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हेमन्त शर्मा का आलेख 'गले लगा कर कहो ईद है, मुबारक हो'

  'गले लगा कर कहो ईद है, मुबारक हो' हेमन्त शर्मा ख़ुशी एक शाश्वत भाव है। मानवता का जो मूल बिन्दु है, वो ख़ुशी ही है। ख़ुश होना, ख़ुश करना, ख़ुशी देना. त्योहार, पर्व, दान, अभिवादन, सहायता, सृजन सब इसी के इर्द-गिर्द हैं। ऐसी ही ख़ुशी की एक सामूहिक पहचान का पर्व है ईद। ईद यानी गले मिलें, दान करें, ख़ुशियाँ बाँटें, भेद से निकलें, अन्तर से निकलें, अलगाव से निकलें, दूसरा होने की पहचान से निकलें, शिकवों-शिकायतों से निकलें, बीती ख़राब स्मृतियों से निकलें और गले मिलें. दुआ दें, इज़्ज़त दें, मिठास दें। ईद और ख़ुशी तो एकदम एक से हैं। यह अनायास ही नहीं है कि लोग ख़ुशियों को ईद से जोड़ते हैं। मसलन, आपने लोगों को कहते सुना होगा कि बस बेटा अच्छे नम्बरों से पास हो जाए तो हमारी ईद हो जाए। शायरों ने कहा है- हमारा यार मिल जाए, हमारी ईद हो जाए। ऐसा ही एक शेर देखें- ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम। रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है।।  चाँद वही है। उसी की गति से ईद भी तय होती है और करवाचौथ भी। फिर काहे का रगड़ा। ईद न केवल इबादत और शुक्राने का दिन है, बल्कि भाईचारे, मोहब्बत और ख़ुशिय...

पिरिमकुल कादिरोव के उपन्यास बाबर पर कृष्ण कल्पित की समीक्षा 'इस बाबर को आप नहीं जानते'

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  पिरिमकुल कादिरोव इतिहास अतीत की बात करता है। अतीत की खूबियों और खामियों में हम चाह कर भी कोई सुधार नहीं कर सकते। आज इतिहास पर वही लोग ज्यादा बातें करते हैं जिन्होंने इतिहास को कभी पढ़ा ही नहीं। सुनी सुनाई बातों से इतिहास नहीं बनता। इतिहास के साथ दिक्कत यह है कि सबूतों के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ता। और अतीत के सबूत कुछ इस तरह के हैं जिन्हें समूल मिटाया भी नहीं जा सकता। इतिहास को हम तभी बेहतर समझ सकते हैं जब हम उस काल खण्ड में जा कर तथ्यों को समझने की कोशिश करें। भारतीय इतिहास में बाबर एक ऐसा ही ऐतिहासिक व्यक्तित्व है जिसको ले कर आज तमाम उल्टी सीधी बातें की जा रही हैं। रूसी उपन्यासकार पिरिमकुल कादिरोव के उपन्यास बाबर से हमें पता चलता है कि 'बाबर खुद आक्रांता नहीं था बल्कि वह तो आक्रांताओं का सताया हुआ एक भगोड़ा था जो हिंदुस्तान को जीतने की नीयत से नहीं बल्कि शरण पाने के लिए यहां आया था।' अगर हम इस बात को मान भी लें कि बाबर आक्रांता था तब भी हकीकत तो यही है कि दिल्ली फतह करने के बाद वह इस हिन्दुस्तान का ही हो कर रह गया। कभी वापस अपने मुल्क फरगना नहीं लौटा। उसने अपनी जो आत्मकथ...

सुशील कुमार का आलेख "काव्य परंपरा का 'अवाँ-गार्द'.. ?"

