विजेन्द्र जी के कुछ पत्र, प्रस्तुति : विनोद दास




वरिष्ठ और नए रचनाकारों के बीच सम्पर्क के सिलसिले हिन्दी साहित्य में बहुतायत हैं। सम्पर्क के इस क्रम से दोनों समृद्ध होते रहे हैं। विजेंद्र जी का नाम ऐसे वरिष्ठ रचनाकारों में शुमार है जो बड़ी सहजता से नई पीढ़ी के साथ न केवल जुड़ जाते थे, बल्कि प्रोत्साहित भी करते रहते थे। वे नए रचनाकारों को बराबर पत्र भी लिखते रहते थे। इन पत्रों से हमें न केवल साहित्य बल्कि साहित्येत्तर जानकारियां भी मिलती हैं। शायद ही कोई नया रचनाकार हो, जिसके पास विजेन्द्र जी के कुछ पत्र न हों। कवि विनोद दास के साथ विजेन्द्र जी का लम्बा पत्र व्यवहार चला। इनमें से कुछ पत्रों को विनोद जी ने आज भी सहेज कर रखा है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं विजेन्द्र जी के वे पत्र जो उन्होंने विनोद दास को लिखे थे।



विजेन्द्र जी के कुछ पत्र 


प्रस्तुति : विनोद दास 



विजेन्द्र जी की कविता से परिचय उनका काव्य संग्रह “चैत की लाल टहनी” पढ़ने के बाद हुआ था। विजेन्द्र जी की कविताएँ प्रचलित, स्वीकृत और तयशुदा मुहावरों से  अलग लगी थीं। उनकी कविताएं शहरी दृष्टि से विपरीत लोकजीवन का प्रति संसार रच रही थीं। उन दिनों मैं पटना में था और वह राजस्थान स्थित भरतपुर के कॉलेज में अँग्रेजी पढ़ा रहे था। आलोचक राजाराम भादू उनके तेजस्वी छात्र थे। पहला पत्र 1987 का है जब मेरा पहला संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ से 1986 में प्रकाशित हुआ था। इसी वर्ष मेरा तबादला लखनऊ हो गया था। इन पत्रों से गुज़रते हुए आपको लगेगा कि एक वरिष्ठ कवि और एक लघु पत्रिका का सम्पादक किस तरह अपने से कम वयस के लेखक से संवाद करता है और उसे लिखने के लिए प्रेरित करता है। लखनऊ से मैंने भी कविता की एक छोटी पत्रिका “अंतर्दृष्टि” निकाली। उसके लिए विजेन्द्र जी से मैंने रचनात्मक सहयोग का अनुरोध किया। उन्होंने दिया भी। जब कुछ साल बाद मेरा तबादला जयपुर हो गया। तब तक विजेन्द्र जी सेवानिवृत हो कर एक सुन्दर मकान बना कर वहाँ बस चुके थे। जयपुर पहुँचते ही कवि प्रेमचन्द गाँधी के साथ मैं उनके घर मिलने गया। वह बेहद प्रसन्न हुए। उनका आवास जयपुर शहर से दूर था, लिहाज़ा मिलना कम होता था। मुझे स्मरण है कि जब मैं जयपुर राज्य संसाधन केन्द्र में भारत सरकार का नामित सदस्य था तो उसकी ओर से उदयपुर में आयोजित लेखक कार्यक्रम में उन्होंने सक्रिय रूप से सहभागिता भी की थी। बाद में तबादले पर मैं कोलकाता आ गया और विजेन्द्र जी दिल्ली आ गए। मोबाईल और ई मेल के आने से पत्रों का सिलसिला बंद हो गया। दिल्ली और गुरुग्राम से उनके फोन आते थे। उनका मन चित्रकला में रम गया था। कभी-कभार विजेंद्र जी अपने चित्र व्हाट्स अप पर भेजने की अनुकंपा करते थे। प्रस्तुत कुछ पत्रों में तारीख दर्ज नहीं है और कुछ पत्र असावधानीवश सहेजे नहीं जा सके।

