रश्मि भारद्वाज का आलेख 'स्मार्टफोन ने बनायी एक स्मार्ट पीढ़ी'
दुनिया को आमूलचूल बदलने में जिन कुछ आविष्कारों की महत्वपूर्ण भूमिका
है उनमें मोबाइल प्रमुख है। 'कर लो दुनिया मुट्ठी में' का नारा वाकई इसके लिए सटीक बैठता
है। आज यह सोच कर रूह काँप जाती है कि मोबाइल न हो तो फिर जिन्दगी कैसी होगी। हर
समय अपडेट रहने और दुनिया को जानने की धुन ने वह अमन चैन छीन लिया है, जो कभी मनुष्यता की पूँजी हुआ करती थी। मोबाइल पीढ़ी
किताबें देखने पढ़ने में कम, मोबाइल में अधिक विश्वास करती है। इस मोबाइल
ने जहाँ कई एक सुविधाएं प्रदान की हैं वहीं कई तरह की दुश्वारियों को भी जन्म दिया
है। इसने जीवन को अल्पकालिक ढंग से सोचने, और स्पष्ट भाषा में कहें तो असुरक्षित कर दिया है। इस
मोबाइल पीढ़ी पर एक आलेख लिखा है कवयित्री
रश्मि भारद्वाज ने। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं रश्मि भारद्वाज का
आलेख 'स्मार्टफोन ने बनायी एक स्मार्ट पीढ़ी'।
मोबाइल जेनरेशन
स्मार्टफोन ने बनाई एक स्मार्ट पीढ़ी!
रश्मि भारद्वाज
हर सदी अपने साथ परिवर्तन का आगाज़ लाती है। इक्कीसवीं
सदी की सबसे बड़ी देन जिसने सिर्फ़ हमारे जीवन को ही नहीं बल्कि एक पूरी
पीढ़ी के व्यक्तित्व को ही पूरी तरह बदल डाला, वह मोबाइल का अविष्कार है। याद आता
है, वह समय जब पढ़ाई के लिए घर से दूर महानगर की शरण
में आना पड़ा था। घर वालों को अपनी ख़ैरियत बताने और उनकी ख़ैरियत जानने का
एकमात्र ज़रिया एक बेडौल सा काला हैंडसेट ही हुआ करता था। जेब-ख़र्च के पैसे सीमित थे और इनकमिंग
के भी पैसे लग जाते थे तो सिर्फ़ फोन करने में ही नहीं, फोन उठाने में भी सावधानी बरती
जाती थी। लंबी बातों का तो सवाल ही नहीं
उठता था।
फिर आया रिलायंस का धमाका, बहुत कम पैसों में हैंडसेट, इनकमिंग-आउट गोइंग सब मुफ़्त। हर हाथ में मोबाइल, सड़क पर, घर में, छत पर, दफ़्तर में, सोते-जागते हर
कोई हर कहीं मोबाइल पर मोबाइल।
स्मार्ट फोन के आते ही फोन ही नहीं ज़िन्दगी भी स्मार्ट
हो गई है। सारी दुनिया बस एक क्लिक, एक बीप के माध्यम से फोन स्क्रीन पर सिमट गयी है। कहीं
भी किसी से भी संवाद क़ायम करना, दुनिया के किसी भी कोने से कोई मनचाही चीज़ मंगवाना, पढ़ाई, संगीत, बैंकिंग, रोजमर्रा के काम, स्मार्टफोन ने सब कुछ संभाल लिया है।
एक पूरी स्मार्ट पीढ़ी पिछले बीस सालों में
तैयार हो गयी है, जो वाक़ई स्मार्ट है, तेज़ गति से भागती है, दुनिया जिसके हाथों की ज़द में है।
यह पीढ़ी मोबाइल की नींद सोती-जागती है और स्वप्न भी उसी के दिखाए रंगों
में देखती है। इस पीढ़ी का
हँसना रोना, उठना बैठना, खाना पीना सब मोबाइल की 8 इंच की स्क्रीन ही तय करती है। स्मार्टफोन अब नया
