गणेश पाण्डेय की कोरोना पर लंबी कविताएँ


गणेश पाण्डेय




समूचा विश्व इस समय कोरोना जैसी महामारी से आक्रांत है। सब कुछ जैसे थम सा गया है। लेकिन एक रचनाकार जब इस स्थिति को देखता है तो बेचैन होता है। कई कवियों ने कोरोना पर कविताएँ लिखी हैं। इसी क्रम में गणेश पाण्डेय ने कोरोना पर लम्बी कविताएँ लिखी हैं। कवि की बेचैनी, कवि की छटपटाहट, जो कविता में व्यक्त हुई है, परेशान करती है। जब एक कवि की संवेदना समूह की संवेदना बन जाती है तो उसके लेखन की यह सार्थकता होती है। इन कविताओं को पढ़ कर लगता है जैसे अपनी परेशानी, अपनी बात ही तो इनमें व्यक्त की गई हैं। आज पहली बार पर प्रस्तुत है गणेश पाण्डेय की कोरोना पर रची गयी दो लम्बी कविताएँ। 
 




कोरोना पर दो लम्बी कविताएँ



गणेश पाण्डेय


1.पृथ्वी पर काली छाया




पृथ्वी पर
एक विशाल काली छाया
उतर आयी है पास और पास
बरगद पर पीपल पर
मंदिर पर मस्जिद पर चर्च पर
ऊंची-ऊंची
बहुमंजिली इमारतों से ले कर
फुटपाथ की गुमटियों पर
झोपड़ियों पर
वायुयान पर साइकिल पर
मिसाइल पर फाउंटेन पेन पर
माल पर सब्जी की दुकान पर
नाई के सैलून पर आटाचक्की पर


अमरीका पर
इटली पर स्पेन पर जर्मनी पर
ईरान पर पाकिस्तान पर
दिल्ली पर कोलकाता पर
मुंबई पर श्रीनगर पर
राजस्थान पर मध्यप्रदेश पर
उत्तर प्रदेश पर बिहार पर
नेपाल पर बांग्लादेश पर
चीन पर जापान पर
देश पर विदेश पर
धरती पर आकाश पर


काली से भी काली छाया
महा से भी महा काली छाया
बूढ़े अधेड़ जवान बच्चे
स्त्री पुरुष किन्नर सब पर
छायी है यह अनाहूत
अप्रिय अवांछित
छाया


कोई जादू है इसके पास
सबको फांस लिया अपने पाश में
काला जादू है किसी जादूगर का
जादूगर अदृश्य है छाया दृश्य है
अनुभवजन्य है


कोई जानकार
माथे का ताप देख कर बता सकता है
छाया अमुक शरीर के भीतर है
उतर रही है छाया उसके गले से
उसके फेफड़े में शनैः शनैः
हवाईअड्डे पर रेल्वे स्टेशन पर
बस अड्डे पर गायिका के बड्डे पर
अस्पताल की सफेद चादर पर
मिट्टी के फर्श पर संगमरमर पर
छाया का साम्राज्य है
यह छाया जितनी प्रकट है
उतना राज़ है काला जादू है


कोई कहता है
शी जिनपिंग का कालाजादू है
वुहान से निकलती है यह प्रेतछाया
पूरी दुनिया पर छा जाती है
बीजिंग शंघाई को छोड़ देती है
आख़रि शी उसका कौन है
शी कहता है यह कालाजादू
डोनाल्ड ट्रंप का है
पूरी दुनिया हलकान है
इन दोनों की शरारतों से


दुनिया बंद है
किसी शहर और मुहल्ले की तरह
एक छोटी-गुमटी की तरह
माचिस की डिबिया की तरह बंद
एक विश्वव्यापी कर्फ़्यू है इमरजेंसी है
भय की एक पूरी दुनिया है
पता नहीं यह काली छाया
कहां-कहां अपने विशाल पग धरेगी
कहां-कहां कोमल उंगलिया फिराएगी
महासुंदरी के घने लंबे केशों में
उसके रक्ताभ कपोलों पर अधरों पर
किस सुंदरी के प्राणप्रिय पतिदेव को
सहसा कहीं से खींच कर
अपने तम के पाश में सुला लेगी
अपने अरूप रूप से बेसुध कर
किसी सुगंध की तरह उसके सांसों में
बस जाएगी