विनोद दास 







 पत्र 1


विजेन्द्र 

आर : 24 सिविल लाइंस 

आगरा रोड भरतपुर राजस्थान 

11/1


प्रिय भाई,

आपका स्नेह पत्र।

पहले मैं बधाई दूं। तुम्हारी कृति के  लिए।

पुरस्कार तो बहुत मिलते हैं। उन्हें भी जिनकी न योग्यता है और न अर्हता। मुझे तुम्हारी कविताओं ने आश्वस्त किया। तुम मेरे समय के हो और मुझसे आगे के भी। अंततः तुम्हारी कविताओं की आश्वस्ति ही मेरी समृद्धि है। यह पथ बीहड़ है। और चलना भी अकेले ही पड़ता है। रचनाकार को हर पल छिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। कोई सहायता नहीं करता। अपनी व्यापक जीवनदृष्टि, दृढ़ संकल्प और निजी प्रतिभा ही सहायक होते हैं। लेकिन ये सब शब्द रूप में जितने सरल हैं, आचरण में उतने ही कठिन। इसलिए एक समर्थ रचनाकार को एक योद्धा की तरह तैयारी करनी पड़ती है। मुझे लगता है कि तुम में स्वस्थ कविता उकसने को है। यह सतत उगता वृक्ष बनें। 

शुभकामना के साथ 

सस्नेह,

विजेन्द्र 

अपना पता साफ स्पष्ट अक्षरों में लिखें।



पत्र - 2


विजेन्द्र 

आर : 24 सिविल लाइंस 

आगरा रोड, भरतपुर 

राजस्थान

20. 3. 87

यह पत्र विशेष कार्य और आग्रह से। ओर पत्रिका का पुनः प्रकाशन होना तय हुआ है। सम्पादन का कार्य फिर मुझे सौपा गया है। पहले यह पत्रिका अंपना परिचय अच्छी तरह दे चुकी है। लोग इसे पूरे बिहार में जानते ही हैं। आपके शहर में भी । बहरहाल मैं चाहता हूं कि आप इससे सक्रिय रूप से जुड़ें और मुझे सहयोग करें।

पहला अंक मूल्यांकन अंक होगा। क्या आप शमशेर बहादुर सिंह की कविता को लेकर एक समग्र मूल्यांकन कर सकते हैं?

मुझे जाने क्यों इस प्रसंग में आपकी ही याद आई।

आप यह लेख पांच-सात पृष्ठों में पूरा कर सकते हैं। अगर और भी पृष्ठ चाहें तो ले सकते हैं। लेकिन मुझे प्रसन्नता होगी, अगर मूल्यांकनपरक दृष्टि से ही शमशेर जी की काव्य संवेदना और काव्य अवदान को प्रस्तुत करेंगे। आप चाहें तो उनके समकालीनों से उनकी तुलना भी जहां-तहां कर सकते हैं। लेकिन केन्द्र में शमशेर और उनकी कविता ही हो। यह तथ्य सामने आए कि आज शमशेर की कविताक्यों प्रासंगिक लगती है। ऐसा इसमें क्या है जो हमें अपनी रचनाशीलता और सृजन धर्म को प्रेरित करता है। बहरहाल।

और एक यह विकल्प है कि आप अंज्ञेय, गिरिजा कुमार माथुर और शमशेर को मिलाकर लिखें। जो ठीक आपको रूचे। सोचकर मुझे सूचित करें। 

यह कार्य एक मास में करना है। आपसे तो मैं सस्नेह आग्रह कर ही सकता हूं -बिना किसी औपचारिकता के। 

यह अंक मैं विशेष ढंग से आयोजित करना चाहता हूं। इसीलिए सबको विस्तार से लिखना पड़ रहा है।

आपके पत्र की प्रतीक्षा में।

विजेन्द्र





पत्र : 3


ओर 

लोक चेतना की साहित्यिक पत्रिका 

पूर्वा, 2 गांधी नगर 

आगरा 282003


प्रिय विनोद दास 

तुम्हारा पत्र। इसके पूर्व अंतर्दृष्टि मिला था। मैं तुम्हें लिखता पर पारिवारिक कार्यो में इतना उलझा रहा कि पत्र दे नहीं पाया । मेरी छोटी पुत्री रोचना विश्वकीर्ति का विवाह नवंबर में होना सुनिश्चित है। उसी में लगा हूं। सारे काम दरकिनार हो रहे हैं। 

तुमने पत्रिका बड़े प्रयत्न से निकाली है। इसमें संदेह नहीं। आज पत्रिका निकाल पाना कितना कठिन होता जा रहा है, यह कौन नहीं जानता। बहरहाल इन पत्रिकाओं का निकलते रहना ही समकालीन रचनाशीलता के लिए बहुत बड़ा संबल है। आशा है तुम इस संघर्ष में सफल हो सकोगे। मैं अपनी रचनाएं भेजूंगा। थोड़ा इस दायित्व से मुक्त हो सकूँ। 

