विकास गोंड की कविताएं
विकास गोंड |
दलित कविता की नई दस्तक और नया काव्य मुहावरा
नासिर अहमद सिकन्दर
“आपके सभ्य समाज में
मैं कहां आता हूं
संविधान का अनुच्छेद पन्द्रह
कितना महत्वपूर्ण है मेरे लिए
मेरे सारे बच्चे डोमवा
और बच्चियां डोमिनिया बन कर ही रह गये हैं
सबके साथ और सबके विकास में
मैं दूर कहीं छूट गया हूं”
(मुरलिया डोम से मुरलिया चाचा तक)
विकास गोंड की कविताओं को पढ़ा जाना दलित कविता के भीतर नए अध्याय का प्रारंभ हो जाना है; जहां भारतीय राजनैतिक व्यवस्था के भीतर विचार-विमर्श की नई दिशा भी है।
उपर्युक्त उद्धृत कविता में वर्षों की जातिगत गुलामी के साथ उभरी हुई वर्तमान की राजनैतिक व्यवस्था का दमनकारी चेहरा भी है तथा जातिगत व्यवस्था भी, जैसे-
“जब कोई मर जाता है गांव में
तब मुझे निमंत्रण आता है खाने का
पूरे परिवार समेत बैठा दिया जाता है
ऊपर से ही दही चूरा और चीनी के साथ पूड़ी सब्जी
तुम कहते हो खाओ और चिल्ला कर
‘यज्ञ पूरा है’ का जयकार लगाओ
और मैं लगाता हूं जयकार”
(मुरलिया डोम से मुरलिया चाचा तक)
मैं इस कविता के माध्यम से ऐसे कितने सामाजिक राजनैतिक व जातिगत ब्यौरे उद्धत करूं कि जिससे जातिगत व्यवस्था की बू आती हो!
“मैं भी उतना ही हिंदू हूं
जितना कि राम मंदिर का पुजारी
लेकिन कोई सनातनी
मेरे यहां कभी पानी नहीं पीता
वैसे तो मैं तुम्हारे लिए
मुरलिया डोम हूं
और चुनाव में मुराली चाचा”
(मुरलिया डोम से मुरलिया चाचा तक)
यहां दलित कविता के भीतर बिना किसी तल्खी, क्षोभ या गुस्से के साथ भारतीय प्रजातंत्र व भारतीय समाज का वर्णगत चेहरा उपस्थित होता है, हालांकि ‘‘विचारों की धारा’’ शीर्षक कविता में कवि का लेखकीय समाज व वर्ण व्यवस्था के प्रति गुस्सा अवष्य उभरता है; जब वे लिखते हैं-
“छपने लायक कविताएं
सिर्फ जनेऊ पहन कर लिखी जा सकती हैं
गाय चराने वाले लोग
चाम छीलने वाले लोग
कपड़ा धोने वाले लोग
भूजा भूंजने वाले लोग
जनेऊ न पहनने वाले लोग
सिर्फ चुटकुला लिखते हैं
कम से कम संपादक महोदय का यही मानना है”
(विचारों की धारा)
दलित कविता की वाक्य संरचना और शिल्प ज्यादातर सपाटबयानी के स्तर पर पहुंच कर ही तल्ख होता है, व्यंग्य शैली जहां महत्वपूर्ण हो कर उभरती है। हिंदी दलित कविता के ओम प्रकाश वाल्मिकी, जय प्रकाश कर्दम, श्योराज सिंह और असंग घोष ऐसे ही महत्वपूर्ण कवि हैं। विकास गोंड की ‘‘तुम सावधान रहना मेरे लोगों’’ कविता पढ़ेंगे तो लगभग यही अहसास होगा कि वे उनकी ही परंपरा के महत्वपूर्ण कवि हैं-
“तुम सावधान रहना मेरे लोगों
