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संजय कृष्ण का आलेख 'रामकथा और आदिवासी'

  'रामकथा और आदिवासी' संजय कृष्ण युगों-युगों से गाई जाने वाली राम कथा व राम काव्य भारतीय जन-मन में रचा-बसा है। भारतीय भाषाओं में इसकी बहुत समृद्ध परंपरा मिलती है। संस्कृत, जैन, पालि से ले कर अवधी, उर्दू, असमिया, बांग्ला, तेलुगु, मलयालम, गुजराती, मराठी से पंजाबी, कश्मीरी, सिंधी तक में...। यही नहीं, राम की लोक व्याप्ति दूसरे देशों तक देखी जाती है। श्रीलंका, तिब्बत, जावा, कंबोडिया, इंडोनेशिया, जापान, नेपाल, थाइलैंड आदि देशों में रामकाव्य के विविध रूप, स्थापत्य कला, काव्य कला, भित्ति चित्र आदि मिलते हैं। इसी व्यापक व अविच्छिन्न पृष्ठभूमि में भारत की आदिवासी भाषाओं में भी रामकथा से सम्बद्ध रचनाएं मिलती हैं। झारखंड की आदिवासी भाषाओं मुंडारी, बिरहोरी में रामकथा की उल्लेखनीय छिटपुट रचनाएं मिलती हैं। और, यह स्वाभाविक भी है। लोक में राम बसे हैं और झारखंड के जंगलों भी उनकी अनुस्मृतियां जीवित और जीवंत हैं। उनके सबसे बड़े सेवक हनुमान की जन्मस्थली रांची से 150 किमी दूर आंजन धाम में है, जहां माता अंजनी अपनी गोद में बाल हनुमान को ली हुई हैं। सिमडेगा जिले का रामरेखा धाम भी एक ऐसा ही परम पावन स्...

तारसप्तक के कवि प्रभाकर माचवे से विनोद दास की बातचीत

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प्रभाकर माचवे  तार सप्तक का प्रकाशन हिन्दी साहित्य के इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना है। इसमें ऐसे कवियों को शामिल किया गया जिनकी कविताओं में उस समय का स्वर था। तार सप्तक के प्रकाशन का श्रेय अज्ञेय को है हालांकि इसके योजनाकारों में  प्रभाकर माचवे प्रमुख थे। अलग बात है कि आज हम प्रभाकर जी को तार सप्तक के कवि के रूप में जानते हैं।  प्रभाकर माचवे का लेखन विपुल है हालांकि उसका प्रकाशन न हो पाने से वे खुद क्षुब्ध रहे। लगभग दो सौ कहानियां लिखने के बावजूद उनका कोई संग्रह नहीं छप सका। प्रभाकर जी स्पष्टवादी थे। विनोद दास से एक बातचीत में प्रभाकर जी कहते हैं मुक्तिबोध के जीवन काल में उनकी घोर उपेक्षा करने वाले आज जिस तरह उनके नाम पर कमा रहे हैं या उनका झण्डा उठाए हैं और उसे आउटसाइज़ या महामानव सिद्ध कर रहे हैं, यह सब झूठ है। जो लोग उनके जीवन काल में उन्हें जरा सा भी नहीं जानते थे, वे आज सहसा मुक्तिबोध संप्रदाय के पुरोधा कैसे बन गए हैं?' विनोद दास ने प्रभाकर जी से 1982 में एक बातचीत किया था। आज भी यह बातचीत प्रासंगिक है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते ...

शम्भु यादव की कविताएं

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  शंभु यादव जीवन विचारों से भरा होता है इसलिए वह परिवर्तनशील होता है। इन  विचारों ने ही तो इंसान को वास्तविक तौर पर इंसान बनाया। स्वाभाविक रूप से ये विचार दुनिया को भी बदलते रहते हैं। यानी जहां कोई विचार नहीं वहां कोई बदलाव हो ही नहीं सकता। इस बिना पर कहा जा सकता है कि दुनिया रोज बनती है। लेकिन और सच की तरह यह भी अधूरे सच का तिलिस्म मात्र है। जिनका जीवन अभाव से भरा हुआ है, जो आधारभूत सुविधाओं के लिए रोज ही संघर्ष करते रहते हैं, उनके लिए यह जीवन एक रस सा लगने लगता है। जैसे कोई उत्कंठा ही नहीं बचती। जीवन रसहीन सा लगने लगता है। शम्भु यादव जीवन की कड़वी सच्चाईयों के कवि हैं। कविता में वे कल्पना की उड़ान जरूर भरते हैं लेकिन यह कल्पना यथार्थ से आबद्ध होती है। वे जानते हैं कि 'कई चेहरे खिलते हुए से' आते हैं और 'अपने रूप को रख देते हैं'। लेकिन यह 'चेहरा दुख से भरा और/ कोई वो एक अपनी कही जानी को किसी कोशिश में कहे कितने समय तक!' आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं शम्भु यादव की कविताएं। शम्भु यादव की कविताएं  कई उम्र बीती शब्दों शब्दों बहुत सारी वजहों की बानगी -किसी एक वजह क...

प्रभात रंजन की कहानी 'आप तहज़ीब हाफ़ी को सुनते हैं?'

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  प्रभात रंजन  अगर आपसे यह सवाल पूछा जाए कि प्रेम में होना क्या होता है? तो सहसा कोई जवाब नहीं सूझेगा। यही तो प्रेम है जो किसी भी परिभाषा की चौहद्दी में नहीं अंट पाता। यानी परिभाषाओं को भी जो अस्वीकार करने का साहस रखता है, वह प्रेम है। प्रेम अपने आप में उदात्त होता है। कहा जा  सकता है प्रेम हमें संकीर्णताओं से मुक्त करता है। हमारे व्यक्तिगत जीवन में जब दूसरे की सहमति असहमति इस कदर मायने रखने लगती है कि हम उसे सहज ही स्वीकार कर लेते हैं, तब हम प्रेम में होते हैं। अपनी कहानी में प्रभात रंजन एक जगह लिखते हैं ‘अधिकार की भावना ही तो प्रेम की सबसे बड़ी शत्रु होती है। प्रेम अधिकार से नहीं विश्वास से चलता है। विश्वास जितना अधिक होता है प्रेम उतना मुक्त होता जाता है।' हमारे समय के कहानीकारों में प्रभात रंजन का नाम अग्रणी है। 'हंस' के हालिया अंक में उनकी एक कहानी प्रकाशित हुई है जो प्रेम के तंतुओं की करीने से तहकीकात करती है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  प्रभात रंजन की कहानी 'आप तहज़ीब हाफ़ी को सुनते हैं?'   ‘आप तहज़ीब हाफ़ी को सुनते हैं?’  प्रभात ...