प्रदीप शुक्ला की अवधी कविताएँ

प्रदीप शुक्ल
परिचय –



नाम – डॉ. प्रदीप शुक्ल

जन्म – 29 जून, 1967 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के छोटे से गांव भौकापुर में एक गरीब किसान परिवार में.


शिक्षा – प्रारम्भिक शिक्षा गांव में ही, बी.एससी. कान्यकुब्ज कॉलेज, लखनऊ.

एम. बी. बी. एस., एम. डी. (स्वर्ण पदक)किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ


हिंदी साहित्य में बचपन से ही रूचि परन्तु कविता लिखने का सिलसिला शुरू हुआ. अक्टूबर, 2013 से, वर्तमान में लखनऊ में “केवल बच्चों के लिए एक हॉस्पिटल“ जहां पर चौबीस घंटे बीमार बच्चों की देखभाल के लिए उपलब्ध, उसी से कुछ समय चुरा कर कविता लिखने का प्रयास.


प्रकाशित रचनाएं –संयुक्त काव्य संग्रह “सारांश समय का“ एवं “पारिजात“ में रचनाएं, कोलकाता से प्रकाशित “उड़ान“ पत्रिका में रचनाएं, कुछ कुण्डलियाँ “बाबू जी का भारत मित्र“ पत्रिका में – सम्पादक श्री रघुविन्द्र यादव जी, दो रचनाएं “शोध दिशा“ के फेसबुक विशेषांक में (सम्पादक श्री लालित्य ललित ), कुण्डलियाँ और नवगीत ई–पत्रिका “अनुभूति“ में ( सम्पादक श्रीमती पूर्णिमा वर्मन), कुछ कह मुकरी “हमारा मेट्रो“ - दिल्ली में प्रकाशित.


लोक भाषाएँ अपने आप में इसलिए बेजोड़ और अलहदा होती हैं कि उनमें मिट्टी की ताकत घुली मिली होती है वह ताकत जो अन्यत्र दुर्लभ होती है। हम जिसे आभिजात्य कहते हैं वह तो उस पोपली जमीन पर खड़ा होता है जो किस पल ढह जाए कहा नहीं जा सकता। लोक से जुड़ा हुआ मन बार-बार अपनी उन जड़ों तक लौटता है जिससे उसे जीवन की खुराक मिलती है। इसी खुराक के बल पर लहलहाती हैं पत्तियाँ। झूमती हैं टहनियाँ। इतराती है उपरल्ली फुनगी। डॉ. प्रदीप शुक्ल हमारे ऐसे ही कवि हैं जो पूरी तरह से लोक रंग में रंगे हुए हैं। प्रदीप के अवधी के इन लोक गीतों की छाँव में बार-बार बैठने-सुस्ताने का मन होता है। तो आइए आज पढ़ते हैं डॉ प्रदीप शुक्ल के इन अवधी लिक गीतों को
  

डॉ. प्रदीप शुक्ल की अवधी कविताएँ          


!! तौ यहु आल्हा सुनौ हमार !!


हुद हुद के चलतै शहरन मा, है पुरवय्या औ बौछार
खाली बईठे हौ तुम पंचै, तौ यहु आल्हा सुनौ हमार!!

आजु बतकही राजनीति कै, जहिकी बातन कै ना छ्वार
पूरे देश म एकुई पट्ठा, चारिउ तरफ रहा ललकार!!

जऊने चैनल मा तुम द्याखौ, उज्जरि दाढ़ी परी देखाय
हरियाणा मा पानी पी पी, हुड्डा क नाकों चना चबवाय!!

बाकिन का कुछु समझि न आवै, कौनो वहिते पार न पाय
पानी पियति देखि मोदी का, कौनो हुड्डा क दिहिस सुझाय!!

दिन भर मा दस लीटर पानी, मोदी भईय्या जाति डकारि
दस लीटर पानी का पैसा, गिनिकै जल्दी लेउ निकारि!!

फिरि द्याखौ चुनाव खर्च मा, वहिका काहे नहीं देखाव 
हियाँ गरीब क मुहुँ सूखा है, एतना पानी तुम पी जाव!!