उन साहित्यकारों से
जो तुम्हारे ऊपर लिखते हैं
अपनी सबसे बड़ी विष्व प्रसिद्ध पुस्तक और
कमाते हैं लाखों”
(तुम सावधान रहना मेरे लोगों)
उनकी ‘‘मुरलिया डोम से मुरारी चाचा तक’’ तथा ‘‘प्रेम पत्र की गोपनीयता’’ कविता में जो ‘‘आपके सभ्य समाज में’’ तथा ‘‘पढ़े लिखे शहर के सभ्य लोग’’ पंक्तियां आईं हैं वह क्षोभ प्रकट करती हुई व्यंग्यात्मक हैं।
विकास गोंड हिंदी कविता में ओमप्रकाश वाल्मिकी, श्योराज सिंह व असंग घोष की तरह ही दलित चेतना के साथ वैश्विक राजनैतिक चेतना के कवि भी हैं। वे ऐसे सजग कवि भी हैं जो संघर्ष के स्तर पर दलित कविता को लेकर वैश्विक परिदृष्य की भी निगरानी करते हैं तथा अपना मत व्यक्त करते हैं। विकास गोंड की जब हम ‘‘सपने आते हैं’’ या ‘‘एक रात’’ शीर्षक कविता पढ़ते हैं तो यहां वैश्विक परिदृश्य ही उभरता है जहां यूक्रेन केन्द्र में है। जहां युद्ध की विभीषिकाएं भी मौजूद हैं तथा खुशहाल जीवन की परिकल्पना भी। ‘‘सपने आते हैं’’ कविता तो यूक्रेन, तुर्की और अचेतन मन के साथ गठजोड़ की संवेदना बनाकर सृजित की गई है। यह कविता का नया मुहावरा भी है। ‘‘एक रात’’ कविता तो फिलिस्तीन बच्चों के दर्द के बिम्ब पर पहुंचती है तो वह भी इसी काव्य चेतना के कारण।
विकास गोंड के कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनके यहां ‘‘कास्ट’’ और ‘‘क्लास’’ एक साथ हमसफर बनते हैं, कदमताल करते हैं तथा संघर्ष की नयी जमीन और जज्बा तैयार करते हैं। इसीलिए ही उनकी कविताओं को पढ़कर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि कवि विकास गोंड दलित विमर्श का नया अध्याय खोलते हैं।
नासिर अहमद सिकन्दर |
सम्पर्क
नासिर अहमद सिकंदर
मोगरा 76, ‘बी’ ब्लाक, तालपुरी
भिलाईनगर, जिला-दुर्ग छ.ग.
490006
मो.नं. 98274-89585
विकास गोंड की कविताएं
1. मुरलिया डोम से मुराली चाचा तक
आपके सभ्य समाज में
मैं कहां आता हूं?
संविधान का अनुच्छेद पंद्रह
कितना महत्वपूर्ण है मेरे लिए
मेरे सारे बच्चे डोमवा
और बच्चियां डोमिनिया बन कर ही रह गए हैं
सबके साथ और सबके विकास में
मैं दूर कहीं छूट गया हूं
जब कोई मर जाता है गांव में
तब मुझे निमंत्रण आता है खाने का
पूरे परिवार समेत बैठा दिया जाता है
जमीन पर और परोस दिया जाता है
ऊपर से ही दही-चूड़ा और चीनी के साथ पूड़ी सब्जी
तुम कहते हो खाओ और चिल्ला कर
‘यज्ञ पूरा है’ का जयकार लगाओ
और मैं लगता हूं जयकार
तुम्हारे यज्ञ के पूरा होने का
लेकिन क्या सिर्फ कोई मरेगा
तभी यज्ञ होता है तुम्हारे यहां?
