विश्व लोकधर्मी कवियों की श्रृंखला-3: माइकोव्स्की



                                                                    (मायकोव्स्की)

पहली बार पर हमने जनवरी में 'विश्व के लोकधर्मी कवियों की एक श्रृंखला' का आरम्भ किया था। वरिष्ठ कवि एवं आलोचक विजेन्द्र जी ने हमारे आग्रह पर इस श्रृंखला पर लिखने की अपनी सहमति दी थी। इस कड़ी में आप पहले ही व्हिटमैन और बाई जुई के बारे में पढ़ चुके हैं। तीसरी कड़ी में प्रस्तुत है मायकोव्स्की पर यह आलेख।      
       

माइकोव्स्की   लोकधर्मी  क्रांतिकारी कवि      

विजेन्द्र

     माइकोव्स्की की एक प्रसिद्ध कविता है , ‘आयकर वसूलने वाले से संवाद ’। कवि कहता है आयकर वसूलने वाले से कि आपके काम में थोड़ा व्यवधान डालने के लिये आप मुझे क्षमा करेंगे। क्योंकि कवि जानना चाहता है कि ‘श्रमियों के समाज में आखिर कवि का दर्जा क्या होगा! व्यवसायिओं और धनिकों की तरह वह भी तो आयकर देता है। जुरमाना भी। तुम मुझ से चाहते हो ज्यादा वसूलना क्योंकि मैंने अग्रिम नहीं भेजा आय का अपना ब्यौरा। कहाँ हैं दूसरों से भिन्न मेरा काम । आगे कवि उसको आगाह करते हुये कहते हैं -

मैं अपनी प्रजा का नायक हूँ
उसका शिष्य भी
हमारे मुहावरे में ही बोलता है
हमारा वर्ग
हम हैं कलम के श्रमिक
सर्वहारा

इन पंक्तियों की ध्वनि है कवि का सामान्य जन होना। वह सर्वहारा के साथ है। समाज से वह सीखता है। पर उसे उजाला भी देता है। कवि ने संकेत दिया है कि  धनिको और शोषकों की वजह से वह कभी नही चुका पायेगा कर्ज। यह  कि कवि इस पूरी दुनिया का कर्जदार होता है। और यह कर्ज उसे सूद सहित चुकाना पड़ता है। कई बार जुरमाना भी देना पड़ सकता है -

कर्जदार होता है कवि सदा
इस दुनिया का
मैं हूँ कर्जदार राजपथ के उजाले का
बगदाद के आकाश का
अपनी लाल सेना का
जापान में फलते चेरी के वृक्षों का
उन सबका भी
जिनके विषय में लिखने का
वह न पा सका समय 

अंत में कवि कहते हैं आयकर सूलने वाले से कि ‘वह’ सिर्फ अपने समय का ही आदमी है। उसे सरकारी परिवहन विभाग ही अमरता का प्रमाण पत्र दे सकता है। कवि का महत्व इसलिये ही नहीं है कि उसे बाद में लोग बड़े आदर से याद करें। बल्कि अपने समय में भी उसकी कविता जनता की सेवा में अर्पित रहे -

कवि का प्रत्येक शब्द
आज भी एक चुम्बन है
एक उदघोष है
एक  संगीन है
एक कोड़ा भी 

ध्यान देने की बात है कि कवि यहाँ कविता को लोक के हित में हथियार  भी बना रहे है। प्रेमचंद ने अपने को ‘कलम का सिपाही’ कहा है। हमारी काव्यशास्त्रीय परम्परा में भी  कविता को हथियार  की तरह प्रयोग करने की अनुमति दी है। काव्य प्रयोजनों को बताते हुये आचार्य मम्मट ने ‘शिवेतर क्षतये’ को भी एक प्रयोजन बताया है। यानि जो जन विरोधी है - जो लोक का अहित करता है - कविता उसका क्षरण करे। उसे विनष्ट करे। वाल्मीकि रामायण का ‘युद्ध काण्ड’ वेदव्यास के महाभारत में व्यक्त ‘संघर्ष और युद्ध’ , तुलसी  का  ‘लंका काण्ड ’ निराला की ‘राम की शक्ति पूजा‘  नागार्जुन की ‘हरिजन गाथा’, केदारनाथ अग्रवाल की ‘ ‘काटो काटो करवी’ आदि कवितायें ‘शिवेतर क्षतये’ की ओर संकेत करती हैं। आज कविता को जो लोग ‘आत्मसाक्षात्कार’ या अपनी ‘अस्मिता की खोज’ भर मानते हैं  वे उसके लोकधर्मी स्वभाव को भौंथराते हैं। लोकधर्मी कवि कविता को जनता के पक्ष में उसे एक हथियार की तरह भी प्रयोग में लाने से नहीं हिचकता। मायकोव्स्की इसी भारतीय परंपरा के कवि है। ठीक इसी तरह वाल्ट ह्विटमैंन, ब्रेख्त, लोर्का, नेरूदा, नाजिम हिकमत, वाइ जुई, वोले शोयिंका आदि सभी लोकधर्मी कवि जनता के पक्ष में कविता को हथियार की तरह इस्तैमाल करने में अग्रगामी रहे हैं। इन सभी कवियों से सत्ता त्रस्त रही है। उसने इन्हें मनमानी यातनायें भी दी है। ब्रेख्त ने अपनी कविता के बारे में कहा ही है -

तुम्हारे पंजे देख कर
डरते हैं बुरे आदमी ।

 वोले शयिंका कहते हैं -

तो आओ , करें हम एक समझौता
चोट खाये लोगों के साथ
उनके खिलाफ
जो नहीं हैं किसी भी तरह कम
मौत के गिरोहवाज़ों से
उड़ा देते हैं जो परखचे
दिमाग के