पानी ते हमका यादि आवा, पिछिले बरसि के या है बात
सूखी नहरैं महाराष्ट्र की, बिन पानी के फसल सुखात!!

दौरे दौरे सब किसान तब, पहुँचे अजित पवार के पास
दादा बोले मूति देई का, चमचा हँसि क किहिन उपहास!!

बात धरे सारे मतदाता, आयो बच्चू हमरे द्वार
अबकी तुमका देखि ल्याब हम, केतनी बड़ी तुम्हारि है धार!!

औरी बातैं फिरि औउरे दिन, आजु क किस्सा एतनै आय
भग्गू काका तुमहू ब्वालौ,अब तो हम हैं रहेन चियाय!!


!! ओ गान्ही जी ओ गान्ही जी !!

कहाँ छुपे हौ ओ गान्ही जी
तनी निहारौ ओ गान्ही जी!!

तुम्हरे नाम प भगमच्छरु है
कहाँ बिलाने हौ गान्ही जी!!

हाँथे मा तस्वीर तुम्हारि है
कमर मा कट्टा है गान्ही जी!!

सत्य अहिंसा सदाचार की
करैं सफाई ओ गान्ही जी!!

सबसे पीछे खड़ा बुधैय्या
वहै पुकारै ओ गान्ही जी!!

वहिकी कोउ सुनै वाला ना
ओ गान्ही जी ओ गान्ही जी!!


!! आल्हा - गाँधी की सालगिरह पर !!

गाँधी बाबा गाँधी बाबा .....आजु क आल्हा सुनौ हमार!
भूल चूक सब माफ़ कई देह्यो ईश्वर के तुम तौ अवतार!!

कहाँ चले गयो गाँधी बाबा तुम्हरे बिना सून संसार!
मोदी तुमका रोजु बुलावैं करि देव उनका बेड़ा पार!!

झाडू लईकै तुम आ जावौ गन्दी बहुत भई सरकार!
सड़क सफाई ते कुछु ना होई काली भेड़ें देव निकार!!

यहै बात मोदी ते कहि द्यो काने मा धीरे समझाय!
हर बिभाग के बेईमानन का बाहर रस्ता देव देखाय!!

तबहीं नामु होई भारत का वरना होई जाई बंटाधार!
सुनौ सुनौ तुम जल्दी आवौ एतनी मानौ बात हमार!!

तुम्हरी टोपी झाडू लैकै ........... आये रहें केजरीवाल!
बहुत दिनन ते उई गायब हैं उनका कोऊ न पुरसाहाल!!

झाडू उनकी छीन लीनि गै टोपी खुदै उई दिहिन उड़ाय!
गांधी बाबा बचे रहैं तो उनका साहेब लिहिन उठाय!!

गांधी तुमका काँधे लादि क लईगे रहैं समुन्दर पार!
पूरे जग मा कहि आये हैं अब ते गांधी हवैं हमार!!

कांग्रेस की लुटिया डूबी .... उनका गवा है साँप सुंघाय!
मोदी भग्मच्छरु कीन्हे हैं उनकी न कौनियु काट सुझाय!!

 
!! आओ चलें अवध के गाँव !!

आओ तुमका लै चली, साथै अपने गाँव!
रस्ता मा गईया मिली, लीन्हें टूट गेराँव!!

जब तक पानी ना गिरा, ........ सूखे रहे परान!
झम झम बारिश मा सुनौ, अब कजरी कै तान!!

तीसरि बिटिया के भये, काका हैं हैरान!
तीन साल ते सुनि रहे, उई हरिबंश पुरान!!

तुलसा मैय्या सूखि कै, आँगन गयीं बिलाय!
चौतरिया पर लालु के, कपड़ा रहे सुखाय!!

पानी अब नरदहा का, गलियारे मा जाय!
धुन्नी तो देवाल का, बढ़िकै लिहिन बनाय!!


!! लागति अबकी सूखा परिगा !!

सब उड़े जाति सूखे सूखे
बादर काहे बरसति नाहीं !
लखि रहे गांव शायद हमार
लागति ढूंढें पावति नाहीं !!

गलियारे कै बरुआ तपिगै
भुलि भुलि पायन का खाय लेति
ठूंठन माँ चले चले जूता
दुई महिना माँ मुह बाय देति
गरमी के मारे हलेकान
बेरवौ हैं अब ढूंढति छाँही !

