ललन चतुर्वेदी का व्यंग्य कुत्ते बंध्याकरण के खिलाफ हैं!
व्यंग्य ऐसी विधा है जो सरस भाषा में होते हुए भी गहरे तौर पर अपना काम कर जाता है। रोजमर्रा की बातों, घटनाओं में से ही व्यंग्यकार अपनी बातें खोज लेता है। इस क्रम में वह दूर की कौड़ी नहीं लाता बल्कि घर की कौड़ी लाता है। इस क्रम में सटीक बातें और प्रहार करता है। व्यंग्य एक तरफ जहां गुदगुदाता है वहीं दूसरी तरफ अंतस को झकझोर डालता है। ललन चतुर्वेदी उम्दा कविताओं के साथ-साथ धारदार व्यंग्य भी लिखते हैं। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं ललन चतुर्वेदी का व्यंग्य कुत्ते बंध्याकरण के खिलाफ हैं! कुत्ते बंध्याकरण के खिलाफ हैं! ...