रवि नन्दन सिंह का आलेख "भक्ति साहित्य का पुनर्पाठ" पर एक त्वरित प्रतिक्रिया
रवि नन्दन सिंह सम्पूर्ण भारतीय साहित्यिक वांगमय में भक्ति साहित्य पर जितना वाद विवाद हुआ है उतना शायद किसी अन्य साहित्य पर नहीं हुआ होगा। आज भी इस पर बहस मुबाहिसा जारी है। खैर वाद विवाद की कड़ी संवाद से पूरी होती है। हम चाहते हैं कि इस विषय पर सुधी विद्वत जन अपनी बात तार्किक ढंग से प्रस्तुत करें। " भक्ति साहित्य का पुनर्पाठ" शीर्षक से कँवल भारती का एक चर्चित व्याख्यान पिछले दिनों 'पहली बार' पर प्रकाशित किया गया था। कँवल भारती के " भक्ति साहित्य का पुनर्पाठ" व्याख्यान पर कवि आलोचक रवि नन्दन सिंह ने तर्कों के साथ एक त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त की है। आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं रवि नन्दन सिंह का आलेख "मीर के दीनों मज़हब को पूछते क्या हो?" अनहद के संपादक भाई सन्तोष चतुर्वेदी ने अपने ब्लॉग पहली बार पर कंवल भारती का एक आलेख “भक्ति साहित्य का पुनर्पाठ“ लगाया है। कल रात में उस पर मेरी नज़र पड़ी। उस आलेख में कंवल भारती ने अपने खास अंदाज़ में भक्तिकाल का पुनर्पाठ और उसकी व्याख्या प्रस्तुत की है। पूरा आलेख पूर्वाग्रही मानसिकता से लैस है