किसी पिता को
राशन चाहे सब्जी की दुकान पर
पकड़ लेगी कोई भी रूपधर
चाहे बालरूप धर कर
चलती चली आएगी उंगली पकड़ कर
किसी के घर
किसी के भाई की मोटरसाइकिल पर
बैठकर चाहे उसकी कलाई पर
राखी की तरह चिपक कर
बेटी हो या बहन पत्नी हो या मां
कोई उसे अपनी आंखों से
देख नहीं पाएगी मति मारी जाएगी
निश्चिंत हो जाएगी
उसे पता ही नहीं चलेगा
कि थैले के ऊपर गोभी पर मूली पर
मिठाई के डिब्बे पर बर्फी पर बैठ कर
कौन आ गया है उसके घर
किसी को मालूम नहीं
किसी समारोह में किसी भीड़ में
किसी जुटान में किसी के संग
कब किसकी देह से कूद कर
बैठ जाएगी किस पर


आधा दृश्य और आधा अदृश्य
इस काली छाया को कभी
चश्मा लगा कर भी
कोई देख नहीं पाएगा
कभी नंगी आंखों से आप से आप
कोई छाया आसपास दिख जाएगी
चलती-फिरती नाचती
कानों के पास भनभनाती


एक बुजुर्ग के कानों में
काली छाया की यह गूंज बढ़ते-बढ़ते
पृथ्वी के महासन्नाटे को चीरती हुई
विस्फोट में बदल जाती है
पूरे ब्रह्माण्ड में यह आवाज़
बादलों
और बिजली की गड़गड़ाहट की तरह
गरज उठती है- कोरोना कोरोना कोरोना
सूर्य-चंद्र और दूसरे ग्रह-उपग्रह
सब चकित सारे देवी-देवता स्तब्ध
ओह पृथ्वी महासंकट में है


किसी के पास नहीं है कोई उपाय
पृथ्वी के किसी धर्म किसी ग्रंथ
किसी के पास नहीं है
विपदा का दूर करने का कोई मंत्र
सारे मंदिर-मस्जिद-चर्च-गुरुद्वारे बंद
बड़े-बड़े धर्माचार्यों के फूले हैं
हाथ-पांव


दिन हो रात हो सब एक जैसा है
टीवी के एक-एक चैनल पर
एक-एक एंकर के लिपे-पुते चेहरे पर
काली छाया की एक मोटी परत है
महिलाओं एंकर की लिपिस्टिक
होती है लाल और दिखती है काली
और काजल पर काली छाया की छाया है
टीवी के सामने बैठे बूढ़े
समाचार नहीं मृत्यु देखते हैं
पृथ्वी पर महामृत्यु का नंगा नाच देखते हैं
हर चीज में
चील की तरह मंडराती काली छाया देखते हैं


पूरी दुनिया
एक विशाल शवगृह में बदल गयी है
मृत्यु का एक महाठंडाघर जिसमें
बैठकर यह काली छाया खाएगी
एक-एक शव नोच-नोच कर


दुनिया के किसी दारोगा के पास
इतनी हिम्मत नहीं होगी कि उससे पूछे
यह क्या कर रही है काली बुढ़िया
अभी और कितने शव चाहिए तुझे


कह दो
कह दो, कह दो, दुनिया से कह दो
कोई नहीं है अब यहां महाशक्ति
सब मिट्टी के खिलौने हैं
पुतले हैं पुतलें सारे एंटीमिसाइल
नहीं है कोई लड़ाकू जहाज और टैंक
जो रोक सके काली छाया की आंधी


बच्चो और युवाओं
इस समय पृथ्वी पर सबसे भयभीत हैं बूढ़े
इसलिए नहीं कि काली छाया को
पके हुए देह बहुत प्रिय है
उन्हें खा जाएगी
उन्हें डर है कि उनके बहाने
उनका घर देख लेगी
उनके बच्चों को देख लेगी



