प्रेम साहिल की कविताएं
प्रेम साहिल |
प्रेम साहिल जी मूलतः पंजाब के हैं। इनका जन्म 11 जुलाई 1953 को मोदीनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। शिक्षा होशियारपुर में हुई। वे पंजाबी के वरिष्ठ कवि-लेखक हैं। हिन्दी के ग़ज़लकार और कवि भी हैं। इनकी रचनाएँ पंजाबी की सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। वे राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज से प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं। शिक्षा विभाग में आने से पहले वे सी. आई. एस. एफ. में सब इंस्पेक्टर भी रहे हैं। इन दिनों देहरादून (उत्तराखंड) में निवास कर रहे हैं।
पंजाबी में इनके पाँच कविता संग्रह, एक ग़ज़ल संग्रह और एक गद्य की पुस्तक प्रकाशित है। इसके अलावा हिन्दी में भी पाँच ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हुए हैं। पंजाबी साहित्य में दीर्घकालिक कार्य के लिए इन्हें 'उत्तराखंड साहित्य गौरव पुरस्कार' प्राप्त हुआ है।
"इधर प्रेम साहिल जी की अनूदित कविताएँ पढ़ीं, फिर उनसे संवाद हुआ, जो काफी प्रीतिकर रहा। अनुवाद और मूल पर बातें हुईं। उन्होंने कहा : 'मैं जब हिन्दी में लिखता हूँ तो उसे अनुवाद ही मानता हूँ क्योंकि मैं सोचता पंजाबी में हूँ।' उसके बाद मुझे इनकी और कविताएँ मिलीं। पढ़ कर अच्छा लगा। मालूम हुआ कि इनकी कविताई का बीज; पंजाबी कविता की उस मिट्टी में अंकुरित हुआ था, जिसे अवतार सिंह पाश जैसे कवियों ने सींचा है। इनकी व्यष्टिपरक कविताएँ भी समाज को पूरी मुखरता से अभिव्यक्त करती हैं। इनमें आम आदमी की स्मृतियों, संघर्ष, जिजीविषा, सरोकारों और जीवन-अनुभवों को देखा जा सकता है। यह हमें जल, जंगल और ज़मीन के प्रश्नों से भी जोड़ती हैं। प्रेम साहिल किसी विशेष मुहावरे और भाषा शैली के कवि न होकर; बोलचाल, संवाद और सरलता के कवि हैं। इन्हें अतीव शुभकामनाएँ!"
- कमल जीत चौधरी (हिन्दी कवि-लेखक-अनुवादक)
प्रेम साहिल की कविताएं
प्रस्तुति : कमल जीत चौधरी
मेरे अन्दर
साँप उस जीव का नाम नहीं
जो बाहर रेंगता दिखाई देता है
बल्कि उस
डर का नाम है
जो मेरे अन्दर
कुंडली मार कर बैठा है
मुंडी छुपाना
कोई उस साँप से सीखे
जो उस डर का नाम है
जो मेरे अन्दर
कुंडली मार कर बैठा है
जिसके सामने मैं रेंगता रहता हूँ।
चींटी के हवाले से
मेरे ज़रा से
बढ़े हुए नाख़ून में भी
छुप सकती है जो
कितनी छोटी है वो
लेकिन
उसका जीवन उसके लिए
उतना ही अहम है
जितना मेरा मेरे लिए
मेरा जीवन
मेरे सिवा दूसरों के लिए भी
अहम है तो
दूसरों के लिए उसका जीवन भी
अहम क्यों नहीं?
अहमियत अहमियत होती है
कम या ज़्यादा नहीं
मैं उसे कुचल सकता हूँ
कोई मुझे भी तो कुचल सकता है
मुझे उसका ध्यान नहीं रहता
तो किसी को
मेरा भी ध्यान नहीं रह सकता है
अहमियत है तो
उसका ध्यान क्यों जरूरी नहीं?
ध्यान ना रखने से
किसी की भी जान जा सकती है
चींटी की
मेरी भी।
अकेले होते हैं हम जहाँ
अकेले होते हैं हम जहाँ
वहाँ भी होता है कोई न कोई
होते हैं कई
झाड़-झँखाड़, कंकड़-पत्थर
रेत-मिट्टी, बहती कोई नदी
या कोई झरना
होगा कोई बिल
बिल में भी होगा कोई न कोई
फूल भी तो हो सकते हैं
रंग होंगे, होंगी तितलियाँ, मधुमक्खियाँ भी
पेड़ होगा, पत्ते भी होंगे
बैठा हो सकता है पेड़ पर कोई पक्षी भी
वहाँ से गुज़र कर गए लोगों के
पदचिह्न हो सकते हैं
हाँ हाँ, कुछ नहीं तो
वहाँ हो सकती है
वहाँ से जुड़ी कोई भूली-बिसरी याद ही...
डरी हुई बिल्ली
अब लौट कर नहीं आएगी
डरी हुई बिल्ली
बिल्ले से छिपा कर
एक-एक करके
खा रही होगी
यादों के चूहे
इतने चूहे हैं खाने के लिए
आराम से गुज़ार लेगी
जीवन के बचे हुए साल
डरी हुई बिल्ली ...
अब लौट कर नहीं आएगी।
आवाज़ की रस्सी
हर बार
घर लौट आने वाला
कहाँ कहीं जाता है
कोई कितनी भी दूर
क्यों ना चला जाए
घर की आवाज़
वहाँ पहुँच ही जाती है
घर की हाँक को
अनसुना करना
आम आदमी के तो
बस की बात है नहीं
हाँ
बुद्ध की बात और है
घर की आवाज़
ऐसी रस्सी है, जो
दिखाई नहीं देती
सुनाई देती है
घर की आवाज़ की रस्सी
किसी को
दुनिया के किसी भी छोर से
खींच लाती है
घर लौटने वाला
कहाँ कहीं ठहर पाता है
हर बार
घर लौट आने वाला
कहीं नहीं जाता है!
चनाब नाम है उनके दरिया का
दरिया किनारे
पानी में भीगे हुए पत्थर
बोलते नहीं
मगर बुलाते हैं
कि आओ, देखो
दो घड़ी बैठ कर हमारे बीच
निहारो
हमारे घिसे हुए
मुलायम, रंग-बिरंगे रूपों को
छू कर देखो
सुनो बहते हुए जल का संगीत
महसूस करो जल का शीतल स्पर्श
घूंट भर कर स्वाद लो
जल की मिठास का
चनाब नाम है उनके दरिया का
उनके विभिन्न रूप और रंग
बेशक बोलते नहीं
मगर बुलाते ज़रूर हैं।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
कमलजीत चौधरी
मोबाइल : 9419274403
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