये चित्र आलोकित हो उठे हैं. मेरी बधाई स्वीकार करो. -- नीलाभ
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख है | विजेंद्र जी के चित्र जीवंत हैं और रश्मि जी की समीक्षा ने उन्हें और भी जीवंत कर दिया है | बधाई आप दोनों को ...
जवाब देंहटाएंअच्छी समीक्षा लिखी है आपने। कविता के साथ-साथ पेंटिंग्स की समझ भी रखना प्रशंसनीय है।
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