राहुल राजेश की कविताएँ
राहुल राजेश |
राहुल राजेश की कविताएँ
पढ़ते हुए किसी महत्वपूर्ण विचारक का एक कथन याद आ रहा है कि 'एक कवि की
हैसियत से प्रौढ़ होने का अर्थ है अपने समूचे वेदन तन्त्र के साथ अपनी
त्रिआयामी मनुष्यता की समग्रता में परिपक्व होना।' आज कवि कर्म कठिन इसीलिए
माना जाता है कि यहाँ वही आवाज उठानी है जो समय सत्य के प्रतिमानों पर खरा
उतरे। राहुल राजेश हिन्दी कविता में चर्चित नाम है। जीवन की त्रिविमियता
इनकी कविताओं में स्पष्ट दिखायी पड़ती है। इनकी कविताएँ आप पूर्व में भी
पहली बार ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं। आज पहली बार पर प्रस्तुत है राहुल राजेश की
कविताएँ।
राहुल राजेश की कविताएँ
इंतजार
यहाँ कोई जगह
ख़ाली नहीं रहती
लोग इंतजार में होते हैं
कि कब कोई जगह ख़ाली हो
और उनकी बारी आए
यह कोई रैन बसेरा नहीं
कवियों का मंच है !
साहस
सच बोलना
सच सुनना
सच स्वीकारना
सच के साथ खड़ा होना
सबके बूते की बात नहीं
इसके लिए चाहिए
सात पुश्तों की ताकत
और सबकुछ खो देने का
साहस भी।
दुनियादारी
मैंने तो हरदम यही माना-
जुबान बिगड़े तो बिगड़े
ईमान न बिगड़े
ज़रूरत आन ही पड़े तो
जुबान बिगाड़ने का हक है हमें
ईमान बिगाड़ने का कतई नहीं
लेकिन लोग इतने दुनियादार हैं कि
ईमान बिगड़े तो बिगड़े
अपनी जुबान नहीं बिगाड़ते!
नहीं
यह महज संयोग नहीं
कि मैं किसी सूची में
शामिल नहीं
चूँकि मैंने उनकी शर्तें
मानी नहीं
उनके पास और कोई
चारा नहीं !!
पाठ
मजूर हाथ में प्लेट लिए
कतार में खड़े हैं
और यूनियन के लीडरान
बैठे हैं टेबल पर
और परोसने वाले
खड़े हैं उनके सामने
कि प्लेट में कुछ भी
कम न हो
समता का यह
आरंभिक पाठ
मैं भूल नहीं पाता कभी
मालिक
मालिक होता है
मजूर नहीं
जान गया था तभी!
अराजकता
पहले
विचारों में आती है
फिर आचरण में
अराजकता अक्सर
आह्वान की शक्ल में आती है
और पूरे देश में
फैल जाती है।
पोस्टर
सरकंडे की कूची से
लिखते हैं सुंदर लिखावट में
चाँद-तारे टाँकते हैं
सजावट में
चाँद के चंद्रबिंदु में
बिंदी लाल रंग में चमकती है
क्रांति की बिंदी भी
लाल हो कर लहकती है
आजू-बाजू से
मुट्ठी बाँध तने हाथ
लहराते हैं ऐसे
मानो अभी पकड़ लेंगे
जुल्म करने वालों के गिरेबान
गोली दागो पोस्टर
कविता है या
पोस्टर ही कविता है
तय नहीं हुआ है अभी
लेकिन तख्तियाँ लेकर
निकल पड़े हैं सभी!
किसने ?
किसने फैलाया
यह झूठ
कि जो लिख रहे हैं प्रेम कविताएँ
इस बुरे वक़्त में भी
वे कवि नहीं
किसने रटाया
सबको यह आधा-अधूरा वाक्य
मूल संदर्भ से काटकर
कि धर्म अफीम है
किसने भरमाया उनको
कि स्त्री विमर्श का मतलब
देह विमर्श है !
किसने बदल दिया
जल जंगल जमीन की
जमीनी पुकार को
महज नारों में
किसने खींच लिया
अपना हाथ चुपके से
हँसिया और हथौड़े से
और मिला लिया
उनसे हाथ चोर दरवाजे से !
किसने तय कर दिया
जो इधर हैं, वही सही हैं
जो उधर हैं, आदमी नहीं हैं
किसने गढ़ दी यह
निकम्मी परिभाषा
कि कवि का काम
बस विरोध करना है
किसने चुन लिया
सुविधाजनक प्रतिपक्ष
और मान ली
अपने कर्तव्यों की इतिश्री !
किसने डाल दिया
अपनी ही विचारधारा की
जड़ों में मट्ठा
और खुद मलाई मार ली!
किसने किसने
किसने किया यह सब?
पहचानो पहचानो
पहचानो उन्हें
कि अब देर करने का वक़्त नहीं है !!