बूढ़े
बहुत से बहुत डरे हुए हैं बच्चों 
वे अपने नन्हे-नन्हे पोतों को
उठाकर गोद में नहीं ले रहे हैं
दिल बहुत मचलता है
उनके नन्हें होंठ चूम नहीं पा रहे हैं
इसलिए कि काली छाया उनकी खोज में
तमाम समुद्र तमाम आकाश को छान कर
एक कर रही है


एक दादी है
जरा-सा छींक आ जाए तो इस उम्र में
पूरे घर में पोंछा लगाने लगती है
बच्चों को खुद से दूर भगाने लगती है
काम वाली बाई को हटा दिया है
दूध लेने बाहर नहीं जाती है
अपने बूढ़े को भी बिस्तर पर
दूसरी करवट सोने के लिए कहती है


यह कैसी काली छाया है
अभी खाएगी कितने घर
कब जाएगी अपने देश अपने घर
कहां है इसका घर
क्या वुहान है इसका घर
जहां भी हो इसका घर
जाए अपने घर
दादी कहती है चाहे अपने
शी जिनपिंग के सिर पर
चाहे किसी समुद्र में फाट पड़े


टीवी तो नहीं फटती है
लेकिन टीवी के सामने बैठे बुजुर्गों का
रोज़-रोज़ कलेजा फट रहा है
जो बच्चे घर पर हैं उनके लिए भी
जो बाहर हैं उनके लिए तो और भी
बड़ी बिटिया किस हाल में होगी
छोटी कैसे होगी
सबकी बेटियां और बेटे कैसे होंगे


देश बंद है
जहाज बंद है रेल बंद है
आना-जाना सब बंद है फिर भी
कुछ मज़दूर हैं मजबूर हैं
जिनके पास कोई ठिकाना नहीं
चल पड़े सब पैदल अपने घर
अपने गांव
शायद गांव की गोद बचा ले उन्हें
इस काली छाया से


सरकारें जाग रही हैं
खजाने की तोप का मुंह पूरा खोल कर
खाकी वर्दी और सफेद पोशाक की फौज बना कर
सड़कों और अस्पतालों में
काली छाया से
सफेद तरीके से रोज लड़ रही हैं
ये तो काली छाया है छद्मयुद्ध कर रही है
छिप-छिपकर पीछे से
किसी का भी कालर पकड़ कर खीच ले रही है
दूसरे के कंधे पर बंदूक रख कर चला रही है
धोखा दे कर किसी भी देश में किसी भी राज्य में
किसी भी घर में घुस जा रही है


एक
पैंतालीस और चालीस साल का
बेहद ख़ूबसूरत जोड़ा
काली छाया की गिरफ्त में
नाउम्मीद हो कर
सबके सामने
पृथ्वी का श्रेष्ठ चुंबन ले रहा है
अपने जीवन को चूम रहा है
अपने प्रेम को चूम रहा है
पृथ्वी को चूम रहा है


एक
साठ साल का बुज़ुर्ग
काली छाया की मृत्युकारा से
पांच मिनट का पेरोल ले कर
अपने घर के गेट के सामने
कांच की दीवार के उस पार
अपने भरे-पूरे परिवार को
निहार रहा है


छाया का
न कोई धर्म है न ईमान
अभी-अभी इस क्रूर छाया ने
एक अड़तीस साल के युवा को
खींच कर अपना आहार बना लिया है
जिसकी बीवी रात के भोजन पर
उसकी प्रतीक्षा कर रही है
और उसकी नन्ही बच्ची
इंतजार करते-करते सो गयी है
जबकि छाया को ऐसा नहीं करना था
उस युवा के बुजुर्ग पिता कभी भी
छाया का भोजन बनने के लिए
प्रस्तुत थे


एक स्त्री
अपनी चूड़िया तोड़ रही है
अपना सिर दीवार पर मार रही है
अटूट विलाप कर रही है
पर्वत रो रहे हैं नदियां आंसू बहा रही हैं
फूले हुए सुर्ख़ गुलमोहर
और पीले अमलतास रो रहे हैं
गुलाब असमय अपनी टहनियों से
मुरझा कर गिर रहे हैं