ताल गढ़य्या सूखि सबैं
सब मछरिन का फांसी होइगै
झन्नू कहार के लरिका कै
मुलु कमाई अच्छी खासी होइगै
भैंसी ब्वादा माँ लोटि रही
मरेह्यो पर वह निकरति नाहीं !

सब उड़े जाति सूखे सूखे
बादर काहे बरसति नाहीं !
लखि रहे गांव शायद हमार
लागति ढूंढें पावति नाहीं !!

ई चुनाव के झंझट मा

ई चुनाव के झंझट मा
खौख्याय लिहिन तौ का होईगा
दुई जने जो याक दूसरे का
फिरि नीच कहिन तौ का होईगा !!

जिउ गर्मी मा बिल्लाय रहा
कोउ बेमतलब बौराय रहा
बहन भाइयों, बहन भाइयों
दिन भर कोउ चिल्लाय रहा
अब कोहू की जबान फिसली
पागल कहि दिहिन तौ का होईगा!

दुई जने जो याक दूसरे का
फिरि नीच कहिन तौ का होईगा!!

ई ज्याठ की भरी दुपहरी मा
गर्मी माथे ऊपर चढ़िगै
बस बात नहीं बतकहाव ट्याढ
बेमतलब मा वह बढ़िगै
उई कहति कि तुम बेईमान रह्यो
उई कहति कि तुम अपमान केह्यो
मारौ गोली अब घरै जाव
कुछ कही दिहिन तौ का होइगा!

ई चुनाव के झंझट मा
खौख्याय लिहिन तौ का होईगा
दुई जने जो याक दूसरे का
फिरि नीच कहिन तौ का होईगा!!


अउर केतने दिनन तुम्हरे हाँथ मा ख्याला करी

अउर केतने दिनन तुम्हरे हाँथ मा ख्याला करी
औ तुमरहे नाम की दिनु राति हम माला करी
साठि सालन ते वहै बस झुनझुना पकड़े रहेन
अब सुनामी पर सवारी ना करी तो का करी !!

तुम वोट दिह्यो ! अब घरै जाव !!

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव
तुम वोट दिह्यो ! अब घरै जाव !!

महिनन ते चक्कर काटि काटि
चौदह जोड़ी जूता घिसिगे
ई चुनाव के चाक्कर मा
चेलवा हमार केतना पिसिगे
उई रोजु बिचारे मिलै जायँ
तुम झुट्ठै बस बहाना बनाव

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव
तुम वोट दिह्यो ! अब घरै जाव !!

आयोग रोजु चिल्लाय रहा
की वोट अपन ना तुम बेच्यो
हर कंडीडेट ते अलग अलग
लेकिन तुम खुब पैसा खैंच्यो
झूठे मक्कार तो बहुत हो तुम
अब हम ते सब कुछु ना कहाव

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव
तुम वोट दिह्यो ! अब घरै जाव !!

काका चाचा कहिकै तुमरी
दाढ़ी माँ हाँथु लगाये रहेन
जो तुम भरी दुपहरी का
है राति कह्यो तो राति कहेन
लेकिन तुम्हार आडर होईगा
सरगै ते तोरई टूरि लाव

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव
तुम वोट दिह्यो ! अब घरै जाव !!

जब जब हम तुम्हरे घरै गयेन
पानी खौलाय क दई दीन्ह्यो
औ पायँ प पायँ चढ़ाय क तुम
दुनिया भरि की बातैं कीन्ह्यो
जब कहेन हमारि पैरवी करौ
तुम मोड़ीही दीन्ह्यो बतकहाव

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव
तुम वोट दिह्यो ! अब घरै जाव !!

बस सात वोट खातिर हम ते
तुम दुई हजार रुपिया लीन्ह्यो
पर एतन्यो पर हमका शक है
की वोट न हमका तुम दीन्ह्यो
चुपचाप हियाँ ते खिसकि लेव
हमका तुम गुस्सा ना देवाव

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव
तुम वोट दिह्यो! अब घरै जाव !!


!! भइया हम तो खेतिहर किसान !!