अप्रासंगिक
जो लोग
समय-समय पर
नहीं करते
आत्मनिरीक्षण
अपने कहे
और किये का
वे लोग
आततायियों से पहले
हो जाते हैं
अप्रासंगिक।
जुबान
कलकत्ता बोलने में
वो बात कहाँ आ पाती थी
जो बात थी
उनके बोलने में कैलकटा!
जो बात वे
कैलकटा बोलकर जता देते थे
कलकत्ता बोलकर
कहाँ जता पाते थे हम ?
इस दुनिया में
सारा खेल जुबान का ही है
ईमान को तो खामखां
घसीट लिया जाता है सा'ब!
झुकना
न झुकना
गुरूत्वाकर्षण के विरुद्ध नहीं है
फलदार होकर झुकना
और बात है
फल की इच्छा में
झुक जाना और बात !
ईश्वर ने गर्दन दी है
सिर ऊँचा करने के लिए
और रीढ़
तनकर खड़ा होने के लिए
लेकिन कुछ लोग हैं
कि झुकते-झुकते
रीढ़ को धनुष बना लेते हैं
और एक दिन
सिर गर्दन से
गायब हो जाता है!
जमीन से उठे लोग
जमीन से उठे लोग
जब एलीट हो जाते हैं
अक्सर हवाई यात्राओं में
अपना वक़्त बिताते हैं
और अमूमन
हवा-हवाई हो जाते हैं !
बहुत बहुत कम बचते हैं ऐसे
जिनके पाँव जमीन पर उतरते
नहीं लड़खड़ाते हैं !!
धर्मांतरण
जब वे
इस तरफ थे
अमीरों को खूब गाली देते थे
जब से
उस तरफ गए हैं
गरीबों को
गाली देना शुरू कर दिया है
गरीबों को दूर किए बिना
भला गरीबी दूर होगी कैसे !
हकीकत
एसी प्लांट चलाने वाले
एसी में नहीं बैठते
बिल्डिंग बनाने वाले
बिल्डिंग में नहीं रहते
कार रिपेयर करने वाले
कार में नहीं चलते
हवाई जहाज पार्क कराने वाले
हवाई जहाज में नहीं उड़ते
यह सच है लेकिन
यह भी उतना ही सच है
कि इनसे उनके हाथ को काम
और काम को दाम मिलता है
हर हाथ को काम भले न दे पाएँ
लेकिन लाखों हाथों को काम देने में
इनका भी हाथ है
हम इस हकीकत से भी
मुँह नहीं मोड़ सकते !
आश्वस्त
मानो न मानो
इस वक़्त
विपक्ष बना हुआ है
सबसे अधिक
मौकापरस्त
और सत्ता पक्ष
सर्वाधिक संशयग्रस्त
इस खेल में
सिर्फ़ और सिर्फ़
वही लोग आश्वस्त हैं
जिनकी माँग
हरदम बनी रहेगी
दोनों तरफ !!
संपर्क
J-2/406, रिज़र्व
बैंक अधिकारी आवास,
गोकुलधाम, गोरेगाँव (पूर्व),
मुंबई-400063.
मो.
9429608159,
सुन्दर कविताएँ
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16.4.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3673 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
Ganesh Pandey
जवाब देंहटाएंयह कवि दिल्ली के युवा कवियों से अधिक मज़बूत है। इस कवि की कविताएं न तो बनावटी हैं, न साहित्य के मठाधीशों को प्रसन्न करने के लिए। कवि कविता में अपना जीवन लिखता है, संघर्ष लिखता है। पहली नज़र में कुछ ही रोज़ पहले समालोचन में कविताएं देखकर जान गया था। मैंने वहां लिखा भी, "इस कवि की कविताएं देखकर हैरान हूं कि क्यों नहीं जानता था। राहुल राजेश की ये कविताएं, मेरे लिए एक आईने की तरह हैं, जिसमें एक तरफ़ मैं दिखता हूं, दूसरी तरफ़ कविता के मशहूर संगतकार और उन जैसे तमाम सहायक संगतकारों की मंडलियां। मैं समझता रहा हूं आज की कविता में सिर्फ़ मैं ही उद्धाहु कवि हूं, मेरे बाद की पीढ़ी के हाथ बंधे हुए हैं, लेकिन मुझे ख़ुशी है कि मेरा सोचना ग़लत साबित हुआ। इन कविताओं में जिस राहुल राजेश को देख रहा हूं, उसकी आवाज़ में वही दृढ़ता है, उसी तरह हाथ उठा हुआ है, उसी तरह मुट्ठियां भिंची हुई हैं। शाबाश, राहुल! कविता के ये छोटे-छोटे बाण, दूर तक और निशाने पर जाएंगे। जो साहित्य का सच नहीं कह पाएगा, वह दुनिया का सच ख़ाक कहेगा। उसकी आवाज़ लड़खड़ा जाएगी, उसके पैर कांप उठेंगे। राहुल की ये कविताएं तराशे हुए हीरे की तरह सहृदय पाठक के हृदय की अंगूठी में आहिस्ता-आहिस्ता बैठती चली जाती हैं।" पहलीबार ब्लॉग की कविताएं कवि के बारे में मेरी धारणा को पुष्ट करती हैं।
