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कुमार वीरेन्द्र का आलेख "अतीत-आतुरता से मुक्त ‘आज के अतीत’"

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  आत्मकथा लिखना किसी भी लेखक के लिए एक चुनौती की तरह होता है। इस विधा में लेखक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह वस्तुनिष्ठ हो कर अपने बारे में, अपने लेखन के बारे में बात रखे। इस क्रम में उसे आत्म-मोह से अलग हो कर आत्म-आलोचना की राह पर चलते हुए लेखन करना पड़ता है।  प्रेमचन्द ने  1932 में अपनी पत्रिका  ‘हंस’ का आत्मकथांक निकाला, जो काफी चर्चित हुआ। इन  लेखकों को अपने जीवन से जुड़े गोपन प्रसंगों या वर्जित विषयों पर खुल कर लिखने-बताने में कोई भी झिझक नहीं हुई। इन प्रसिद्ध आत्मकथाओं में महात्मा गाँधी की ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’, हरिवंश राय बच्चन की ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ और पांडेय बेचन शर्मा उग्र’ की ‘अपनी खबर’ आदि प्रमुख हैं।  भरत सिंह और कुमार वीरेन्द्र  के सम्पादन में हाल ही में लोकभारती, इलाहाबाद से एक महत्त्वपूर्ण किताब आई है 'आत्मकथा के इलाके में'। इस किताब में कुमार वीरेन्द्र का भी एक आलेख है जो भीष्म साहनी की आत्मकथा ' आज के अतीत' पर केन्द्रित है। इस महत्त्वपूर्ण आलेख को हमें टाइप फॉर्म में अवनीश यादव ने उपलब्ध कराया है। हम उनके प्रति आभार व्यक्त...