ईश्वर है जिसने एक पूरी नयी स्मार्ट पीढ़ी गढ़ी है जो इतनी स्मार्ट है कि पलक
झपकने की देरी में रिश्ते बना और तोड़ सकती है। यह नयी पीढ़ी अब इश्क़ वाला लव करती और ब्रेकअप का
भी जश्न मनाते हुए सोशल मीडिया पर तस्वीरें अपलोड करती है। इस मोबाइल पीढ़ी की शब्दावली भी एकदम नयी है जो इनकी गति के साथ क़दमताल
करने के लिए विशेष तौर पर रची गयी है। यहाँ 'हूक अप' है, तो 'वन नाइट स्टैंड' भी, यहाँ 'ओपन रिलेशनशिप' है तो 'पार्टनर स्वैपिंग' का शग़ल भी।
इस नई पीढ़ी को दिखाने की होड़ है। इसे अपने जीवन को हर पल
सोशल मीडिया पर प्रदर्शित करते रहना है फिर वह सुबह के नाश्ते से ले कर रात के खाने जैसी रोज़मर्रा की चीज़ हो या कि कोई उपलब्धि। यहाँ तक कि शव के साथ
खड़े हो कर सेल्फ़ी खींचने जैसी ह्रदयहीनता भी इस पीढ़ी के लिए एकदम
सामान्य सी बात है। कपड़ों, गहनों, गाड़ियों के साथ दोस्त, जीवन-साथी और प्रेमी भी प्रर्दशन
की चीज़ है। रिश्ता अब बस एक स्टेटस अपडेट रह गया है। जितनी आसानी से
स्टेटस को डिलीट किया जा सकता है, बस उतनी ही देर में और उतनी ही आसानी से एक रिश्ते को
भी ख़त्म किया जा सकता है।
स्मार्टफोन ने जीवन को तो सुगम बना दिया लेकिन
रिश्तों की संजीदगी, उसकी गरिमा, आपसी विश्वास और स्नेह को नष्ट कर दिया। आज की इस मोबाइल जेनरेशन के
पास सब कुछ है, एक क्लिक भर की देर से उन्हें उनका मनपसंद साथी मिल जाता है
लेकिन कुछ अगर नहीं है तो वह है स्थायित्व। ढेरों ऐसे डेटिंग साइट्स हैं जो दूरी और
पसंद के हिसाब से पल भर में हसीन, दिलकश चेहरों से मैचमेकिंग करा देते हैं। अब कसमें
वादे निभाने, उम्र भर के साथ की दुआ करने और
विरह में रिश्तों को मज़बूत करने का समय और धैर्य किसके पास है जब क्षण भर में उनके
दिन को ख़ुशनुमा और रात को उत्तेजक बनाने के लिए बिना शर्त कोई तैयार बैठा है। संदेश
भेजिए, उसके शरीर का माप और गठन देखिए, मिलने का ठिकाना तय कीजिए और
ज़िन्दगी का भरपूर मज़ा लूटिए का राग आलापने वाली इस पीढ़ी का धर्म सिर्फ़ रोमांच और
मनोरंजन है। यहाँ लहक है, आग है, बेक़ाबू जोश है, लहकना है, दहकना है, तड़पना है और बुझ जाना है। प्रेम की धीमी-धीमी आँच पर तपने
सिकने और खरे सोने से दमकते रिश्ते को पाने की न चाहत है, न शऊर। फेसबुक, टिंडर, इंस्टाग्राम, ओके क्यूपिड जैसे सोशल मीडिया ठिकाने दिलों की
दूरियाँ कम कर रहे या दरअसल दिलों में स्थायी दूरियाँ या गिरहें बनाने का काम कर
रहे, यह अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है।
रोमांच और मस्ती के पीछे आँख मूँद कर लेकिन मोबाइल को मज़बूती
से थाम कर भाग रही इस पीढ़ी का दोष दरअसल उतना नहीं, जितना कि हमारी तेज़ी से बदल गयी
