हारुकी मुराकामी की कहानी 'सल्तनत जो विफल रही'

 

हारुकी मुराकामी 



जापानी लेखक हारुकी मुराकामी अपने लेखन के बल पर दुनिया भर में ख्यात हैं। दुनिया की तमाम भाषाओं में उनकी रचनाओं के अनुवाद हुए हैं। मुराकामी की रचनाओं के पात्रों के चेहरे हमारे आसपास के लोगों से काफी मिलते जुलते से हैं। इसीलिए वे अपने लेखक जैसे लगते हैं। मुराकामी का बारीक ऑब्जरवेशन कई बार कुछ इस अंदाज में चकित करता है जैसे हम खुद उस घटना के पात्र हों। कवि श्रीविलास सिंह एक उम्दा अनुवादक हैं। उन्होंने हारुकी मुराकामी की एक कहानी का अंग्रेजी से अनुवाद किया है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं हारुकी मुराकामी की कहानी  'सल्तनत जो विफल रही'।



सल्तनत जो विफल रही


हारुकी मुराकामी 

(अंग्रेजी अनुवाद : जे. रुबिन)


हिंदी अनुवाद : श्रीविलास सिंह 



विफल रही सल्तनत के ठीक पीछे एक सुन्दर छोटी नदी बहती थी। इसकी धारा स्वच्छ और प्यारी थी और उसमें ढेरों मछलियां रहती थी। उसमें पानी के नीचे घास भी उगती थी और मछलियां उसे खाया करती थीं। मछलियां, निश्चय ही इस बात की परवाह नहीं करती थीं कि सल्तनत विफल हो गयी अथवा नहीं। यह एक राजशाही थी अथवा गणराज्य इस बात का भी उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। वे न वोट देती थी न ही कर। उन्होंने जान लिया था कि इन सब बातों से उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ता था। 


मैंने धारा में अपने पांव धोये। थोड़ी देर बर्फ जैसे ठण्डे पानी में रहने के कारण मेरे पांव लाल हो गए। धारा के पास से आप विफल हो गयी सल्तनत के किले की दीवारें और मीनारें देख सकते थे। हवा में फड़फड़ाता हुआ दो रंगा ध्वज अभी भी मीनार के ऊपर लहरा रहा था। जो भी नदी के किनारे से गुजरता वह झंडे को देखता और कहता, “हे, उधर देखो, यह उस सल्तनत का ध्वज है जो विफल हो गयी।”


‘क्यू’ और मैं मित्र हैं - अथवा मुझे कहना चाहिए कि कॉलेज में मित्र थे। इस बात को दस वर्ष से अधिक हो गए जब हमने ऐसा कुछ किया हो जो मित्र करते हैं। यही कारण है कि मैंने भूतकाल का प्रयोग किया।  जो भी हो हम मित्र थे। 


जब भी मैं ‘क्यू’ के बारे में किसी से कुछ कहने का प्रयत्न करता हूँ - एक व्यक्ति के रूप में उसका वर्णन - मैं अपने को पूरी तरह असहाय महसूस करता हूँ। मैं कभी भी चीजों का वर्णन करने को ले कर बहुत अच्छा नहीं रहा, लेकिन उस बात को भी ध्यान में रखने के बावजूद, ‘क्यू’ के सम्बन्ध में किसी के समक्ष वर्णन करना एक विशिष्ट चुनौती थी। और जब भी मैंने ऐसी कोशिश की, मैं एक गहरे, गहरे अवसाद की अनुभूति से ग्रस्त हो गया।


मुझे इसे जितना संभव हो उतना सामान्य रखने दीजिये। 


‘क्यू’ और मैं एक ही उम्र के हैं लेकिन वह पाँच सौ सत्तर गुना अधिक सुदर्शन है। उसका व्यक्तित्व भी शानदार है। वह कभी भी सिफारिश कराने वाला अथवा डींगें हाकने वाला नहीं रहा और यदि कोई कभी दुर्घटनावश उसके लिए किसी तरह की समस्या उत्पन्न कर दे तब भी वह उस पर क्रोधित नहीं होता। वह कहेगा “चलो अच्छा हुआ, मैं स्वयं भी यही करता।” लेकिन मैंने वास्तव में उसे कभी किसी के प्रति कुछ बुरा करते नहीं सुना। 


