रेखा चमोली की 'मेरी स्कूल डायरी'।



 

किसी भी समय और समाज में शिक्षक की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वह पीढ़ियों को बनाने का काम करता है। एक चीनी कहावत याद आ रही है जिसमें यह कहा गया है : 'एक साल के लिए निवेश करना है तो फसल बोइए। दस साल के लिए निवेश करना है तो पेड़ लगाइए। सौ साल के लिए निवेश करना है तो बच्चों को पढ़ाइए।' बेहतर शिक्षक बच्चों को पढ़ाने का ही काम नहीं करता बल्कि उसे रचनात्मक बनाने का प्रयास भी करता है। रचनात्मकता बच्चों को मौलिक सोच के लिए प्रेरित करती है। कवयित्री रेखा चमोली एक शिक्षक भी हैं। शिक्षण का काम उन्होंने दायित्वपूर्ण ढंग से किया है। इसी क्रम में रेखा चमोली ने बड़े रोचक तरीके से 'मेरी स्कूल डायरी' लिखी है जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह डायरी रोचक है और इसे पढ़ते हुए एक उपन्यास जैसा ही आभास होता है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है रेखा चमोली की 'मेरी स्कूल डायरी'

 

मेरी स्कूल डायरी   

 

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प्राथमिक शाला में रचनात्मक लेखन का आशय

 

 

03 अगस्त 2011

 

आज से प्रधानाध्यापिका दीदी श्रीमती रजनी बलूनी 10 दिनों के सेवारत प्रशिक्षण के लिये ब्लॉक संसाधन केन्द्र मनेरी जा रही हैं इसलिए विद्यालय की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से मुझ पर आ गयी है। सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में आमतौर पर दो शिक्षक नियुक्त होते हैं और कई बार प्रशिक्षणों, विभागीय बैठकों या फिर निजी अवकाश के चलते एक ही अध्यापिका बच्चों के शिक्षण के लिए उपलब्ध होती है। आमतौर पर यह परिस्थिति माह में दो से तीन दिन बन ही जाती है और साल में 10 दिन के प्रशिक्षण के दौरान भी एक ही शिक्षिका विद्यालय में उपस्थित रहती है।

 

मैं आज सुबह 7:10 पर विद्यालय पहुँची। अभी दो-तीन बच्चे ही आये थे। हमने मिल कर विद्यालय खोला। धीरे-धीरे बाकी बच्चे भी आने लगे। मैंने बच्चों के साथ मिल कर विद्यालय की सफ़ाई की। लगभग सभी बच्चों के आने के बाद प्रार्थना सभा प्रारम्भ की। प्रार्थना के बीच में ही ग्राम प्रधान व पेंटर विद्यालय आये। बच्चों ने प्रार्थना के बाद प्रतिज्ञा व राष्ट्रगान के अलावा गाँव के समाचार और सामान्य ज्ञान के बारे में जानकारी दी। कुछ बच्चों ने कविताएँ आदि सुनायीं। यह सब देख-सुन कर हमारे अतिथि खुश हुए। मैंने बच्चों को अपनी-अपनी कक्षा में जाने को कहा और स्वयं प्रधान जी से बातें करने लगी।

 

दरअसल विद्यालय में एक और शौचालय का निर्माण होना है और पेंट का काम भी करवाना है। यह बात प्रधान जी के साथ कुछ दिनों पहले हो गयी थी। उस समय यह बात भी हुई थी कि जब प्रधानाध्यापिका प्रशिक्षण से वापस आ जाएँगी तब यह कार्य होगा। लेकिन आज प्रधान जी ने कहा, “वे आज या कल से काम प्रारम्भ करवाना चाहते हैं।मैंने उनसे कहा, “वे शौचालय का काम तो करवा लें पर रंग-रोगन का काम कुछ दिनों बाद करवाएँ। क्योंकि एक तो इन दिनों खूब बारिश हो रही है दूसरा दीदी के न होने से बच्चों के साथ अकेले काम करने और सामान इधर-उधर रखने में दिक्कत होगी।वे इसके लिए राज़ी हो जाते पर पेंटर  ने कहा, “फिर उनके पास समय नहीं है इसलिए वो कल से ही काम करेंगे।तो यह तय हुआ कि आज पेंटर यह देख कर कि कहाँ-कहाँ, क्या-क्या रंग होना है, पेंट खरीदने उत्तरकाशी बाज़ार जाएगा व कल से रंग-रोगन का काम शुरू होगा।

