बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की प्रेम कविताएँ (मूल जर्मन से अनुवाद - प्रतिभा उपाध्याय)
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट मेरे प्रिय कवियों में से एक हैं। ब्रेष्ट का
समय दुनिया के लिए एक त्रासद समय था। अपनी रचनाओं के द्वारा वे उस त्रासदी से
संघर्ष करते हुए लोगों को उत्प्रेरित करते रहे। एक बेहतरीन नाटककार होने के
साथ-साथ वे एक बेजोड़ कवि भी थे। खुद उनकी कविताएँ बता देती हैं कि ब्रेष्ट की सोच
का वितान कितना व्यापक था। मैंने व्यक्तिगत रूप से प्रतिभा उपाध्याय से ब्रेष्ट की
प्रेम कविताएँ भेजने का आग्रह किया। आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं
ब्रेष्ट की कुछ प्रेम कविताएँ, जिनका अनुवाद किया है प्रतिभा उपाध्याय ने।
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की प्रेम कविताएँ
मूल जर्मन से अनुवाद - प्रतिभा उपाध्याय
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की ख्याति
एक नाटककार के रूप में है, किन्तु मूलत: वह एक बहुप्रज्ञ
सृजनशील कवि थे। उनके नाटक भी उनकी
काव्य प्रतिभ से अछूते नहीं हैं। उन्होंने लगभग 2000 कवितायेँ लिखी हैं। उनकी पहली
कविता 16 वर्ष की आयु में प्रकाशित हुई। डेविड कंटेस्टाइन और टॉम कूह्न के शब्दों में “ब्रेष्ट प्रेमी और प्रेम कवि हैं, जिन्होंने उथल पुथल के दौर में आशा और विश्वास बनाए रखने के
हताश संघर्ष और सक्रिय प्रेम को मूर्त रूप में ढाला है।”
गोएथे की भाँति ब्रेष्ट भी
ताउम्र कमोबेश प्यार में रहे और इस प्यार को उन्होंने अपनी कविताओं में अभिव्यक्त
किया, उस पर चर्चा की एवं उसके
विविध रंगों रूपों को आश्चर्यजनक विविधता
के साथ अभिनीत किया। उनकी
प्रेम कविताओं में करुणा और सहानुभूति, आवेग और कामुकता की तड़प
है। उनकी कई प्रेम-कविताएं तो
अपने खुलेपन के कारण जर्मनी में प्रकाशित नहीं हो पाई थीं।
उनकी प्रेम कविताओं को सहजता
से “प्रेम कविताओं की मौत” करार दिया जाता है, क्यों की ब्रेष्ट जिस तरह से प्यार के परिवर्तन को लेकर चिंतित हैं, वह उसका वह रूप है जिसमें पहले मनुष्य प्रेम को परिभाषित करता
है और फिर उसी प्यार से स्वयं बर्बाद हो जाता हैI उनकी प्रेम-कविताएं बाजारू मानसिकता व
वैचारिक कट्टरता का प्रतिरोध करती हैं।
मैंने तुम्हें इतना प्यार कभी नहीं किया
मैंने तुम्हें इतना प्यार कभी
नहीं किया, मेरी प्रिय
जितना उस दिन जब मैं शाम को
तुमसे दूर चला गया
जंगल मुझे निगलने लगा, घना जंगल,
मेरी प्रिय
जिसके ऊपर पश्चिम में कांतिहीन
तारे खड़े थेI
मैं ज़रा भी नहीं मुस्कुराया,
मेरी प्रिय
खेलते हुए मैं अँधेरे भाग्य के
करीब पहुँच गया
जबकि चेहरे मेरे पीछे
धीरे धीरे विवर्ण हो रहे थे घने
जंगल की शाम मेंI
सब कुछ भव्य था उस निराली शाम
को, मेरी प्रिय
न ही कभी इसके बाद और न ही कभी
इसके पहले
बेशक मेरे पास कुछ नहीं है बड़े
पक्षियों के अलावा
और आकुल शामें हैं घने आकाश
मेंII
दिन और रात पढ़ने हेतु
जिसे मैं प्यार करता हूँ
उसने कहा मुझसे
कि जरूरत है उसे मेरी।
इसी कारण
मैं अच्छी तरह से देखभाल करता
हूँ अपनी
सतर्क रहता हूँ कि मैं कहाँ जा रहा हूँ और
डरता हूँ कि बारिश की एक बूंद
मुझे मौत के घात उतार सकती है।
प्रेमगीत
जब मैं तुमसे दूर चला गया
बहुत दूर,
आज देखा मैंने, मानो मैंने देखना शुरू किया हो
हर्षित बहुरंगे लोग
और उसी शाम से हर समय
जानता है पहले से, कि मेरा अभिप्राय क्या है
मेरा मुखड़ा सुन्दर है
और पैर कुशल
हरा है, चूंकि मुझे ऐसा महसूस होता है
पेड़ झाड़ी और घास का मैदान
और पानी अच्छा ठंडा
जब यह मेरे ऊपर डाला जाता हैII
प्रेमगीत
–II
जब तुम मुझे जिंदादिल बनाते हो
तब कभी कभी सोचता हूँ मैं
अब मर सकता हूँ मैं
फिर खुश होता हूँ मैं
अपने अंत तक
यदि तुम उस समय बूढ़े हो
और मेरे बारे में सोचते हो
आज की तरह ही सोचता हूँ मैं
कि तुम्हारा एक प्रियतम है
जो अभी भी जवान है II
प्रेमगीत-III
सात गुलाबों की झाड़ी है
छह हवा के हैं
किन्तु एक शेष रहती है कि
एक और को पा लिया है मैंने प्यार करने के लिएI
तुम्हें सात बार पुकारूँगा मै
छह बार तक ज़ारी रहेगा यह
लेकिन सातवीं बार, ‘वादा’
यही एक शब्द समझ आता हैII
मैं उसके साथ जाना चाहता हूँ, जिसे मैं प्यार करता हूँ
साथ जाना चाहता हूँ मैं उसके, जिसे प्यार करता
हूँ मैं
गिनना नहीं चाहता मैं कि इसकी कीमत क्या है
यह भी सोचना नहीं चाहता मैं कि क्या यह अच्छा है
जानना नहीं चाहता मैं कि वह मुझे प्यार करता है
मैं उसके साथ जाना चाहता हूँ, जिसे मैं प्यार करता हूँ II
विदाई (Der Abschied)
हम आलिंगन करते हैं
मैं पहनता हूँ कीमती कपडे
तुम पकड़ती हो बांह
आलिंगन तेज़ है
तुम खाने के लिए आमंत्रित हो
मेरे लिए बहुत नियम कानून हैं
हम बात करते हैं मौसम और
अपनी
स्थाई मित्रता के बारे में
इसके अलावा कुछ भी
बहुत कटु होगाII
कमज़ोरियां
कमजोरियाँ तुम्हारी थीं नहीं कोई
मेरी थी बस एक
मैं प्यार करता था II
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-05-2016) को "कुछ कहने के लिये एक चेहरा होना जरूरी" (चर्चा अंक-2341) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'