एक लोकधर्मी कवि को जनता के पक्ष में अपना दायित्व निर्वाह करने के लिये कविता से मुठभेड़ का भी काम लेना पड़ता है। मायकोव्स्की  एक जनप्रतिबध्द लोकधर्मी कवि हैं । वह कविता को अन्य किसी मानवीय कर्म से अलग नहीं मानते। उन्हीं के शब्दों में  ‘यदि कविता को श्रेष्ठकोटि की गुणात्मक ऊँचाइयों तक ले जाना है, यदि उसे आगे भी जीवंत बना रहना है तो जरूरी है कि उसे सामान्य काम समझ कर और सभी तरह के मानवीय काम से अलगाना छोड़ दें’। हमें लगेगा कि मायकोव्स्की जनता से इतनी नज़दीकी बनाने पर जोर क्यों दे रहे हैं! क्योकि लोकधर्मी कवि का पहला दायित्व यही है कि वह अपने देश की जनता से एकात्म हो। उसके संघर्ष में शिरकत करने को जोखिम उठाये। सत्ता को बराबर चुनौतियाँ खड़ी करे।


 मायकोव्स्की का जीवन अत्यंत नाटकीय रहा है। जोखिमों और  चुनौतियों से भरा पूरा। 14 साल की उम्र में ही कवि  ने समाजवादी प्रदर्शनों में भाग लेना शुरू कर दिया था। उस समय वह  ‘ग्रेमर स्कुल’ के छात्र भी थे। 1906 में उनके पिता की सहसा और समय पूर्व मृत्यु हो गई। कवि अपनी माता तथा दो बहनों के साथ मास्को चले गये। मास्को में रह कर उनके मन में माक्र्सवादी साहित्य पढ़ने की जिज्ञासा पैदा हुई। साथ ही वह ‘सामाजिक लोकतांत्रिक श्रमिक दल’ की गतिविधियों में सक्रिय हुये। बाद में वह बोल्शविक पार्टी के सदस्य बन गये।  उनकी माता पर उनकी पढ़ाई की फीस के लिये धन नहीं था। अतः उन्हें ‘ग्रेमर स्कूल’ से निकाल दिया गया। इसी समय के आस पास कवि को उनकी विद्रोह राजनीतिक गतिविधियों की वजह से तीन बार जेल जाना पड़ा।  नावालिग होने की वजह से वह निर्वासन से तो बच गये। 1909  में बुतीरका जेल में एकाकी होकर उन्होंने काव्य रचना शुरू की। पता लगने पर उनकी कविताओं को जब्त कर लिया गया। जेल से रिहा होने पर भी वह समाजवादी आंदोलनों में बराबर सक्रिय रहे। 1911 में उन्होंने  मास्को के ‘आर्ट स्कूल’ में प्रवेश लिया। वहाँ कवि रूस के ‘भविष्यवादी आंदोलन’ से जुड़े सदस्यों के संपर्क में आये।  थोड़े ही समय में वह इस समूह के प्रवक्ता बन गये। डेविड बल्र्यूक उनके अनन्य मित्र बने। एक अच्छे परामर्शदाता भी। मास्को में रहकर कवि ने ‘रूसी राज्य टेलीग्राफ एजेन्सी’ के लिये काम किया। 1919 में  उनका प्रथम काव्य संचयन (1909 - 1919) प्रकाशित हुआ । प्रारंभिक सोवियत संघ के सांस्कृतिक  माहौल में कवि की लोकप्रियता तेजी से विकसित हुई। 1922 से 1928 तक मायकोव्स्की ‘वाम कला मोर्चा’ ( Left Art Front ) के प्रमुख सदस्य थे। वह लगातार सामाम्यवादी भविष्यवाद ( Communist Futurism ) की व्याख्या करते रहे ।
अमरीका की एक व्याख्यान  यात्रा में उनका परिचय ऐली जोन्स से हुआ। बाद में उनसे एक पुत्री  जन्मी । कवि को इसका पता 1929 में लगा। यह वह समय था जब दोनों छिप कर फ्रांस में मिले। दोनों के संबंधों को बहुत ही गुप्त रखा गया था। 1920 के अंतिम दिनों में कवि के तात्याना याकोवलेवा से प्रेम संबंध विकसित हुये। उन्होंने अपनी एक कविता ‘तात्याना याकोवलेवा के लिये एक पत्र’ उसी के लिये समर्पित की है।

        मायकोव्स्की की काव्य यात्रा अत्यंत नाटकीय रही है। 1912 में उनके भविष्यवादी काव्य का प्रकाशन हुआ। नाम है, -'A Slap In The Face Of Public' इसमें शुरू की कवितायें हैं जैसे (Night and Morning)। पर कवि की राजनीतिक गतिविधियों  की वजह से उन्हें मास्को ‘आर्ट स्कूल’ से भी निकाला गया।

     1914 तक कवि भविष्यवादी आंदोलन के असर में लगातार सक्रिय रहे। बाद में उनकी कविता में ‘वर्णना शैली’ की प्रचुरता रही। रूसी क्रांति से पहले इस तरह की कविताओं ने उन्हें रूस का महत्वपूर्ण कवि स्वीकार किया। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर भी उनकी काव्य दीप्ति निखरने लगी।

   1915 में उनकी एक अत्यंत महत्वपूर्ण कविता ‘पैंट पहने हुये बादल’ (A Cloud In Trousers) प्रकाशित हुई। यह उनकी पहली प्रमुख कविता है जो पर्याप्त लंबी भी है। इसका कथ्य भी संश्लिष्ट है। इस कविता का तेवर मूर्ति भंजक है। कवि पहले से चली आई काव्य रूमानियत को कई तरह से ध्वस्त करते हैं

पिलपिले भेजे में
तुम्हारे विचार देखते हैं स्वप्न
लेटे लेटे
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उनकी धज्जियाँ उड़ानी ही हैं मुझे ।
सामंती प्रेम पर भी यहाँ तीखे प्रहार हैं -
यदि चाहा तुमने
खाल उचेल के रख दूँगा

सब रूमानी प्रेम प्रसंगों की  - इसका अर्थ यह नहीं लगाना चाहिये कि क्रांतिकारी कविता में प्रेम निषिद्ध है। उसके प्रसंग, ध्वनि और अर्थ व्याप्ति अलग और भिन्न हो सकते है। कवि ने अपने जीवन में प्रेम किया ही है। उसकी उसे तल्ख अनुभूति भी हृई होगी। नेरुदा ने अपनी काव्य यात्रा शुरू ही प्रेम कविताओं से की थी। नाजि़म कारावास की काल कोठरियों में भी प्रेम कवतायें अपनी पत्नी को संबोधित करते रहे। अतः लोकधर्मिता तथा प्रेम से कोई बैर नहीं है। मायकोव्स्की कहते हैं -