अपने लड़के या लड़की की शादी में
जयकार लगाने के लिए
तुमने आज तक नहीं बुलाया
अगर बुलाया भी तो सिर्फ सिंघा बजवाया
फिर कहीं अलग बैठा कर खिला दिया
दो पूड़ी और सब्जी
मैं भी उतना ही हिंदू हूं
जितना की राम मंदिर का पुजारी
लेकिन कोई सनातनी
मेरे यहां कभी पानी नहीं पीता
वैसे तो मैं तुम्हारे लिए
मुरलिया डोम हूं
और चुनाव में मुराली चाचा।
2. प्रेम पत्र की गोपनीयता
तुम्हारे सबसे खुबसूरत प्रेमपत्र को
मैंने रख दिया है
शहर के सबसे महफूज जगह पर
वहां बहुत मुश्किल से
बहुत कम लोग पहुंचते है
जो लोग पहुंचते है
उन्हे पढ़ना नहीं आता
यदि उन्हें पढ़ना आता
तब यकीन मानो वे लोग
वहां कभी नहीं जाते
पढ़े लिखे शहर के सभ्य लोग
बहुत दूर रहते है ऐसी जगहों से
जहां महफूज़ है
तुम्हारा भेजा हुआ प्रेम पत्र
जब मेरे लिए चुनौती बन गया
तुम्हारे प्रेम पत्र की गोपनीयता
तब मैने शहर के सबसे गंदे और गहरे
नाले में महफूज़ रख दिया
तुम्हारा दिया हुआ खुबसूरत सा
प्रेम पत्र।
3. सपने आते हैं
यूक्रेन के बस्तियों में रहने वाले लोगों को
सपने आते हैं
कि रसिया ने युद्ध रोक दिया हो
बिना किसी शर्त के
और सैनिकों के बच्चों के सपने में
खिलौने ले कर पिता घर वापस आ रहे होते है
तुर्की में रहने वाले लोग सपने देखते है
कि धरती कांपी ही नहीं
कोई मकान गिरा ही नहीं
उसमे दब कर कोई मरा ही नहीं
हर एक त्रासदी गुजर जाने के बाद
बचे हुए लोग देखते है सपने
कि जिनमे वे होते हैं अपनों के साथ
तुम्हारे जाने के बाद
मैं भी देखता हूं सपना
कि तुम साथ हो
हमेशा की तरह
मनोवैज्ञानिकों का मत है
कि सपने सिर्फ अचेतन मन में
दमित इच्छाएं होते हैं
ये सपने जितने खुबसूरत होते हैं
उससे कहीं ज्यादा भयावह होता है
सपनो का टूट जाना
सभी यादें मानसिक पटल पर उभर आती हैं
एक आह और सिसकती हुई आवाज़ से
ज्यादा कुछ नहीं बचा होता है
सपना टूटने के बाद
अब भी युद्ध जारी होता है
अब भी भूकंप के बाद
शहर से मलबा हटाया जा रहा होता है
अब भी तुम मुझसे दूर होती हो
इतना दूर कि
तुम्हारे पास पहुंचना
लगभग मुमकिन नहीं रहा।
4. थोड़ी सी ज़मीन चाही थी हमने
करोड़ों आकाशगंगाओं के बीच
इस ब्रह्माण्ड के
किसी एक उपग्रह के
किसी एक देश के
किसी एक राज्य के
किसी एक गांव में
हमने चाही थी मिलने के लिए थोडी सी जगह
थोड़ी सी हवा
और थोड़ा सा आकाश
लगभग तुम्हारे और अपने पंजों के बराबर जमीन
प्रेम के लिए बहुत कम जमीन बची है
इस धरती पर
इस देश में गरीबी रेखा से नीचे वालों का प्यार
अक्सर कहानी या एक तमाशा बन कर सिमट जाता है
इस देश में बलात्कार करने से नहीं
प्यार करने से बाप की इज़्ज़त जाती है
मजाक बना रखा है इंसान का
5. एक रात
एक रात जो उम्र से बड़ी है
एक रात कि जिसमें सितारों की चमक फिलिस्तीन के किसी बीमार बच्चे की तरह पीली पड़ गई हो
एक रात कि जिसमे वैशाली की आम्रपाली हो रही हो सरेआम नीलाम
एक रात कि जिस में डूब रही हो
मुसाफिरों से भरी नाव गहरे सागर में