उसका लालन-पालन भी अच्छे से हुआ था। उसके पिता एक डॉक्टर थे और शिकोउ द्वीप पर उनका अपना क्लीनिक था, जिसका अर्थ था कि ‘क्यू’ को कभी पॉकेटमनी की कमी नहीं पड़ी। ऐसा नहीं था कि वह इस संबंध में अपव्ययी था। वह सुरुचिपूर्ण कपड़े पहनता था और एक प्रभावशाली एथलीट भी था जो हाईस्कूल में अंतर्विद्यालयी टेनिस भी खेल चुका था। उसे तैरने में आनंद आता था और हफ्ते में कम से कम दो बार वह स्विमिंग पूल जाता था। राजनैतिक रूप से वह एक उदार प्रगतिवादी था। परीक्षा में यदि उसके ग्रेड शानदार नहीं तो कम से कम अच्छे जरूर होते थे।  वह लगभग हमेशा ही परीक्षा के लिए अध्ययन नहीं किया करता था। वह सचमुच व्याख्यान सुना करता था। 


वह पियानो के सम्बन्ध में आश्चर्यजनक रूप से प्रतिभावान था और उसके पास बिल इवांस और मोजार्ट के ढेरों रेकॉर्ड्स थे।  उसके प्रिय लेखक फ्रेंच थे - बाल्ज़ाक और मोपासां। किसी समय उसने कैंझब्यूरो ओए अथवा किसी और लेखक का उपन्यास पढ़ा था।  उसकी समीक्षा हमेशा सटीक होती थी। 





वह, स्वाभाविक रूप से महिलाओं के मध्य बहुत लोकप्रिय था। लेकिन वह उन व्यक्तियों में से एक नहीं था ‘जिसे कोई भी अपने वश में कर ले’। उसकी एक स्थायी महिला मित्र थी, एक फैंसी महिला कॉलेज की पढ़ाकू लड़की। वे हर रविवार बाहर जाते थे। जो भी हो, यही वह ‘क्यू’ था जिसे मैं कॉलेज में जानता था। संक्षेप में वह ऐसा व्यक्ति था जिसमें कोई कमी नहीं थी। 


पीछे चलें, वह मेरे ठीक सामने वाले अपार्टमेंट में रहता था। नमक मांगते और सलाद ड्रेसिंग उधार लेते लेते हम मित्र बन गए और जल्दी ही हम हर समय एक दूसरे के ही घर में पड़े रहते थे, रेकॉर्ड्स सुनते हुए, बीयर पीते हुए। एक बार मैं और मेरी गर्लफ्रेंड गाड़ी ड्राइव कर के ‘क्यू’ और उसकी गर्लफ्रेंड के साथ कामाकुरा तट तक गए थे। हम एक साथ बाहर जा कर बहुत खुश रहे थे। फिर मेरे आखिरी साल में मैं गर्मियों की छुटियों में बाहर गया, और फिर…. ।


अगली बार जब मैंने ‘क्यू’ को देखा लगभग एक दशक बीत चुका था। मैं अकासका जनपद के पास एक चमचमाते होटल के पूल के किनारे बैठा एक किताब पढ़ रहा था। ‘क्यू’ मेरे सामने वाली कुर्सी पर बैठा था और उसके साथ बिकनी पहने हुए लम्बी टांगों वाली एक खूबसूरत महिला थी।


मैं तुरंत ही जान गया कि वह ‘क्यू’ था। वह हमेशा की तरह सुदर्शन था और अब जब तीस से थोड़ा ही ऊपर था, उसमें एक विशिष्ट गरिमा भी आ गयी थी जो पहले नहीं थी।  युवा महिलायें गुजरते हुए उस पर एक नजर डालती जाती थी। 


उसने मुझे अपनी बगल में बैठे हुए नहीं नोटिस किया। मैं काफी सामान्य सा दिखने वाला व्यक्ति था और धूप का चश्मा भी पहने हुए था। मैं सुनिश्चित नहीं था कि मुझे उस से बात करनी चाहिए अथवा नहीं किन्तु अंत में मैंने बात न करने का निर्णय लिया। वह और उसके साथ की महिला बहुत गहराई से बातों में डूबे हुए थे और मुझे उनके बीच व्यवधान डालने में हिचकिचाहट हो रही थी। इसके अतिरिक्त ऐसा कुछ बहुत था भी नहीं जिसके बारे में मैं और वो बात कर सकते थे। “याद है, मैंने तुम्हें नमक उधार दिया था?” “बिलकुल ठीक, और मैंने सलाद ड्रेसिंग की एक बोतल उधार ली थी।” जल्दी ही हमारे बातचीत के विषय समाप्त हो जाते। अतः मैंने अपना मुंह बंद रखा और अपनी किताब से चिपका रहा। 


