निशान्त की कविताएं

 



कविता पर विमर्शों की एक लम्बी श्रृंखला मिलती है, जो कविता के औचित्य को साबित करने के क्रम में व्यक्त की गई होती है। कविता में छंद हो। कविता समझ में आने वाली हो। कविता में बिम्ब हो। आदि आदि... ...। लेकिन मेरे ख्याल से कविता तो वही होती है जो आपको चिन्तन मनन करने के लिए विवश करती है। उसकी पंक्तियां आपके जेहन में बस जाती हैं। कविता तो वही जिसे पढ़ते हुए हम अपने जीवन के अक्स को आसानी से महसूस कर सकते हैं। कविता तो वही जिसे आप एकसुरुकिया नहीं पढ़ सकते, बल्कि आहिस्ता आहिस्ता पढ़ते और आगे बढ़ते हैं। निशांत की कविताएं चमत्कार पैदा नहीं करतीं, न ही इसकी कोई कोशिश वे करते हैं। निशांत की कविताएं कुछ ऐसी मिजाज की ही कविताएं हैं जिसे पढ़ते हुए हम कई बार रुकते हैं, सोचने के लिए विवश होते हैं और वह हमारे जेहन में अपनी जगह बना लेती हैं। आज निशांत का जन्मदिन है।  जन्मदिन की बधाई देते हुए आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं निशांत की कविताएं।



निशान्त की कविताएं



एडहॉक

                  


चार महीने हम हँसते है वोगेनबेलिया की तरह

चार महीने जीते है अमीबा के जैसे

चार महीने हम, हम होते हैं


सर, आप इसे फ़ूड गैदरिंग कहते हैं

हम आपसे सहमत न होते हुए भी सहमत हैं

भोजन तो चीटियां भी जुगाड़ लेती हैं

बरसात से पहले

मनुष्य होने की गरिमा जुगाडने आते हैं हम



चार महीने का दिन होता है हमारे यहां

आठ महीने की काली रात

हम पृथ्वी के दो ध्रुव हैं

अपने अक्षांश पर थोड़ा ज्यादा चपटे से

मेरी प्रेमिका कम होने वाली बीवी

इसे चार महीने का हनीमून ट्रिप कहती है



हम राकेश शर्मा है सर

चार महीने में पहुंच ही जाते हैं अंतरिक्ष में

और कहते हैं-

"आसमा से ये जमी बहुत सुंदर दिखती है।"



हमें माफ कीजियेगा सर

गांधी के इस देश मे

गांधी के जंतर होने से इनकार करते हैं हम

हमारा मुँह

काफी वितृष्णा से भर जाता हैं

गाली निकलना चाहता हैं

आप काफी संभालते है हमें, इस वक्त

अच्छी बातों की सीख से 



इन बातों के साथ

न हम पैंटालून जा सकते हैं

न पेट भरा जा सकता हैं

न चार महीने की तलवार टलती है सर।



पैसा और सम्मान में काफी अंतर होता है, सर।

आदर्श और यथार्थ में भी।



हमारा मुस्कुराता चेहरा

चेहरा नहीं अभिनय का मंच है और हम

इस मंच के  ऑस्कर विजेता



अभिनय हमें परंपरा से मिली हैं

हमारा खून ठंडे पानी का अभिनय करता हैं



हम काफी नाउम्मीद हैं सर

अब इसके अलावा हमें कुछ आता भी नहीं 

इन महीनों में हम बाहर निकलते हैं

मिलते जुलते बतियाते और मुस्कुराते हैं मनुष्य की तरह और

बन्द कर देते हैं इस समय का मुँह

नहीं तो जानवर और हम में काफी समानताएं हैं।



महसूस तो आप भी करते होंगे, सर।

एडहॉक और परमानेंट होने का अंतर।।





फ्लैट में जीवन

             

1.


ऊपर से नीचे ताकने पर

कुछ नहीं दिखता

ऊपर तो ताका ही नहीं जा सकता

जहाँ है, वहीं है आप

कुछ किया नहीं जा सकता

कुछ नया दिख नहीं सकता


रोज रोज एक ही दृश्य

मोबाइल, लैपटॉप और टीवी के अलावा

दृश्य एक जगह स्थिर हो गए हैं।



नकल ही असल है

असल नकल है

फ्लैट में



इसे फ्लैट कह ले

या

अपार्टमेंट

क्या फर्क पड़ता है?



घर

शब्द नहीं निकलता इसके लिए

ना मुंह से

ना गले से

ना हृदय से



एक एक शब्द

घर कमरा फ्लैट अपार्टमेंट कितनी अर्थ छवियां समेटे हुए हैं

एक ही जीवन के भीतर



जीवन इसी तरह

कस मस, बिना टस मस

स्थिर हो जाता है

एक उम्र के बाद

नहीं रहता इसमें कोई रस लस



जीवन फ्लैट हो जाता है

जहाँ ऊपर नीचे बहुत कुछ हो कर भी

कुछ नहीं होता।


2.