 

 

 

ग्रामीण क्षेत्रों में पेंटर या किसी दूसरे काम करने के लिए किसी कुशल व्यक्ति का मिलना कठिन होता है। आमतौर पर श्रमिक शहरों में या इनके आसपास ही काम करते हैं। वहाँ काम की पर्याप्तता होती है। उन्हें आने जाने में सुविधा रहती है। उनका कमरा भी वहीं होता है। ये पेंटर हमारे स्कूल में इसलिए काम करने को राज़ी हुए हैं क्योंकि इन दिनों इन्हें अन्य जगह काम नहीं है। हमारी मजबूरी है कि हम आजकल में काम कराएँ क्योंकि बाद में ये मिलेंगे नहीं, फिर चाहे हमें अभी सुविधा हो या न हो।

 

 

अकेली शिक्षिका होने के कारण मुझे विद्यालय के समस्त क्रियाकलापों व शिक्षण कार्य को स्वयं देखना है, तो मुझे एक ऐसी कार्ययोजना बनानी होगी जिससे कक्षा तीसरी, चौथी और पाँचवीं के बच्चों का पाठ्यक्रम सुचारु रूप से चलता रहे। वे अपने सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में व्यस्त रहें व मुझे भी पहली व दूसरी कक्षा के साथ शिक्षण कार्य में दिक्कत न हो।

मैंने तीसरी, चौथी और पाँचवीं कक्षा के बच्चों के साथ हिन्दी में एक साथ काम करने का निर्णय लिया और इसके लिए कार्ययोजना तैयार की। इस योजना का उद्देश्य बच्चों में समझकर पढ़ने-लिखने की आदत का विकास करना, उनको स्वयं पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित करना, किसी विषय विशेष पर व्यवस्थित तरीके से अपनी राय व्यक्त कर पाना, सृजनात्मकता बढ़ाना व उनमें मौलिक लेखन कर पाने का कौशल विकसित करना आदि रखा। मध्यान्तर से पहले का समय इस काम के लिए निर्धारित किया। मध्यान्तर के बाद का समय गणित व अन्य विषयों के लिए रखा। प्रयास यह भी किया कि हमारे आसपासपुस्तक के सम्बोध भी इस कार्ययोजना में शामिल हों। इसके लिए मैंने नीचे अंकित गतिविधियाँ तय कीं:

 

1.  अपनी खुद की तैयारी के बाद बच्चों से किसी सन्दर्भ/विषय पर बातचीत करना 

2.  शब्दों से कहानी बनाना (इस गतिविधि के लिए दो दिन तय किये)

3.  कविता पर बातचीत व स्वयं की कविताएँ लिखना

4.  अधूरी कविता पूरी करना 

5.  एक दिन की बात है (अनुभव लेखन करना)

6.  चित्र देख कर कहानी लिखना

7.  संवाद लेखन

8.“काश/अगर तुम होतेविषय पर कविता लेखन

 

 

हालाँकि इनमें से किसी भी गतिविधि के लिए एक दिन का समय अपर्याप्त ही होता है लेकिन मैं अपनी हिन्दी की कक्षा में समय-समय पर इसी तरह की गतिविधियाँ बच्चों के साथ करती रहती हूँ। इसलिए मुझे विश्वास है कि ये कार्ययोजना सफल होगी। मेरा इरादा इस दौरान किये गये कार्य का दस्तावेज़ीकरण करना भी था ताकि बच्चे अपने लिए पढ़ने की सहायक सामग्री बनाएँ और उन्हें ये काम अच्छा लगे।

 


 

आमतौर पर सरकारी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे वंचित समुदाय से आते हैं। उनके पास पढ़ने-लिखने की सामग्री का अभाव होता है। पाठ्य पुस्तकों की छपाई और विषयवस्तु कई बार बच्चों को पढ़ने के लिए आकर्षित नहीं कर पाती। जबकि शिक्षा में सतत रूप से काम करने वाले लोगों का मानना है कि पढ़ना, लगातार पढ़ने से आता है और इसके लिए बच्चों को पढ़ने के पर्याप्त अवसर दिये जाना ज़रूरी है। मेरा अनुभव है कि जब बच्चे स्वयं के अनुभवों से कुछ लिखते हैं, उसको अपने साथियों के साथ साझा करते हैं, तो यह उनमें पढ़ने- लिखने के प्रति उत्साह और रुचि पैदा करता है। बड़े बच्चों को एकाग्रचित्त हो कर कार्य करता देख कर स्कूल आने वाले नये बच्चों में भी दिलचस्पी पैदा होती है। पूरा मसला विद्यालय में एक ऐसी संस्कृति के निर्माण से जुड़ा है जो बच्चों में अन्य किताबों के प्रति उत्साह पैदा करे और उन्हें अपनी बात कहने व दूसरों की बात सुनने व समझने की दिशा में ले जाए।