वैसे तुम्हारे अगले अंक की योजना बन ही चुकी है। पत्रिका में दी हुई घोषणा से लगा। बहरहाल अगले अंकों में मुझे जो करना है, लिखना। 

“ओर” का अंक मिला होगां। उसके लिए जो भी सहयोग कर सकों, वह हमारे लिए मूल्यवान होगा। हम लोग परस्पर विचार-विमर्श से कुछ बेहतर कार्य कर सकते हैं।

इस विषय में सोच कर मुझे लिखना। 

आशा है, प्रसन्न होंगे। पत्र देना

सस्नेह,

विजेन्द्र 



पत्र : 4


आर : 24 सिविल लाइंस 

आगरा रोड, भरतपुर 

राजस्थान 


प्रिय भाई,

आपका पत्र। 

स्थानान्तरण से सामान्यतः कष्ट होता है और जीवन में स्थिरता आती है। लेकिन लखनऊ बेहतर जगह है। मुझे इस बात से प्रसन्नता है कि आप मेरे और पास आ गए। बहरहाल।

क्या आप भारतीय चित्रकला पर एक संक्षिप्त किन्तु सघन आलेख भेज पाएंगे। इतना कर सकें तो पर्याप्त है। मुझे किसी ने बताया है कि आप चित्रकला पर भी लिखते हैं। 

दरअसल ओर को मुख्यतः कविता समीक्षा एवं सौन्दर्य शास्त्र की पत्रिका का ही रूप देने में लगा हूं। सिर्फ़ प्रसंगानुकूल मन की श्रेष्ठ कविताएं कुछेक दूंगा- वह भी उपलब्ध होने पर। अतः प्रथम अंक से ही वह संकेत  मिलना चाहिए। इस प्रयास में सहभागी बनें। लखनऊ में स्थिर हो कर चित्रकला पर लिख सकते हैं। चाहें तो चित्रकला, कविता और संगीत सबको मिलाकर आलेख बन सकता हैं। मुझे जून के अंत या जुलाई के प्रथम सप्ताह तक चाहिए। जैसा हो लिखें। लखनऊ ठहर कर भी संपर्क रहे तो बेहतर रहे। 

प्रसन्न  होंगे।

सस्नेह,

विजेन्द्र





पत्र : 5


पूर्वा 2 गांधी नगर 

आगरा 282003

16/ 11/ 91


प्रिय विनोद दास

आपको मेरा पत्र मिल गया होगा। मैं पुनः आपसे निवेदन करूं कि ओर के लिए मुझे एक आलेख भेज कर उपकृत करें। आपकी एक समीक्षा रचना मैंने पहल में कभी पढ़ी थी, उसी दृष्टि से अपनी बात को आगे बढ़ाएं। मैं चाहता हूं कि कविता सामान्य उसके स्वभाव तथा प्रवृति को लेकर कुछ लिखें। कविता की स्वस्थ दशा क्या है? कौन-कौन से खतरे आज के कवि के सम्मुख हैं? उनका प्रतिरोध कैसे हो? काव्य भाषा कैसे विकृत हो रही है? आप स्वभाव और कर्म से कवि हैं, यह मैं जानता हूं। आप कहेंगे फिर गद्य लिखने का आग्रह क्यों यह इसलिए क्योंकि कविताएँ ढेर लिखी जा रही हैं पर कविता की गरिमा तथा उसकी गौरवपूर्ण परंपरा को बनाए रखने के लिए हमारे प्रयत्न किंचित अधूरे हैं- अपेक्षाकृत कम। आप जैसे सुधी और संवेदनशील लेखक को मैं क्या बता सकता हूं। आप अपनी ओर से भी और निरे प्रश्न-प्रतिप्रश्नों के विषय में सोच सकते हैं। ओर को आपका रचनात्मक सहयोग एवं सुझाव बल प्रदान करेंगे। आपने मुझसे कविता भेजने का जो स्नेहाग्रह किया था, मैं उसे निबाह न सका, उसके लिए मुझे खेद है। यदि मुझे कविता भेजना अंपरिहार्य हो तो लिखें, मैं भेजूंगा।

