रेखा चमोली की कविताएँ
प्रेम मानवीय दुनिया की सबसे अनूठी अनुभूति है. प्रेम हमें बराबरी के धरातल पर खड़ा कर देता है. वहाँ न तो किसी किस्म की अहमन्यता होती है न ही किसी तरह का संशय. प्रेम का धरातल विश्वास से ही तैयार होता है. रेखा चमोली के यहाँ प्रेम का अर्थ विस्तीर्ण है जिसमें पूरी मानवता के प्रति प्रेम की प्रतिबद्धता है. अपनी कविता 'यूँ ही करती रहूँ तुमसे प्रेम' में रेखा लिखती हैं - 'तुम्हें हाथ
बंटाना होगा उन कामों में/ जिन्हें तुम छोड़ते
आए हो/ किसी और की
जिम्मेदारी समझ/ ध्यान से देखने
समझने होंगे वे छोटे-बड़े काम/ जो हमारा जीवन
जीने योग्य बनाते हैं/ उन्हें करने वाले
हाथों का करना होगा सम्मान/ उनके श्रम का
चुकाना होगा उचित मूल्य'. आज रेखा चमोली का जन्मदिन है. उन्हें जन्म की शुभकामनाएँ देते हुए हम प्रस्तुत कर रहे हैं उनकी कुछ नवीनतम कविताएँ.
रेखा चमोली की कविताएँ
यूँ ही करती रहूँ तुमसे प्रेम
अगर तुम चाहते हो
मैं हमेशा यूँ ही
करती रहूँ तुमसे प्रेम
तों तुम्हें
रोज खुद को
संवारना होगा
अपनी कमियों पर
निरंतर रखनी होगी नजर
उन्हें ठीक करने
की करनी होगी कोशिश
और देखना होगा
कहीं तुम्हारी
आदतें
तुम्हारे आसपास
रहने वालों के लिए
असुविधा और खीझ
का कारण तो नहीं
तुम्हें हाथ
बंटाना होगा उन कामों में
जिन्हें तुम छोड़ते
आए हो
किसी और की
जिम्मेदारी समझ
ध्यान से देखने
समझने होंगे वे छोटे-बड़े काम
जो हमारा जीवन
जीने योग्य बनाते हैं
उन्हें करने वाले
हाथों का करना होगा सम्मान
उनके श्रम का
चुकाना होगा उचित मूल्य
अपना काम निकालने
के लिए
थोड़ी बहुत
चापलूसी भले ही कर लो दूसरों की
क्योंकि मूर्खों
से भरी पड़ी है ये दुनिया
पर गलत को गलत ही
कहना होगा
सही का साथ देने
को होना होगा तत्पर
जब मुझे तुम्हारी
जरूरत हो
तुम ना आ पाओ
मेरे पास तो चलेगा
पर अपना कोई दुख
गुस्सा मुझसे ना छुपाओ
हम एक दूसरे की
सारी बातें जानें
पर जब कोई रहना
चाहे चुप
तो उसे
भीगने दें अवसाद
की खामोशी में
और जब वह
अपनी चुप्पियों की
पंखुडियां खोल रहा हो
अपने हृदय की
गहराई में समेट लें उसे
तुम्हारी खुशी
में मैं शामिल रहूँ
मेरी खुशी
तुम्हारे साथ कई गुना बढ जाए
हम साथ-साथ सीखें
आगे बढ़ें
हारें-जीतें
जिंदगी की
छोटी-बडी बाजियां
उम्र के साथ कुछ
चीजें धूमिल हो जाएंगी
पर मैं चाहती हूँ
जब भी तुम्हें
याद करूं
मेरा हृदय भर उठे
गर्व से
मेरा रोम-रोम
प्रेम से उपजी आभा से दीप्त हो
आँखों में तरलता
हो
तुम्हारी बातें
करते हुए मैं खिल उठूँ
और मेरे बच्चे
मुझसे कहें
हाँ माँ! वो तो
है ही प्रेम करने लायक
उससे कौन न प्रेम
करे।
सहेलियां
सामने से आती
दिखती वह
चुस्त जींस कुरते
में स्ट्राल डाले
दूर से ही किसी
को देख कर मुस्कुराती है
पास आ कर कस कर
गले लगाती है
हाथ से छूटने को
होते हैं
जरूरतों से भरे
भारी थैले
एक जोरदार हँसी
से महक जाती है सडक
चौंक जाती हैं कई
जोडी आँखें
इनकी परवाह किए
बिना
सडक किनारे खडी
हो कर बातें करती हैं दोनों
पूछती हैं एक
दूसरे का सुख-दुख
ताने देती हैं
फोन न करने के
एक दूसरे का
खालीपन, बेबसी सब भांप
जाती हैं
हाथ थामे-थामे
और फिर चल देती
हैं
अपनी-अपनी दिशा
सड़क की थकान इस
बीच कुछ घट जाती है।
निर्वासन
सबसे पहले मेरी हँसी
गुम हुई
जो तुम्हें बहुत
प्रिय थी
तुम्हें पता भी न
चला
फिर मेरा चेहरा
मुरझाने लगा
रंग फीका पड़ गया
तुमने परवाह न की
मेरे हाथ खुरदुरे
होते गए दिन प्रतिदिन
तुम्हें कुछ
महसूस न हुआ
मेरा चुस्त मजबूत
शरीर पीडा से भर गया
तुम्हें समय नहीं
था एक पल का भी
मैंने शिकायतें
की, रूठी, चिढ़ी
तुमने कहा नाटक
करती है
मेरी व्यस्तताएं
बढती गयीं
तुम्हारी तटस्थता
के साथ
अब मुझे तुमसे
कोई शिकायत नहीं
कोई दुख या
परेशानी नहीं
पर इस बीच तुम
मेरे मन से
निर्वासित हो गए।
माँ
के बिना
गलती मेरी ही थी
हर बार कि तरह इस
बार भी भूल गया
इन्तजार कर रही
होगी माँ
क्या करूं
ज्यों ज्यों ढलती
है शाम
खेल में और मजा
आने लगता है
छज्जे पर दिखी जब
उसकी धुंधली आकृति
तब आया ध्यान
बताया था उसने
हो जाए जरा सी
देर मुझे तो
जाने क्या-क्या
बुरी बातें उसके मन में आने लगती हैं
अबोली रही माँ
पूरी शाम
खाना भी रहा
बेस्वाद
सोते समय
मुझे सोया जान
मेरी ओर करवट ले
मेरी ढकेण ठीक
करती है
मेरे माथे पर
फिराती है हाथ
मैं भी नींद का
बहाना कर
अपनी बाँह उसकी
कमर में लपेट लेता हॅू
माँ के बिना नींद
कहाँ आती है।
(इस पोस्ट के साथ प्रयुक्त किए गए पोस्टर कवि-चित्रकार कुँवर रवीन्द्र के हैं.)
सम्पर्क-
जोशियाडा, उत्तरकाशी
उत्तराखण्ड 249193
मोबाईल- 9411576387
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बहुत सुन्दर रचनाएं ।
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