 

 

कक्षा तीसरी, चौथी व पाँचवीं के साथ इस तरह का कार्य करने के पीछे मेरा एक उद्देश्य यह भी है कि अभी तक के अपने शिक्षण की प्रभावशीलता देख पाऊँ। कक्षा-तीन को शामिल करने का उद्देश्य यह है कि वे बड़े बच्चों को काम करते हुए देखें, उनकी बातचीत सुनें व उसमें शामिल हों, जिससे उनमें स्वतन्त्र लेखन की शुरुआत हो सके।

 

 

मैंने बच्चों से इस सम्बन्ध में बात की। उन्हें बताया कि अगले कुछ दिन हम ‘बालसखा कक्ष’ में काम करेंगे। ये हमारा सृजनात्मक कक्ष है, जहाँ हम विभिन्न रचनात्मक कार्य करते रहते हैं, जैसे: चित्रकारी, मिट्टी का कार्य, कागज़, पत्थर और लकड़ी के गुटकों से चीज़ें बनाना आदि। ये कक्ष हमारा पुस्तकालय भी है, जहाँ बच्चे अपने मन से पढ़ते, लिखते और खेलते हैं। सीधे-सीधे अपनी पाठ्य पुस्तकें न पढ़ने व किसी भी प्रकार का अभ्यास कार्य न करने के कारण वे यहाँ ज़्यादा सहज होते हैं। कुल मिलाकर इस कक्ष में कार्य करने का अर्थ होता है कि हम सामान्य दिनों से कुछ अलग कार्य करने वाले हैं।

 

 

जब मैंने बच्चों को बताया कि हम अपनी खुद की किताब बनाएँगे तो वे बहुत उत्साहित हुए। जब हम शिक्षण कार्य योजनाबद्ध तरीके से करते हैं तो यह सब आसान लगने लगता है। बच्चों और शिक्षक के सामने छोटे-छोटे लक्ष्य होते हैं जिससे ध्यान केन्द्रित करने में मदद मिलती है। योजना निर्माण के दौरान मेरा ध्यान इस बात पर रहता है कि बच्चों को शिक्षण प्रक्रियाओं में किस तरह की समझ, दक्षताओं व कौशलों के विकास के अवसर देना है।

 

 

आज मैंने शब्दों से वाक्य बनाने की गतिविधि की।

जैसे: मैंने रास्तापेड़शब्द से वाक्य बनाने के लिए बच्चों से बातचीत की और चुनकर दो वाक्य ब्लैकबोर्ड परलिखे ।

1. रास्ता- यह रास्ता गाँव की ओर जाता है।

2. पेड़- पेड़ पर चिड़िया का घोंसला है।

शब्दों का वाक्य में प्रयोग करते हुए बच्चे उन शब्दों के बारे में सोचते हैं और उन शब्दों को अपने अनुभवों में खोजते हुए उनके बारे में लिखते हैं।

जब बच्चों से इस बारे में बात की कि, “दोनों शब्दों का उपयोग कर एक नया वाक्य बनाना है तो कैसे बनाएँगे?” तो बच्चों ने इस तरह के नये वाक्य बनाने की कोशिश की:

यह रास्ता गाँव की ओर जाता है और पेड़ पर चिड़िया का घोंसला है।

इस दौरान बच्चे अलग-अलग तरीकों से शब्दों के साथ खेल रहे थे व इस प्रक्रिया में आनन्द ले रहे थे।

 

 

बातचीत का क्रम आगे बढ़ाने पर नीचे अंकित वाक्य उभर कर आये:

1. गाँव के रास्ते में एक पेड़ है जिस पर चिड़िया का घोंसला है,

2. गाँव के रास्ते में अमरूद के पेड़ पर चिड़िया का घोंसला है,

3. गाँव की ओर जाने वाले रास्ते में सेमल का बड़ा पेड़ है, आदि।

आज हमने ढेर सारे शब्दों से अलग-अलग व मिला कर वाक्य बनाये।

इस तरह से काम करते हुए मुझे बच्चों के साथ बातचीत के महत्त्व को समझने में मदद मिली। जब हम शब्दों एवं वाक्यों का अलग-अलग सन्दर्भों में उपयोग करते हैं तो बच्चों को भाषा के ढाँचे को समझने में मदद मिलती है।

मैंने बच्चों को गृहकार्य में कुछ और शब्द वाक्यबनाने को दिये।

मेरी अगले दिन की योजना कुछ चुनिन्दा शब्दों का उपयोग करते हुए कहानी लेखन की है।

 


 

 

4 अगस्त 2011

 

शब्दों से कहानी बनाना

 

स्कूल में कोई इतना बड़ा कमरा नहीं है कि कक्षा एक से पाँच के सभी 53 बच्चे उस में एक साथ बैठ पायें और उनके साथ अलग-अलग स्तर के अनुरूप शिक्षण कार्य हो पाये। आज मैं घर से स्कूल आते हुए पुराने अखबार और अपने बच्चों की आधी भरी हुई पुरानी कापियाँ साथ ले आयी थी ताकि प्रथम वादन (पीरियड) में पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों को व्यस्त रख पाऊँ और इसी बीच कक्षा-3, 4 और  5 के बच्चों को उनका काम समझा सकूँ। कक्षा एक व दो के बच्चों को आँगन में एक गोला बना कर कविताएँ गाने को कहा और स्वयं कक्षा-3, 4 और 5 के बच्चों के पास गयी। आज हमें शब्दों के साथ कहानी बनाने की गतिविधि करनी थीं।

 

 

कहानी लिखने पर बच्चों से पिछले दिनों विस्तार से बात हुई थी, जिसकी शुरुआत कहानियाँ सुनाने से हुई थी। पिछली कक्षाओं में हमने मिलजुल कर कहानियाँ सुनने, पढ़ने और कहने की कुछ गतिविधियाँ की थीं। इससे हमने यह जानने का प्रयास किया था कि कहानी क्या होती है।

 

 

आज मैंने बच्चों का ध्यान पुनः कहानी के घटकों की ओर दिलाने की कोशिश की। जैसे: कोई नयी पुरानी बात, घटना या अनुभव को बताना, कुछ लोगों के बारे में बात या किसी व्यक्ति या जीव-जन्तु की बात, बाकी दिनों से अलग बात, किसी परेशानी में पड़ना और उससे बाहर निकलना, समय का गुज़रना, संवाद होना आदि। इस आरम्भिक बातचीत के बाद मैंने ब्लैकबोर्ड पर कुछ शब्द लिखे जैसे बस, भीड़, सड़क, ड्राइवर, तेज़ शोर, रास्ता, पेड़, लोग आदि। फिर बच्चों को इन शब्दों से कहानी लिखने को कहा।

 

 

मैं पहली और दूसरी कक्षा के साथ काम करने लगी। इन कक्षाओं में कुल मिला कर 23 बच्चे हैं। मैंने ब्लैकबोर्ड पर कुछ शब्द लिखे जैसे नमक, कान, नाक, जाना, जानवर आदि। फिर कुछ बच्चों को बुला कर शब्दों में अक्षर पर गोला बनाने की गतिविधि की। इसके बाद सभी बच्चों को अखबार का एक-एक पेज दे कर कहा कि वे इसमें और पर गोला लगाएँ व उन्हें गिनें कि ये अक्षर शब्दों में कितनी बार आये हैं? दरअसल बच्चे हमारी अनुपस्थिति में अपनी कापियों को बहुत खराब कर देते हैं। कक्षा-एक के बच्चे कॉपी के पेज बहुत फाड़ते हैं  इसलिए मैंने उन्हें ये काम अखबार में करने को दिया। जिससे वे कमरे और बरामदे में दूर-दूर भी बैठे और उन्हें कुछ नया करने को भी मिला। अखबार में छपे अक्षर बहुत बारीक  होते हैं। फिर भी मैंने देखा बच्चे अक्षर पर गोला बना रहे थे और ऐसे करना है जीबोलने लगे थे। जो नहीं कर पा रहे थे वे दूसरों से पूछ रहे थे और अखबार में बने चित्र देख रहे थे।

 

 

