रोहित ठाकुर की कविताएँ
रोहित ठाकुर |
रोहित ठाकुर
जन्म तिथि - 06/12/ 1978
शैक्षणिक योग्यता - परा-स्नातक राजनीति विज्ञान
विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं हंस, आजकल, वागर्थ, इन्द्रप्रस्थ भारती, बया, दोआब, परिकथा, मधुमती, तद्भव, आदि में कविताएँ प्रकाशित।
मराठी, पंजाबी में कविताओं का अनुवाद प्रकाशित।
कविता कोश , भारत कोश तथा लगभग 40 ब्लॉगों
पर कविताएँ प्रकाशित।
हिन्दुस्तान, प्रभात खबर, अमर
उजाला आदि समाचार पत्रों में कविताएँ प्रकाशित।
वृत्ति - शिक्षक
रूचि
- हिन्दी-अंग्रेजी साहित्य अध्ययन
प्रकृति से कवि का संबंध चोली-दामन
जैसा होता है। दुनिया का शायद ही कोई रचनाकार हो जिसकी रचनाओं से प्रकृति नदारद हो। हमारी प्रकृति वह वास्तविक यथार्थ होती है जिसमें हम सभी अपना जीवन गुजारते हैं। प्रकृति की गोद में ही हम सब जनमते और अन्ततः एकाकार हो जाते हैं। दुनिया की सभी प्राचीनतम सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही पुष्पित पल्लवित हुईं। वस्तुतः नदी प्रकृति की ऐसी ही उम्दा रचना है जिसके संग हो कर हर व्यक्ति रहना-बहना चाहता है। नदी के संग प्रकृति का चितेरा कवि भी लहरों की तरह, धार की तरह स्वतंत्र बहना चाहता है।
इसे हम यूँ भी कह सकते हैं कि दुनिया के हर
व्यक्ति के अन्दर एक नदी बहा करती है। हर कवि की कविता में नदी अपनी तरह से आती है। नरेश सक्सेना की कविता में नदी के लिए उल्लिखित पंक्तियाँ हैं 'पुल पार करने से नदी
पार नहीं होती/ नदी को नहीं जाना जा सकता नदी
में धँसे बिना।' रोहित ठाकुर युवा कवि हैं। वे नदी को कुछ अपने ही अंदाज़ और
समय में देखते और व्यक्त करते हैं। रोहित का समय उस आपाधापी का समय है
जिसमें नदी को जानने के लिए उसके उद्गम स्थल तक जाना जरूरी नहीं बल्कि
स्वयं कवि के शब्दों में कहें तो 'सड़क पर और किसी गली में/ नदी की तरह बहा जा सकता है/ नदी की जिजीविषा ले कर।' आज पहली बार पर प्रस्तुत है युवा कवि रोहित ठाकुर की नदी श्रृंखला की कुछ कविताएँ।
रोहित ठाकुर की कविताएँ
नदी - 1
नदी को देखना
नदी को जानना नहीं है
नदी को छूना
नदी को पाना नहीं है
नदी के साथ संवाद
नदी की तरह भींगना नहीं
है
नदी की तरह होने के लिए
नदी के उद्गम स्थल तक
पहुंचना नहीं है
सड़क पर और किसी गली में
नदी की तरह बहा जा सकता
है
नदी
की जिजीविषा ले कर।।
नदी - 2
नदी सो रही है
रेत पर
भींगती हुई
खाली पाँव
वह मजदूर लड़की
भी एक नदी है
खेत में खोई है
भींग रही है ओस से
एक भींगती हुई नदी
एक भींगती हुई लड़की
हमशक्ल हैं
हँसती हुई वह लड़की
इस समय
एक बहती हुई नदी है।।
नदी - 3
पिता ने कहा था
अपने कठिन दिनों में
कुछ मांगना नहीं
बिलकुल नदी की तरह
नदी और तुम दोनों
एक ही गोत्र के हो
तब से मैंने शामिल किया
नदी को अपने जीवन में
और बाँटता रहा
उसके साथ अपना लेमनचूस
पर नदी के स्वाद को नहीं
जान सका
मैं जी लूंगा ऐसे संशय
के साथ
नदी ने मेरे अंदर नहीं भरी
रेत
इस बात को ले कर
आश्वस्त हूँ
