वीना की कविताएँ
वीना |
फिल्मकार, व्यंग्यकार, पत्रकार।
डॉक्यूमेंट्री फिल्मों "अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो" और "बेटी बचाओ" का निर्माण-निर्देशन, लेखन। (डी डी नेशनल पर प्रसारित)
डॉक्यूमेंट्री "नरक की रोज़ी" सीवर मज़दूरों की अनकही दास्तान - निर्माण, लेखन, कैमरा व संपादन।
डी डी उर्दू के लिए सआदत हसन मंटों की कहानियों पर बनी तेरह शॉर्ट फिल्मों और डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ -"उर्दू मसाइल और मुस्तक़बिल" में कैमरा, संपादन, स्क्रिप्ट, अभिनय, और कार्यकारी निर्माता।
कमलेश्वर के उपन्यास "कितने पाकिस्तान" पर आधारित आकाशवाणी के लिए रेडियो ड्रामा में मुख्य स्त्री क़िरदार के लिए आवाज़ और ऑडियो संपादन।
कई अन्य डॉक्यूमेंट्री फ़िल्मो और रेडियों कार्यक्रमों के लिए लेखन, आवाज़, संपादन व एंकरिंग।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कॉलम, व्यंग्य व कविताएँ प्रकाशित।
वर्तमान में जनचौक वेब न्यूज़ पोर्टल में दिल्ली प्रमुख
कविता अपने समय का एक सशक्त प्रतिरोध
रचती है। इस समय जब विपक्ष के सभी स्तम्भ लगभग समर्पण की मुद्रा में हैं कविता अपना काम अपने अंदाज़ में आज भी कर रही है। वीना कुमारी की कविताओं में स्पष्ट रूप से एक गहन राजनीतिक चेतना देखी और महसूस की जा सकती है। वे अपने समय की राजनीति ही नहीं समाज और सामाजिक व्यवस्था पर भी तीखा व्यंग्य करती हैं। तात्कालिता बोध से भरी हुई ये कविताएँ हमारे समय और समाज का एक जीवन्त दस्तावेज़ हैं। आज पहली बार पर प्रस्तुत है वीना की कविताएँ।
वीना की कविताएं
अदा-ए-दुश्मनी
उन दोनों ने केक
से मुँह मीठा किया
भरपेट बिरयानी खाई
और फिर पचाने ताज की सैर को निकल गए
भरपेट बिरयानी खाई
और फिर पचाने ताज की सैर को निकल गए
दूधिया चाँदनी में चाँद को निहारते
हुए
उसने लाड से उसके सीने को
अपनी मुट्ठी से दबाते हुए कहा
आज तुमसे लड़ने का जी करता है
उसने लाड से उसके सीने को
अपनी मुट्ठी से दबाते हुए कहा
आज तुमसे लड़ने का जी करता है
उसने कहा ठीक है
पर लड़ाई बराबरी की होनी चाहिए
मेरे पास परमाणु अस्त्र नहीं हैं
और तुम्हारे पास?
पर लड़ाई बराबरी की होनी चाहिए
मेरे पास परमाणु अस्त्र नहीं हैं
और तुम्हारे पास?
न न मेरे पास भी नहीं है
उसने सफाई दी
वो तो काका ने अपने पास रखे हैं
कहा तो था उन्होंने
एटम-हाइड्रोजन आदि
कॉपीराइट सहित
उनकी निजी संपत्ति हैं
भूल गए तुम?
उसने पूछा
उसने सफाई दी
वो तो काका ने अपने पास रखे हैं
कहा तो था उन्होंने
एटम-हाइड्रोजन आदि
कॉपीराइट सहित
उनकी निजी संपत्ति हैं
भूल गए तुम?
उसने पूछा
काका इतनी आसानी से भूलने देंगे क्या!
