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चितरंजन भारती की कहानी 'सरकार तुम्हारी आँखों में'

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  चितरंजन भारती लोकतंत्रात्मक सरकार के बारे में अब्राहम लिंकन की एक उक्ति हमेशा उद्धृत की जाती है - 'जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए'। लेकिन सत्ता का शायद यह चरित्र ही होता है कि वह मद पैदा कर देता है। जनता द्वारा चुने गए रहनुमा उन्हीं तौर तरीकों को अपनाने लगते हैं जो कभी राजा और सामंत लोग किया करते थे। यह अलग बात है कि जनता चुनावों के माध्यम से सरकारों को अपनी शक्ति का अहसास करा ही देती है। चितरंजन भारती ने अपनी कहानी के माध्यम से सरकारी विद्रूपता को उजागर करने का प्रयास किया है। चितरंजन जी इन दिनों पटना में रहते हुए अपना लेखन कार्य कर रहे हैं। इनके अब तक चार कहानी संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  चितरंजन भारती की कहानी 'सरकार तुम्हारी आँखों में'। 'सरकार तुम्हारी आँखों में'  चितरंजन भारती एम. एल. ए. फ्लैट्स के विशाल फाटक के पास जैसे ही मेरा स्कूटर धीमा हुआ, वह दौड़ती हुई मेरे पास पहुँच गई। आने के साथ ही वह मेरे स्कूटर के सामने खड़ी हो कर बोली- "आज मछली-भात खाने का बहुत मन कर रहा है कृष्णा बाबू।" मुझे नथुनी ...

अवन्तिका राय की लघु कथाएं

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  अवन्तिका राय  कहावतें ऐसे ही जन्म नहीं लेती। इसके पीछे व्यापक अनुभव का संसार होता है। यह अनुभव संसार उसे विस्तृत आयाम प्रदान करता है। देखने में ये भले ही छोटी लगें लेकिन मारक होती हैं। डपोर शंख ऐसी ही परिकल्पना है जो हवा हवाई योजनाएं बनाने वालों के लिए लागू होती है। ये डपोर शंख हर जगह मिल जाते हैं। गांव से ले कर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक। इनकी बातें लम्बी चौड़ी होती हैं। लेकिन वास्तविक काम में ये प्रायः फिसड्डी साबित होते हैं। अवन्तिका राय का जुड़ाव गांव की उस धरती से रहा है जो अपने मुहावरों, कहावतों और कथ क्ककड़ी यानी गप्पों के लिए तौर पर समृद्ध रहा है। अपनी रचनाओं में वे इसका खूबसूरत प्रयोग करते हैं। इसी भाव भूमि पर आधारित  अवन्तिका की पांच लघु कथाएं हम प्रस्तुत कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  अवन्तिका राय की लघु कथाएं। अवन्तिका राय की लघु कथाएं  ताकत कहीं आपको इस नाचीज़ की आदत तो नहीं पड़ती चली जा रही। पर आपको यह जान लेना चाहिए कि आदत ख़ुद में कितनी बढ़िया और खतरनाक शय है। और वह भी किसी ऐसे इंसान की जो आपको पूरी तरह जान चुका हो। पर ज़नाब, ...

प्रेमचंद की कहानी 'शतरंज के खिलाड़ी'

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  'शतरंज के खिलाड़ी' प्रेमचंद एक वाजिद अली शाह का समय था। लखनऊ विलासिता के रंग में डूबा हुआ था। छोटे-बड़े, अमीर-ग़रीब, सभी विलासिता में डूबे हुए थे। कोई नृत्य और गान की मजलिस सजाता था, तो कोई अफ़ीम की पीनक ही में मज़े लेता था। जीवन के प्रत्येक विभाग में आमोद-प्रमोद का प्राधान्य था। शासन-विभाग में, साहित्य-क्षेत्र में, सामाजिक व्यवस्था में, कला-कौशल में, उद्योग-धंधों में, आहार-व्यवहार में, सर्वत्र विलासिता व्याप्त हो रही था। राज कर्मचारी विषय-वासना में, कविगण प्रेम और विरह के वर्णन में, कारीगर कलाबत्तू और चिकन बनाने में, व्यावसायी सुरमे, इत्र, मिस्सी और उबटन का रोज़गार करने में लिप्त थे। सभी की आँखों में विलासिता का मद छाया हुआ था। संसार में क्या हो रहा है, इसकी किसी को ख़बर न थी। बटेर लड़ रहे हैं। तीतरों की लड़ाई के लिए पाली बदी जा रही है। कहीं चौसर बिछी हुई है; पौ बारह का शोर मचा हुआ है। कहीं शतरंज का घोर संग्राम छिड़ा हुआ है। राजा से ले कर रंक तक इसी धुन में मस्त थे। यहाँ तक कि फ़क़ीरों को पैसे मिलते तो वे रोटियाँ न ले कर अफ़ीम खाते या शराब पीते। शतरंज ताश, गंजिफ़ा खेलने से ब...

बसन्त त्रिपाठी का आलेख 'लगातार सुंदर होती जा रही कविता से एक जिरह'

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  बसन्त त्रिपाठी  कविता क्यों और किसलिए? हरेक कवि अपने जीवन में कभी ना कभी इन प्रश्नों से दो चार होता है। कविता जीवन और सुन्दरता के पक्ष में हमेशा खड़ी रहती है। यही इसका औचित्य भी है। यह दुनिया में सर्वाधिक लिखी जाने वाली विधा है। हर समय में हजारों कवि एक साथ विविध विषयों पर कविता लिख रहे होते हैं लेकिन आगे चल कर इनमें से कुछ कवियों की रचनाएं ही याद रखी जाती हैं। कविता के आधिक्य को देखते हुए कभी कभी ऐसा लगता है कि क्या कविता महज फैशन के लिए लिखी जा रही है। ऐसी कविताओं का वास्तविक जीवन के साथ कोई जुड़ाव नहीं होता। ये कविताएं दूर का रास्ता तय नहीं कर पातीं। इन्हीं सब सवालों से जूझने का प्रयास किया है कवि बसन्त त्रिपाठी ने। अपने आलेख में बसन्त ने व्यंग्यात्मक लहजा भी अपनाया है जिससे यह और धारदार बन पड़ा है। इसी क्रम में कई जगह कवि ने कुछ महत्त्वपूर्ण सवाल भी उठाए हैं। इसी क्रम में वे लिखते हैं : ' मुझे कई बार आश्चर्य होता है कि समय के भयानक कुचक्र में फँसी सभ्यता के संकट को कुछ कवि अपने समूचे कवि-जीवन में कैसे देख नहीं पाते। या शायद देख कर अनदेखा करते हैं। अनदेखा करने के कई-कई तर...