एक रात कि जिसमे तुम जा रहे हो
यह रात मेरे लिए उन तमाम रातों से ज्यादा भयावह और घोर पीड़ा से भरी है
जाड़े की रात और नदी किनारे
नाव पर बैठे पढ़ रहा वही कविता जो तुम्हारे लिए लिखा था
यह रात, रात नहीं एक बहुत बड़ी त्रासदी है
एक त्रासदी कि जिसके बाद
सिर्फ हताशा और निराशा होगी
एक जिंदगी होगी तुम्हारे बगैर
और ये सबसे बड़ी त्रासदी होगी।
6. जॉन किट्स और नाइटिंगल
यही आखिरी रात है
यही आख़िरी बात है
अब नहीं होगा पहले जैसा कुछ भी
इससे पहले कि कोई आ जाए
एक बार गले लगने की इजाजत दे दो
तुम्हारे सीने से लग के महसूस करूंगी
आखिरी बार गले लगने पर
कैसा लगता है
शायद ठीक वैसे ही
जैसे नाइटिंगल की आवाज
जॉन किट्स को लगी
या फिर शकुंतला की आवाज
दुष्यंत को
जैसे शाफिया की आवाज
जानिसार अख़्तर को
तुम मेरे लिए नाइटिंगल हो
दुष्यंत हो
और थोड़ा बहुत जानिसार।
7. विचारों की धारा
जिसने लगाई है तुम्हारे लिए कुर्सियां
और मेजों पर चादर
जिसने तुम्हारे उल्टे हुए चप्पल को
अपने जीभ से किया सीधा
जिसने तुम्हारे गुटखा खा कर थूके हुए
निशान को धोया है रगड़ रगड़
जिसने तुम्हारे पत्रिकाओं को सर पर रखकर पहुंचाया है घर-घर
उस युवा कवि को तुमने बताया अर्जुन,
युग का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर
जिसके आयं बाएं सायं पर तुम फुले नहीं समाते
बताओ कवि तुम्हारी पॉलटिक्स क्या है?
कविताएं छपवाने के लिए चाहिए
तो बस थोड़ी बहुत चाटुकारिता
और संपादक के जूते को चाटने भर की हिम्मत
छपने लायक कविताएं
सिर्फ जनेऊ पहन कर ही लिखी जा सकती है
गाय भैंस चराने वाले लोग
चाम छीलने वाले लोग
कपड़ा धोने वाले लोग
भूजा भूजने वाले
जनेऊ न पहनने वाले लोग
सिर्फ चुटकुला लिखते है
कम से कम संपादक महोदय का यही मानना है
वे करते हैं दावा
सबसे बड़ा बुद्धिजीवी होने का
वे लिख देंगे किताबें
जातिवाद पर, पूंजीवाद पर
खोज लेंगे अपने वर्ण का अर्जुन
इनके अर्जुन हैं महाथेथर
चापलूसी में हैं बेहतर
तुम्हारे विचारों की धारा पर थूकेगी दुनियां
तुम्हें हज़ार लानत।
8. कीरही गढ़ही
मूसलाधार बारिश के बाद
मेरे गांव की किरही गढ़ही में
सारी बनमुर्गियां
एक साथ झूम कर गाती हैं
उत्सव के गीत,
जंगली जलेबी और आम
के पेड़ पर लगे कच्चे फलों को
बच्चे मार रहे हैं
एक बूढ़ा व्यक्ति
इनकी करता है रखवाली ज़माने से
मेरे गांव की किरही गढ़ही में
जलकुंभी के फूल खिले हैं
जिनसे बच्चे खेल तो सकते है
लेकिन गढ़ही में काग़ज़ की नाव नहीं चला सकते
कुछ बच्चे खेत में
गेहूं के बाल बिनने गए हैं
उसमें से निकले गेहूं को बेच कर
खरीदेंगे चूरन, जिससे जीभ लाल होती है
और अपनी जीभ की तरह
कर देंगे लाल पूरी दुनिया को
तोड़ देंगे उन सभी बंधनों को
जो प्रेम के विरुद्ध स्थापित किए गए हैं
किसी गेहूं की बाल की तरह।
9. तुम्हारे ऊपर नहीं होते रिसर्च
तुम्हारे समस्याओं पर नहीं होते हैं रिसर्च
तुम्हारी मनोदशा की नहीं होती काउन्सलिंग
तुमने दुकान से कभी नहीं खरीदी नींद की गोली