इसी बीच कक्षा चार और पाँच के बच्चे अपना काम कर चुके थे। मैंने बच्चों को उनकी कहानियों के शीर्षक लिखने के लिए कहा। करीब सवा नौ बजे बच्चे एक बड़ा-सा गोला बना कर अपनी-अपनी कहानियाँ सुनाने को तैयार थे। तीनों कक्षाओं को मिला कर आज कुल 27 बच्चे उपस्थित थे।

 

1.सबसे पहले कक्षा-तीन के शुभम् ने अपनी कहानी सुनायी : एक बस थी, जिसे चला रहा था ड्राइवर । अचानक एक आदमी बोला, “बस रोको, आगे सड़क टूटी हुई है। ड्राइवर ने बस रोकी। सड़क पर पत्थर व पेड़ गिरे थे। लोगों ने मिल कर बस के लिए रास्ता बनाया और बस आगे चली। सब लोग अपने गाँव पहुँचे।

 

2.तीसरी कक्षा की दीक्षा ने अपनी कहानी में लिखा : एक पेड़ के गिरने से सड़क बन्द हो गयी। जब ड्राइवर पेड़ हटाने लगा, तो जंगल से पेड़ काटने वालों की आवाज़ आयी ये हमारा पेड़ है, अपनी बस वापस ले जाओ।जंगल से पेड़ काटने वाले आये, सब ने मिल कर पेड़ को हटाया। फिर लोग वापस अपने गाँव गये। दीक्षा ने अपनी बस का नाम रखा मुनमुनऔर ड्राइवर का राहुल

 

3.कक्षा पाँचवीं के दीपक ने लिखा : एक गाँव से बाज़ार जाने का एक ही रास्ता था। बाज़ार जाने वालों की बहुत भीड़ हो गयी थी। बस बहुत भर गयी। ड्राइवर ने बहुत तेज़ बस चलायी। बस दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। सड़क भी टूट गयी। लोगों को चोट लग गयी। लोगों का शोर सुन कर आसपास से लोग बचाव करने आये और घायलों को अस्पताल ले गये। लोगों ने ड्राइवर से कहा, “इतनी तेज़ गाड़ी नहीं चलानी चाहिए।दीपक ने अपने ड्राइवर का नाम रखा राज

 

4.दिव्या (कक्षा-चार) ने लिखा : प्रदीप की बस जिसे वह बहुत तेज़ चला रहा था, रास्ते में पेड़ गिरा था जिसमें बस टकरा गयी और लोगों को चोट लगी, आदि।

 

5.अनिल (कक्षा-पाँच) ने अपनी कहानी में रेलगाड़ी को भी जोड़ा जो बस से तेज़ चल रही थी। रास्ते में गिरे पेड़ को लोग जंगल में वापस रख रहे थे।

 

6.अंजली (कक्षा-चार) ने अपनी कहानी में बहुत से संवाद भी लिखे। अंजली बहुत अच्छी रचनाकार है। अंजली की बस में बहुत भीड़ थी। ड्राइवर ने लोगों से कहा, “जरा आराम से बैठना।लोग उसकी बात को सुनकर हँसे । लोगों ने कहा, “क्या तुम्हारी बस कच्ची है जो टूट जाएगी?ड्राइवर ने कहा, “तुम मेरी बात पर हँसोगे तो मैं बस तेज़ चलाऊँगा।

लोग : नहीं-नहीं बस गिर जाएगी।

ड्राइवर : तुम मुझ पर भले ही हँस लो पर मेरी बस पर नहीं हँसना।

लोग : हमें उतार दो हम वापस चले जाएँगे।

ड्राइवर बस को धीरे चलाने लगा। अंजली ने यह भी लिखा कि ड्राइवर बारहवीं पास था उसे अपनी गाड़ी से बहुत प्यार था।

 

7.जयेन्द्री (कक्षा-पाँच) ने बहुत लम्बी कहानी लिखी थी : एक बुढ़िया थी। उसका नाम रानी था। उसकी बेटी का नाम निक्कू था। वह अपनी ससुराल में जाती है। एक दिन रानी बस में बैठ कर अपनी बेटी से मिलने जाती है। रास्ते में सड़क टूटी होती है। लोग लकड़ी का पुल बनाकर सड़क पार करते है। आगे जाकर बस पेड़ से टकरा जाती है। वहाँ भीड़ हो जाती हैं। ड्राइवर तेजी से बस चलाने लगता है, रात हो जाती है। रानी को निक्कू की याद आती है। वह उसके घर जाती है। रात में बाहर शोर सुन कर निक्कू बाहर आती है। वो कहती है, “ये मेरी अम्मा है।माँ-बेटी मिलती हैं, आदि।