मैं प्रेम में आह्लादित
दूसरी बार हिस्सा लूँगा
इस खेल में
अपनी भ्रूभंगिमा से
छिटकूँगा नरक की आँच -

कवि ने कविता और कवि दोनों की अवधारणा बदलने की कोशिश की है -

तुम्हें कवि कहलाने का कोई अधिकार नहीं है
तुम्हारी चहक गौरैयों की तरह
विरस और थकाऊ  है -

कवि को पुरानी सामंती या कुलीन प्रेम कवितायें रूग्ण लगती हैं । उनमें उन्हें कवि का रुदन दिखाई पड़ता है -

अपनी रुग्ण कविता में ही
तुम भावविभेर रहो
तुम रोते हो मोटे आँसुओं से
तुमसे मैं अलग होता हूँ।

उन्होंने एक जगह कहा भी है कि ‘प्राचीनता के उत्साही पुजारी नयी कला से बचने के लिये स्मारकों के पीछे शरण लेते हैं’। साथ में उन्होंने अतीत के साहित्य के महत्व को स्वीकारते हुये यह भी कहा है कि ‘हमें अतीत के काव्य से झगड़ना नहीं चाहिये । यह तो हमारी पाठ्य सामग्री है'।

सब मानते हैं माइकोव्स्की एक क्रांतिकारी कवि हैं। वह सर्वहारा के पक्षधर भी है। पर उनकी दृष्टि स्त्रियों के प्रति  सामंती क्यों दिखाई देती है। अपनी इसी प्रदीर्घ कविता में अपने शौर्य के सामने इस पूरी दुनिया को वह एक विवश स्त्री की तरह पैरों पर पड़ा आखिर क्यों दिखाते हैं! स्त्री को इस दशा में दिखाने के लिये यह रूपक माइकोव्स्की को अनुचित क्यों नही लगा

पूरी दुनिया -
मेरे पावों पर पड़ी होगी
एक स्त्री की तरह
रिझाने को मुझे

लुटा के अपना सारा सौंदर्य - यहाँ मुझे लगा कि कवि अति उत्साह में अपनी क्रांतिकरी हदों को त्याग रहे हैं। स्त्रियों के प्रति इस तरह कर अराजक तथा सामंती दृष्टिकोण हमारे यहाँ कवि धूमिल का भी है। वह भी स्त्री को माँ बन जाने के बाद उसे ‘धर्मशाला’ की संज्ञा देते हैं। स्त्री के प्रति यदि स्वस्थ जनवादी दृष्टि देखना है तो हमें नागार्जुन की  ‘ सिंदूर तिलकित भाल ’ कविता देखनी चाहिये -

 घोर निर्जन में परिस्थिति ने दिया है डाल
याद आता तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल

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कौन है वह व्यक्ति जिसको चाहिये न समाज
चाहिये किसको नहीं सहयोग
चाहिये किसको नहीं सहवास

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यहाँ है दुख सुख का अवबोध
यहाँ तुम्हारी स्मृति -विस्मृति के सभी के साथ
तभी तो तुम याद आती प्राण
हो गया हूँ मैं नहीं निष्प्राण - 

व्यक्ति प्रेम कितना स्वस्थ तथा व्यापक बनता है - इसकी ध्वनि लय सहाँ सुनी जा सकती है। ऐसा ही स्वस्थ जनवादी प्रेम हमें निराला, केदार बाबू तथा त्रिलोचन में भी मिलता  है। स्त्री प्रेम तथा उसके प्रति मनुष्य के दृष्टिकोण को लेकर  कम्युनिस्ट नैतिकता क्या है - इस प्रसंग में प्रसिद्ध पत्रकार क्लैरा जैट्किन तथा लेनिन के बीच हुई बात चीत अत्यंत महत्वपूर्ण है। कुछ लोग आज भी यह मानते हैं कि कम्युनिस्ट होने का अर्थ है कि मनुष्य पर किसी तरह का कोई बंधन नहीं है। अर्थात उसे अपने निजी आचरण तथा सामाजिक नैतिकता से कुछ लेना देना नहीं है। इसी संदर्भ में क्लैरा जैट्किन ने लेनिन से लंबी बात चीत की है। लेनिन का मत है कि कम्युनिस्ट के जीवन में नैतिक आचरण  महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि हर तरह से जरूरी भी है। स्त्री के प्रति हमारी दृष्टि स्वस्थ तथा समानता की होनी चाहिये। जीवन में नैतिक संयम तथा अनुशासन कम्युनिस्ट होने की पहली शर्त है।  मायकोव्स्की ने शायद इधर ध्यान नहीं दिया! इस लंबी पूरी कविता में प्रेम, क्रांति, धर्म तथा कला पर  टिप्पणियाँ हैं। मुझे लगा मायकोव्स्की एक तिरस्कृत प्रेमी की भाषा बोलते हैं। इस कविता की भाषा बहुत ही सामान्य तथा आम आदमी के लिये जैसे संबोधित है। उन्होंने कवियों के  रूमानी विचारों तथा आदर्शो की  तीखी आलोचना की है ।


      1915 के ग्रीष्म में कवि पुनः एक विवाहित महिला से प्रेम करने लगे थे। उसका नाम था लिलिया ब्रिक। उनकी 1916 में रचित कविता ‘ (The Backbone Flute) इसी महिला को समर्पित है। मज़े की बात यह कि महिला उनके प्रकाशक की पत्नी थी जिसका नाम ओसिप ब्रिक था। कहा जाता है कि कवि के प्रेम प्रसंग, युद्ध  तथा समाजवाद के विचार ने इस दौर की कविताओं को बहुत प्रभावित किया है। यहाँ फिर कोई भी कवि के नैतिक आचरण पर प्रश्न खड़े कर सकता है ! जिस समाजवाद के वह पक्ष में हैं क्या उस समाजवाद में ऐसे ही नैतिक प्रतिमान होंगे! कवि की इस दुर्बलता ने उन्हें अंत तक अराजक बनाये रखा है ! 1916 में ही उन्होंने एक और कविता रची -(War And The World.)। यह कविता युद्ध की विभीषिका को व्यक्त करते हुए  प्रेम की मनोव्यथा को व्यक्त करती है।