रेत न होना नदी होना है
पिता ने कहा एक दिन।।
नदी - 4
वह नदी चाँद पर बहती है
किसी खाई में
वह नदी
धरती पर बहने वाली
किसी पठारी नदी की जुड़वा
है
वह पठारी नदी जब
गर्मियों में हाँफती है
वह नदी जो चाँद पर बहती
है
उसकी आँखों से झड़ते है
आँसू
और तारे टूटते हैं
मैं तारों को टूटते
देखता हूँ
तारों का टूटना
दो नदी का मिलना है
मेरी कविता में
नदी ऐसे ही मिलती है
जब नदी मिलती है
उसकी वनस्पतियों का रंग
अधिक
हरा हो जाता है
यहीं से लेता हूँ मैं
हरापन
उन लोगों के लिये
उस पेड़ के लिये
जहाँ फैल रहा है
पीलापन।।
नदी - 5
नदी पानी की एक चादर है
जिसे ओढ़ लिया करती है
असंख्य मछलियाँ
नदी कभी लौटती नहीं है
नदी के पांव किसी ने
देखा नहीं है
मेरे मुहल्ले की एक
लड़की
नदी में पांव डाल कर
घंटो बैठती थी
उसके पैर कमल के फूल हो
गये
बारिश से भींगी नदी
इस धरती की पहली लड़की
है
जिसके हाथ बहुत ठंडे थे
नदी का बचना
उस ठंडे हाथ वाली लड़की
का बचना
मुश्किल है इन दिनों
नदी - 6
पुरुष का अँधेरापन
कम करती है औरत
औरत के अँधेरेपन को
कम करता है पेड़
पेड़ के अँधेरेपन को
कम करती है आकाशगंगा
तारों का जो अँधेरापन है
उसे सोख लेती है नदी
नदी के अँधेरे को
मछली अपने आँख में टाँक
लेती है
इस तरह यह विश्वास बना
रहता है
अँधेरे के ख़िलाफ़
एक नदी बहती है
नदी - 7
वह शहर
जिसने नदी की हत्या की
है
हताश है
उसकी नींद पत्थर में बदल
गयी है
एक मरी हुई नदी को जलाया
नहीं जाता
वह शहर अभिशप्त है
जो मरी हुई नदी के साथ
जीता है
नदी की हत्या करने के
बाद
वह शहर
मनुष्यों की हत्या करता
है
नदी - 8
चाँद घुल रहा है नदी में
समय अपना पाप
नदी में धोता है
यही नदी का सौंदर्य है
नदी गतिमान है उस समय
जब जड़ हो चुकी है
संभावनाएँ
जब सभी आत्माएँ आकाशगंगा
की ओर ताक रही है
नदी पलायन के खिलाफ
अपनी देह को अधिक
धंसा रही है इसी घरती
में।।
नदी - 9
क्यूल नदी मर रही है
उसके नब्ज में
कीचड़ भर गई है
वह शहर
लखीसराय
जिसके बाल सुनहले थे
क्यूल नदी की सुनहरी रेत
में कभी भींगते थे
एक सूखती हुई नदी
एक धंसते हुए शहर
का संघर्ष
पठार और पहाड़ जानते हैं
बहरहाल बहुत दूर
एक शहर दावोस
जिसकी जीभ पर बर्फ जमी
है
दार्शनिक की मुद्रा में
चुप-चाप बैठा है
तमतमाये चेहरों
और जाड़े की रात जैसी
लम्बे संवाद से
शहर की बर्फ पिघल रही है
दावोस की कार्य सूची में
क्यूल नदी के लिए
उस शहर की पिघलती
बर्फ नहीं है
क्यूल नदी की सुनहरी रेत
शहर दावोस के
बालों के लिए नहीं है
सुनो वह शहर दावोस
हाँफ रहा है लोगों की
भीड़ से
एक क्यूल नदी मर रही है
असमय
दुनिया की संवाद से
बाहर।।
सम्पर्क
C/O – श्री अरुण
कुमार, सौदागर पथ,
काली
मंदिर रोड, हनुमान
नगर, कंकड़बाग़,
पटना, बिहार,
पिन कोड -
800026
मोबाइल
नंबर- 6200439764
बहुत अच्छी कविताएं मित्र। संतोष सर को भी आभार।
जवाब देंहटाएंवाह !बेहतरीन संग्रह👌👌
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचनाएं
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