फिर भी, मैं यह सुनने से अपने को रोक नहीं  पाया कि ‘क्यू’ और उसकी खूबसूरत साथी एक दूसरे से क्या कह रहे थे। यह काफी जटिल मामला था। मैंने पढ़ना बंद कर दिया और उनकी बातें सुनने लगा। 


“कैसे भी नहीं,” महिला ने कहा। “तुम मजाक कर रहे हो।”


“मैं जानता हूँ, मैं जानता हूँ,” ‘क्यू’ ने कहा। “मैं जानता हूँ, तुम ठीक ठीक क्या कह रही हो। लेकिन तुम्हें इस सम्बन्ध में मेरी नजर से भी देखना चाहिए। मैं यह इसलिए नहीं कर रहा हूँ क्योंकि मैं ऐसा करना चाहता हूँ। यह ऊपर बैठे व्यक्तियों के कारण है। मैं तुम से सिर्फ वही बता रहा हूँ जो उन्होंने निर्णय लिया है।  इसलिए मेरी ओर इस तरह मत देखो।” 


“हाँ, ठीक है,” उसने कहा। 


‘क्यू’ ने एक निःश्वास छोड़ी। 


आप मुझे इस लम्बे वार्तालाप का सारांश करने दीजिये- निश्चय ही काफी कुछ कल्पना के सहारे भरते हुए। ‘क्यू’ किसी टी. वी. स्टेशन अथवा ऐसी ही किसी जगह निर्देशक था शायद और महिला ठीक ठाक जानी पहचानी गायिका अथवा अभिनेत्री थी।  उसे किसी प्रोजेक्ट से, उसके किसी स्कैंडल में फंसे होने के कारण अथवा बस इस कारण कि उसकी लोकप्रियता कुछ कम हो गयी थी, निकाला जा रहा था। उसे इस बात की सूचना देने का काम ‘क्यू’ के लिए छोड़ दिया गया था जो कि दिन-प्रतिदिन के कार्यों के लिए प्रत्यक्षतः उत्तरदायी व्यक्ति था। मैं मनोरंजन उद्योग के सम्बन्ध में बहुत अधिक नहीं जानता इसलिए मैं सूक्ष्म बातों के बारे में निश्चित नहीं हो सकता, लेकिन मेरी समझ से मैं मामले को ठीक से समझ गया था। 


जो कुछ मैंने सुना उसके आधार पर, ‘क्यू’ अपना दायित्व सच्ची गंभीरता से निबाह रहा था।  


“हम बिना स्पॉन्सर्स के काम नहीं कर सकते,” उसने कहा। “मुझे तुम्हें यह बताने की आवश्यकता नहीं है - तुम इस धंधे के बारे में जानती हो।”


“तो तुम कह रहे हो कि तुम्हारी इस मामले में कोई जिम्मेदारी नहीं हैं अथवा तुम इस मामले में कोई दखल नहीं रखते?”


“नहीं, मैं तुम से यह नहीं कह रहा हूँ।  लेकिन मैं जो कर सकता हूँ वह वास्तव में बहुत सीमित है।”






उनका वार्तालाप पुनः एक बंद गली की ओर चला गया।  वह यह जानना चाहती थी कि उसने उसके पक्ष में अपनी ओर से कितना दबाव बनाया था।  वह इसी बात पर जोर दे रहा था कि वह जो कुछ कर सकता था, उसने किया था लेकिन उसके पास इस बात को सिद्ध करने का कोई रास्ता नहीं था। और वह उस पर विश्वास नहीं करती थी। मैं भी उस पर विश्वास नहीं कर रहा था। वह जितनी गंभीरता से हर बात को स्पष्ट करने की कोशिश कर रहा था उतना ही अगम्भीरता का कुहासा हर चीज पर फैलता जा रहा था। लेकिन यह ‘क्यू’ की गलती नहीं थी। यह किसी की गलती नहीं थी। इसीलिए इस वार्तालाप से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। ऐसा लग रहा था जैसे महिला हमेशा से ‘क्यू’ को पसंद करती थी।  मुझे लगा इस काम के पहले तक उनकी अच्छी पटती थी। इस बात ने संभवतः महिला का गुस्सा और बढ़ा दिया था। लेकिन अंत में, वही थी जिसने पहले हथियार डाले। 


“ओ. के.” उसने कहा।  “मेरे साथ ऐसा ही होना था। मेरे लिए एक कोक मंगाओ, क्या तुम मँगाओगे ?”