         प्रथम युद्ध  के समय माइकोव्स्की को सेना में एक स्वयं सेवक के रूप में नहीं लिया गया। उसके बाद उन्होंने ‘Petrograd Military Automobile School में मानचित्रक के रूप में कार्य किया। रूसी क्रांति के समय कवि पैट्रोग्राड के आस पास ही थे। वहाँ उन्होंने अक्टूबर क्रांति को करीब से देखा। उस समय उन्हों ने Left March’ कविता का पाठ भी किया।

मायकोव्स्की ने कुछ नाटक भी लिखे हैं। पर उनकी प्रमुख छवि  एक क्रांतिकारी कवि की ही है -

मैं  कवि  हूँ
वही मुझे रुचिकर बनाता है
उसी के बारे मे कवितायें
रचता हूँ

इस तरह माइकोव्स्की  क्रांति के अग्रदूत तथा उसके गायक के रूप में विश्व में प्रख्यात हुए ।   कविता के साथ कवि का एक रूप चित्रकार, प्रचारक, अभिनेता तथा व्यंग्यकार का भी है । रूसी कविता का उनको ‘क्रोधोन्मादी बैल’ भी कुछ लोग कहते हैं। कुछ ने  उन्हें ’तुकांत कविता का जादूगर’ बताया है। कुछ उन्हें रूस में  ‘यथार्थपरक क्रांतिकारी कविता का प्रवर्तक’ मानते हैं। कुछ ने उन्हें ‘व्यक्तिनिष्ठ कवि’ की भी संज्ञा दी है। पर वह सत्ता तथा प्रतिष्ठान द्वारा रचे गये प्रतिमानों के  विरुद्ध विद्रोही कवि सुविख्यात हैं। यह सही है कि  रूसी क्रांति के सार को कविता में व्यक्त करने वाला अन्य कोई कवि नहीं था। वह रूसी अक्टूबर क्राति के अग्रदूत कवि हैं। उनकी मृत्यु के बाद स्टालिन तक ने उनके लिये ‘सोवियत काल का उत्कृष्ट तथा प्रतिभा संपन्न कवि’ कहा है। ये शब्द उनकी कविता के लिये एक प्रकार से प्रतिमान बन चुके हैं।  कवि के अन्य पहलू भी हैं जिन्हें जानना जरूरी है। वह असुरक्षित रूप से  ‘भावोन्मादी’ कवि हैं। वह ‘निराशोन्मत्त’ होकर  प्रेम करते थे। और चाहते थे कि लोग उन्हें चाहें, प्यार करें। दुर्भाग्य से यह हो नहीं पाया। मायकोव्स्की का जन्म और मृत्यु दोनों ही रहस्यमय बनी रही हैं।  सर्वहारा के पक्षधर  प्रख्यात कवि कुछ इस तरह दिखते हैं जैसे वह अंदर से शायद वैसे वह  हैं भी या  नहीं। किसी कवि के लिये इससे बड़ी त्रासदी और कोई हो नहीं सकती। यदि हमारे दोहरे चरित्र के बारे में कोई उँगली उठाये तो समझें कि हम से कविता की गरिमा छीनी जा रही है। जब हम लोक को उजाला देने की बात करते हैं तो हमें अपने आचरण और नैतिक आदर्शों पर कड़ी निगाह रखनी ही होगी।

       1920 के प्रारंभ में ही सोवियत समाज में अफसरशाही हावी होने लगी थी । इस के असर में कवि ने एक तीखी व्यंग्य कविता रची ‘Re Conferences’ अफसरशाही पर यहाँ तीखे व्यंग्य हैं। ‘आयकर वसूलने वाला’ उनकी ऐसी ही कविता है -

मैं ज़ोर देकर कहता हूँ
इन शब्दों का मूल्य
धन से कहीं ज़्यादा है
अपने शब्दों में कहें तो
एक ‘तुक’
डाइनामाइट के एक भरे कनस्तर के बराबर है
पलीता है एक पंक्ति
पूरे नगर को उड़ा सकता है
मेरा छंद

उनकी एक और कविता है ‘पेपर का आतंक’-

बिखरते फिरते हैं कागज़ ही कागज़
बुरी तरह भरी फाइल से
दाँत निपोरते और गुर्राते हुये
बहुत शीघ्र ही आदमी
इन फालों में सरकेंगे
बिलों को खोजने के लिये
फिर रहने चले जायेंगे कागज़
घरों में आदमियों के

इसी कविता में कवि को मनुष्य की आंतरिक रिक्तता तथा उसका अमानवीय होना  परेशान करता दिखता है। आफिसों में चारों तफ  कागज़ों का ही साम्राज्य है। कवि भविष्यवाणी के लहज़े में कहते हैं कि कागज़ ही मेज़ पर बैठकर अपना खाना खायेंगे। जबकि आदमी एक तोलिया की तरह गुड़ी मुड़ी होकर मेज़ के नीचे पडे़ होंगे -

मेज़ पर बैठेंगे कागज़
खना खाने के लिये
जबकि आदमी तोलिया की तरह
पड़े होंगे गुड़ी मुड़ी
मेज़ के नीचे

कवि सर्वहारा को संबोधित करते हुये उसे सजग करता है कि वह इस हृदयहीन अफसर शाही की यांत्रिकता से नफरत करे। यह उनका शत्रु है बरवाद करने को तत्पर -

कागजों की पुर्जी पुर्जी करके उड़ा दूँगा
ओ सर्वहारा
तुम नफरत करो
व्यर्थ के
हर छोटे से छोटे कागज़ से
नफरत करो
उसी तरह जेसे
तुम नफरत करते हो अपने शत्रु से

