शिव प्रकाश त्रिपाठी की कविताएँ
शिव प्रकाश त्रिपाठी |
जन्म- 27 सितम्बर 1988
स्थान- उत्तर प्रदेश के
बाँदा जिले की बबेरू तहसील में किसान परिवार में
शिक्षा- स्नातक एवं
परास्नातक इलाहाबाद विश्वविद्यालय
शोधकार्य (हिंदी साहित्य), कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल से
अनुनाद ब्लॉग एवं विभिन्न
पत्र-पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएँ प्रकाशित
आज की कविता के बारे में प्रायः यह बहस जोरो-शोर से की जाती है कि यह प्रभावकारी क्यों नहीं हो पाती? कविता के बारे में यह सवाल युवा कवियों के मन में भी बार-बार उठता रहता है और इसी क्रम में वे कविताएँ भी लिखते हैं. युवा कवि शिव प्रकाश त्रिपाठी ने भी इस सवाल से टकराने की कोशिश की है. और पाया है कि किसी भी किस्म की घटनाएँ दुर्घटनाएँ अब इन सम्भ्रान्त कवियों को संवेदित नहीं करतीं बल्कि यह सब आज के इन तथाकथित सम्भ्रान्त कवियों के लिए 'रा मैटेरियल' की तरह ही है. शिव अपनी कविता में कहते हैं 'ये
घटनाएँ, दुर्घटनाएं/ ओलावृष्टि, अतिवृष्टि
और अनावृष्टि/ महज़ एक ज़रिया
हैं/ सिर्फ ‘रा’
मैटेरियल/ उन ए. सी. में
बैठे प्रतिष्ठित/ स्वयंभू
साहित्यकारों के लिए/ जो शब्दों को
असेम्बल करके एक रूप देते हैं/ जिसे हम सब
कविता कहते हैं.' यानी कविता उनके लिए महज एक खेल है. महज ‘रा
मैटेरियल'. ये संवेदनाओं से नहीं उपजतीं बल्कि कविता लिखने के लिए तथ्य की तरह संकलित की जाती हैं. इसीलिए ये कविताएँ वह प्रभाव पैदा नहीं कर पातीं जिसकी हमें प्रायः अपेक्षा रहती है. कुछ इसी तरह के जद्दोजहद से गुजरते हुए शिव प्रकाश ने कविताएँ लिखीं हैं जिसे हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं.
शिव प्रकाश त्रिपाठी की कविताएँ
बहादुर
रूकती है बस
जब स्टाप में
जग जाती है
कितनों की उम्मीदें
एक बहादुर
अपने हौसले की रस्सी लिए
दौड़ कर आता है
सवारियों के पास
दरअसल उसकी
नज़र आप पर नही होती
जो आपके लिए
है बोझ मात्र
ये बोझ ही
उसकी उम्मीद है
जितना बड़ा बोझ
उतनी ज्यादा उम्मीद
जब लेता है सर
मत्थे पर
उस बोझ को तो
खो जाता है
एक सोंधी महक
में
रोटी से आ रही
होती जो आज रात मिलने वाली
इस बोझ के एवज
में
इन्ही खयालों
में डूबते-उतरते
चढ़ जाता है
उसी पहाड़ी में
जिन्हें हम
देखकर ही घबरा जातें हैं
रा
मैटेरियल
ऑफिस से लौट कर
रात को
खाने में
गोस्त के टुकड़ों को नोचते हुए
व्हिस्की के
पैग के साथ
लिखी जाएगी एक
कविता
हमारे ओले से
बर्बाद फसलों पर
फिर फिर छपेंगे कविता संग्रह
वाह-वाही
मिलेगी, बधाइयाँ भी मिलेगी
कवि को,कविता
को और
ऐसी ही
कविताओं से भरी संकलन को
ये
घटनाएँ, दुर्घटनाएं,
ओलावृष्टि,अतिवृष्टि
और अनावृष्टि
महज़ एक ज़रिया
हैं
सिर्फ ‘रा’
मैटेरियल
उन ए. सी. में
बैठे प्रतिष्ठित
स्वयंभू
साहित्यकारों के लिए
जो शब्दों को
असेम्बल करके एक रूप देते हैं
जिसे हम सब
कविता कहते हैं
लेखक
वो जानता है
कुश्ती के
सारे दांव-पेंच
ये और बात है
कि वह लेखक है, कवि है और बहुत भी
चूँकि
साहित्यकार संभ्रांत माना जाता है
तो वह भी सभ्य
ही हुआ
मेरे, आपके, हम
सबों के बीच
एक दिन
मैंने देखा
उसे निपट एकांत में
सभ्यता के नकाब
को उतर कर
खुद के आईने
में उसे झाकते हुए
भीषण अट्टहास
करते हुए
उसकी आंखे अब
पहले जैसी नही रही
उनमें दिखती
लाल रेशो का रंग पीला हो चुका था
क्यों कि वह अब
चौपाया नजर आ
रहा था
फिर भी मै
कहूँगा वह संभ्रांत है
किन्तु सिर्फ
आप सबों के बीच
नशा
जिन्दगी का
सबसे बड़ा नशा
जिन्दा रहने
का होता है ज़नाब
जीने के लिए
लोग
मर भी सकते
हैं और मार भी सकते हैं
इन्हें ही
सरकारी भाषा में
नक्सलवादी कहा
जाता है
चेहरे
देखता हूँ मै
यहाँ
तरह तरह के
चेहरे
और उनसे
झांकता उनका
कमीनापन
वर्जित है
कभी कभी
जोरों से
चिल्लाने का करता हैं मन मेरा
पर वर्जित है
सभ्य समाज में
चिल्लाना
सम्पर्क
मोबाईल - 8960580855
ई-मेल - ssptripathi2011@gmail.com
(उपर्युक्त पोस्ट में प्रयुक्त की गयी पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की है.)
एक से बढ़ कर एक कविताएँ, विशेष तौर से 'बहादुर ' और 'रॉ मैटेरियल' कवितायेँ मन को छू जाती हैं।
जवाब देंहटाएंसंभावनाओं की कविताएँ ।
जवाब देंहटाएंसंभावनाओं की कविताएँ ।
जवाब देंहटाएंशानदार जबरजस्त
जवाब देंहटाएंप्रभावकारी कविता है विशेषकर छोटी कविता बहुत ही मारक क्षमता रखती है ...
जवाब देंहटाएंशिव प्रकाश त्रिपाठीजी के सुन्दर कवितायेँ पढ़वाने के लिए आभार!
Shandar shiv bhai....
जवाब देंहटाएंShandar shiv bhai....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और हृदय को स्पर्श करने वाली कविताएं।
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