गुज़ेल स्त्रिलकोवा का आलेख ‘महात्मा गांधी और लेफ़ तलस्तोय के विचारों की आध्यात्मिक निकटता’


लेफ़ तलस्तोय

पिछला साल 2019 महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती का साल था1920 का यह वर्ष उस महान असहयोग आन्दोलन का शताब्दी वर्ष है जिसके द्वारा महात्मा गांधी ने भारतीयों को राष्ट्रीय स्तर पर संगठित कर अंग्रेजी गुलामी के ख़िलाफ़ पहली बार व्यापक स्तर पर एक सूत्र में बद्ध किया। महात्मा गांधी ने इस आन्दोलन में भारतीयों को अहिंसा का वह मन्त्र दिया जिससे भारत की जनता व्यापक स्तर पर जुड़ी। वास्तव में गांधी जी ने रूस के कालजयी लेखक लेफ़ तलस्तोय के विचारों से प्रभावित हो कर ही अहिंसा के विचार का विकास किया था। तलस्तोय का भी भारत के प्रति एक सहज आकर्षण था। इसी पृष्ठभूमि में तलस्तोय और गांघी जी के बीच पत्राचार शुरू हुआ। संक्षिप्त होने के बावजूद यह पत्राचार काफी समृद्ध था।  स्त्रिलकोवा ने इस पत्राचार के आलोक में ही महात्मा गांधी और तलस्तोय के बीच आध्यात्मिक निकटता पर गहन दृष्टिपात किया है। गुज़ेल स्त्रिलकोवा मसक्वा विश्वविद्यालय, मास्को के हिन्दी विभाग में समकालीन हिन्दी साहित्य की प्रोफ़ेसर हैं और उन्हें आज के हिन्दी साहित्य पर केन्द्रित सम्मेलनों में भाग लेने के लिए दुनिया भर में आमन्त्रित किया जाता है। यह लेख उन्होंने विशेष रूप से पहली बार के लिए लिखा है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है डॉक्टर गुज़ेल स्त्रिलकोवा का आलेख महात्मा गांधी और लेफ़ तलस्तोय के विचारों की आध्यात्मिक निकटता



महात्मा गांधी और लेफ़ तलस्तोय के विचारों की आध्यात्मिक निकटता


(Духовная близость взглядов Махатмы Ганди и Льва Толстого)



डॉक्टर गुज़ेल स्त्रिलकोवा
 

मोहनदास करमचंद गांधी और रूसी लेखक लेफ़ तलस्तोय, इन दोनों महान व्यक्तियों की आध्यात्मिक निकटता का स्पष्ट प्रमाण है - उनका पत्राचार। यह एक संक्षिप्त, लेकिन गहरा और समृद्ध पत्राचार है। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में और अपने कुछ लेखों में भी तलस्तोय का ज़िक्र किया है और उनके कथनों के उद्धरण भी दिए हैं। जैसा कि मालूम है महात्मा गांधी ने लियो तलस्तोय के लेख लेटर टू द हिन्दू का अनुवाद अपनी मातृभाषा गुजराती में किया था। इसके अलावा, उन्होंने तलस्तोय की जागीर यास्नया पल्याना के बारे में जान कर और तलस्तोय के विचारों से प्रेरित हो कर दक्षिणी अफ़्रीका में जोहान्सबर्ग के पास फीनिक्स फार्म की स्थापना की थी।



