ओके एकपाघा की कहानी 'क्या तुम्हें खाना बनाना आता है?'

ओके एकपाघा

 

ओके एकपाघा नाइजीरिया की एक युवा लेखक हैं जो अपने शब्दों के माध्यम से दुनिया को देखना समझना और अनुभव करना चाहती हैं। वे लोगों के साथ संवाद कायम करने के लिए साप्ताहिक न्यूज़लेटर निकालती हैं और अपने ई मेल angelekpagha@gmail.com की मार्फ़त अपने पाठकों और अन्य लोगों के संपर्क में रहना चाहती हैं। अफ़्रीकी महादेश की अफ़्रीकी लोगों द्वारा अफ़्रीकी लोगों के लिए निकाली जा रही पत्रिका "कालाहारी रिव्यू" से यह कहानी साभार ली गयी है । इस कहानी का अनुवाद किया है यादवेन्द्र जी ने। आज पहली बार पर प्रस्तुत है ओके एकपाघा की कहानी 'क्या तुम्हें खाना बनाना आता है?'

 

 

 

क्या तुम्हें खाना बनाना आता है?

                                                  

 

ओके एकपाघा  

 

 

 

"क्या तुम्हें खाना बनाना आता है?", वह पूछता है।

मैं चौंक कर उसकी ओर देखती हूँ... देखती रह जाती हूँ।

"इसका मतलब हुआ नहीं आता है", अनायास ही वह बोल पड़ा।

"क्या तुम्हें आता है?", जवाब में मैं भी पूछ देती हूँ।

"पर पहले मैंने पूछा था.... और यह कोई महत्वपूर्ण बात भी नहीं है कि मैं खाना बनाना जानता हूँ कि नहीं", उसने अपना बचाव किया।

"ओह, मैं कहती हूँ.... देखो, तीन नहीं तो हद से हद पाँच साल लगेंगे जब तुम्हारी शादी हो जाएगी, कोई शक इसमें?"

"तब बताओ तुम खाना बना पाओगे?", मैं फिर से पूछती हूँ।

वह मुस्कुराता है... "पर तुम्हारे साथ अच्छी बात यह है कि तुम दूसरी फेमिनिस्ट लड़कियों की तरह बर्ताव नहीं कर रही हो जिन्हें खाना बनाना दुनिया का सबसे खराब काम लगता है।"

 

 

उसकी यह बात सुन कर मैं भी हौले से मुस्कुरा देती हूँ।

"तुम्हारी फ़ेवरिट डिश क्या है?", वह जानना चाहता है।

"स्टार्च और बैंगा", मैंने जवाब दिया।

"अच्छाडेल्टा की हो न! तभी तो ....."

मैंने स्वीकार में सिर हिला दिया।

"पर जानती हो इसे बनाते कैसे हैं?"

मैंने फिर अपना सिर हिला दिया।

"कैसी बात करती हो, यह तुम्हारी फ़ेवरिट डिश है और तुम्हें उसे बनाने भी नहीं आता.... मान लो यह तुम्हारे पति की भी फ़ेवरिट डिश हुई, तो?", उसने अगला सवाल दाग दिया।

 


 

 

मैंने अपने कंधे उचका कर प्रतिक्रिया दी। 

"अच्छा बताओ,याम (रतालू जैसा जमीन के अंदर पैदा होने वाला अफ़्रीकी फल) कूट सकती हो?", उसने अगला सवाल दागा। 

"मैंने अपने जीवन में सिर्फ़ तीन बार कुटे हुए याम खाये हैं", मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल कर रूखा सा जवाब दिया। 

"अच्छा बताओ तुम्हारा पति कुटे हुए याम का शौक़ीन हुआ तब क्या करोगी?", वह सवाल पर सवाल दागता जा रहा था। 

 

 

मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और गहरी साँस ली। सोचा कहीं से हमारे बीच कोई आ क्यों नहीं जाता जिससे मुझे उसकी सूरत दिखाई न दे। आज का दिन क्या इसी सड़ी गली बकवासबाजी के लिए ही है? मन ही मन मैंने कहा - अपना ज्ञान अपने पास रखो ...  और मुझे मेरे हाल पर छोड़ क्यों नहीं देते। आखिर हम दोनों शादी थोड़े ही करने जा रहे हैं, मैंने तो कभी सोचा भी नहीं कि तुम मेरे पति बनोगे। 