सीढ़ी के बदले लिफ्ट


लिफ्ट का विकल्प क्या?

डैने या कोई उड़ने वाला मन्त्र ?


सोचता है एक बुड्ढा

बुद्ध की तरह

महापरिनिर्वाण से पहले तक



पहले पहले डर लगा था उसे भी

अब आदत हो गई है



हर कोई बुद्ध होने से पहले

इसी तरह डरा होगा

सोच कर मन ही मन मुस्कुराता है वह 

और लिफ्ट का बटन दबा नीचे और नीचे उतरता है

वहां बेसमेंट के और नीचे

एक सूखे तालाब में

बुला रही थी मछलियां उसे

पूछने के लिए उसका हालचाल



तालाब के बीचों बीच खड़ा है 

आसमान को छूता हुआ यह आनंदमठ अपार्टमेंट

उसके एक किनारे पर गीतांजलि

दूसरे किनारे पर वनलता* अपार्टमेंट



रात को जब सारे ग्रह नक्षत्र चाँद तारे सो जाते

मछलियां बेसमेंट के तालाब से बाहर निकल

हर एक अपार्टमेंट में टहलती

नाचती कूदती फुदकती 

और कभी-कभी रोती भी

जिस से दीवालें भीग-भीग जाती



फ्लैटों में आते और रोते हुए उन्हें किसी ने नहीं देखा

जानवरो की भाषा जानने-समझने वाले

वनलता* में रहनेवाले जीवनानंद दास बाबू ने भी नहीं।



*वनलता (सेन), बांग्ला के कवि जीवनानंद दास की एक प्रसिद्ध कविता/कविता संग्रह भी है।


3.


यह भी एक दुनिया है

इसी दुनिया के समानांतर



हवा पानी बौछार

धूप आकाश और कबूतरों के गुटरगूँ गुटरगूँ



घर का विकल्प फ्लैट

अपार्टमेंट

बस

जहाज रेल बरसाती या कुछ भी

गौरैया के छोटे घोसले जैसा

एक छोटा पर पूरा, भरा पूरा घर



कुछ भी संभव है

इस दुनिया के बरक्स

इस दुनिया के समानांतर

इस दुनिया में

और आपको कुछ भी बुरा नहीं लगता



जीवन कछुए की तरह नहीं

रॉकेट की तरह भागता है

ऊपर और ऊपर

आकाश की ऊँचाई की तरफ



जीवन का मूल्य घटता है ऊपर जाने से

फ्लैट का मूल्य बढ़ता है

ऊपर, ऊपर और ऊपर जाने से।



4.


सबसे पहले

गेट 

दरवान

फिर 'आप कैमरे की निगाह में है।'



बिना इजाजत

बिना पहचान बताये

फ्लैट में नहीं आ सकता बाहर वाला

अंदर-बाहर के स्पष्ट खांचे में बटी है यहाँ दुनिया



इतनी न्यूनतम जरूरतें

जीवन में क्यों नहीं होती?



हम फ्लैट की सुरक्षा से

जीवन को सुरक्षित कर रहे हैं

गड़ासे से मांस की रखवाली कर रहे हैं



आज, सब कुछ बदल रहा है

जीवन भी

जीवन के सिद्धान्त भी

घर की परिभाषा भी।


5.


इतनी सुरक्षा की चाह

कितना असुरक्षित बना रही है 



बन रही है

एक असमानता से भरी दुनिया



यह मानस

बुड्ढा जो किसी का परदादा है

नहीं समझ पाता



दरवान तो सूंघ लेता है 

वह आते जाते लोगों को चेहरे से नहीं

उनकी खाल से उन्हें पहचानता है

पहचानता है उनकी देहगंध से उन्हें

बुड्ढे को देख सांस लेना बंद कर देता है वो

कहता है-

मछली की तरह महकती है जीवनानंद बाबू की देह

चोइटा *  खुल खुल कर गिरता रहता है

उनकी देह से।



*चोइटा : मछलियों की देह की ऊपरी चमकीली परत।

 





मजदूर-मजबूर पिता

         


उस साल किसी अयोध्या में

मस्जिद टूटी थी

पिता बेरोजगार हुए थे



मेरे पिता मजदूर थे

मजबूर हुए

इतने, कि क्या कहूँ ?



