हरबंस मुखिया की नज्में
हरबंस मुखिया |
कविता अपने आप में एक दस्तावेज होती है. उसमें समकालीन समय की आहट के
साथ-साथ उस की विडम्बनाओं और विषाद की
अनुगूंज भी स्पष्ट तौर पर पढी देखी जा सकती है. कवि अपने समय का पहरेदार
होता है. हमेशा सजग-सतर्क-जागरुक. संवेदनशीलता उसे इस कदर परेशान कर देती
है कि कबीर कह उठते हैं - 'सुखिया सब संसार है खावै और सोवै। दुखिया दास
कबीर है जागै अरू रोवै॥' आज के कवि रह भले ही इक्कीसवीं सदी में रहे हों, उनकी दिक्कतें भी कबीर से कम नहीं हैं. हरबंस मुखिया अपनी एक नज्म में
लिखते हैं - 'मुझे अब/ हर वक़्त परेशान रहने की/ आदत पड़ चली है/ मैं सदर ओबामा की/ अफ़ग़ान पालिसी पर परेशान रहता हूँ/ और बस-ड्राइवर के बेहद हॉर्न बजाने पर.' हरबंस मुखिया की नज्में आप पूर्व में भी 'पहली बार' पर पढ़ चुके हैं. आइए आज पढ़ते
हैं उनकी दो बिल्कुल नयी नज्में.
हरबंस मुखिया की नज्में
वक़्त
मैं सदियों की तारीख
मुट्ठी में बंद किये
वक़्त की तलाश में निकला हूँ
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर मैं ने
वक़्त को ढूंढा
हक़ की हर सलेब पर
जहाँ किसी बाग़ी के ख़ून के दाग़
अब तक मौजूद हैं
ज़हर के प्याले में
जहाँ किसी सवाल करने वाले के
लबों के निशान बाक़ी हैं
हर आशिक़ की क़ब्र पर
जिस में अनगिनत अरमान दफ़्न हैं
हर जगह मैं ने वक़्त की तलाश की
जो मुझे बता सके
कि बग़ावत का अंजाम मौत क्यों होता है ?
सवाल पूछना गुनाह क्यों होता है ?
इश्क़ हमेशा नाकाम क्यों होता है ?
परेशानी
मुझे अब
हर वक़्त परेशान रहने की
आदत पड़ चली है
आदत पड़ चली है
मैं सदर ओबामा की
अफ़ग़ान पालिसी पर परेशान रहता हूँ
और बस-ड्राइवर के बेहद हॉर्न बजाने पर
मैं रात भर आराम कर
सुबह परेशान उठता हूँ
और अख़बार में
हादसों की खबरें पढ़
गुस्से से भर जाता हूँ
मैं दुनिया भर में एटम बमों
और प्लास्टिक की थैलियों की तादाद,
बढ़ती हुई गर्मी
और मज़दूर बच्चों के हालात से
परेशान हो जाता हूँ
मुझे यक़ीन है
कि मेरी परेशानी में ही
इन सब मसाइल का हल है।
संपर्क-
हरबंस मुखिया
बी-86, सनसिटी, सेक्टर-54,
गुडगाँव, 122011,
(हरियाणा)
मोबाईल- 09899133174(हरियाणा)
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की है.)
हरबंस मुखिया मध्यकालीन भारत के महान इतिहासकार हैं. उनके कविरूप से यह मेरा पहला परिचय है. अपनी पहली नज़्म में उन्होंने जो सवाल उठाएं हैं उनके जवाब मजाज़ लखनवी इस शेर में बहुत पहले दे चुके हैं -'बहुत मुश्किल है, दुनिया का संवरना, तेरी जुल्फों का पेचो-ख़म नहीं है.'
जवाब देंहटाएंउनकी दूसरी नज़्म में उनकी परेशानी हर ज़मीर वाले जागरूक व्यक्ति की परेशानी है पर इन परेशानियों का हल कोई भी सिर्फ़ परेशान होकर ही नहीं खोज सकता, उसे अपनी परेशानी को इंक़लाब में बदलना होगा.