मध्यम और उच्चमध्यम वर्गीय जीवनशैली का है।
शहरों, महानगरों में एकल परिवार और माता पिता
दोनों के नौकरीपेशा होने की स्थिति में मोबाइल ही बच्चों का एकमात्र पूरे दिन का
साथी रह जाता है। कुछ-कुछ 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव' वाली स्थिति बन जाती है। मोबाइल ही
शिक्षक, मोबाइल ही एकमात्र दोस्त, वही रक्षक। एक असल दुनिया के
दरवाज़े धीरे धीरे उनके लिए
बंद होने लगते हैं और आभासी दुनिया का ग्लैमर, उसकी तड़क भड़क ही वास्तविक लगने लगती है। यह कैसी
विडंबना है कि अपने पड़ोसी के दुःख सुख में भागीदार बनने का समय नहीं बचा। अपने
फ्लोर पर रह रहे पड़ोसी का नाम भी शायद ही पता हो लेकिन देश या दुनिया के
सूदूर कोने में बैठे आभासी मित्र की रसोई में आज क्या पका है या उसने आज कौन
सी नयी पोशाक पहननी है, यह ज्ञात
है।
सबसे ज़्यादा भयावह और चिंतनीय स्थिति है आपसी रिश्तों से
विश्वास का ख़त्म हो जाना। सोशल मीडिया ने पुराने, बिछड़े दोस्तों से हमें मिलाया, नए और दिलचस्प लोगों से मिलवाया, सूचना, ज्ञान और मनोरंजन का पूरा संसार ही
हमारे सामने रख दिया लेकिन अपने ही सबसे क़रीबी दोस्त या जीवनसाथी के लिए हमारे मन
में संदेह के बीज बो दिए। बदलते
पासवर्ड के साथ संदेह गाढ़ा होता गया और रिश्ते कमज़ोर। यही वजह है कि यह मोबाइल
पीढ़ी व्यक्तिगत जीवन में अवसाद, निराशा आदि का शिकार हो कर ड्रग्स, शराब आदि की शरण में सुकून खोजने
लगी है या फिर आत्महत्या जैसा अतिरेकी क़दम उठा रही है। घर और परिवार जो एक व्यक्ति
को मानसिक भरोसा और आश्रय देते थे, संदेह की आग में झुलसते जा रहे हैं और युवा एकाकी और असहाय होते जा रहे हैं।
एक सीमा के बाद जिस रोमांच और क्षणिक आनंद के पीछे वह
भाग रहे थे, वह मृगतृष्णा साबित होता है और उनके हाथ में कुछ भी शेष नहीं रहता - न रिश्ते, न स्नेह, न गरिमा, न विश्वास। एक अंधकारमय भविष्य
उन्हें निगलने को आतुर नज़र आता पीछे छूट जाता है।
जीवन आगे बढ़ने, नयी ऊंचाइयों को छूने का नाम है पर नयी पीढ़ी जिस तरह
से अपने ही अवसाद और असुरक्षा के बीच घिरी जा रही है, उसे देखते हुए कभी कभी यही महसूस होता
है कि वह काले रिसीवर और लंबे तारों वाला पुराना 'आलसी' लैंडलाइन फोन ही ठीक था, जो जोड़ता चाहे कितना भी हो, कम से कम तोड़ता तो नहीं था। जिसकी
ट्रिन-ट्रिन कर्कश भले ही हो, मन में प्रेम, प्रतीक्षा और उम्मीद जगाती थी, अविश्वास नहीं। आज की पीढ़ी के पास
सब कुछ उपलब्ध है लेकिन प्रतीक्षा का वह सुख उससे छिन गया है जो दो ह्रदयों को जोड़ता था और हमेशा के लिए एक अटूट बंधन में बांध
जाता था।
अब जब सब कुछ आसानी से उपलब्ध हो जा रहा तो प्रतीक्षा
के सुख की जगह बोरियत ने ले ली है। हर उपलब्ध चीज़ और रिश्ते से आज का युवा