प्रकृति रो रही है
काली छाया हंस रही है
डायनासोर की तरह पृथ्वी को
रौंद रही है
दर्प में चूर निर्वस्त्र हो रही है
वीभत्स हो रही है
कई राजाओं महाराजाओं
और राष्ट्रध्यक्षों के सिर पर पैर रख कर
अहंकार में नाच रही है
यह विहसना ठीक नहीं है छाया
पृथ्वी से यह क्रूरता ठीक नहीं है छाया
मनुष्य से यह शत्रुता ठीक नहीं है छाया


यह एक ऐसा युद्ध है
सभी देशों की सरकारें एक साथ जाग रही हैं
और इस काली छाया के नाश के लिए
सारा विश्व एक है
घर-घर में
जितना भय है उससे ज़्यादा रोष है
दुनिया भर की असंख्य मांएं विकल हैं
दुनिया भर के असंख्य पिताओं के सीने में आग है


दुनिया भर के असंख्य बेटे
कुछ सोच रहे होंगे कुछ कर रहे होंगे
यह काली छाया आज है कल नहीं रहेगी
नहीं रहेगी नहीं रहेगी नहीं रहेगी
पृथ्वी रहेगी पृथ्वी मां है सबकी
इसी धरती के असंख्य लाल जुटे होंगे
अपनी मां को बचाने के काम में जी-जान से
कोई दौड़ कर बांस काट रहा होगा
कोई बंदूक में गोली भर रहा होगा
कोई म्यान से तलवार निकाल रहा होगा
कोई काली छाया का झोंटा पकड़ने के लिए
अपनी भुजाओं को तैयार कर रहा होगा
कोई काली छाया को वश में करने के लिए
किसी प्रयोगशाला में कोई प्रयोग कर रहा होगा।















2.लम्बी रात



यह एक असाधारण
और काली लंबी रात है
मेरे सिर पर काले छाते की तरह
तनी हुई है जैसे गर्दन पर चाकू


कहीं कोई दूर-दूर तक आवाज़ नहीं है
न किसी गाड़ी की न किसी आदमी की
न किसी कुत्ते और बिल्ली के रोने की
सबके सब पेड़-पत्ते फूल-पत्तियां
सब चुप हैं कुछ नहीं सूझ रहा है किसी को
मैं ख़ुद नहीं कर रहा हूं किसी से कोई बात


रात के ग्यारह बज रहे होंगे
लगता है कि एक से ऊपर बज गये होंगे
शायद सब सो गये होंगे
शायद सब मेरी तरह जाग रहे होंगे
बजते हुए इस वक़्त को सुन रहे होंगे
शायद वक़्त की आवाज़ में
किसी पायल की आवाज़ शामिल होगी
छम-छम छम-छम
कुछ चूड़ियों की आवाज़ के साथ
एक खनकती हुई हँसी शामिल होगी
पता नहीं यह किसी
औरत की आवाज़ होगी
या किसी और की


मुझे डर लग रहा है बाहर सड़क पर
कोई औरत जैसी चीज़ सफेद लिबास में
ज़रूर टहल रही होगी
मौत होगी
शहर-शहर घर-घर घूम-घूम कर
रोशनदान से खिड़की की दरार से
दरवाज़े के नीचे से झांक रही होगी
आदमी की मौजूदगी


बल्ब बुझने की वजह से
जहां कुछ नहीं दिखता होगा
वहां अपनी गज भर लम्बी नाक से
सूंघ-सूंघ कर पता कर रही होगी
आदमी की मामूली से मामूली गंध
सूप जैसे लम्बे कानों से सुन रही होगी
आदमी की सांसों की मद्धिम से मद्धिम
आवाज़


ओह जैसे ही
दरवाज़ा खुलेगा घुस जाएगी
शायद रात के सन्नाटे की वजह से
शायद पैंसठ का होने की वजह से
शायद दिन भर टीवी देखने की वजह से
इस तरह के ख़याल आ रहे हैं
कि हर जगह ऐसी कोई डरावनी चीज़ है
जो आदमियों के प्राण हर लेगी