  कहते हैं उन्ही दिनों लेनिन ने एक व्याख्यान में कहा था कि वह ‘मायकोव्क्सी से बहुत कुछ सहमत’ है। क्यों कि ‘अफसरशाही श्रमियों की राज्य को खा’ रही है। 1924 में मायकोव्स्की ने अपने महान नेता लेनिन की मृत्यु पर एक सुदीर्घ कविता रची। कहा जाता है कि सोवियत संघ के तमाम स्कूलों में उस कविता को बच्चों ने कंठस्थ कर लिया था। इस कविता में लेनिन की महानता के साथ क्रांति तथा उसके अनेक पहलुओं को व्यक्त किया है। प्रारंभिक पंक्तियाँ हैं -

समय आ चुका है
मैं शुरू करता हूँ लेनिन की कहानी
इसलिये नहीं क्योंकि अवसाद ढलने को है
बल्कि उस क्षण की तीखी मनोव्यथा
हुई है और तीक्ष्ण
पीड़ा
गहन हुई है
ओ समय
गतिमय रहो
लेनिन के नारों को फेलने दो त्वरित
कुछ भी हो आँसुओं में डूबना नहीं है
लेनिन से ज्यादा जीवंत
और नहीं है कोई
हमारी शक्ति
हमारा ज्ञान
अचूक हमारे अस्त्र-शस्त्र

इसमें संदेह नहीं यह एक महान कविता है। लेनिन एक महानायक की तरह इसके केंद्र में होते हुये भी कविता में उस समय का समय जीवंत हुआ है। टी0एस0एलियट की ‘वेस्ट लैण्ड’ लिखी गई 1920 के आसपास। दोनों कवितायें दो ध्रुवों पर खड़ी दिखती है। एलियट विश्व संकट का समाधान धार्मिक पुनरुत्थान तथा नृपतंत्र की बहाली में देखते हैं। मायकोव्स्की सर्वहारा की मुक्ति तथा समाजवाद में। इसी अर्थ मे मायकोव्स्की की ‘लेनिन’ कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक लगती है। क्योंकि आज पूँजीवाद का संकट और साम्राज्यवाद का आतंक न तो धर्म से उलझाये जा सकते हैं। न नृपतंत्र की बहाली से  उसके लिये एक ही विकल्प शेष है कि सर्वहारा की मुक्ति  हो। समतामूलक समाज बने। विश्वभर मे असंतोष है कि पूँजीकेंद्रित व्यवस्था अंदर से सड़ चुकी है। अमरीका में  ‘वालस्ट्रीट घेरो’ आंदोलन के साथ योरुप के सभी देशों में एक समतामूलक वयवस्था के लिये नई पीड़ी आंदोलित है।

1922 से 1928 तक मायकोव्स्की (Left Art Front) के प्रमुख सदस्य रहे। इसी के माध्यम से वह  (Communist Futurism) की व्याख्या करते रहे। उनका लेखन बराबर जारी रहा। उन्होंने कहने को नाटक भी लिखे । विज्ञापन के लिये पोस्टर्स भी बनाये । लेकिन बाद में बोल्श्विक पार्टी सख्त हुई। नये प्रयोगों तथा  दिशाहीन अग्रगामिता को उसने स्वीकृति नहीं दी। मायकोव्स्की अपने देश के सर्व प्रसिध्द कवि होने पर भी कुछ लोग उनकी कविता का विरोध करते थे । खासतौर पर उनका व्यंग्य नाटक ( The Bath House ) की सर्वहारा लेखकों के संगठन ने कड़ी आलोचना की । 1928 में कवि के 20 वर्ष के रचना कर्म की उन्हीं के साथियों तथा दल  के नेताओं  द्वारा उपेक्षा हुई । 9 अप्रैल , 1930 को उनहेंने छात्रों के समक्ष अपनी कविता (At the Top Of My Voice ) का पाठ किया । छात्रों ने उन्हें यह कहते हुये हूट किया कि कविता दुरूह है । एक सर्वहारा  से प्रतिबद्ध  कवि में ऐसी दुरूहता क्यों आई। जो उसके ही साथी उसका विरोध करने लगे। कहीं इसका गहरा तथा अचेत रिश्ता कवि के गिरते आचरण से तो नहीं है! इससे कवि को गहरा आघात पहुँचा होगा।

 मायकोव्स्की उन कुछ ही कवियों में से एक हैं जिन्हें बाहर जाने के लिये मुक्त रखा गया था। उन्होंने योरुप, मैक्सिको, क्यूबा, तथा अमरीका का भ्रमण किया । बाद में अपने अनुभवों को उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक (My Discovery Of America) में अंकित किया है। कहा जाता है यात्रा से लौटते समय उनके बक्से किताबों  , पत्रिकाओं ,कला की प्रतिलिपियों से भरे थे । उन्होंने इस सामग्री को अपने मित्रों में वितरित किया । उन्हें यात्रा में अनेक उपहार भी मिले थे ।



     1925 के ग्रीष्म में उन्होंने न्यूआर्क की यात्रा की। जैसा कि पहले बताया है कि ऐल्ली जोन्स से यहाँ उनकी भेंट हुई।  ऐल्ली रूसी मूल की ही थी। लेकिन क्रांति के बाद वह अमरीका आ गई थी। एक अंग्रेज से उसने विवाह किया। बाद में दोनों का तलाक हो गया। मायकोव्स्की और ऐल्ली का प्रेम संबंध बहुत ही गुप्त रखा गया। क्योंकि सोवियत कवि को किसी  आप्रवासी से प्रेम में उलझना उचित न था। कवि को पता न था कि वह एक पुत्री के पिता बनने को हैं। 1928 में फ्रांस में उन्होंने उसे एक बार देखा था। उस समय वह तीन साल की थी। उनकी पत्नी लिली को जब इस बात की भनक पड़ी तो वह बहुत दुखी हुई। उसने एक समाधान सोचा। 22 वर्षीय सुंदर अपनी बहन तात्याना से उसने कवि का परिचय कराया। तात्याना प्रसिद्ध  माडल तथा पिरल सुंदरी थी। फैशन के चैनल में काम करती थी। मायकोव्स्की ने दो कवितायें लिखीं (‘Letter to Comrade Kostrov On The Essence Of Love) तथा (Letter to Tatiana)। दोनों कवितायें तात्याना को  ही समर्पित है। लगता है कवि प्रेमोन्मादी और भावावेश में हैं। बाद में उनकी पत्नी ने उन्हें फटकारते हुये लिखा कि ‘तुमने मुझे पहली बार धोखा  दिया है’। मायकोव्स्की प्रेमोन्मादी की तरह तात्याना से विवाह के लिये निवेदन करते रहे। वह उसके साथ पेरिस जाने के लिये भी तत्पर थे। किसी तरह उन्हें वीज़ा प्राप्त नहीं हुआ। उसी दौरान लिली ने कवि को पत्र लिखा कि तात्याना का विवाह होने को है। जबकि शादी का ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं था। जनवरी 1929 में  मायकोव्स्की ने बताया कि वह तात्याना से बेहद प्रेम करते हैं। यदि उनका विवाह उससे नहीं हुआ तो अपने अपने सिर में पिस्तौल से गोली मार लेंगे। 14 अप्रैल 1930 को उन्होंने अपने सिर में गोली दाग ही ली।

