ललन चतुर्वेदी का व्यंग्य कुत्ते बंध्याकरण के खिलाफ हैं! 


               
  

 

व्यंग्य ऐसी विधा है जो सरस भाषा में होते हुए भी गहरे तौर पर अपना काम कर जाता है। रोजमर्रा की बातों, घटनाओं में से ही व्यंग्यकार अपनी बातें खोज लेता है। इस क्रम में वह दूर की कौड़ी नहीं लाता बल्कि घर की कौड़ी लाता है। इस क्रम में सटीक बातें और प्रहार करता है। व्यंग्य एक तरफ जहां गुदगुदाता है वहीं दूसरी तरफ अंतस को झकझोर डालता है। ललन चतुर्वेदी उम्दा कविताओं के साथ-साथ धारदार व्यंग्य भी लिखते हैं। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं ललन चतुर्वेदी का व्यंग्य कुत्ते बंध्याकरण के खिलाफ हैं! 



कुत्ते बंध्याकरण के खिलाफ हैं! 

                                                           

                                                      

ललन चतुर्वेदी

                                             

 

          

सुबह जब सैर के लिए निकला तो गलियों में कुत्ते नदारद थे। मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा। मैंने अगल-बगल की गलियों के भी चक्कर लगाए पर कुत्ते वहाँ भी नहीं मिले। ऐसा नहीं कि मैं कुत्ते को खोज रहा था पर कुत्तों के बिना गलियों की उदासी को जरूर पढ़ रहा था। गलियों में कुत्ते नहीं होंसड़क पर गड्ढे ना होंचौराहे पर जूलुस नहीं हों तो पूरा मंजर ही मनहूस लगता है। भला हो उन सुंदरियों का जो कालेसफेदभूरेचितकबरे आदि अनेक रंगों के अपने-अपने पसंदीदा ''पेट' के साथ अवतरित हो गईं। कुछ सुंदरियों ने तो अपने 'पेट' को बाजाप्ता ड्रेस और मोजे पहना कर रखा था।सुंदरियाँ उन्हें ले कर ऐसे चल रही थी मानो रैम्प पर कोई मॉडल चल रही हो। उनके पीछे-पीछे पुरुष भी चल रहे थे। चाल-ढाल से वे उनके पति प्रतीत हो रहे थे। मान लीजिये कि पति ही थे। मान लेने से सुविधा होती है। कई समस्याएँ स्वतः हल हो जाती हैं। पतियों ने हाथ में पौलीथिन थाम रखा था। 'पेट' जब शौच त्याग करते थे तो वे बड़ी कुशलता से उसे बॉल की तरह कैच कर लेते थे। उनकी तकनीक को मैं मुग्ध भाव से देख रहा था।ऐसा इसलिए भी कि वे देश को स्वच्छ रखने में अपनी अहम भूमिका निभा रहे थे। उनका गर्वोन्नत चेहरा इस बात की गवाही दे रहे थे। बावजूद इसके कुछ सुंदरियों के 'पेट' सड़क का ही शौचालय के रूप में उपयोग कर रहे थे। मैं अपना खुन्नस सड़क पर निकाल नहीं सकता था।बस एक पुराना स्लोगन 'जहाँ सोच वहीं शौचालय' को गुनते हुए सिर धुनने के सिवा मेरे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था। बहरहालउन सुंदरियों को 'पेट' संग उपस्थित होने से थोड़ा फिजाँ बदला।

               




बावजूद उपर्युक्त परिवर्तन के मेरी खोजी आँखें कुत्तो को ही ढूँढ रही थी। लेकिन 'खोदा पहाड़ निकली चुहिया' वाली कहावत नजरों के सामने ही घटित हो रही थी। ठीक उसी समय कुत्ते के बदले कुछ अजनबी चेहरे नमूदार हुए। वे कुत्ते को पकड़ने वाले उपकरणों से लैस थे। एक बात और बताता चलूँ कि मेट्रो में लोग शब्दों को सिक्के की तरह खर्च करते हैंफिर भी मैं अपनी वाचालता से बाज नहीं आता। भला हो कुछ लोगों का जो सीनियरिटी को सिन्सियरिटी से देखते हैं और  क्षण भर ठिठक कर सुन लेते हैं। शिष्टाचारवशमैंने अपना परिचय देते हुए उन श्रीमानों का पहले मॉर्निंग गुड किया। तत्पश्चात उनके सुबह-सवेरे कष्ट उठाने का कारण पूछा। वे बोले आप नहीं जानते कि आपके मोहल्ले के लोग कुत्तों के आतंक से पीड़ित हैं। आवारा कुत्तों ने लोगों का जीना  मुहाल कर रखा है। उत्साह में यह भी जोड़ दिया कि मोहल्ले ही क्यों पूरे देश में कुत्तों की बढ़ती आबादी बेतहाशा बढ़ती जा रही है और यह चिंता का प्रश्न हैं। मैं नहीं हस्तक्षेप करता तो यह जरूर बतलाते कि पूरे विश्व को कुत्तों ने नाक में दम कर रख दिया है। वह अपनी जगह सही थे लेकिन मैं कैसी उनकी बातों को आँख मूँद कर स्वीकार कर लूँ। कुत्तों के साथ हमारा रहन-सहन है। यह संबंध-संपर्क बहुत गहन है। 