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  गीत चतुर्वेदी  समकालीन कवियों में जिन कवियों की चर्चा सर्वाधिक होती है उनमें कवि गीत चतुर्वेदी का नाम अग्रणी है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि उनके पास अपनी एक आकर्षक भाषा है। अपने बिंबों के इस्तेमाल के दम पर गीत अक्सर अपने पाठकों को चकित कर देते हैं। लेकिन हिन्दी आलोचना की दिक्कत यह है कि वह अरुण कमल, राजेश जोशी, वीरेन डंगवाल, मंगलेश डबराल से आगे अब तक बढ़ ही नहीं पाई है। गीत चतुर्वेदी की चर्चा भले ही वैश्विक स्तर पर हुई हो, हिन्दी में उनकी कवित्व का मूल्यांकन अब तक नहीं हो पाया है। कवि आलोचक सुशील कुमार अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। सुशील ने गीत चतुर्वेदी की कविता का एक आलोचनात्मक मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। आइए आज पहली बार हम पढ़ते हैं सुशील कुमार का आलेख "काव्य परंपरा का 'अवाँ-गार्द'.. ?" "काव्य परंपरा का 'अवाँ-गार्द'.. ?" (गीत चतुर्वेदी की कविता) सुशील कुमार  जिस हिंदी लेखक को कविता के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, स्पंदन कृति सम्मान, वाग्धारा नवरत्न सम्मान तथा गल्प के लिए कृष्ण प्रताप कथा सम्मान, शैलेश मटियानी कथा सम्मान, कृष्ण बलदेव वै...

सेवाराम त्रिपाठी का आलेख 'व्यंग्य: स्थिति और गति'

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  सेवाराम त्रिपाठी  लेखन अपने आप में एक गम्भीर कार्य है। यह सच है कि कोई लेखक वैयक्तिक तौर पर लेखन करता है लेकिन उसके वृहद सार्वजनिक निहितार्थ होते हैं। और बात जब व्यंग्य की हो तो लेखकीय चुनौतियां कुछ अधिक ही बढ़ जाती हैं। वरिष्ठ आलोचक   सेवाराम त्रिपाठी उचित ही लिखते हैं कि ' व्यंग्य हमारी ज़िंदादिली, जीवंतता, जिजीविषा और संवेदना का गंभीर और अनिवार्य पहलू है। व्यंग्य रचनात्मक संकल्पना के साथ यथार्थ के बहुविध रूपों का एक अद्भुत संसार भी है। और विसंगतियों, विडम्बनाओं और अंतरविरोधों से संघर्ष करने वाली दुनिया भी। व्यंग्य लेखन की चुनौतियों, वास्तविकताओं के प्रति लेखक का ध्यान होना चाहिए।' आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  सेवाराम त्रिपाठी का आलेख 'व्यंग्य: स्थिति और गति'। 'व्यंग्य: स्थिति और गति' सेवाराम त्रिपाठी    हम एक लोकतांत्रिक समाज में हैं। उसके यथार्थ भी हैं और कल्पना संसार भी। घालमेल, अतिरंजनाएं भी, और पेचीदगियाँ भी। लेखन कोई धार्मिकता के अनुष्ठानों का मामला नहीं है और व्यंग्य लेखन की दुनिया में किन्हीं लचर-पचर चीज़ों का जमावड़ा भी नहीं होता। वैसे लेखन...

रमाशंकर सिंह की कविताएं

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  रमाशंकर सिंह सुख और दुःख जीवन के वे पहलू हैं जो हमें कभी खुशियों से भर देते हैं तो कभी गम के सागर में डूबा देते हैं। कवियों ने इस सुख दुःख को अपने तरह से विश्लेषित करने का प्रयास किया है। बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत ही है : "सब्बम दुखम"। इसका सामान्य सा अर्थ है "संसार दुःख से भरा है"। यह मानव जीवन की सार्वभौमिक प्रकृति को प्रदर्शित करता है।  बुद्ध ने दुख से मुक्ति के लिए ही अपने प्रख्यात सिद्धान्त 'अष्टांगिक मार्ग' का प्रतिपादन किया जिसे ' मध्यम मार्ग' भी कहा जाता है।  भक्ति सन्त  कबीर के पास सुख और दुःख के बारे में कई दोहे हैं। वे लिखते हैं  'सुखिया सब संसार है खायै अरु सोवै,  दुखिया दास कबीर है जागै और रोवै' यानी जो सोया है उसके पास कोई चिन्ता नहीं। जो जागृत है उसे दुनिया को देख कर रोना पड़ता है। इस दुनिया में इतने लोग हैं और लोगों की समस्याएँ हैं कि अपना दुःख उसके आगे कुछ भी नहीं लगता। रमाशंकर सिंह एक कवि हैं साथ साथ इतिहासकार भी। वे अपनी एक कविता में तिरस्कृतों के सुख की चर्चा करते हैं। सुख की चर्चा तभी होती है जब दुख हो। और बा...