मैं पत्नी को सोते हुए देखता हूं
तो सोते हुए अपने घर को देखता हूं
घर की एक-एक चीज़ को सोते हुए पाता हूं
लेकिन ख़ुद नहीं सो पाता हूं
देश और दुनिया की सड़कों पर
गज़ब का सन्नाटा देखता हूं
मेरे बार-बार करवट बदलने से
पत्नी जग जाती हैं पूछती हैं-
क्या हुआ नींद क्यों नहीं आ रही है
बच्चों के लिए परेशान हैं क्या
मेरे हां कहते ही उठ कर बैठ जाती हैं
मैं भी बैठ जाता हूं


मुझे लगता है
पृथ्वी पर जितने भी पति होंगे
पत्नियों के साथ उठ कर बैठ गये होंगे
और अपने बच्चों के बारे में
और मुल्क़ के हालात के बारे में
बात कर रहे होंगे सोच रहे होंगे


कुछ लोग
उन लोगों के बारे में सोच रहे होंगे
जो अपने बच्चों और वतन से दूर होंगे
शायद जहाज रेल बस के इंकार के बाद
इस वक़्त पैदल चल चुके होंगे
रात के दो बज गये होंगे


मां और बाबू जी
हैजा और प्लेग की महामारी के बारे में
जब हम सभी छोटे थे बताते थे
लेकिन हमने तो ख़ुद अपनी आंखों से
पहले जापानी बुख़ार से
यूपी बिहार और नेपाल की तराई के
पचास हज़ार से ज़्यादा बच्चों को
अपनी मांओं की गोद सूनी करके
असमय जाते देखा है


और अब
चीनी बुख़ार की काली छाया से
बूढ़ों और बच्चों को जाते देख रहे हैं
चीन से फैले कोरोना वायरस ने
पृथ्वी के जीवन का रस निचोड़ लिया है


दुनिया का हर देश भयभीत है
दुनिया की आंखों से नींद ग़ायब है
पत्नी कहती हैं
बच्चों से सोने के पहले बात हुई थी
सब ठीक है एहतितात कर रहे हैं
कोई बाहर नहीं जाएगा
ऑफिस का काम घर से होगा
आप भी अब सो जाइए


मेरी नींद छुट्टी पर है
नहीं-नहीं मेरी नींद बहुत डरी हुई है
और आंखें जाग रही हैं नौकरी पर हैं
आकर टीवी के कमरे में बैठ जाता हूं
टीवी पर एक भयावह दृश्य है
इक्कीस दिन के लॉक डाउन में
आनंदविहार बस अड्डे पर यूपी बिहार
झारखंड अपने गांव जाने वाले
दिहाड़ी मज़दूरों की
बीस-पच्चीस हज़ार की भीड़
एक-दूसरे से चिपकी हुई गुंथी हुई


एक के पास भी
छिपा हुआ वायरस हुआ तो तो तो
तो कई प्रदेश श्मशान में बदल जाएंगे
कहां है दिल्ली सरकार कहां है केंद्र
कहां है मज़बूत सरकारों का प्रबंध
ओह कितना कमज़ोर है
और सबसे बड़ी बात जनता ख़ुद
मौत के मुंह में क्यों जाना चाहेगी
ज़रूर कोई बड़ी मजबूरी होगी
चाहे हुआ होगा कुछ उसके साथ
बुरा


टीवी बंद करके बिस्तर पर लौटता हूं
तो दिन में दिल्ली के डिप्टी सीएम का
बयान याद आता है-
हमने स्कूलों में शेल्टर होम बनाए हैं
पूरा इंतजाम है रहने खाने का
लेकिन कोई अपने घर जाना चाहेगा
तो हम ज़बरदस्ती कैसे रोक सकते हैं
और दिल्ली सरकार की बसों से
भीड़ को आनंदविहार ले जाया जाता है