मैंने मजदूरों के हक के लिए नहीं लिखी एक भी कविता


उनकी मजबूरी को देखा

मजदूरी को भी

आठ के बदले छः इट उठाने की मजबूरी



मेहनत-मजदूरी खराब नहीं है

खराब है उसका इतना कम मूल्य मिलना

जीने के लिए कम भोजन मिलना



एक उम्र के बाद

आप अपने काम के अलावा

दूसरे किसी काम के लायक नहीं रहते



उम्र और मजबूरी 

सुरसा के मुँह की तरह दिखती है

रोजगार छीन जाने के बाद



हम देर से जन्मी संतानों ने

अपने पिता को असमय बूढ़े होते देखा



कुछ न कर पाने के अफसोस के नीचे मरते रहे हम

हम भाई बहन



माँ गांव में थी

हम कलकत्ते में

पिता मजदूर, मजबूरी में



कारखाने के पेट में

पिता की गरिमा चली गई

पिता का शानदार चेहरा चला गया

मजबूर बुड्ढा वही से आया

और हमारे बचपन पर छाया



या खुदा, रहम।

अब तो अयोध्या में राम मंदिर की नींव भी रख दी मोदी जी ने।

हैजा, खसरा, प्लेग चला गया

ये कोविड भी चला

जायेगा, प्रभु!



इस आपदा को

हमारे लिए विपदा में मत बदलो सरकार!



रहम, रहम !

हमें ऐसे पिता न बनाओ।

हमारे रोजगार रहने दो,

हमें जरा जीने दो।

बच्चों की निगाह में

मत गिरने दो

मत मरने दो।





वह एक स्त्री थी


वह एक स्त्री थी

वह आसमाँ में जाल फेंकती 

धरती के लोग खुश हो जाते

कहते हैं कि एक बार उसके जाल में 

सूरज फंस गया था 

तभी से वह ब्रह्मांड में 

एक स्त्री के लिए भटकता रहता है



उसके जूते के नीचे तारे थे 

वह ईश्वर की इबादत नहीं करती 

उससे मुहब्बत करती है



हवाओं से उसकी बनती है 

दिशाएँ उसकी सहेलियाँ हैं 

तारे उसके बचपन के साथी 

समुद्र पड़ोस से उसे बुलाता रहता है



वह एक स्त्री थी 

पुरुष बनना ही नहीं चाहती थी 

आसमाँ में नगाड़े बजते धरती पर 

वो कहती 

मैं बेटी नहीं

बेटियों की माँ होना चाहती हूँ।



भाषा एक हथियार है

                     

बात ई और उ की मात्रा की नहीं है

बात है

इस बहाने

उन्हें डराने की

कभी कभी धमकाने की

नीचा दिखाने की

हीनताबोध के नदी में डुबो कर मार देने की



'समझाना' और 'बताना'

दुनिया के सबसे कोमल शब्द है

इन्हें कटार की तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए 



भाषा एक हथियार है

हत्या करने का एक शानदार शस्त्र

एक धारदार अस्त्र



गोला बनाता हुआ एक लाल स्याही भी 

उकसा सकता है किसी को

अपनी हत्या के लिए



किसी अदालत में दाखिल नहीं होता कोई केस

भाषा में की गई

इस हिंसा, बर्बर हिंसा के खिलाफ



गुलाम या उपनिवेश

इसी तरह बनाये जाते है

यह बताते हुए कि देखो- तुम्हारी भाषा में,

कितनी अशुद्धियां है।

कितनी गलतियां है।

भला, यह भी कोई भाषा है?



भाषा से गुलाम बनाये ही नहीं जाते

सदियों से सदियों तक भाषा से

गुलामों की खेती भी की जाती है

लार्ड मैकाले को तो आप जानते ही होंगे?



भाषा की शुद्धता के अस्त्र से

भाषा के सृजनहारे की कोख में ही हत्या कर दी जाती है

कर दी जाती है हत्या भाषा के भविष्य की 



वे नहीं जानते

कुछ न लिखने से ज्यादा जरूरी है

कुछ लिखना कुछ कहना कुछ बोलना

गलत ही सही



जो तन से नहीं हारता,

मन से नहीं हारता।

वो यहाँ हार जाता है, भाषा के मोर्चे पर।


भाषा के मोर्चे की हार

उसकी आत्मा में नश्तर की तरह चुभती रहती है



हे, पाणिनि के वंशजों

हे, वैयकरणाचार्यों

हे, प्रोफेसरों

जरा अपने उस बच्चे को देखो

जो अभी बकैया खींच रहा है

मम्म मम्म बोल रहा है

दुनिया की सबसे खूबसूरत भाषा रच रहा है 



वह

अशुद्ध भाषा बोल रहा है।



(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स स्वर्गीय कवि विजेंद्र जी की हैं।)
 


सम्पर्क


मोबाइल : 8250412904


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