 

8.साधना (कक्षा-पाँच) की कहानी में रमेश नौकरी की तलाश में शहर जाता है। वहाँ उसे ड्राइवर की नौकरी मिलती हैं। वह पहली बार बस चलाता है। रास्ते में बहुत सारे पेड़ थे। बस रुक जाती है, बस खराब हो जाती हैं। लोग डर जाते हैं कि हम कहाँ फँस गये। बाद में बस ठीक हो जाती है। रमेश सोचता है, मैं बस ठीक से चलाना सीखूँगा। बाद में वह ठीक से बस चलाना सीखता है। पैसे कमाता है, शादी करता है। घर बनाता है, उसके बच्चे होते हैं।

 

9.प्रीति (कक्षा-तीन) : सुमन ड्राइवर अपने घर जा रहा था। रास्ते में उसे एक साँप व चिड़िया भी मिली। ड्राइवर लड़की को अपनी गाड़ी में बिठा कर घर छोड़ने गया।

 

10.कक्षा-तीन की भवानी ने भी अपनी कहानी में संवाद लिखने का प्रयास किया : एक बस जा रही थी अचानक बहुत ज़ोर की आवाज़ हुई। एक बहुत बड़ा पेड़ गिरा। ड्राइवर बोला, ‘अरे ये क्या हुआ? इतनी ज़ोर की आवाज़ कहाँ से आयी’?”

उसने बस रोक दी ।

लोग बोले, “बस क्यों रुक गयी?”

ड्राइवर : पेड़ गिरा है, सच में पेड़ गिरा है।

फिर सब मिल कर पेड़ हटाते है। बस आगे बढ़ती है।

 

11.आरजू (कक्षा-चार) ने अपनी बस में ड्राइवर को होशियार कहा। और अपनी बस में कंडक्टर भी रखा।

 

12.प्रिंयका (कक्षा-तीन) ने अपनी कहानी इस तरह से शुरू की: एक बार की बात है एक बहुत सुन्दर बस थी....।

 

13.गजेन्द्री (कक्षा-तीन) की कहानी में सब कुछ बहुत सुन्दर था। सुन्दर बस, अच्छा रास्ता, हरे-भरे पेड़ और मज़े की यात्रा।

 

14.प्रवीन (कक्षा-पाँच) ने न जाने क्यों बस को सड़क से नीचे ही गिरा दिया।

 

 

रोहित, निधि, मनीष, शोभा, मनीषा, आईशा, शिवानी, मनोज, विशाल, अरविन्द ,सरस्वती इन सभी बच्चों की कहानी में कुछ चीज़ें एक जैसी थीं - बस का चलना, किसी कारण बस का रुकना आदि। एक और बात यह भी महत्त्वपूर्ण थी कि ज़्यादातर बच्चों ने समस्या का समाधान निकालने के लिए मिलजुल कर प्रयास किया था। सड़क व बस को ले कर अधिकांश बच्चों के अनुभव एक जैसे हैं।

 

बरसात का मौसम है और इस मौसम में पहाड़ी सड़कें जगह-जगह टूट जाती हैं। यातायात कुछ घण्टों के लिए बाधित हो जाता है और जीवन एक तरह से रुक जाता है। शायद इसीलिए ज़्यादातर बच्चों की कहानियाँ मिलती-जुलती थीं। मैंने नोट किया कि सभी बच्चों ने अपनी कहानी को आत्मविश्वास से सुनाया, वे बीच में कहीं रुके नहीं, न ही किसी शब्द को पढ़ने में अटके। बच्चे अपना लिखा हुआ सही व धाराप्रवाह पढ़ते हैं, चाहे वे शब्द मात्रात्मक रूप से अशुद्ध क्यों न लिखे हों। शायद ऐसा उस शब्द को महसूस कर के लिखने के कारण होता हो।

 

 