लेफ़ निकलायविच तलस्तोय से पूरी दुनिया के लोग एक महान व्यक्तित्व के रूप में, महान साहित्यिक कृतियों के लेखक के रूप में तथा एक ऐसे विचारक के रूप में अच्छी तरह परिचित हैं, जिन्होंने हिंसा जैसी बुराई का हमेशा प्रतिरोध किया और हिंसा का विरोध करते हुए अहिंसा की बात की। उन्होंने हमेशा पश्चिमी देशों की संस्कृति और पूर्व की संस्कृतियों के बीच दिखाई देने वाली समानताओं की चर्चा की।  लेफ़ तलस्तोय का हर पाठक यह जानता है कि वे पूर्वी देशों की आध्यात्मिक शिक्षाओं में रुचि रखते थे और उनसे अच्छी तरह से परिचित थे। इसके कई कारण थे, उनमें से एक सबसे महत्त्वपूर्ण कारण था - लेफ़ तलस्तोय के जीवन अनुभव। वे तब रूस के कज़ान विश्वविद्यालय में पूर्वी देशों के संकाय में पढ़ रहे थे। उस ज़माने में ऐसा माना जाता था कि रूस का कज़ान शहर चूँकि रूस की एशियाई सीमा पर स्थित है, इसलिए वहाँ पर एशियाई देशों या पूर्वी देशों के लोगों से परिचित होना और उन के रीति-रिवाजों की जानकारी प्राप्त करना ज़्यादा आसान है। लेफ़ तलस्तोय किसी कारण से अपनी शिक्षा समाप्त नहीं कर पाए और फिर सैन्य सेवा करने के लिए कोहकाफ़ यानी काकेशस चले गए।



कई वर्षों तक कोहकाफ़ में रह कर उन्होंने अनेक स्थानीय लोगों से दोस्ती कर ली। ये सभी लोग लंबे समय से वहां रह रहे थे और पूर्वी संस्कृति या एशियाई संस्कृति के प्रतिनिधि थे। लेफ़ तलस्तोय  की दिलचस्पी पूर्वी संस्कृति में इसलिए भी बहुत ज़्यादा थी क्योंकि वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द के लेखों और भाषणों को पढ़ चुके थे और उनके जीवन व उनकी गतिविधियों से अच्छी तरह परिचित थे। इसके अलावा तलस्तोय ने बौद्ध धर्म के बारे में भी काफ़ी-कुछ पढ़ा था और उनकी दिलचस्पी बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों और शिक्षाओं में थी। इस सिलसिले में अभी तक बहुत-कुछ लिखा जा चुका है। हमें  यह भी जानकारी है कि लेफ़ तलस्तोय की मुलाक़ात एक बौद्ध भिक्षु से हुई थी, जिन्होंने तलस्तोय को अहिंसा की सच्चाई के बारे में बताया था और उन्हें अहिंसा की तरफ़ प्रेरित किया था। लेफ़ तलस्तोय के गहरे मित्र और अनुयायी तथा उनकी जीवनी के लेखक पाविल ब्रियुकोफ़ ने इस बारे में विस्तार से लिखा है। 



यह भी माना जाता है कि तलस्तोय भारत-प्रेमी थे और भारत की आध्यात्मिक छवि से बेहद प्रेम करते थे। भारत की आध्यात्मिक शिक्षाओं ने उन्हें  आकर्षित कर लिया था। रूसी तलस्तोय विशेषज्ञों ने अपने लेखों और पुस्तकों में इस बात की पुष्टि की। 1960 में प्रकाशित अपनी पुस्तक लेफ़ तलस्तोय और पूर्वमें अलिक्सान्दर इओसिफ़अविच शीफ़मन ने इस बारे में विस्तार से लिखा है। इस किताब के ज़्यादातर हिस्से में इसी बात की चर्चा की गई है कि कैसे तलस्तोय का परिचय भारत से हुआ और फिर कैसे भारत की तरफ़ उनका आकर्षण और भारत देश से उनका अनुराग बढ़ता चला गया। रूस के नऊका (यानी विज्ञान’) नामक प्रकाशन-गृह ने लेफ़ तलस्तोय के उन दस्तावेज़ों और पत्राचार को प्रकाशित किया है, जो उन्होंने समय-समय पर भारत देश के विचारकों के साथ किया था। तलस्तोय के निजी पुस्तकालय में भी ऐसी बहुत-सी पुस्तकें शामिल थीं, जो भारत से जुड़ी थीं। इन किताबों में भारतीय लेखकों की किताबें भी शामिल हैं। आज भी यास्नया पल्याना में बने तलस्तोय-संग्रहालय में इन पुस्तकों को देखा जा सकता है।