एक दिन की उनकी गैरहाजरी से पूरा मोहल्ला उदास लग रहा था। फिर भीमैंने पहली बार ग्लोबल होती इस समस्या की नाजुकता को महसूस किया। इसके पूर्व तो मैं केवल टहलने के माध्यम से अधिक से अधिक प्राण वायु सोख लेना चाहता था। वैसे यहाँ हर कोई दूसरे के हिस्से का भी प्राणवायु पी जाना चाहता है। इस लिहाज से कोई मैं ही गुनहगार नहीं हूँ। जो भी होआज निगम के इन कर्मचारियों ने मेरे मॉर्निंग को गुड करने के बजाय कसैला कर दिया। लेकिन अपने देश में यह विश्वास तो मजबूत है ही कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। हम लोग इतने आशावादी हैं कि बुरे में भी भला खोज लेते हैं। बालू से भी तेल निकाल सकते हैं। सोउस दिन की घटना से मेरे ज्ञान-चक्षु का विस्तार ही हुआ। 


एक सुबह बिना कुत्तों के साथ गुजारने के बाद कुत्ते के संबंध में कुछ और अनमोल जानकारियाँ ले कर मैंने सुबह को खुशहाल बनाया। अब आप भी इनमें कुछ नायाब मोती को अपने पास रख लीजियेशायद वक्त-जरूरत कुछ काम आए। पहला यह कि कुत्ते बड़े दूरदर्शी होते हैं। इतना  ही नहींवे पारखी भी होते हैं। वे आने वाले समय के अनोखे पाठक और विश्लेषक होते हैं। उनकी रीडिंग एकदम सटीक होती है। आने वाले खतरे को वे पहले भाँप लेते हैं। आप कुत्ते से सचेत रहने की बात करते हैं लेकिन सत्य तो यह कि कुत्ते आपको सचेत करते हैं। आप नहीं समझें तो यह आपकी परेशानी है। बतला दूँ कि अपनी संतति के लिए इतना चिंतित प्राणी शायद ही कोई हो। उनके वात्सल्य पर रत्ती भर भी संदेह करने की कोई गुंजाइश नहीं है। उस दिन जो कुत्ते गली से गायब हुए थेवे अपनी हिफाजत के लिए नहीं भागे थे। उन्हें मालूम था कि ये निगम वाले भले मानुष उनका शिकार करने के नहीं बंध्याकरण के उद्देश्य से आते हैं। इसीलिए वे सीमा पार कर गए थे (आम तौर पर कुत्ते अपनी सीमा को जानते हैं और पहचानते भी हैं)। 


दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि कुत्ते अपनी उम्र का लेखा जोखा भी रखते हैं। वे जानते हैं कि कवि के अनुसार बारह साल से अधिक वे जीवित नहीं रह सकते। इस छोटी सी उमर का वे भरपूर और सार्थक उपयोग करते हैं और इसको पूर्ण करने के पूर्व अधिक से अधिक संख्या में वे अपना उतराधिकारी इस पुण्य-भूमि पर छोड़ देना चाहते हैं ताकि वे भी इस वसुधा की सुख-सुविधाओं का अधिकतम उपभोग कर सकें। आपने गौर किया होगा कि कभी भी वे छह-आठ से कम सन्तानें पैदा नहीं करते। प्रकृति ने पय-पान कराने के लिए उतनी ही संख्या में उन्हें अंग भी उपलब्ध कराया है। यह एक नग्न सत्य है और लोग इससे आँखें चुराते हैं। सुबह की सैर करेंगे तब तो ज्ञान-चक्षु खुलेंगे। ऐसा नहीं कि कुत्ते का खुफिया-तंत्र कमजोर होता है।  उस दिन भी कुत्ते की बिरादरी में दुश्मनों के आगमन की सूचना आग की तरह फैल चुकी थी तथापि दुर्भाग्यवश कुछ कुत्ते जाल में फँस गए। विशेषज्ञों ने बारी-बारी से सबका अवलोकन कर उनमें से कुछ को छोड़ दिया। मैंने पूछा कि कुत्तों के सामूहिक नसबंदी अभियान में आप कुछ सदस्यों को राहत क्यों दे रहे हैं? एक विशेषज्ञ ने हँसते हुए जवाब दिया - जिन कुत्तों के कान पर 'वी' आकार के कटिंग हैंउनका पहले ही बंध्याकरण किया जा चुका है। शेष को वे पकड़ कर ले गए। उनकी जालीदार गाड़ी मेँ कुत्ते रोते-बिलखते हुए प्रस्थान कर गए। इस दृश्य को देख कर मैंने महसूस किया कि भाग्य की सत्ता को कौन अस्वीकार कर सकता है? एक तरफ सुंदरियाँ अपने 'पेट' को टहला रही थींउनकी चाल धीमी होने पर गोद मेँ उठा कर सहला रही थींवहीं गाड़ी में प्रस्थित ये बंद कुत्ते पहली बार कैदी जीवन की यातना झेल रहे थे।फिलहालमैं अपनी गली के प्यारे कुत्तों की सकुशल वापसी का इंतजार कर रहा हूँ। मुझे विश्वास है कि हफ्ते-दस दिनों में मेरी गली गुलजार होगी।



(नोट-अगले दिन महलों में रहने वाले कुत्ते की बेबसी और बेकली को आप पढ़ सकेंगे।) 

 


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