खुद सोच विचार कर कुछ लिखने से बच्चों के दिमाग में कोई शब्द या वाक्य अपने पूरे अर्थ व सन्दर्भ से आकार लेता है। उनके लिए वो शब्द या वाक्य सिर्फ़ एक शब्द या वाक्य न होकर जीवन्त अनुभव होता है। बच्चे उसे जी रहे होते हैं, उसे महसूस कर रहे होते हैं। उसकी कल्पना करते हुए पूरा दृश्य उनके सम्मुख उपस्थित हो जाता है। ठीक ऐसा ही तब होता है जब बच्चे अपनी मनपसन्द बात कह रहे होते हैं। तब वे धाराप्रवाह अपनी बात कह पाते हैं। मुझे कभी-कभी यह महसूस होता है कि मेरी समझ कई बार कम पड़ जाती है और मैं इन अवसरों का भरपूर उपयोग नहीं कर पाती हूँ।

 

मध्यान्तर के बाद छोटे बच्चों का काम देखा।

 

कक्षा-दो के सारे बच्चों ने अखबार में और अक्षरों पर गोले बनाये थे। कक्षा-एक के भी कुछ बच्चों ने अक्षरों की पहचान की थी। कुछ बच्चों के अखबार का बुरा हाल था। पर कोई बात नहीं, अखबार का जितना प्रयोग होना था हो चुका था। मैंने कक्षा-एक और दो के बच्चों को उनकी कॉपी में गिनती व सरल जोड़ के सवाल हल करने को दिये। जैसे: एक पेड़ पर 25 पत्तियाँ बनानी हैं या आसमान में 15 तारे बनाने हैं। छोटे बच्चे हर समय कुछ न कुछ करने को उत्साहित रहते हैं इसलिए इनमें से कुछ अपने आप बाहर चले गये और वहाँ एकत्रित पत्थरों की पंक्तियाँ बनाने लगे। एक-दो बच्चे चाक ले गये और जैसी आकृतियाँ मैं बनाती हूँ उसी तरह की आकृतियाँ बना कर उन पर पत्थर जमाने लगे। मैंने तीसरी, चौथी और पाँचवीं के बच्चों को ब्लैकबोर्ड पर गणित के अलग-अलग सवाल हल करने को दिये।

 

 

जब सारे बच्चे कुछ न कुछ करने लगे तो मैं बच्चों का सुबह वाला काम देखने लगी। बच्चों ने तो अपना काम कर दिया था। अब मुझे अपना काम करना था। पहला काम तो बच्चों की मात्रात्मक गलतियाँ सुधारना था। शुद्ध लिखना, भाषा कौशल का एक हिस्सा है परन्तु हमारे परिवेश में ज़्यादा ज़ोर इसी बात पर रहता है। जिन अभिभावकों को पढ़ना आता है वे भी यही देखते हैं कि क्या शिक्षक उनके बच्चों को शुद्ध लिखवा रहा है। भाषा की हमारी शैक्षिक समझ यहीं तक पहुँची है। प्रशिक्षणों में आधे-अधूरे तरीके से भले ही यह बात होती है कि शुद्ध लिखना लिखते-लिखते ही आता है और यदि लिखने के भरपूर अवसर दिये जाएँ तो बच्चे खुद ही शुद्ध लिखने लगते हैं। फिर भी कई बार यही कौशल मूल्यांकन का एकमात्र आधार बन जाता है। मुझे स्वयं को इससे बचाना है। मुझे लगता है प्रतिदिन के काम के साथ बच्चों का ध्यान इस ओर दिलाना चाहिए कि शुद्ध लिखने से क्या फ़ायदे हैं।

 

कक्षा-तीन के कुछ बच्चे बहुत गलतियाँ करते हैं। चौथी और पाँचवीं में भी एक-दो बच्चे ऐसे हैं। मैंने बच्चों की कॉपी में उनकी गलतियाँ ठीक कीं। फिर काम को फे़यर करने के लिए एक चार्ट पेपर के चार बराबर भाग किये, उनमें पेंसिल से लाइनें खींची। इन्हीं चार्ट पेपर से हम अपनी किताबें बनाने वाले हैं। बच्चों को एक-एक चार्ट पेपर दिया जिसमें वे घर से अपनी-अपनी कहानी लिखकर और बची जगह में कहानी से सम्बन्धित चित्र बना कर आयेंगे।

 

इस तरह आज के दिन का काम पूरा हुआ। मैं बच्चों के काम को देख कर बहुत खुश हूँ।

 

 


 

 

 

सम्पर्क-

रेखा चमोली
जोशियाडा, उत्तरकाशी
उत्तराखण्ड 249193
        

मोबाईल- 9411576387

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