अब तीन पांच हम का जानी
भइया हम तो खेतिहर किसान!!

तुम हमरे बल पर दौरि रह्यो
हमही का आँख देखाय रह्यो
चाहै तुम वहिका डबल कहौ
गेहुंऐ की तो रोटी खाय रह्यो
जब हम तुम्हरे शहर आई
तुम नाक सिक्वारति हौ भईया
तुम ऐसे हम का हांकति हौ
जैसे हम हन तुमरी गईया
जो तुमका हम दुतकारि देई
कैसे बचिहैं तुमरे परान
भइया हम तो खेतिहर किसान

अब तीन पांच हम का जानी
भइया हम तो खेतिहर किसान!!

टी बी के अन्दर बैठ बैठ
बढ़िया बढ़िया बातै करिहौ
ऐसन लागी बस अबहीं तुम
हमरे पायन माँ सिरु धरिहौ
मौक़ा मिलतै तुम तो हमरे
पीठी माँ छूरा भोंकि देतु
बस हमरा नाम लगाय क तुम
अपनी ही रोटी सेंकि लेतु
हम तो गरीब मनई हमका
तुम काहे कीन्हे हौ परेशान
भइया हम तो खेतिहर किसान

अब तीन पांच हम का जानी
भइया हम तो खेतिहर किसान!!

जैसे चुनाव नजदीक आई
तुम पहिरि क खद्दर दौरि लिह्यो
दिन राति पैंलगी मारि रह्यो
तुम हमरे सथहै ज्योंरि रह्यो
हम जानिति चुनाव मा जीततै तुम
फिरि पांच बरस तक ना अइहौ
जो तुमका हम ना वोट दीन
तौ सबके समहे गरियइहौ
हमका समझावै क रहै देव
हम जानिति सब धंधा पुरान
भइया हम तो खेतिहर किसान

अब तीन पांच हम का जानी
भइया हम तो खेतिहर किसान !!

अब हमका बाबू माफ़ करौ
दिन चलै हमार ऐसई खराब
बड़का बहुरेवा क पीट रहा
जब ते आवा पीकै शराब
छोटकौनो सार फेल होइगा
लागति बुद्धी का म्वाट आय
बिटिया हमारि सब ते पियारि
वह तो लाखन माँ याक आय
दुई साल ते लरिका देखि रहेन
ढूँढ़ति ढूँढ़ति जिउ हलेकान
भइया हम तो खेतिहर किसान

अब तीन पांच हम का जानी
भइया हम तो खेतिहर किसान !!

अकिल म पाथर परिगे रहैं
जो मेला ते हम भैंसि लाएन
ब्वाझन करबी वह खाति रोजु
पर याकौ बार न वह बियान
चाहे वह थ्वारै दूधु देति
वहि ते अच्छी गईया हमारि
वहि कै महतारी लाय रहैं
काफी दिन भे बप्पा हमार
लागति है नाखावरि चली अबे
गइया अबकी बछिया बियान
भइया हम तो खेतिहर किसान

अब तीन पांच हम का जानी
भइया हम तो खेतिहर किसान !!

कचेहरी के चक्कर काटि काटि
होईगै हमारि हालत खराब
परधान ते मिलि भैवा हमार
बनवाईसि झूठी इन्तखाब
बिलरेवा दूधु गिराय दिहिसि
सुबहै ते चाय क तरसि रहेन
बेमतलब की बातन मा
हम घरवाली पर बरसि रहेन
अम्मा नब्बे के आस पास
दुई महिना ते खटिया पर हैं
दुई दिन ते अब जिउ बूड़ि रहा
जानै कहां अटके परान
भइया हम तो खेतिहर किसान

अब तीन पांच हम का जानी
भइया हम तो खेतिहर किसान!!
  


सम्पर्क – 

डॉ. प्रदीप शुक्ल (डॉ. पी. के. शुक्ला)

गंगा चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल

N. H. – 1, सेक्टर – डी, 
LDA कॉलोनी, कानपुर रोड, लखनऊ –226012



फ़ोन –0522 – 4004026, 2431122,  
मोबाइल –09415029713

ई-मेल – drpradeepkshukla@gmail.com

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 17 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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