हरबंस मुखिया की कविताएँ




हरबंस मुखिया मध्यकालीन इतिहास के जाने-माने विद्वान् हैं हरबंस जी की कुछ कविताएँ आप पहले ही 'पहली बार' पर पढ़ चुके हैं इन कविताओं को पाठकों का असीम प्यार मिला। मैंने फिर हरबंस जी से कविताओं की गुज़ारिश की हाल ही में ये कवितायें मुझे प्राप्त हुईं। एक लम्बे अर्से के बाद पेश है पहली बार पर हरबंस जी की कुछ और कविताएँ।     

1. हीरोशिमा

हीरोशिमा की सरज़मीन पर
सरकारी दफ़तर के गुम्बद के सामने
जहाँ
कई बरस पहले
मेरे ही हाथों ने बम गिराया था
आज मैं तारीख़ का गुनहगार
अपने वजूद के मानी की तलाश में
सर झुकाये खड़ा हूँ
जहाँ हर जवाब
फ़क़त सन्नाटा है
न किसी सांस की आवाज़
न चराग़ की लौ

इस सन्नाटे में
मेरे बम से जले पेड़ पर
एक अंकुर फूटा
और मुझे देख कर
मुस्कुरा दिया


2. हव्वा कितनी ख़ूबसूरत रही होगी

जिस शाम
हव्वा का बदन
हवस से चराग़ाँ हुआ
वह उसकी मासूमियत
और पाकीज़गी का
सबसे महबूब लम्हा था

फिर सदियों तक हव्वा
दीन, तारीख़ और तमद्दुन* की चादर ओढ़े
अपनी मासूमियत में गुनाह का अहसास छुपाये
जिस्म से शर्मसार
हवस को झुठलाती
अपने वजूद से परेशान
उस महबूब लम्हे से नज़रें चुराए
ख़ुद से दूर भागती रही

आज जब तुम्हारी आँखों में
हवस की वही लौ जलती नज़र आयी
तो मुझे लगा
कि हव्वा कितनी ख़ूबसूरत रही होगी 

*तमद्दुन = सभ्यता 

3. मेरी दोस्त

मेरी एक दोस्त
हमदम और हमराज़
उसकी गहरी उदास आँखें
सरोद के सुरों जैसी
बरगद की छाओं जैसे बाल
होठों पर अनकहा प्यार
लम्स में जाँगुदाज़ नर्मी 
उसकी ख़ामोशी में
आख़री दम तक 
मेरी हमसफ़री का वादा है
यास# नाम है उसका

*लम्स = स्पर्श
# यास = निराशा, मायूसी





4. एतक़ाद*

अज़ल$ से
मेरा फ़क़त एक अटूट एतक़ाद है
ख़ुदा के अदम वजूद# पर
यह एतक़ाद
मेरी ही गोद में
पला, बढ़ा
मेरे लड़खड़ाते कदमों को
इस के कोमल हाथों ने सहारा दिया
मेरी बुझती आँखों को रौशनी दी
और मेरी हर शिकस्त पर
प्यार जताने की
ख़ू@ डाली

*एतक़ाद = विश्वास
$ अज़ल = समय का प्रारम्भ
# अदम वजूद = अनस्तित्व
@ ख़ू = आदत


5. बे उन्वान*

मैंने जब भी
तुम्हारे मुस्तक़बिल में
अपनी जगह तलाश की
दर्द की आड़ी -तिरछी लकीरें
मेरी आँखों में रक्स करने लगीं
वक्त मुझसे दूर
बहुत दूर हो गया
और तुम्हारी एक
ना आशना तस्वीर छोड़ गया

*बे उन्वान =शीर्षक-रहित

6. हक़ीक़त

मौत ही तो बस
ज़िंदगी की एक
मुतलक़* हक़ीक़त है
जिससे इन्कार में
हम उम्र गुजार देते हैं


*मुतलक़ =सन्देह के पार, Absolute  


 सम्पर्क-
 मोबाईल-  09899133174






     

टिप्पणियाँ

  1. बेजोड़ रचनाएँ . पहलीबार का आभार .
    -नित्यानंद

    जवाब देंहटाएं
  2. Bahut saaf suthri sachi kavitaye. Kavi ko badhai v santosh ji ka dhanyvad. Manisha jain

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद संतोष | एक बार फिर सर की बेहतरीन कविताओं के लिए |

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

शैलेश मटियानी पर देवेन्द्र मेवाड़ी का संस्मरण 'पुण्य स्मरण : शैलेश मटियानी'