अरविन्द दुबे की कविताएँ


डॉ अरविन्द दुबे
कविता का वितान व्यापक होता है। दुनिया की हर वस्तु, विचार या विषय कविता का संदर्भ हो सकता है। तो भला विज्ञान, जिसकी इस दुनिया को बदलने में एक बड़ी भूमिका है, कविता से परे कैसे रह सकता है। मुक्तिबोध की कविताओं में हमें स्पष्ट तौर पर यह वैज्ञानिकता दिखाई पड़ती है। बड़े सहज अंदाज में वे वैज्ञानिक तथ्यों को अपनी कविताओं में शामिल कर अपनी कविता का फलक व्यापक बना देते हैं। नरेश सक्सेना की कविताओं में भी यह वैज्ञानिकता स्पष्ट तौर पर दिखायी पड़ती हैअरविन्द दुबे पेशे से डॉक्टर (चिकित्सक) हैं और विज्ञान कविताएँ लिखते हैं। विज्ञान का सदुपयोग हमें कैसे और बेहतर बना सकता है जबकि हमारी संकीर्ण सोच विज्ञान को भी विकृत दिशा में मोड़ सकती है। अरविन्द दुबे की इसी भाव-भूमि की कुछ विज्ञान कविताएँ और कुछ अलग मिजाज की कविताएँ भी आप सबके लिए प्रस्तुत हैं।   

डॉ. अरविन्द दुबे की कविताएँ 

अमृत-कलश की खोज में

हमने भेजा है एक अंतरिक्ष यान
अमृत-कलश की तलाश में,
जिसे पी कर
सब अमर हो जाएंगे।

फिर रहेगा डर
आंतक का,
गुंडों का,
फियादीन या जेहादियों का।
इजराइल के हमलों का,
अमेरिका की दादागीरी का
र्इराक की धौंस का,
कितनी सुंदर हो जाएगी दुनियां।

करो इंतजार
वह अंतरिक्ष यान
एक दिन लौटेगा जरूर,
अमृत-कलश ले कर।
इसी उम्मीद में
चैन से हैं हम सब।


और यान उड़ गया

सुदूर अंतरिक्ष से आए थे वे
प्रकाश की गति से तेज यानों में।
चिंतातुर, डरे, बीमार।
उनके यहां थी
युद्ध-लिप्सा, अंहकार,
मक्कारी और हैवानियत
और लड़ने को
अति विकसित एटमी हथियार।
खत्म होने को थी उनकी सभ्यता।

सुदूर ग्रह से आए थे
वे हमारे पास,
हमारी ओर बांहें फैलाए,
एक आशापूर्ण दृष्टि लिए,
एक बसेरे की तलाश में,
जहां पनप सकें वे।

मगर हम क्या देते उन्हें,
कैसे कहते आओ रूको
यहां सब कुशल है
ताजी हवा है
मंगल ही मंगल है?

हमारे यहां भी
नाच रहा था आतंक का दैत्य,
सासों में भर रहा था विषैला धुआं।
हम भी खड़े थे
एटमी युद्ध के कगार पर,
अपनी-अपनी दादागीरी,
अपना-अपना अंहकार लिए,
रणचंडी की प्रतीक्षा में।

नहीं कह पाए हम एक बार
‘‘रूको, हमारे घर चलो’’
जड़ हो गर्इ हमारी जुबान
मर गर्इ अतिथि-प्रियता।
उड़ गया अंतरिक्ष यान
उसके साथ वे भी
एक नए बसेरे की तलाश में,
जहां सब मंगल ही मंगल हो।

अनजान मित्रों  
जब मिल जाए तुम्हें
कोर्इ ऐसी जगह 
जो हो
भयमुक्त, प्रदूषण मुक्त,
मानवता से लबालब,
हमें भी बताना
क्योंकि
हमें भी एक दिन भटकना है,
तुम्हारी ही तरह,
बसेरे की तलाश में।