तुम दिन भर हाड़तोड़ मेहनत के बाद
जब पहुँचते हो घर
नींद तुम्हें दूर से पहचान लेती है
तुमने कभी नहीं समझा
अवसादग्रस्त होने का अर्थ
तुमने कभी नहीं किया मेडिटेशन
तुम्हें कोई नहीं बताया स्वप्नविश्लेषण
तुमने नही सुना मनोविदलता शब्द
क्योंकि तुमने जल, जंगल, ज़मीन से ज़्यादा
कुछ नहीं चाहा
तुम्हारे अधिगम की प्रक्रिया में
नहीं आतीं हैं किताबें
नहीं आती है कलम
बाबा सिखाते हैं शिकार करने का
बेहतर उपाय
उन्हें भी यहीं सिखाया गया था
तुमने कभी नहीं देखा विश्वविद्यालय
क्योंकि जंगल में नहीं होते विश्वविद्यालय।
10. तुम सावधान रहना मेरे लोगों
तुम सावधान रहना मेरे लोगों
उन साहित्यकारों से
जो तुम्हारे ऊपर लिखते हैं अपनी सबसे बड़ी विश्वप्रसिद्ध पुस्तक और कमाते हैं लाखों
वे तुमसे कहेंगे बजा के दिखाओ अपने बाबू जी का झाल-मृदंग
जिसकी धुन को सुनने के बाद
साहित्यिक जगत में थिरक सकें
तुम्हारे कंधे के सहारे पर
वे अपनी जाति को बड़ी चालाकी से छुपा कर
तुम्हारे बीच का ही होने का दावा करेंगे
तुम्हारी बलित्कृत हुई बेटी के ऊपर बना देंगे सबसे महंगा बिकने वाला पेंटिंग
तुम सावधान रहना लेखकों के झुण्ड से भी
जिनके तेवर हाड़ खा कर सनके हुए
भेड़िए जैसा हो गया है
इनके झुण्ड अलग अलग हैं
इनके चिन्ह अलग अलग हैं
इनके नारे अलग अलग हैं
लेकिन इनके उद्देश्य एक हैं
इनके सारे विमर्श एक है
दलित विमर्श
आदिवासी विमर्श
स्त्री विमर्श
तुम्हारे ऊपर हुआ विमर्श
उनके लिए एक बहुत बड़ा धन उगाही है
तुम उनसे सावधान रहना
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
सम्पर्क
विकास गोंड
देवरिया, उत्तर प्रदेश
परास्नातक, मनोविज्ञान, इविवि।
मोबाइल - 9682812081
ई मेल - vikasgond051@gmail.com
बहुत ही सारगर्भित और प्रभावी लेखन!!
जवाब देंहटाएंइन कविताओं को पढ़ते हुए सिहरन महसूस कर रहा हूँ... धर्म, जाति, भाषा, बोली, रंग, आकार, धन-दौलत... जाने किस किस पर बंटे हुए हैं हम, ऊपर से झूठ-मूठ का विश्वगुरु का तमगा लटकाए पूरी दुनिया में अपने जैसे लोगों के बीच ढाक ढोल पीटते रहते हैं कि हमसे बेहतर कोई नहीं. 'इस देश में बलात्कार करने से नहीं /प्यार करने से बाप की इज़्ज़त जाती है' -
जवाब देंहटाएंविकास की कविता 'थोड़ी सी ज़मीन चाही थी हमने ' की इन दो पंक्तियों में जो धार है वही अन्य कविताओं में भी गहरे महसूस की जा सकती है. ऐसी कविताओं को कागज़ पर उतारने से पहले जो दर्द, जो अपमान, जो टूटन, कवि ने स्वयं करीब से देखा और भुगता होगा उसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. विकास की कविताओं पर नासिर अहमद सिकंदर जी ने बहुत अच्छी टिप्पणी की है और 'पहली बार ' पर संतोष जी की प्रस्तुति हर बार की तरह बहुत अच्छी लगी.
हृदय से आभार सर, आपके शब्द मेरे लिए बहुत ज्यादा मायने रखते हैं, और अधिक ऊर्जावान महसूस कर रहा हूं।
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