      मायकोव्स्की ने एक मृत्यु पत्र छोड़ा था। उसमें कहा है, ‘आप सबको मैं संबोधित करता हूँ। मैं आत्महत्या कर रहा हूँ। इसके लिये कोई भी दोषी न ठहराया जाये। कृपया अफवाह न उड़ायें। क्यों कि मरने वाला इन बातों को कतई पसंद नहीं करता। माँ, बहने, साथियो मुझे क्षमा करना। इस मृत्यु का कोई अच्छा तरीका नहीं है। मैं दूसरों को इसे प्रस्तावित नहीं करता। पर मेरे लिये अब कोई अन्य रास्ता नहीं है। लिली मुझे पयार करती है। साथी सरकार, मेरे परिवार में लिली ब्रिक, मेरी माँ,  मेरी बहने आदि हैं। यदि तुम उन्हें एक अच्छा जीवन प्रदान कर सको तो मैं आभार मानूँगा। जो कवितायें मैंने शुरू की हुई हैं उन्हें ब्रिक्स को दे दें। वे उन्हें समझते हैं। कवि की एक मर्म भेदक पंक्ति है -

प्रेम नौका हर दिन के विरुद्ध
टकरा के तवाह हुई है

आज भी कवि की मृत्यु को लेकर विवाद तथा रहस्य बनें हैं। रहस्य इस अर्थ में कि कवि को आत्म हत्या के लिये किस कारक ने प्रेरित किया। विवाद इसलिये क्योंकि कवि ने आत्म हत्या असफल प्रेम या गृहस्थ जीवन में उपजी निराशा से की। अथवा कवि को वह सब नहीं मिल पाया जिस की उन्होंने अपना समाज, राज्य तथा साथियों से बड़ी अपेक्षा की थी।

कहते हैं अपनी मृत्यु के समय कवि आसमानी रंग की कमीज़ पहने थे । अच्छे किस्म की पेंट थी । बोल्श्विक उनकी जैविक जड़ों का अध्ययन करना चाहते थे । उनका मस्तिष्क निकाला गया । उसका वज़न 1700 ग्राम था । लेनिन के मस्तिष्क से भी भरी जो 360 ग्राम का था। कहा जाता है उनके पार्थिव शरीर को राजकीय सम्मान से तीन दिन तक रखा गया था। एक लाख पचास हज़ार विलापियों ने उनके अंतिम दर्शन किये।


        आज  अनेक शंकामय सवाल उठाये जाते हैं कि  क्या कवि ने सच मुच आत्महत्या की! मृत्यु पत्र आत्महत्या से दो दिन पहले क्यों लिखा गया! मृत्यु से कुछ ही देर पहले उनके करीबी मित्रों, लिली तथा ओसिप ब्रिक को  जल्दी-जल्दी बाहर क्यों भेज दिया गया! उनके शरीर से गोलियाँ मिलान करने के लिये क्यों नहीं निकाली गई ! उनके पड़ौसियों ने दो बार गोली चलने की आवाज सुनी!  उनकी जीवनी लिखने वालों ने संकेत दिये हैं कि वह ऐसे व्यक्ति न थे कि आत्म हत्या करें!

मायकोव्स्की की पुत्री  एलेना ब्लादमीरोवना मायकोव्स्किया न्यूआर्क शहर के एक महाविद्यालय में  अध्यापन करती है। उनका मानना है कि उनके पिता की मृत्यु अब भी अनेक रहस्यों से घिरी हुई है। जब तक कोई ठोस सबूत न हो वह उसके बारे में कोई निश्चित बात नहीं कह सकती। पर इतना वह मानती है कि उन्होंने आत्म हत्या नहीं की! और किसी स्त्री के लिये तो उन्होंने आत्महत्या की ही नहीं जैसा कि ज्यादातर माना जाता है। जो भी हो मायकोव्स्की के पूरे जीवन क्रम को देखकर लगता है वह अतियों मे जीने के अभ्यासी हो चुके थे। ऐसे लोग कोई भी अतिवादी कदम उठा सकते हैं।  दूसरे, उनका जीवन विक्षोभों से भरा था।  धरती में जैसे लावा खैाल रहा हो। बहुत बड़ी बड़ी महत्वाकांक्षायें यदि पूरी न हों तो भी हमें अवसाद आ घेरता है। पर एक मार्क्सवादी  को इन सब बातों से उवरने के लिये उसके पास वैज्ञानिक दृष्टि होती है। क्या  इसका अर्थ यह लगायें कि विचारधारा कवि का जैविक हिस्सा नहीं बन पाई! हमारे यहाँ भी कवि गोरख पाण्डेय का एक ज्वलंत उदाहरण है।
    