आशा है, आप अन्यथा न लेंगे। श्री विनोद कुमार शुक्ल अनामिका प्रकाशन तथा ओर, प्रबंध संपादक ने आपका काव्य संकलन मुझे दिया था। आप बताएं आपके काव्य संकलन की समीक्षा किस से करायी जाय। मुझे सुविधा होगी। पत्र दें। 

सस्नेह,

विजेन्द्र 



पत्र : 6


ओर 

लोक चेतना की साहित्यिक पत्रिका 

पूर्वा 2 गांधी नगर 

आगरा 282003

16/ 11/ 91


13. 3. 92 

प्रिय भाई,

अभी अभी नोहर से आया तो आपका पत्र मिला। पहले मैं अपनी संवेदना व्यक्त करूँ, आपको शारीरिक कष्ट झेलना पड़ा। अब आप स्वस्थ हैं, प्रसन्नता हुई। मैं हृदय से शुभकामना करता हूं। आप पूर्णतः स्वस्थ हों और अपना रचनात्मक कार्य करें। 

मैं पांच कविताएं चुन कर आपको भेज रहा हूं। आपको चयन की सुविधा होगी, बहरहाल किंचित विलंब को क्षमा। पत्र से सूचित करें। 

मैं यहां 30 मार्च तक हूं। बाद में प्राचार्य, राजकीय महाविद्यालय, नोहर 335523, राजस्थान के पते पर पत्र लिखें।

पुनः शुभकामनाओं के साथ

सस्नेह,

आपका

विजेन्द्र 

पुनः धरती कामधेनु से प्यारी की समीक्षा करा सको तो देखना। 





पत्र : 7


ओर, जयपुर 22-1-92

प्रिय भाई

सर्वप्रथम आपके स्वस्थ हो जाने की कामना करता हूं। मुझे भरोसा है कि आप स्वस्थ होंगे। यहां आया तो आपके पत्र से अस्वस्थ होने की सूचना मिलीं। 

मैंने रघुवीर सहाय और केदार नाथ सिंह दोनों की काव्यभाषा की दुर्बलताओं की ओर संकेत किया है। आप पुनः देखें पूर्व कथन ध्यान से। दूसरे बहुत पहले आलोचना में रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर तथा श्रीकांत वर्मा आदि की काव्य सीमाओं का विस्तृत विश्लेषण मैंने किया है। इसीलिए तो मैंने आपसे उन्हीं बातों का अंपनी तरह से विकसित करने का आग्रह किया था। 'ओर' के अगले अंकों की सामग्री व्यवस्थित करने में लगा हूं। मैं 'ओर' में तो कभी फिर उन प्रश्नों को उठाऊंगा। आप स्वस्थ हो जाएं तो धैर्य से लिखें। कविता की घोषणा चाहें आप कर दें, वह तैयार है। किंचित प्रदीर्घ है। आप जब कहें भेज दूं। 

सस्नेह,

विजेन्द्र



पत्र : 8


ओर, जयपुर 


30-11-93

प्रिय भाई विनोद दास जी 

आपका स्नेह पत्र। यात्राएं मेरे लिए बड़ी कठिन होती है। लेकिन आत्मीय लेखकों के बीच कुछ क्षण रह कर वे कठिनाइयां विस्मृत हो जाती है। न केवल इतना, हर बार नया स्फुरण प्राप्त हुआ है। लेखकों से मिल कर सहज बातचीत ही मेरे लिए तीर्थ है। यही भोपाल यात्रा की सार्थकता है। बहरहाल जब से यहां आया हूं, शहर निकल नहीं पाया। कुछ न कुछ उलझनें बनी ही रही। मैं प्रयत्न करूंगा कि किसी दिन आपके कार्यालय में ही आ कर भेट करूं। मुझे यह कहते संकोच होता है कि आप यहां आएं। मैं चाह कर भी मालवीयनगर नहीं पहुंच पाया। आप मेरी विवशता को समझ क्षमा करेगे। कोई ऐसा क्षण जीवन में नही जब आप सबसे मिल कर मन उल्लसित न हो। 

कविता का वर्तमान संकट पर मैने जो आलेख पढा, वह सैद्धांतिक ही था, पूरा विवरण शायद कहीं छपे। ओर में तो नही छपेगा। वह अच्छा भी नही लगता। सोमदत्त की याद और कविता का वर्तमान संकट दोनों कार्यकम अलग थ़े। बहरहाल इतने सारे लोगों से आत्मीय और सौहार्दपूर्ण वातावरण में भेंट हुई, यही उपलब्धि है जो याद रहेगी। आपक्या कर रहे है? मुझे उम्मीद है कि जयपुर आपको उत्कृष्ट सृजन को प्रेरित करेगा। 