जब ‘क्यू’ ने यह सुना, उसने छुटकारे की साँस ली और ड्रिंक्स स्टैंड की ओर चला गया। महिला ने अपना धूप का चश्मा पहन लिया और सीधा सामने देखने लगी। तब तक मैं अपनी किताब की एक ही पंक्ति सैकड़ों बार पढ़ चुका था। 


जल्दी ही ‘क्यू’ दो बड़े पेपर कप्स के साथ वापस आ गया।  एक कप महिला को देता हुआ वह अपनी कुर्सी पर बैठ गया। “इस सब के लिए बहुत निराश मत होओ,” उसने कहा “अब किसी दिन तुम......”


लेकिन इसके पूर्व कि वह अपनी बात पूरी कर पाता, महिला ने अपना भरा हुआ कप उसके ऊपर फेंक दिया।  कप सीधा उसके चेहरे पर पड़ा और कोका कोला का लगभग एक तिहाई हिस्सा मुझ पर आ गिरा। बिना एक भी शब्द कहे, महिला उठी, अपनी बिकनी के पिछले भाग को हलके से झाड़ा और बिना एक बार भी पीछे देखे वहाँ से चली गयी। ‘क्यू’ और मैं वहाँ अगले पंद्रह सेकेण्ड तक बस स्तंभित बैठे रहे। आसपास के लोग अचंभित से हमें घूर रहे थे। ‘क्यू’ पहले सामान्य हुआ। “माफ़ कीजिये,” कहते हुए उसने एक तौलिया मेरी ओर बढ़ाया। 


“कोई बात नहीं,” मैंने कहा।  मैं अब सीधे नहाऊंगा ही।”


थोड़ा नाराज सा होते हुए उसने तौलिया वापस ले लिया और अपना मुंह पोछने लगा। 


“कम से कम मुझे इस किताब का दाम तो दे देने दीजिये,” उसने कहा। यह सही था कि मेरी किताब एकदम भीग गयी थी। लेकिन यह एक सस्ती पेपरबैक थी और बहुत रुचिकर भी नहीं लग रही थी। जिस किसी ने भी इस पर कोक फेंक कर इसे और पढ़ने से मुझे रोका था उसने मुझ पर एहसान ही किया था। जब मैंने यह कहा तो वह खुश हो गया। उसकी मुस्कराहट वैसे ही हमेशा की भांति शानदार थी।


कुछ क्षण बाद ‘क्यू’ मुझसे एक बार और माफ़ी मांगता हुआ उठा और चला गया। उसको कभी भान तक नहीं हुआ कि मैं कौन था। 


मैंने इस कहानी को ‘सल्तनत जो विफल रही’ शीर्षक देने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि मैने उसी दिन के सांध्य अखबार में एक अफ्रीकी राज्य के बारे में, जो विफल हो गया था, एक लेख पढ़ा था। वहाँ लिखा था “एक शानदार सल्तनत को अस्त होते देखना, एक दूसरे दर्जे के गणराज्य को ध्वस्त होते देखने से कहीं अधिक दुःखद है।”



(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स युवा चित्रकार मनोज कचंगल की हैं।)


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सम्पर्क


श्रीविलास सिंह

मोबाइल - 8851054620

टिप्पणियाँ

  1. बहुत उम्दा कहानी । लेखक मेरे पसंदीदा हैं और अनुवाद जो मित्र श्री विलास सिंह ने किया है बहुत ही सहज सरल और स्वाभाविक है
    लगता ही नहीं कि कहानी अनुवाद
    में पढ़ी है।

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  2. बढ़िया कहानी। अनुवादक को चयन और उम्दा अनुवाद के लिए बधाई!

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