कविता रचने के साथ साथ मायकोव्स्की ने कविता, कवि कर्म, काव्य प्रक्रिया, कविता के प्रयोजन आदि के बारे में कुछ ऐसी खास तथा महत्वपूर्ण बातें कहीं है जो हर समय के कवि को उसकी रचना के लिये मददगार हो सकती है। कवि का मानना है कि उनकी ‘स्थाई और प्रमुख घृणा’ का रुख उन के विरुद्ध है जो ‘भावुकतापूर्ण दृष्टि वाले कूपमंडूक आलोचक’ हैं। या जो कविता में ‘द्वंद्ववाद’ को नकारते हैं। उनके अनुसार ‘नियमों को जान कर ही कविता नहीं’ लिखी जा सकती। बल्कि वही ‘कवि समर्थ तथा भविष्णु’ है जो ‘काव्य  नियमों’ को रचता है। ‘नीरस और निरर्थक तुक्कड़पन’ व्यर्थ है। कवि चाहते हैं कि नये समय में ‘आविष्कृत नई भाषा’ को  ‘तत्काल नागरिकता का अधिकार‘ प्राप्त होना जरूरी है। कविता में ‘लययुक्त गान’ के बजाय ‘चित्कार’ लोरी के बजाय  ‘नगाड़े की गर्जन’ चाहिये. जैसे प्रसिद्ध ब्लोक की पंक्ति है -

‘साधो  क्रांति-कदम अपने’।

 या मायकोव्स्की स्वयं की पंक्ति है -‘कूच करो ! मोर्चे पर डटे रहो’। ‘शत्रु घात में है ! सावधानी से चलो’ इतना बताना ही काफी नहीं है। हमें शत्रु का ऐसा विस्तृत चित्रण करना चाहिये जिस से पाठक उसका सटीक अनुमान लगा सके। मायकोव्स्की की कुछ पंक्तियाँ हैं -

अनन्नास खाओ बुर्जुआओ
तीतर के लो स्वाद चटकारे

समय तुम्हारा है निकट आखिरी। उनका कहना है कि कुलीन शास्त्रीय काव्यशास्त्र शायद ही ऐसी कविता को सही कविता के रूप में स्वीकारेगा। उनके अनुसार कविता में  ‘नवीनता बहुत जरूरी है'।  पर यह नवीनता जरूरी नहीं कि ‘निरंतर ही अभूतपूर्व सत्य प्रकट’ करे।  कवि मानते हैं कि , ‘कविता सबसे पहले ‘प्रवृत्तिमूलक’ होती है । यानि उसमें चिंतन दिशा तथा कवि की विश्वदृष्टि साफ झलकती है। मायकोव्स्की ने कविता रचने के लिये कुछ मूलभत बातों पर जोर दिया है - समाज में ऐसे ‘कार्य भार’ जो काव्य सृजन से ही पूरे किये जा सकें। यानि एक सामाजिक माँग। इसके लिये हमें अपने ‘वर्ग की मनोदशा’ तथा उसकी ‘इच्छाओं का ज्ञान’ होना चाहिये। हमारे पास एक जरूरी, अर्थवान,विरल, खोजा हुआ, ‘नया मुहावरा’ भी हो। हमारे पास ऐसी दृष्टि हो जिस से हम ‘सटीक शब्द संशोधन’ कर ‘मौलिक तकनीक’ का प्रयोग कर सकें। यह ‘कठोर श्रम’ के बाद ही अर्जित की जा सकती है जैसे ‘संतुलित तथा अर्थवान’ तुकों का प्रयोग। ‘शिल्प तथा शैलीगत’ वैशिष्ट्य। उनका मानना है कि ‘उत्कृष्ट कविता’ तभी सिरजी जा सकती है जब उसके लिये ‘काव्य विषयक पूरी तैयारी’ पहले से की जा चुकी हो। कवि के लिये उसकी ‘डायरी’ बड़ी महत्वपूर्ण होती है।  हर भेंट, प्रत्येक सार्वजनिक विज्ञापन  तथा किसी भी तरह की स्थितियों में होने वाली ‘हर घटना’ कविता का ‘कथ्य’ होती है । कवि मानते हैं कि  ‘कविता सबसे कठिन’ चीज़ों में से एक चीज़ है । और यह सत्य है'। अगर सार्थक तथा सही कविता रचना है तो  ‘समय या संविधान में बदलाव जरूरी है‘ । कवि ने अपनी बात साफ करने के लिये चित्रकला से  दृष्टांत दिया है। अगर हम किसी चीज़ का रेखा चित्र खींच रहे हैं तो हमें उस वस्तु के आकार की तीन गुनी दूरी पर चले जाना चाहिये। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक हमें पता न होगा कि हम किस चीज़ का चित्रांकन कर रहे हैं। जितनी बड़ी वस्तु या घटना होगी उतनी ही ‘अधिक दूरी’ तक हमें पीछे हटना होगा। कमज़ोर कवि ‘जहाँ के तहाँ’ बने रह कर यह इन्तज़ार करते हैं कि घटना अतीत की वस्तु हो जाये जिससे वे उका चित्रण कर सकें। जो कवि समर्थ है वह ‘समय पर काबू पाने’ के लिये आगे निकल जाता है। ध्यान रहे कविता सिरजने में ‘जल्दवाजी’ से हम ‘काव्य कथ्य’ को चौपट कर देंगे। तात्कालिक विषयों पर लिखी कवितायें जल्दी की एकांगी, सामान्य तथा विरस लग सकती हैं।  उनमें सुधार जरूरी है। पर यह नहीं समझ लेना ‘ यही ‘करना चाहिये । जो कवितायें हल्की या प्रचारात्म्क लगने लगें तो समझो  कि कवि ने अपेक्षित श्रम नहीं किया। या उसके गहन रियाज़ में कमी है । उसने पूरे समर्पण के साथ  अभी कवि कर्म में दक्षता अर्जित नहीं की है। कवि में ‘समय का सुसंगठन’ तथा उसका ‘गहन अनुभव’ करने की क्षमता के बारे में बार बार चेताया जाना जरूरी है । लय सारे काव्य का आधार है। लय के स्रोत अनेक हो सकते हैं। जैसे शब्दों या पंक्तियों की पुनरावृत्ति।  ध्वनियों को बार बार लाना। किसी परिघटना के दोहराव से । समुद्र के तट पर खड़े होकर लहरों में होते दोलन से भी लय पैदा होती है। यदि कोई हमारे दरवाज़े की कुण्डी बार बार खटखटाये उससे भी लय पैदा हो सकती है।  मायकोव्स्की लय को अपने ‘भीतर किसी आवाज़, शोर दोलन की पुनरावृत्ति‘ मानते हैं । कवि को छंद तब अर्जित होते हैं जब वह ‘लयात्मक गूँज’ को शब्दों का रूप देकर रचता है - उन शब्दों को जो कविता का पूर्वनिश्चित लक्ष्य मुझे सुझाता है। मायकोव्स्की के लिये कविता को अभिव्यंजना की परम ऊँचाई तक ले जाना बेहतर है। इसके लिये, ‘सबसे महत्वपूर्ण साधन बिंब है ’। कवि के लिये कविता एक उत्पादन कार्य है । बहुत कठिन और बहुत ही पेचीदा। पर है उत्पादन कार्य। कवि को रियाज़ करना बहुत जरूरी है। कविता का उत्पादन उस समय तक नहीं जब तक कवि को सामाजिक माँग का गहरा एहसास न हो जाये। इस माँग को बेहतर समझने के लिये कवि को ‘समय की मूल चिंताओं’ के केंद्र में होना जरूरी है। कला रूपवादीं कवि से अलग और भिन्न जनवादी- अग्रगामी कवि को प्रत्येक दिन की वस्तुस्थिति के ज्ञान के साथ आर्थिक सिद्धांत  तथा वैज्ञानिक इतिहास में भी रुचि लेना बेहतर है । मायकोव्स्की के अनुसार कवि को सभी मोर्चों पर लड़ना जरूरी है। अराजनीतिक कविता - कला की कपोल - कल्पना की धज्जियाँ उड़ा देनी चाहिये। अन्य सभी तत्वों की तरह प्रतिदिन का काव्यात्मक वातावरण भी वास्तविक कृति की रचना को असर देता है।

