मदन कश्यप की कविताएँ

 

मदन कश्यप


मनुष्यता के विकास के साथ साथ कुछ ऐसी दुष्प्रवृत्तियों भी समय के साथ फली फूलीं जिन्होंने इस दुनिया के स्वरूप को विकृत ही किया। खुद के औरों से बेहतर होने और बनने की कामना ने ही विजेता होने का मिथक रचा होगा। हालांकि एक जीवधारी की प्रवृत्ति के रूप में भी मनुष्य ने इसे ग्रहण किया होगा। बुद्धिमत्ता और विवेक के विकास के बावजूद मनुष्य अपने उस परम्परागत जैविक स्वभाव को नहीं छोड़ पाया जिसमें 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' की भावना विकसित हुई। दुनिया का इतिहास भी विजेताओं का ही इतिहास है। पराजितों का तो कोई इतिहास भी नहीं। अपने को सभ्य बताने और जताने वाले इन तथाकथित विजेताओं ने पराजितों के प्रति जो नृशंसता बरती वह रोंगटे खड़े कर देने वाली है। अफ्रीका, लैटिन अमरीका और दक्षिण अमरीका के कई देशों को विजित कर विजेताओं ने ऐसी बेरहमी बरती कि उन पराजितों की अपनी भाषा और संस्कृति तक जमींदोज हो गयी। आज भी इन देशों के लोग अपने औपनिवेशिक स्वामी देश की ही भाषा, संस्कृति और कानून का इस्तेमाल करते हैं। बहरहाल दुनिया का कोई भी रचनाकार इन अर्थों में उन सबसे अलग धरातल पर खड़ा दिखाई पड़ता है जो विजेता होने के भ्रम के साथ जीने के लिए अभिभप्त हैं। अब्राहम लिंकन ने अपने पुत्र के शिक्षक के नाम लिखे गए पत्र में यह लिखा था कि 'उसे सिखाना कि पराजित कैसे हुआ जाता है?' यह एक महत्त्वपूर्ण बात है। हम सब कुछ सीख जाते हैं लेकिन जिंदगी भर पराजित होना नहीं सीख पाते। विजेता होने का पागलपन कुछ इसी तरह का होता है। मदन कश्यप हमारे समय के महत्त्वपूर्ण और जरूरी कवि हैं। अपनी कविता 'पराजय का गीत' में वे लिखते हैं : 'मैं रचूंगा पराजितों के लिए गीत/ जिनकी संख्या हमेशा विजेताओं से अधिक होगी/ बताऊँगा सब को कि हथियारों से नहीं/ श्रम और संगीत से रची गई है यह दुनिया।' आज पहली बार पर प्रस्तुत है वरिष्ठ कवि मदन कश्यप की तीन नवीनतम कविताएँ।



मदन कश्यप की कविताएँ



पराजय का गीत


कुछ लोभी इच्छाएँ अगर अब भी बची हैं

तो रहें

पड़ी रहें मन के किसी कोने में

मैं तो इस पराजय को स्वीकार करता हूँ

फ़िलहाल इसी के साथ जीना चाहता हूँ



बेचैनी में तो बीतेंगी विजेताओं की रातें

उन्हीं पर होंगी विरोधियों की घातक निगाहें

साजिशें भी रची जाएंगी उन्हीं के ख़िलाफ़

इतिहास रचने के अपने दंभ से

वे ही होते रहेंगे हलकान



मैं तो चुपचाप चला आया हूँ

शिकस्तग़ी के इस ख़ूबसूरत लोक में

जहाँ लहलहा रही हैं अनुरक्ति और कृतज्ञता की फसलें



विजेताओं

तुम्हारी उन्मादी दुनिया से कहीं बहुत अच्छी है

हम पराजितों की दुनिया

एक स्वपोषित ताक़तवर निरीहता में जीते हुए

अपने आत्मगौरव को बचाये रखना है हमें

तुम्हारी जीत में नहीं

हमारी हार में ही बची रहेगी मनुष्यता



तुम्हारे चमकदार हथियारों को देख कर

मैं धीमें से मुस्कुरा दूँगा

क़ातिल इरादों को भाँप कर

कुछ और किनारे हो जाऊँगा

तुम्हारी विजयिनी सेना को चुपचाप गुज़र जाने दूँगा

ताकि वे लौट कर अपने उन बच्चों से मिल सकें

जो उनके अभियान पर निकलने के बाद पैदा हुए हैं



मैं रचूँगा पराजितों के लिए गीत

जिनकी संख्या हमेशा विजेताओं से अधिक होगी

बताऊँगा सब को कि हथियारों से नहीं

श्रम और संगीत से रची गयी है यह दुनिया



मैं गाऊँगा

हाँफती हुई नदियों के लिए

दरकते हुए पहाड़ों के लिए

सहमे-सिमटे जंगलों के लिए

गाते खिलखिलाते मनुष्यों के लिए

जो होंगे हमारे साथ



विजेता

तुम्हारे साथ कौन होगा

बस एक थका हुआ ईश्वर!



निकोलाई मेस्ट्रोरोव की पेंटिंग द लूजर



लहू की थकान


दो-चार बार खाँसने से ही इतनी गहरी थकावट

गले में इतना दर्द

आँखों में इतनी जलन

सिर फटा जा रहा है

लगता है कुछ बुखार भी होगा

थर्मामीटर दराज में है

उठ कर बत्ती जलाने की ताक़त नहीं बची है

किसी को पुकारूँ

न मन में इतना हौंसला बचा है

न शरीर में इतनी कुव्वत

बोलना तो दूर

कराहना भी बहुत कठिन लग रहा है

छाती दबी जा रही है किसी अदृश्य चट्टान से

साँसे जूझ रही हैं अपनी गति बनाये रखने के लिए

रक्त को कितनी मशक्कत करनी पड़ रही है

अपनी ही रगों में दौड़ने-फिरने के लिए

पहली बार महसूस कर रहा हूँ

धमनियों में लहू की थकान

दुनिया की सारी ख़ुशबू

और पूरी बदबू

एक साथ मिट गयी है

कितना बेस्वाद हो गया है यह संसार

किसी दुष्ट रसोइए के बनाये भोजन जैसा

शांत हवाएँ भी कितनी बेचैन लग रही हैं!



अभी संध्या नहीं


कठिन दोपहर है

कही दिखती नहीं है छाँव

थक गये हैं तन-मन

हार गया हूँ सब दाँव


चले गये हैं स्वजन-परिजन सब

हृदय के आसन पे रख कर पाँव

धूप-नदी में बगूलों के भँवर

यों फँस गयी है ज़िंदगी की नाव!



(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग गूगल इमेज से साभार ली गयी है।)



संपर्क 


मदन कश्यप

बेटिना-2786, महागुन मॉर्डन, सेक्टर-78, 

नोएडा-201301 (उ.प्र.) 


मो. 9999154822 


E-mail : madankashyap0@gmail.com

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