 

 

"मेरा पति इतना समझदार तो होगा ही कि अपनी फेवरिट डिश खाने की जगह ढूँढ़ ले", मैंने जवाब दिया। 

 

 

"अच्छा, तो तुम अपने पति को घर के बाहर धकेल दोगी कि जा कर अपनी पसंद की डिश खा आओ .... इस से एक बात तो पक्की हो गयी कि तुम अब तक किसी रिलेशनशिप में रही नहीं हो ..... एक बार जब इसमें पड़ोगी तब आटे दाल का भाव मालूम हो जाएगा। तुम्हें क्या लगता है पतियों को पा लेना और अपने प्रेमपाश में बाँध कर साथ साथ लगाये रहना बच्चों का कोई खेल है?"हार कर उसने चोट पहुँचाने वाला तीर छोड़ा। 

 

 

मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। 

"मैंने तुमसे कुछ पूछा है"। 

"हाँ, तो फिर क्या हो गया?", खीझ कर मैं बोली। 

उसने मुझे घूर कर देखा तो मैंने भी उसी भाषा में जवाब दे दिया। यह  कैसा ईडियट है ... 

"तुम तो बड़ी मुँहफट और बदतमीज़ हो ...."  

 

 


 

 

यह सब देखते सुनते हुए मुझे लगा मेरा माथा अब फट जायेगा। गुस्से से मेरी ऑंखें वैसे ही लाल हो रही थीं और दिल धड़कने की रफ़्तार  तिगुनी  हो चली थी। मैं उसकी ओर से नज़रें हटा कर दूसरी और ताकने लगी। मुझे लगा इस ईडियट के बेतुके सवालों के जवाब क्या देने... दुनिया में ऐसे सिरफिरे एक नहीं अनेकों हैं और मेरे जवाब से उनका दिमाग सही होने नहीं वाला। उनके साथ सवाल जवाब कर के तुम खुद ही पागल बन जाओगी, वे तो सुधरने से रहे। वे अपने अपने कुँओं के मेंढक हैं - उनकी अनदेखी करो, इसी में तुम्हारी भलाई है। 

 

 

"मुझे नहीं मालूम कि तुम अपने आपको ज्यादा सयाना समझती हो या नहीं पर ऐसे जवाब दे कर तुम यह जरूर साबित करने पर आमादा हो कि घर पर तुम्हें ढंग से सिखाया पढ़ाया नहीं गया है ,तुम्हारी ट्रेनिंग नहीं हुई है।", पूरे निर्णायक अंदाज में वह  फिर बोल पड़ा। 

 

 

मेरे हाथ थरथराने लगे, साँस जोर जोर से चलने लगी। मुझे लगा मेरी आँखों से  अंगारे छिटकने ही वाले हैं... अब यदि मैं एक शब्द भी बोली तो गुस्से से थरथराती हुई मेरी आवाज से वह समझेगा मैं डर  रही हूँ। असलियत पता चलते ही उसको लगेगा मैंने गुस्सा हो कर सार्वजनिक रूप से उसकी इज्जत उतार दी है .... जब कि वास्तविकता यह है कि उस जैसे मूढ़ इंसान का पूरा वजूद ही मेरी शख्सियत और समझ का सरासर अपमान है, पर यह उस बेवकूफ़ को कभी समझ आ भी पाएगा इसकी कोई उम्मीद नहीं। मेरे पास वैसे शब्द नहीं हैं जिससे उसकी असल मूढ़ता का चित्र खींच कर उसके मुँह पर सामने से दे मारूं। फिर मुझे लगा उसे सारी बात बगैर किसी लाग लपेट के आमने सामने मुँह पर सुना ही देनी चाहिए... पर मुझ पर गुस्सा इस कदर हावी हो चुका  था कि ऐसा करती तो उपयुक्त शब्दों को वह अपनी छाया में ढँक लेता और अर्थ का अनर्थ भी हो सकता था। 

 

 

सो मैंने चुपचाप अपना सामान उठाया और फ़ौरन कमरे से बाहर निकल गयी।  

 



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