जल्द ही ऊब जाता है और उसे हर समय किसी नए रोमांच, किसी नयी उत्तेजना की तलाश रहती है, लेकिन हर नयी चीज़, हर रिश्ता अपने आने के साथ ही अपनी
एक्सपायरी डेट भी घोषित करता हुआ आता है। हर नया रोमांच अंततः बासी पड़ जाता है और
स्थायित्व की खोज बस एक दुःस्वप्न भर रह जाती है। यह ऊब, यह बोरियत इस मोबाइल पीढ़ी को नए नए
प्रयोग करने के लिए उकसाती रहती है। नतीज़न
शादी से ले कर तलाक़ और हर वह क्षण जो जीवन में ख़ास हो सकता था, बस प्रदर्शन मात्र की चीज़ बन कर रह
गया है। इंस्टेंट नूडल की तर्ज़ पर यह इंस्टेंट रिश्ता और इंस्टेंट ब्रेकअप ही आज
के युवाओं का कटु सत्य बन कर रह गया है जिसका
परिणाम है अंततः घोर निराशा और भीड़ में भी एकाकी छूट जाने की नियति। जब
जीवन का सारा उद्देश्य लाइक और कमेंट एवं आभासी मित्रों, अनुनायियों के इर्द गिर्द घूमने
लगे तो जीवन भी उतना ही छिछला और भयावह हो उठता है। हालिया दिनों में यह भी
देखने आया कि आत्महत्या की लाइव रिकॉर्डिंग के साथ साथ किसी की जघन्य हत्या
की सूचना भी सोशल साइट्स पर
शेयर की जा रही और हम सब मूक दर्शक बने देखते रहे हैं। भयंकर दुर्घटना के बाद कोई अपनी अंतिम
साँसों के लिए लड़ रहा है और उसे बचाने की जगह उसका वीडियो बना कर वायरल करने
के तरीक़े खोजे जा रहे हैं। अपनी ही मित्र को धोखा दे कर उसके निजी पलों के एमएमस
बना दुनिया तक पहुँचाया जा रहा और उसे आत्महत्या के कगार पर छोड़ दिया जा रहा है।
संवेदनहीनता की हद यह कि किसी कमज़ोर मित्र की शारीरिक या मानसिक अक्षमता को भी 'वायरल' कर जीवन मे हँस सकने के बहाने गढ़े जा रहे हैं। यह इंसान के
रूप में हमारे चूकते जाने की भयावह निशानियां हैं।
युवाओं के लिए उनके लोकप्रिय होने का
प्रमाणपत्र हैं यह सोशल नेटवर्क। जिसके जितने मित्र और चाहने वाले, वह उतना प्रसिद्ध। अब यह बात महंगे
मोबाइल के प्रदर्शन से काफ़ी आगे का सच बयां करती
है। युवाओं ने अपनी ज़िंदगी, अपना अस्तित्व, अपने जीवन-मूल्य सब कुछ मोबाइल के
स्क्रीन की गिरफ़्त में छोड़ दिया है। मोबाइल के अंदर बैठा बाज़ार का दैत्य उन्हें
कठपुतलियों की तरह नचा रहा है और जब चाहे निगल भी सकता है। स्मार्टफोन की यह तकनीक
जीवन को आसान बनाने के लिए ईज़ाद की गई थी लेकिन इसने नयी पीढ़ी के जीवन को
बेहद जटिल, बेहद बोझिल, असंतुलित और असुरक्षित कर दिया है।
इससे पहले कि मोबाइल के बहाने हमारे घरों, हमारे दिलों में दख़ल दे चुका यह
स्मार्ट दैत्य हमारी समस्त
संवेदनशीलता, हमारी सभी कोमल भावनाओं और
इंसानियत को लील जाए, उससे बचने
के स्मार्ट तरीक़े खोजने ही होंगे।
(कादम्बिनी से साभार।)
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