एक मरती हुर्इ प्रेम कथा

वह लड़की
अपने प्रेमी के होठों का
गहरा चुंबन लेकर
अभी-अभी मुड़ी है,
चुरा कर चंद कोशिकाएं
अपने प्रियतम् के होठों की,
जिन्हें भेजना है उसे
जेनेटिक-मैपिंग को।

कल तक मिलेगी रिपोर्ट
कि कितना हरामी है,
क्रूर, सैडिस्ट, केसनोवा
उसका यह चौतींसवां प्रेमी।

उसे होना है ब्रेन कैंसर,
पचपन वर्ष की आयु में।
और भी बहुत कुछ होगा
उस रिपोर्ट में।

चौतीसवीं बार फिर
मर जाएगी एक प्रेम कथा,
एक पूर्व-नियोजित प्रेम।



कुछ अन्य कविताएं

एक और कुरूक्षेत्र


दिन में
रगड़-रगड़ कर धोर्इ गर्इ।
रात को
लोटे में अंगारे रख कर
यत्न से तहार्इ हुर्इ
अपनी बेदाग पेंट कमीज पहन कर,
अपनी जिंदगी भर की मेहनत को
यत्न से फाइल में टांक कर,
वह सकपकाता सा अंदर धुसा

तो तुम हो
नौकरी चाहने वाले
सात जोडी आंखों ने
उसे विद्रूप से घूरा।
हाथ से उसकी फाइल छीन कर
उसके पन्ने उलटे और फिर
पास रखे रद्दी के टोकरे में डाल दी।

वेउठे,
उन्होंने उसकी जेबें तलाशीं।
उसकी फटी जेबों से निकल कर
उनके हाथ
उसके बदन से छुए भर थे
कि उनकी भौहों में बल पडे़।

उसके कपड़े उतरवा कर
उसके नंगे शरीर पर
वे किसीबडे़आदमी की मोहर ढूंढते रहे
उसके शरीर में
किसीभाग्य विद्याताका कंधा तलाशते रहे
उसके तलबों के नीचे
किसी और के पैर ढूंढते रहे।
फिर उनकी आंखों में हिंस्र चमक आर्इ़
वे गुर्राए
गधे
तुम्हारी ये हिम्मत
बिना किसीयोग्यताके
तुमने नौकरी के बारे में सोचा।
बेकार के कागज दिखा कर
हमारा कीमत समय बरबाद किया।
गेट आउट
सबसे उंची कुरसी वाला चिल्लाया।

और बाहर निकलते-निकलते
सात दिग्गजों के बीच घिरा,
निरपराध,
वीर अभिमन्यु,
एक बार फिर मर गया।

 
गुरुवर द्रोण के प्रति

द्रोण
शायद तुम सर्वदृष्टा थे
या त्रिकालदर्शी,
तभी तो युगों पहले
तुमने जान लिया था
कि योग्यता पुरूषार्थ में नहीं
अर्थ में होती है
और एकनिपुण एकलव्य का अंगूठा,
काट कर काफी मंहगा बेचा जा सकता है।

हमने तुम्हारी परिकल्पनाओं को
देश -काल के अनुसार
मात्र बदला भर है।
हमने एकलव्य की
दोनों टांगें काट ली हैं,
ताकि बिना टांगो का एकलव्य
अपनी गुरूभक्ति की दुहार्इ देने
किसी द्रोण के पास फटक सके
और द्रोण को अंगूठा मांगने की
शर्मिंदगी उठानी पड़े।

और अंगूठा
वह तो हमारा अर्जुन
एकलव्य की टांगों पर चढ़ कर,
अपनी सुविधानुसार खुद काट लाएगा।

वैसे भी गुरुवर द्रोण
एक गरीब एकलव्य को
अंगूठा अपने पास बनाए रखने का
कोर्इ हक भी नहीं है।