लेफ़ तलस्तोय के निधन के बाद 1920 के दशक में तलस्तोय की अनेक रचनाओं का हिन्दी में अनुवाद किया गया था। महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से प्रभावित हो कर भारत की जनता ने सक्रिय रूप से भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में हिस्सा लिया। अहिंसा के इस विचार से प्रेरित हो कर ही भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में कई योद्धा सामने आए। जब भारतीयों को यह मालूम हुआ कि अहिंसा के विचार का विकास महात्मा गांधी ने लेफ़ तलस्तोय के विचारों से प्रभावित हो कर ही किया है, तो भारतीयों की दिलचस्पी लेफ़ तलस्तोय की रचनाओं में बढ़ने लगी। 1924 में, प्रेमचन्द ने तलस्तोय की 21 कहानियों का हिन्दी में अनुवाद कर के उन्हें प्रकाशित कराया। इसके कुछ समय बाद ही तमिल में भी तलस्तोय की बच्चों को संबोधित तीन कहानियों के अनुवाद प्रकाशित हुए।

‘महात्मा गांधी

वैसे तो भारत प्राचीन काल से ही रूसी लोगों को आकर्षित करता रहा है। कभी पन्द्रहवीं सदी में रूसी व्यापारी अफ़अनासी निकीतिन ने भारत की यात्रा की थी। फिर 1844 में रूसी कवि वसीली झुकोवस्की ने नल और दमयन्ती की कथा का और महाभारतके वन पर्व का हिन्दी में अनुवाद किया था। 19वीं शताब्दी के अंत में और 20वीं शताब्दी के पहले दशकों में भी रूस में रूसी विद्वानों, विचारकों, कवियों और लेखकों के बीच भारत बेहद लोकप्रिय था। इवान बूनिन भारत की यात्रा पर निकले थे, पर अचानक बीमार होने की वजह से श्रीलंका से ही वापस लौट आए थे। रूसी कविता के कथित रजत युग (सिरेब्रिनी वेक) के कई कवियों  ने भी भारत और पूर्व में गहरी दिलचस्पी दिखाई थी। भारत को ले कर इन कवियों और लेखकों में गहरा आकर्षण और उत्साह था। निकलाय गुमिल्योफ़ और कंस्तान्तिन बलमोन्त जैसे कवि तो भारत पर फ़िदा थे। बलमोन्त ने कालिदास की शकुन्तलाऔर मालविका और अग्निमित्र जैसी रचनाओं के रूसी भाषा में अनुवाद किए थे, जो आज भी पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। इसी दौर में विवेकानन्द के भाषणों और लेखों के अनुवाद भी रूस में प्रकाशित हुए, जिनकी बदौलत रूसी पाठक भक्ति योग’, राज योग और कर्म योग से परिचित हुए थे। रूस में उन्हीं दिनों महाकवि रवीन्द्र नाथ टैगोर की कृतियों का भी बड़े पैमाने पर अनुवाद  किया गया। यह वह दौर था, जब भारत में रूसी लोगों की दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी। वे न केवल भारत के बारे में जानना चाहते थे, बल्कि भारतीय दर्शन, भारतीय ज्ञान और भारत के साहित्य और संस्कृति से भी गहराई से परिचित होने की कोशिश कर रहे थे। शायद यही कारण रहा कि तलस्तोय भी भारत की तरफ़ आकर्षित हो गए थे और भारत के धर्मों और भारतीय दर्शन सिद्धान्तों का अध्ययन करने लगे थे। इसीलिए उन्होंने भारतीय विद्वानों के साथ भी पत्राचार करना शुरू कर दिया था। लेफ़ तलस्तोय के विशाल पत्राचार के बीच ऐसे पत्र भी मिलते हैं जो उन्हें भारतीयों से प्राप्त हुए थे या जो उन्हें लिखे गए थे। और इस तरह का पत्राचार, विशेष रूप से मोहनदास करमचंद गांधी के साथ किया गया पत्राचार, यह दिखाता है कि महान रूसी लेखक तलस्तोय न केवल अपने प्रशंसकों के पत्रों का हमेशा उत्तर देते थे, बल्कि पत्रों में उनके साथ गम्भीर बातचीत भी करते थे, जो दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण हुआ करती थी।