इस प्रकार मायकोव्स्की रूसी क्रांति से पूर्व के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कवि हैं। वे निरर्थक हुई रूढि़यों को ढहाते ही नहीं बल्कि नया पथ निर्माण कर विकल्प भी प्रस्तुत करते हैं। कहते हैं कि पुश्किन के बाद कविता को नया लय पैटर्न तथा भाषा को सर्वहारा की ऊर्जा देने वाले वह अन्यतम कवि हैं। उनकी कविता ने प्रतीकवाद, बिंबवाद, कलावाद, रूपवाद आदि जैसे पतनशील काव्यान्दोलनों के कुप्रभाव को कम करके कविता को संघर्षशील जनता से जोड़ा। सही अर्थों में वह एक क्रांतिकारी लोकधर्मी कवि हैं। उन्ही की पंक्तियों से बात खत्म होती है

मेरे साथियों -
बहुत खुलकर कहता हूँ तुम से
नहीं चाहिये कुछ भी मुझे
एक साफ धुली कमीज़ के अतिरिक्त
जाऊँगा जब मैं
भविष्य के उज्ज्वल वर्षों में
सोवियत संध के साम्यादी दल  के समक्ष
केंद्रीय निंयत्रक आयोग के आगे
वंचक तथा बहुरूपिये कवियों की भीड़ को  चीरता
पार्टी कार्ड के मानिन्द
मैं चुनूँगा
सौ पुस्तकें
अपनी जनपक्षधर कविताओं की ।
            --0--





(विजेन्द्र जी हमारे समय के वरिष्ठ कवि, आलोचक एवं चित्रकार है। साथ ही महत्वपूर्ण लघु पत्रिका 'कृतिओर' के संस्थापक सम्पादक भी हैं।)

संपर्क-
मोबाईल- 
09928242515        

      




टिप्पणियाँ

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  2. विजेंद्रजी बहुत डूब कर लिख रहे हैं. कवि को अपने समय और समाज में सही जगह स्थित-स्थापित करने का ऐसा प्रयास मेरी जानकारी में अभी तक नहीं आया है. ज़ाहिर है साहित्य-कर्म, विचार और लोक-जीवन की संश्लिष्टता को समझने के उपकरण हमारे समय के अधिकांश तथाकथित बड़े कवियों के पास नहीं है. यह कहना कुछ लोगों को न रुचे तो भी कहना ही होगा कि विजेंद्र हमारे समय के अनूठे कवि, आलोचक और सौन्दर्यशास्त्री हैं.

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  3. बहुत सामयिक लेख है, लुटेरे वर्ग के हो हल्ले के बीच सर्वहारा का सपना दिखाने में मायकोव्य्स्की आज भी समर्थ है, वह आज भी इंकलाबियो का मज़बूत सतून है ...बहुत मेहनत के साथ और इंकलाबी जज्बे के साथ लिखे गए लेख को साझा करने के लिए बधाई स्वीकार करे.

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  4. मायकोवस्की और लोकधर्मी कविता के बारे में बहुत कुछ जानने -समझने को मिला.

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  5. विजेन्द्र जी की ऊर्जा को सलाम . उम्र इए इस पड़ाव पर भी इतनी मेहनत और गहन अध्यन ...बेमिसाल है . यह लेख हम सबके लिए संग्रहणीय है . संतोष जी का दिल से आभार इसे हम तक पहुँचाने के लिए ..सादर .

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  6. मायकोवस्की पर विजेन्द्रजी का शानदार लेख है। मायकोवस्की पर विस्तृत रूप में सामग्री अक्सर कम ही उपलब्ध होती है। मायकोवस्की के जीवन की प्रमुख घटनाएँ व राजनीतिक एवं सामाजिक हस्तक्षेप पूरी बेबाकी के साथ उकेरा गया है।

    मैं कवि हूँ
    वही मुझे रुचिकर बनता है.
    उसी के बारे में कवितायेँ
    रचता हूं।

    यहाँ मायकोवस्की कवि नाटक लिखने के बावजूद अपने को कवि ही कह रहे है. ठीक उसी तरह जैसे जर्मन नाटककार बर्तोल्त ब्रेख्त उम्दा उम्दा कवितायेँ लिखने के बावजूद खुद को नाटककार कहते थे।
    निस्संदेह मायकोवस्की हमारी पम्परा के कवि हैं।
    इस लेख से मुझे मायकोवस्की के बारे में बहुत सी नयी जानकारी भी मिली हैं।

    'पहलीबार' टीम को ऐसी पोस्ट के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

    अशोक तिवारी

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