बेशर्म लड़की

तितली के पंखों से,
गुलाब की पंखुड़ियों,
मोरपंखी के सूखे पत्तों से
किताब सजाती है,
वह एक लड़की।
पर इसे पढ़ नहीं पायेगी वह।
उसे तो पढ़ना है
घर-आंगन, चूल्हे की राख,
बच्चों का गू-मूत,
पति का पौरुष (अत्याचार),
बताती है मां,
अपने अब तक के अनुभव से।
फिर भी नहीं छोड़ती
किताबों में छिपाना, रंगीन पत्तियां,
मन में उड़ाना, रंगीन तितलियां,
सपने सजाना,
बेशर्म लड़की।

देखती है सपने
सफेद घोड़े पर सवार राजकुमार के।
सोती रहती है
बियावान में बने,
अपने सपनों के महल में,
अकेले सदियों तक,
सोती सुन्दरी के सपने के साथ।
तब भी,
जब कराहती है
एक डिब्बा किरासिन
एक माचिस की तीली के डर से।
जली आत्मा, जला तन ले कर,
अपनों को छोड़ कर,
सपनों को तोड़ कर,
सदियों की नींद से
जाग नहीं पाती है,
बेशर्म लड़की।

खड़ीं हैं चौराहों पर,
जांघों के बीच खुजातीं
बेशर्म आंखें,
बजातीं सीटियां,
कसती फब्तियां।
नजरें झुकाकर ,
थोडा सटपटाकर,
स्कूल जाना क्यों,
पढ़ना-पढ़ाना क्यों,
छोड़ नहीं पाती है
बेशर्म लड़की।

आई जो गर्भ में,
खडे हो गये कितने सवाल।
क्या है,
लड़का या लड़की?
लड़की?
गर्भ रखना है क्या?
जन्मने से पहले ही
चिमटियों से खींच कर नोंच ली जाती है,
बोटी-बोटी कर दिया जाता है शरीर।
खुश होती है मां,
अब नाराज नहीं होंगे वे
खुश होता है बाप
एक मुसीबत तो टली।
फिर उसी गर्भ में,
हत्यारी दुनियां में,
बार-बार आना क्यों
छोड़ नहीं पाती है
बेशर्म लड़की।

 
प्रक्रिया

उस रात
अपने चीथड़ों में,
ठंड़ी हवा की मार से
अपने आप को बचाते हुये,
अपनी नीली नसों से भरे
हाथों की मुट्ठियाँ भींच कर,
एक सच ने पूछा था
एक झूठका पता।

अलाव पर बैठे लोग,
अपने कम्बलों को
अपने चारों ओर
और कस कर लपेटते रहे,
आग तापते
जमीन पर
उंगलियों से रेखाएँ खींचते रहे

और
अगला सूरत निकलने से पहले
उन्होने टांग दी
नगर के मुख्य चौराहे पर
एक चुप
क्योंकि आंखे तरेरते हुये
एक बलवान झूठ
अभी-अभी वहीं से हो कर गुजरा था

सम्पर्क-

ई-मेल : drarvinddubey2004@gmail.com

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं)

टिप्पणियाँ

  1. अंतर्मन को कचोटती कवितायेँ,बहुत सुन्दर

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  2. अंतर्मन को कचोटती कवितायेँ,बहुत सुन्दर

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  3. बेशर्म लड़की बहुत ही उंदा कविता है ! बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  4. बेशर्म लड़की बहुत ही उंदा कविता है ! बधाई !

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  5. wah....alag treh ki kavita....अमृत-कलश की खोज में, एक मरती हुर्इ प्रेम कथा, बेशर्म लड़की khas tour pasend ayee.... badhai

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  6. कविताएं पसंद करने के लिए आप सब मित्रों का धन्यवाद, साथ में एक अनुरोध भी। हिंदी में विग्यान कथा कविता (एस एफ़ पोइट्री) लिखने वाले लोगों की संख्या बहुत ही कम है। अगर आप मित्रों में से कुछ मित्र कविताएं लिखते हैं और साथ में आप विग्यान के छात्र भी हैं तो इस विधा में प्रयास कर के इसे सम्रद्ध करें

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