महात्मा गांधी के 150वीं जयन्ती के इस वर्ष में लेफ़ तलस्तोय के साथ उनके पत्राचार का ज़िक्र रूस में बार-बार किया जाता है। पहला पत्र 4 अप्रैल 1910 का है, जो मोहनदास गांधी ने जोहान्सबर्ग से लिखा था। पत्र के साथ मोहनदास गांधी ने अपनी एक किताब हिन्द स्वराज भी तलस्तोय को भेजी थी और उनसे अनुरोध किया था कि वे उस किताब को पढ़ कर उस पर अपनी प्रतिक्रिया दें। इसके अलावा उस पत्र के साथ लेफ़ तलस्तोय के अँग्रेज़ी में अनूदित लेख  The letter to the Hindu’ की एक प्रति भी नत्थी थी। तलस्तोय के नाम महात्मा गांधी के पत्रों का अनुवाद और इन पत्रों के तलस्तोय द्वारा दिए गए जवाब तलस्तोय की साहित्यिक विरासत (1939) नामक पुस्तक में प्रकाशित किए गए हैं। इन पत्रों में न केवल महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय विषयों पर चर्चा की गई है, बल्कि जिस तरह से गांधी और तलस्तोय ने एक-दूसरे को सम्बोधित किया है, एक-दूसरे को सम्बोधित करने के वे सूत्र भी विशेष महत्व रखते हैं। इन पत्रों की तारीखों से हम यह अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उस समय दोनों के बीच पत्राचार में कितना समय लगता था। उदाहरण के लिए, गांधी ने तलस्तोय के पत्र का जो जवाब दिया है, उस पर 15 अगस्त 1910 की तारीख़ पड़ी हुई है। अपने इस दूसरे पत्र में गांधी ने तलस्तोय को अपनी पुस्तक हिन्द स्वराज पर एक अच्छी राय देने के लिए तलस्तोय को धन्यवाद दिया है तथा हेरमन कालेनबाख द्वारा ट्रांसवाल में स्थापित किए गए टॉलस्टॉय फार्म के बारे में  जानकारी दी है। अपने इस दूसरे पत्र के साथ गांधी ने तलस्तोय को अपने समाचार पत्र इण्डियन ओपिनियनका एक अंक भी भेजा है जिसमें अप्रतिरोधियों को एक फार्म देने के उदार कार्य के बारे में लिखा हुआ है । गांधी का यह पत्र बेहद विनम्रता के साथ क्षमा मांगने के साथ समाप्त होता है। उन्होंने लिखा है - "यदि आप ट्रांसवाल में निष्क्रिय प्रतिरोध आन्दोलन में व्यक्तिगत रूप से रुचि नहीं दिखाते तो मैं आपको इन सभी विवरणों से परेशान नहीं करता। आपका विनम्र सेवक एम० के० गांधी।



एक प्रख्यात रूसी भारतविज्ञ सिर्गेय सिरेब्रयनी ने अपने एक भाषण में इस बात की ओर ध्यान दिलाया था कि महात्मा गांधी और लेफ़ तलस्तोय के बीच पत्राचार लगभग एक वर्ष तक चला था - और यद्यपि गांधी ने तलस्तोय को सिर्फ़ चार पत्र लिखे थे, लेकिन अन्य भारतीयों के साथ हुए तल्स्तोय के पत्राचार की तुलना में यह पत्राचार सबसे लम्बा था।  ये पत्र गहरे अर्थों से भरे हैं और इन दो  महान व्यक्तियों के बारे में बहुत कुछ कहते हैं। अगर तलस्तोय की अकाल मृत्यु न हो जाती तो शायद यह पत्राचार आगे भी जारी रहता। लेकिन 7 नवम्बर 1910 को लेफ़ तलस्तोय का अचानक देहान्त हो गया और गांधी को तलस्तोय का आख़िरी पत्र तलस्तोय की मृत्यु के बाद प्राप्त हुआ, जिसे उन्होंने नवम्बर 1910 में इण्डियन ओपिनियन में प्रकाशित किया।