उसने मुस्कराते हुए जवाब दिया
उसने मुस्कराते हुए जवाब दिया
पोखरण में कुछ किया तो था तुमने
उसने प्यारा सा उलाहना देते हुए कहा
उसने प्यारा सा उलाहना देते हुए कहा
वो, वो तो ऐसे ही था बस
तुम्हारे चाघी टाइप
उसने प्यार से गाल सहलाते हुए जवाब दिया
तुम्हारे चाघी टाइप
उसने प्यार से गाल सहलाते हुए जवाब दिया
जाओ मुझे तुमसे बात नहीं करनी
झूठे कहीं के
उसने बच्चों की तरह
होंठ बिगाड़ कर कहा
झूठे कहीं के
उसने बच्चों की तरह
होंठ बिगाड़ कर कहा
हा हा हा
तुम्हारी ये अदा मुझे पसंद है
क्या अभी कोई चुनाव-वुनाव है
तुम्हारे यहाँ? कोई इमरजेंसी?
तुम्हारी ये अदा मुझे पसंद है
क्या अभी कोई चुनाव-वुनाव है
तुम्हारे यहाँ? कोई इमरजेंसी?
नहीं, मैं तो बस यूँ ही...
तुम्हारे माथे पर शिकन देखी
बस इसलिए...
तुम्हारे माथे पर शिकन देखी
बस इसलिए...
चुनाव अभी थोड़ा दूर है
पुराने स्कैम भी अभी रफा-दफ़ा हैं
और नए आवारगी में मस्त हैं
चलो कुछ और बात करते हैं
पुराने स्कैम भी अभी रफा-दफ़ा हैं
और नए आवारगी में मस्त हैं
चलो कुछ और बात करते हैं
तो... इस बार चुनाव के बाद कहाँ की सैर?
कभी साथ-साथ चलते हैं
मज़ा आएगा!
उसने कहा
कभी साथ-साथ चलते हैं
मज़ा आएगा!
उसने कहा
तुमने कभी अपने पुराने दोस्तों से भी
ऐसे बातें की हैं, जैसे मुझसे?
उसने इतराते हुए कहा
ऐसे बातें की हैं, जैसे मुझसे?
उसने इतराते हुए कहा
गूँगों
से कोई क्या बात करे
फिर गाँधी जी के दांडी मार्च का
बिना टेक्स वाला नमक भी तो
तुम्हीं ले कर घुमते हो ज़ालिम
उसने प्यारा सा धक्का देते हुए कहा
फिर गाँधी जी के दांडी मार्च का
बिना टेक्स वाला नमक भी तो
तुम्हीं ले कर घुमते हो ज़ालिम
उसने प्यारा सा धक्का देते हुए कहा
तुम भी ना...
उसने काजू-मशरूमी ग़ुलाबी चेहरा
अदा से झटक कर कहा
उसने काजू-मशरूमी ग़ुलाबी चेहरा
अदा से झटक कर कहा
नोट - मोदी-नवाज़ का याराना (काका- यूएसए)
इसीलिए
तुमने दिया है उन्हें
वोट
दलित की बेटियों
अब हो जाओ तैयार
तथाकथित ऊँच जात से
बलात्कार करवाने के लिए,
अब हो जाओ तैयार
तथाकथित ऊँच जात से
बलात्कार करवाने के लिए,
नौजवानों
मूंछे मुंडवा लो,
घोड़े खोल दो,
मोटर साईकिलें ठाकुर-पण्डे
कबाडियों को बेच दो
क्योंकि इलेक्शन परिणाम कहता है
कि तुमने, तुम्हारे भाई-बाप, जात सगो ने
वोट दे कर उन्हें
मनु-विधान चलाने की अनुमति दी है
घोड़े खोल दो,
मोटर साईकिलें ठाकुर-पण्डे
कबाडियों को बेच दो
क्योंकि इलेक्शन परिणाम कहता है
कि तुमने, तुम्हारे भाई-बाप, जात सगो ने
वोट दे कर उन्हें
मनु-विधान चलाने की अनुमति दी है
आदिवासियों
अपने बचे-खुचे
जल-जंगल, खदान
अडानियों-अम्बानियों के हवाले कर दो चुपचाप
और, अपने घर की औरतों को
सेना-सुरक्षा बलों के मनोरंजन में लगा दो
क्योंकि उन्हें वोट दिया है तुमने
इसी अंजाम के लिए
जल-जंगल, खदान
