नीलम शंकर की कविताएं


नीलम शंकर 



दुःख इस जीवन का अनिवार्य अंग है। दुनिया में कोई भी हो, दुःख से मुक्ति नहीं है। एक तरह से यह जीवन को उसका अर्थ प्रदान करता है। गौतम बुद्ध ने दुःख की तलाश में अपना घर परिवार छोड़ दिया और दुःख के निवारण के उपाय बताए। लेकिन दुःख है कि हर काल में बना रहा और आज भी अपनी पूंछ फैलाए बैठा हुआ है। बात जब महिलाओं की होती है तो दुःख उनसे कुछ इस तरह एकमेक हो जाता है कि छुड़ाए नहीं छूटता। निराला अपनी प्रख्यात कविता सरोज स्मृति में लिखते हैं 'दुःख ही जीवन की कथा रही'। नीलम शंकर इस दुःख को अपनी तरह से देखते हुए अपनी कविताओं में इसे दर्ज करती हैं। नीलम शंकर मूल रूप से कहानीकार हैं लेकिन आजकल कविताओं की तरफ उन्मुख है। कल नीलम जी का जन्मदिन था। उन्हें जन्मदिन की विलम्बित बधाई देते हुए आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं उनकी कुछ कविताएं।



नीलम शंकर की कविताएं



मान्य 


वह आए हैं 

घर के मान्य हैं वह

मृतक भोज खाने आए हैं,


उम्र के चौथे पड़ाव में हैं 

बरसों बरस हुए मृतक से ना बातचीत ना चिट्ठी पत्री 

और मोबाइल से कुशल-क्षेम भी नहीं 


लेकिन आए हैं 

हजार किलोमीटर की कष्टप्रद यात्रा कर आए हैं

वह प्रेम की भाषा नहीं बोलते 

मान्य हैं 

इतनी ही पहचान है उस मृतक से

इसीलिए अकड़े अकड़े से रहते हैं 

मृतक से पैर पुजाए हैं

उनकी दोहती को सलामत रखे हैं

अभिमान खातिर काफी है इतना। 


एक गरुड़ पक्षी से डरे हुए हैं

वह तो बेचारा वाहक का श्रोता भर था

सांस इह-लोक में लेते हैं 

कृतज्ञ पर-लोक के होते हैं 

वह मृतक की स्वर्ग सुरक्षित सीट में फेविकोल लगाने आए हैं

क्योंकि मान्य है 

या 

अपनी ही सीट स्वर्ग में सुरक्षित करने आए हैं।



ढंग ढब


अर्ध शतक से अधिक के

संग साथ में

जिए अन्तिम बीस बरस

ही अब उसकी थाती थी।


पिछला तीस बरस नहीं

याद करना चाहतीं कि वो

आगे भी जाए, गोखूरू बन

पैर में टीसे

या धतूरा जैसा जहर

बन जाए

अवांछित बरसों की पीड़ा

अपमान चोटों का दर्द

छाती पर घूसों का नीलापन

नहीं ले जाना चाहतीं

अगले अहिबात में


संग-साथ के बरसों को

उसने पूर्वार्द्ध-उत्तरार्ध के

कुदिन सुदिन में बांट दिया था

दिमाग शान्त रखने के लिए

ये टिप्स भी किसी मजबूत स्त्री से

ही मिले थे






अकेले का जीवन पीड़ा में ज्यादा नहीं चलता


सुदिनों में ही वह 

जोहरा-ज़बी बनी थी

चांद सी महबूबा थी

ऐसा कोई गीत उसने

कभी नहीं सुना था कुदिनों में

बालों में चांदी उतर जाने पर उन्हें

उनके संगी से सलमा-सितारा हो जैसा

महसूसवाने लगे थे। 


काले बाल कसी त्वचा

मोती से दांत से जब इतनी ही प्रवंचना है

तो इन बीस बरसो का

साथ लिए है हिमालय

पुत्र-पुत्री हमें योरोप

में ही पैदा करना

जहां काले बाल नहीं होते


ऐसी अर्जियां वह रोज

डालती हैं ब्याह वाले बक्से में

उसे यक़ीन है एक न एक दिन जरूर सुनवाई होगी। 

हम तब जाएंगे और ये 

अर्जियों से भरा बक्सा भी। 



बारिश


बारिश बारिश बारिश

मन भीगा ऑंख भीगी

हथेलियां झुकी

कदम बढ़े

देह निहुरी

रीढ़ तनी

चले और चले

दिल पसीजा

बारिश बारिश बारिश

कई कदम 

साथ चले

बढ़े कदम 

बढ़ते गए

चलते गए।



याद रहता


वो मानता है

मैं सबसे बुद्धिमान हूं

बाकी जितने हैं

सभी मूर्ख हैं

या बनाए जा सकते हैं

मूर्ख बनाने के लिए

विश्वासघात करना होता है

विश्वास में ले कर।

सभी में कुछ लोग बच जाते हैं

जो किसी न किसी तरह सहने के लिए हैं

भाषिक, भौगोलिक, सामाजिक बन्धन में जो हैं

लेकिन वो भूल जाता है

अन्याय और यातना की

जब इन्तहा होती है

घात और सहना

लाल रंग का लहू भी

भूल जाता है कोई भी डर-बन्धन

याद रहता है प्रतिकार।






रोना


पैदा होने पर वह

नहीं रोयी थी

नहीं रोयी तो नहीं ही रोयी।

सबने कहा बहुत

दिनों तक यह

दुनिया न झेल पाएगी

ना ही सांस ले पाएगी।

उसकी पीठ पर

मारा सिर पर

ढोंका बाल नोंचे

कान उमेंठे छाती दबायी 

उसे नहीं रोना था

नही ही वह रोयी।


लेकिन इतने कष्टों के बाद चिल्लायी

खूब चिल्लायी 

रोने ही लगी 

हिचकिंयां बंध गयी।

सबने कहा अब यह 

दुनिया देखने के काबिल हो गयी

जी ही लेगी

संवाच ही लेगी।

दुखों के निवारण में बुद्ध 

जंगल को भागे थे 

फिर भी जहां जहां जाते

दुख ही दुख भेंटा जाता था।

जीवन को ज्यादा

की दरकार कभी नहीं रही है।

मध्यम मार्ग ही

सांसारिक जीवन का

मार्ग बना के

एक जीवन दर्शन

दे गए और रोना

जीवन जीने की

अनिवार्य कलाओं में

शुमार कर गए।



रेखा


सीधी रेखा

इतनी सीधी भी

नहीं होती

वो विभाजन रेखा

भी बनती हैं।

इसीलिए दिल आड़ा 

तिरछा टूटता है।

आड़ी तिरछी रेखाएं

रिक्त स्थान

छोड़ देती हैं।



सल्फर


वे जब दुख

बांटती हैं तो

उनके दुख

घटते हैं

वे जब दुख

बेंचने लगती हैं तो 

दुख घटने बजाय

बढ़ने लगते हैं

वे जब दुख विक्रेता

बन जाती हैं तो

समाज में 

सल्फर बना दी जाती है।

सल्फर कभी घर

जगह नहीं पाया

कितना भी उपयोगी रहा हो

किसी पंसारी के

यहां ही जगह पाया।



(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)



सम्पर्क 


मोबाइल :  9415663226

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