मेरी शुभकामनाएँ। प्रसन्न होगे सपरिवार। प्रिय नंद को मेरा प्रणाम कहे, कभी-कभी पत्र लिख दिया करें, यह उलाहना उन तक पहुंचा दें। 

सस्नेह,

विजेन्द्र 

पुनः मै सूचित करूंगा फिर, कदाचित निकट भविष्य में जैसलमेर जाऊ़ं। 





पत्र : 9


6-8-93

प्रिय भाई विनोद दास जी 


इधर पिछले दिनों भागदौड़ रही़ और परेशानियाँ भी। बाहर आना-जाना भी लगा रहा। आप से मिले बिना लंबा समय हुआ। आशा है अब आप सपरिवार सुव्यवस्थित हो गए होंगे़। 


'ओर 16' लगभग तैयार है। अगले अंक को आप रचनात्मक सहयोग दीजिए। प्रयत्न करंगा कि आप से मिल सकूं।  मेरा उधर आना बहुत कम होता है। य़दि सम्भव हो तो कभी इधर आ कर उपकृत करें या फिर पत्र से सूचना दे। पुनः आपसे साधिकार आग्रह है कि 'ओर' को रचनात्मक सहयोग अवश्य दें। य़ह मै आप पर छोड़ता हूं कि आप कविताएं दें या गद्य जो भी सुविधाजनक हो। दूसरे, ओर के विषय में कुछ सुझाएं ज़ब तक आप जयपुर है, हमारा आप पर अधिकार है। आप जैसे दृष्टि संपन्न तथा रचनाशील लेखको के सुझाव तथा सहयोग से बल मिलेगा। 

प्रसन्न होगे सपरिवार 

सस्नेह,

विजेन्द्र


पत्र : 10


सी 133 वैशाली नगर 

जयपुर 302012


28-8-93

प्रिय विनोद दास जी 

आपका पत्र 

सदेह न भी मिले : अनौपचाारिक और स्नेहिल पत्राचार भी रिक्त भरता है। आज की व्यस्तता और महानगरीय दूरियों ने हमसे आत्मीयों को छीन लिया है़। मैने पता किया वैशाली से मालवीय नगर 21 किमी है। इस दूसरे छोर पर आने के लिए कई बार सोचना पड़ता है। बहरहाल पत्र ने बहुत हद तक आपकी अनुपस्थिति की क्षतिपूर्ति की। 

प्रसन्न्नता की बात है कि अंतर्दृष्टि छप कर आ रही है, मुझे उत्सुकता रहेगी़ । 

आप जब भी आएं, पूर्व सूचना से अवगत करा दें, मै प्रतीक्षा करूंगा। अन्यथा पत्र तो देते रहे। 

नए स्थान पर व्यवस्थित होने में समय तो लगता ही है। मै स्वयं अभी अपने बिखरे सामान को समेट रहा हूं। प्रसन्न् होगे सपरिवार। 

सस्नेह,

आपका

विजेन्द्र  






पत्र : 11


12-10-93

प्रिय भाई, 

एक बार आपके कार्यालय में गया तो आपसे भेंट न हो पाने का अफसोस बना रहा। पता चला कि आप किसी बैठक में भाग ले रहे हैं। 

'ओर 16' मिल गया होगा। अगले अंकों के लिए कुछ भेजे। जयपुर में आपकी उपस्थिति से ओर को रचनात्मक बल मिले, यह मेरी हार्दिक इच्छा है। मैंने आपसे पहले भी निवेदन और सस्नेह आग्रह किया है। प्रिय रघुवंशी ने झांसी से लिखा है कि उनके द्वारा संपादित परिवेश की मेरी प्रति आपके पास है, प्रेमचंद गांधी मिले तो उन्हें दे दे, मुझ तक आ जाएगी। 

जयपुर शहर में आए दिन भेंट हो पाना तो कठिन है पर पत्र तो लिखा करो। बहरहाल मैं प्रतीक्षा करूंगा। 

आप अपने घर का पता भेजे। 

प्रसन्न होगे सपरिवार

सस्नेह,

आपका

विजेन्द्र





सम्पर्क


विनोद दास

130, यू के संगफरॉइड 

आज़ाद  नगर अँधेरी पश्चिम 

मुम्बई 400053 


मोबाईल : 9867448697

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