अडानियों-अम्बानियों के हवाले कर दो चुपचाप
और, अपने घर की औरतों को
सेना-सुरक्षा बलों के मनोरंजन में लगा दो
क्योंकि उन्हें वोट दिया है तुमने
इसी अंजाम के लिए
किसानों
तुम मजबूत रस्सियों का इंतजाम कर लो
कमज़ोर रस्सियों के बहाने
अब वो तुम्हें बचने नहीं देंगे
इसीलिए तो दिलाया है प्रचंड बहुमत तुमने उन्हें
कि वो पूरी मुस्तैदी से तुम्हारी आत्महत्याओं को
अंजाम तक पहुंचाए
कमज़ोर रस्सियों के बहाने
अब वो तुम्हें बचने नहीं देंगे
इसीलिए तो दिलाया है प्रचंड बहुमत तुमने उन्हें
कि वो पूरी मुस्तैदी से तुम्हारी आत्महत्याओं को
अंजाम तक पहुंचाए
अंग्रेज़ी
में गिटर-पिटर चहचहाने वालियों
अब बिना इजाज़त होंठ तक हिलाना जुर्म है
जीन्स, स्कर्ट, चूड़ीदार में इतराने वालियों
चलो, घूंघट करना, साड़ी में लिपटना सीख लो
सूरज ढले घर से बाहर रहने वालियों
चूल्हे-चौके में क़दम समेट लो
वो तुम्हारे पिताओं को देंगे सब्सिडी
घर की दीवारें ऊँची करवाने के लिए
इसीलिए तो
तुम्हारे पिताओं-भाइयों और तुमनें भी
दिया है उन्हें वोट
अब बिना इजाज़त होंठ तक हिलाना जुर्म है
जीन्स, स्कर्ट, चूड़ीदार में इतराने वालियों
चलो, घूंघट करना, साड़ी में लिपटना सीख लो
सूरज ढले घर से बाहर रहने वालियों
चूल्हे-चौके में क़दम समेट लो
वो तुम्हारे पिताओं को देंगे सब्सिडी
घर की दीवारें ऊँची करवाने के लिए
इसीलिए तो
तुम्हारे पिताओं-भाइयों और तुमनें भी
दिया है उन्हें वोट
और जिन्होंने
नहीं दिया है उन्हें वोट
वो हो जाएं तैयार
बेमौत मारे जाने के लिए
क्योंकि इसीलिए तो
नहीं दिया है तुमने उन्हें वोट
नहीं दिया है उन्हें वोट
वो हो जाएं तैयार
बेमौत मारे जाने के लिए
क्योंकि इसीलिए तो
नहीं दिया है तुमने उन्हें वोट
वो
जो नंगा दिखता है
लाखों के लिबास में
देखा है कोई नंगा
लाखों के लिबास में?
किसी ने सवाल किया
लाखों के लिबास में?
किसी ने सवाल किया
हमने देखा... हमने देखा...
करोड़ों ने जवाब दिया
करोड़ों ने जवाब दिया
तुम्हारी
ऐसी की तैसी
दिखा कर आँख सबको धमकाया नंगे ने
बहुतों को सूली चड़वा दिया
दिखा कर आँख सबको धमकाया नंगे ने
बहुतों को सूली चड़वा दिया
लाखों के काजू-मशरूम खाता है
भूखी जनता को
डिज़ाइनर पत्थर पर लेट-लेट
योगा सिखलाता है
ये सब तो बस शौक़ हैं
वैसे नंगा आदमख़ोर है
भूखी जनता को
डिज़ाइनर पत्थर पर लेट-लेट
योगा सिखलाता है
ये सब तो बस शौक़ हैं
वैसे नंगा आदमख़ोर है
नंगा एके 56 रखता है
राफ़ेल पे चढ़ कर चलता है
राफ़ेल पे चढ़ कर चलता है
अपने डाकू यारों
पर
हज़ारों करोड़ उड़ाता है
खदान-खलिहान, नदियां-पहाड़
हज़ारों करोड़ उड़ाता है
खदान-खलिहान, नदियां-पहाड़
सब डकार जाता
है
बूढ़ी माँ से बर्तन मंजवाता है।
छोड़ लुगाई भाग जाता है
लाठी-डंडों, मुस्टंडों से
बच्चियों को पिटवाता है
56 इंच वीर पुरुष कहलवाता है
छोड़ लुगाई भाग जाता है
लाठी-डंडों, मुस्टंडों से