केंद्र कुछ कहता है
राज्य सरकारें कुछ करती हैं
यहां की सरकारों के अहमकों को
दूसरे देश के राजनेताओं के बारे में
पता नहीं कि उनका टेस्ट पाजिटिव आया है
एक देश की राजकुमारी गुजर गयी है
वायरस के साथ की गयी राजनीति
महंगी पड़ेगी राजनेताओं
सब मारे जाओगे मौत किसी को
ऊंची कुर्सी की वजह से छोड़ नहीं देगी


दूसरे देश कोरोना से लड़ने के लिए
कार और दूसरी चीज़ें बनाने वाली
फैक्ट्रियों में तेजी से वेटिंलेटर बना रहे हैं
देशवासियों के लिए सांसें बना रहे हैं
उनके जीवन को बचाने के लिए
पूरी ताक़त झोंक दे रहे हैं
अस्पताल बना रहे हैं
जांच किट बना रहे हैं
दवा बना रहे हैं


अपने देश की बेटी
वायरोलॉजिस्ट मीनल
अपने बच्चे को जन्म देने के
कुछ घंटे पहले तक अथक काम करके
देश के तमाम बच्चों और उनके
माता-पिता के लिए
कोविड-19 का जांच किट बनाती है
देश के लाखों डाक्टर नर्स
और स्वास्थ्यकर्मी भाई-बहन
जान की बाजी लगा कर लड़ रहे हैं


और हमारे कुछ नेता
ओछी राजनीति कर रहे हैं
टीवी पर सरकारी विज्ञापन में
एक सीएम निर्लज्जतापूर्वक
अपना प्रचार करते हुए
मसीहा बनने की क्या खूब नौटंकी
कर रहा है


बहुत मुश्किल वक़्त है
देश पर एक लंबी काली रात तारी है
हम मौत की जिस काली लंबी रात से
गुजर रहे हैं क्या गुजर पाएंगे
क्या सुकून की सुबह ला पाएंगे
सुबह के बारे में सोचता हूं
डर जाता हूं


मेरी आंखों की नींद
चुरा ले गयी है पृथ्वी पर पसरी हुई
मृत्युभय की अपूर्व काली छाया
लंबी रात की देह में प्रवेश कर चुकी है
और मेरी नींद को कुतर-कुतर खा रही है
मेरे कानों में उसके दांतों के चलने की
बहुत तेज़ आवाज़ आ रही है


कोई भारी चक्की चल रही है
जिसमें मेरी नींद पिस रही है
मेरा चैन पिस रहा है हम पिस रहे हैं
और पृथ्वी पर महामृत्यु हंस रही है
अट्टहास कर रही है।



("ये कविताएं कोरोना पर हिंदी की क्रमश पहली और दूसरी लंबी कविताएं हैं। बीते मार्च के आख़िरी हफ़्ते में एक लंबी विकलता से ग़ुजरते हुए लिखी गयी हैं।")


(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग गूगल इमेज से साभार ली गयी है।)


सम्पर्क

मोबाइल : 8318991953

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  1. 1-पृथ्वी पर काली छाया और 2-लम्बी रात --दोनों कवितायें सामयिक यथार्थ की मार्मिक अभिव्यक्ति हैं |भयावह स्थितियों में भी जीवन की उम्मीद और प्रेम का हेतुक बनाये रखने की अभिव्यक्ति इन कविताओं की विशेषता है |गणेश पाण्डेय को बधाई |

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  2. 1-पृथ्वी पर काली छाया और 2-लम्बी रात --दोनों कवितायें सामयिक यथार्थ की मार्मिक अभिव्यक्ति हैं |भयावह स्थितियों में भी जीवन की उम्मीद और प्रेम का हेतुक बनाये रखने की अभिव्यक्ति इन कविताओं की विशेषता है |गणेश पाण्डेय को बधाई |

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  3. 1-पृथ्वी पर काली छाया और 2-लम्बी रात --दोनों कवितायें सामयिक यथार्थ की मार्मिक अभिव्यक्ति हैं |भयावह स्थितियों में भी जीवन की उम्मीद और प्रेम का हेतुक बनाये रखने की अभिव्यक्ति इन कविताओं की विशेषता है |गणेश पाण्डेय को बधाई |

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