Pankaj Chaudhary
जवाब देंहटाएंराहुल राजेश की कविताएं हिंदी पट्टी की वामपंथी राजनीति और साहित्य के पाखंड को खंड-खंड करती हैं। राहुल को इस बात की परवाह नहीं है कि उनके इस तेवर ने उनका कितना नुकसान किया है। नुकसान तो उनका वैसे भी होता, क्योंकि साहित्य की सत्ता तथाकथित वामपंथियों के पास ही है। खैर। राहुल में सच कहने का साहस है। वह आपको आईना दिखा सकते हैं। लेकिन कुछ जगहों पर राहुल ब्लंडर करते हैं। ब्लंडर वह तब करते हैं जब सत्ता और राज्य की जनविरोधी नीतियों को वह प्रो पीपुल बताने लगते हैं। हो सकता है ऐसा उनसे अनजाने में हो जाता हो। लेकिन जब यह बार-बार होने लगे, तब संदेह का उत्पन्न होना अस्वाभाविक नहीं है। राहुल से बेहतर इस बात को भला कौन जानता होगा कि कवि-लेखक अंतत: सत्ता विरोधी होते हैं और गांधीजी के शब्दों में कहें तो ‘’अंतिम जन’’ के पक्षधर होते हैं। रचनाकार सत्ता विरोधी इसलिए होते हैं ताकि सत्ता को बार-बार इस बात का अहसास कराया जाए कि वह जनता के अधिकतम हितों को नहीं भूलें। दरअसल रचनाकार चौकीदार होते हैं। वे सायरन बजाने का काम करते हैं। खैर। राहुल को बहुत-बहुत बधाई। इतनी बेहतरीन कविताओं को पढवाने के लिए।
Rahul Rajesh Pankaj Chaudhary इस विस्तृत टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार पंकज भाय। आपने जिस ओर सचेत किया है, उस ओर मैं सतर्क हूँ। पुनः सचेत करने का पुनः आभार। हाँ, मैं विरोध और अंधविरोध के बीच के बारीक फर्क को खूब अच्छी तरह समझता हूँ। "किसने?" शीर्षक कविता में पंक्तियाँ हैं-
हटाएं"किसने गढ़ दी यह
निकम्मी परिभाषा
कि कवि का काम
बस विरोध करना है
किसने चुन लिया
सुविधाजनक प्रतिपक्ष
और मान ली
अपने कर्तव्यों की इतिश्री !
किसने डाल दिया
अपनी ही विचारधारा की
जड़ों में मट्ठा
और खुद मलाई मार ली !"
आप मेरी कविताओं के एक सजग पाठक हैं और आप जैसे अनेक सुधी पाठकों की प्रचुर, उत्साहवर्धक और बेबाक प्रतिक्रियाओं से मुझे सदैव बहुत बल मिला है। कृपया इसी तरह बेबाक टिप्पणी करते रहें। पुनः हृदय से आभार।।
Jitendra Dheer
जवाब देंहटाएंकवि राहुल राजेश कोलकाता में बेचू की चाय दुकान पर पहली बार मिले थे।कविमित्र राज्यवर्धन, ऋषिकेश राय भी साथ थे। चाय पीते, सिगरेट पीते ढ़ेर सारी बातें हुई थीं। मिलने जुलने का यह क्रम बना रहा जब तक वे कोलकाता में रहे। बातचीत में बेबाक, अपनी बात पर दृढ़, और हंसमुख स्वभाव के हैं। इनकी कविताओं का पाठक हूं। कविताएं इनके मिज़ाज से अलग नहीं हैं, बनावटी तो कतई नहीं हैं।
रचनाकर्म की यह निरंतरता यथावत रहे यही कामना है.......
Premshankar Shukla राहुल अपने सच्चे तेवर में। सच्चाई और अच्छाई की बरतरफी करती कविताएँ। भाषा के जाल में नहीं भाषा के जल में रहते हैं राहुल और आत्मा की आवाज़ का अपनी कविताओं में उच्चारण नहीं भूलते हैं। बेहतरीन। बधाइयां
जवाब देंहटाएंHare Ram Pathak
जवाब देंहटाएंसार्थक, मार्मिक और और आवाज उठाने को प्रेरित करती कविता। पर गायब हो जाती है कौन सी चीज़ ? निश्चय ही-सिर।
Awanish Yadav बहुत सुंदर रचनाएं, खासकर झुकना , अप्रासंगिक, और पाठ शीर्षक कविता |
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