बच्चियों को पिटवाता है
56 इंच वीर पुरुष कहलवाता है
नंगा मरवा कर फ़ौज, मौज उड़ाता है
शहीदों की पेंशन घर ले जाता है
शहीदों की पेंशन घर ले जाता है
चाय के कुल्हड़ में डुबकी लगा
अमरीका स्विमिंग पूल से बाहर आता है
अमरीका स्विमिंग पूल से बाहर आता है
अपना नंगा चौकीदार
है
मानों भी, अरबों विज्ञापन
पे लुटाता है
लग न जाए
नज़र
रुपयों से मढ़ी फ़कीरी को
सो डर-डर में
नित नया वो दंगा करता है
रुपयों से मढ़ी फ़कीरी को
सो डर-डर में
नित नया वो दंगा करता है
हिन्दू-मुसलमान लड़ भई लड़
दलित-बामण-ठाकुर लड़ भई लड़
दलित-बामण-ठाकुर लड़ भई लड़
राम पे लड़ इस्लाम पे लड़
जात पे लड़, ईमान पे लड़
चीन पे लड़, पाकिस्तान पे लड़
मंदिर-मस्जिद, गुरूद्वारे-चर्च
जिस भी जगह, चाहे जिस बात पे लड़
जात पे लड़, ईमान पे लड़
चीन पे लड़, पाकिस्तान पे लड़
मंदिर-मस्जिद, गुरूद्वारे-चर्च
जिस भी जगह, चाहे जिस बात पे लड़
किसान-जवान मर के दिखा
मिश्रा-गोगोई नाच...नाच...
हिन्दू-मुसलमान, जज लोया
लड़- मर-खप...
नंगे के सिंहासन की मजबूती बन
मिश्रा-गोगोई नाच...नाच...
हिन्दू-मुसलमान, जज लोया
लड़- मर-खप...
नंगे के सिंहासन की मजबूती बन
बहा...बहा...ख़ून बहा...
ऐ क़ायनात-ए-हिन्द ख़ून बहा...
आदमख़ोर का जी बहला..!
थोड़ा नहीं ख़ूब बहा..
ऐ क़ायनात-ए-हिन्द ख़ून बहा...
आदमख़ोर का जी बहला..!
थोड़ा नहीं ख़ूब बहा..
बहा...बहा...ख़ून बहा...
कोरोना
मुझे कोरोना से ज़्यादा डर
अपने प्रधानमंत्री से लगता है
कोरोना भूखा नहीं मारता
रोड पर बच्चे नहीं जनवाता
बाल मज़दूर नहीं रखता
जो सैकडों किलोमीटर पैदल चल कर
खाली पेट मर जाएं
कोरोना को टिके रहने के लिए
दलाल मीडिया नहीं चाहिए
बहुजनों को
अंबानियों-अडानियों,
टूंटपूंजिए ब्राहमण, ठाकुर,
संघियों का गुलाम बनाने के
षड़यंत्र नहीं रचता
नदियां, पहाड़, खेत-खलिहान
जंगल, खदान नहीं डकार जाता
किसानों की फसल
मज़दूरों का ख़ून-पसीना
सत्ता के सदके नहीं लुटाता
कोरोना उस गिद्ध से बेहतर है
जो अस्थि-पिंज्जरों से सांसे
उड़ जाने का इंतज़ार करता है
ऐसे प्रधानमंत्री और कोरोना के विकल्प में
मुझे कोरोना प्यारा है
बेहया
सज-धज के
ज़ुल्फ़ लहराती हुई
ख़ुशबू उड़ाती हुई
घूँघट को ठेंगा दिखाती हुई
ग़ुरूर बिखराती हुई
उजाले से नज़र मिलाती हुई
बेखौफ गुज़र जाती है
दिन के शरीफ़ों का हक है कि
उनकी टपकती लारों को
रात में अपनी चोली से पोछने
उसे आना चाहिए
पर आती ही नहीं
बेहया
कहीं की।
तुम मांगते हो रोटी जिनसे
आप उस दौर में हैं जहाँ आदम ज़ात
खरपतवार की तरह उखाड़े जाएँगे
खरपतवार की तरह उखाड़े जाएँगे
लिंचाधिपति राम
फिर अवतरित हो जाएंगे
तलवार से शंबूक
कटा
भक्त तमंचों पर नचवाएँगे
भक्त तमंचों पर नचवाएँगे
मंदिर के हनुमान
मुस्लिम के लिए
पत्थर हो जाएंगे
मज़दूर हिरण्यकश्यप हैं यहां और
साहेब नरसिंह अवतार
साहेब नरसिंह अवतार
इंद्र अम्बानी साम्राज्य की ख़ातिर
संविधान-न्याय मंदिर की
दहलीज के बीचों-बीच खड़े
दामोदर दास की जांघों पर
दुदमुहे दरिद्र बालक
संविधान-न्याय मंदिर की
दहलीज के बीचों-बीच खड़े
दामोदर दास की जांघों पर
दुदमुहे दरिद्र बालक
दो फाड़ में
बांटे जाएंगे
तुम मांगते हो रोटी जिनसे
वो तुम्हारा मांस पका
कर खाएंगे
(इस पोस्ट में प्रयुक्त
पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
संपर्क –
मै पहली बार ' ' वीना ' ' जी की क़ो पढ़ा है जो सच्चाई क़ो बया करती हूँ , दिल के बीचोंबीच अपना घर बनाती हूई सोचने क़ो बेबस करती है 👌👌अच्छा वीना मैडम जी 👏👏👏👏👏🌹💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन
जवाब देंहटाएंअंतिम कविता मुझे सबसे अच्छी लगी। वीणा जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंNice writing..
जवाब देंहटाएंAap ne apni Kavitaon ke madhyam se jis Kalyugi Kalia ko benakaab karne ki
जवाब देंहटाएंkaushish ki hai woh saahsik aur praiseworthy hai....
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25 मई 2020) को 'पेड़ों पर पकती हैं बेल' (चर्चा अंक 3712) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन संकलन.
जवाब देंहटाएंसादर
कविता का पाठक से सीधा संवाद ही उसकी सार्थकता है। यहाँ प्रस्तुत रचनाओं में स्पष्टवादिता यथार्थवादी चिंतन को बख़ूबी अभिचित्रित करती है। आज मैं कविता को असमय मरते देखता हूँ तो ऐसी कविताओं को पढ़कर मन मज़बूत होता क्योंकि क़ातिल को क़ातिल कहने की हिम्मत तब करना जब सारी ताक़त उसने या उसके पीछे अदृश्य शक्तियों ने अपने क़ब्ज़े में कर ली है।
जवाब देंहटाएंआज जो वक़्त की क्रूरता झेलते हुए कविता को ज़िंदा बनाए हुए हैं उन्हें मेरा नमन। यह आवाज़ हर हाल में बुलंद होनी चाहिए। समाज में ग़ुलामी के दीर्घकालिक षड्यंत्रों ने हमें समता,स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धांतों के साथ जीने के वांछनीय परिवेश से दूर रखने के लिए अनेक प्रकार की वंचनाओं, अंधविश्वासों, रूढ़ियों की बेड़ियों में जकड़ दिया है। इन बेड़ियों को तोड़ने की हिम्मत रखनेवाले कायरता के आँगन अपना नैतिक सहजबोध दफ़नाकर भीड़ के साथ हो लिए हैं जिन्हें दायित्त्वबोध का नश्तर लगाना समय की माँग है।
आपकी रचनाएँ विराट उद्देश्यों से भरा संदेश संप्रेषित करतीं हैं।
लिखते रहिए।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच
जवाब देंहटाएंपर 27 मई 2020 को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/05/blog-post_27.html
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
अदभुत कविताएं
जवाब देंहटाएंबधाई
Nice wrting
जवाब देंहटाएंhttps://laddimaan.blogspot.com/2021/05/blog-post_22.html
जवाब देंहटाएं