तलस्तोय की विरासत पर शोध करने वालों नेविशेष रूप से अलिक्सान्दर शीफ़मन ने यह माना है कि अहिंसात्मक प्रतिरोधकरने का विचार महात्मा गांधी को लेफ़ तलस्तोय से मिला था, जिसका महात्मा गांधी ने अपने ढंग से विकास किया। तलस्तोय ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय अप्रवासियों के साथ ब्रिटिश प्रशासन की भेदभाव की नीतियों के विरुद्ध और अपने अधिकारों के लिए अहिंसक आन्दोलन करने का सुझाव दिया था, जिसे गांधी ने सत्याग्रह का नाम दे कर लागू किया। इसके बाद, महात्मा गांधी के नेतृत्व में यह अहिंसक विरोध ही, यह सत्याग्रह ही भारत के राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष का सबसे व्यापक रूप बन गया।



यहाँ यह बताना भी महत्वपूर्ण होगा कि 1905 में यानी तलस्तोय के साथ पत्राचार शुरू करने से पाँच साल पहले ही  महात्मा गांधी ने अपने साप्ताहिक समाचार पत्र इण्डियन ओपिनियन में तलस्तोय के बारे में काउण्ट टॉलस्टॉय के नाम से एक लेख प्रकाशित किया था। उन्होंने तलस्तोय की कई कहानियों का अनुवाद भी अपने इस पत्र में प्रकाशित किया। इनमें वे कहानियाँ भी थीं, जिनमें दृष्टान्त दे कर कोई न कोई उपदेश दिया गया था। महात्मा गांधी ने ये कहानियाँ प्रकाशित करते हुए कुछ कहानियों को अपने समाज और स्थितियों के अनुकूल बना लिया था तो कुछ कहानियों के नाम बदल दिए थे। जैसे उन्होंने तलस्तोय की कहानी  किसी व्यक्ति को कितनी भूमि चाहिए?’ का शीर्षक बदल कर लालच कर दिया था।  ऐसे ही तलस्तोय की एक और कहानी का मूल शीर्षक है – भगवान सत्य देखता है, लेकिन वह जल्द ही नहीं बताएगा। लेकिन इसे बदल कर गांधी जी ने थोड़ा सरल और बहुत संक्षिप्त कर दिया था। तलस्तोय की कहानी लोग कैसे रहते हैं?’  का नाम बदल कर उन्होंने सत्य का धागाकर दिया था।3

   

बाद में महात्मा गांधी के इन अनुवादों से प्रेरित हो कर अन्य भारतीय लेखकों ने भी अपनी-अपनी भाषाओं में लेफ़ तलस्तोय की रचनाओं के अनुवाद किए। शुरू में हिन्दी में तलस्तोय की उन कहानियों का अनुवाद किया गया था, जो उन्होंने बच्चों के लिए लिखी थीं। इसके अलावा हिन्दी में तलस्तोय के उपन्यास आन्ना करेनिना और हाजी मुरात का भी अनुवाद किया गया, जो भारतीय पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए थे। प्रेमचन्द ने तलस्तोय की 21 कहानियों का अनुवाद किया था, लेकिन अपने अनुवादों में उन्होंने कहानियों के पात्रों के नाम और कहानियों के घटनास्थल बदल कर उन्हें भारतीय रूप दे दिया था। प्रेमचन्द ने अपनी पत्रिका हंसमें आन्ना करेनिना उपन्यास के अनुवाद की एक बड़ी समीक्षा प्रकाशित की थी। उन्होंने अपने उपन्यासों प्रेमाश्रम और रंगभूमि में तलस्तोय के इस तरह के विचारों को व्यक्त किया कि किसानों के लिए फ़ार्म बनाए जाने चाहिए तथा लोगों की सेवा को महत्व दिया जाना चाहिए। शतरंज के खिलाड़ी प्रेमचन्द की मशहूर कहानी है। रूसी शोधकर्ताओं का यह मानना है कि प्रेमचन्द की इस कहानी में और तलस्तोय के लघु-उपन्यास हाजी मुरात में काफ़ी-कुछ समानता है।



भारत में लेफ़ तलस्तोय का बड़ा सम्मान किया जाता है। दिल्ली के क्नॉट प्लेस में एक सड़क को टॉलस्टॉय मार्ग के नाम से पुकारा जाता है। इसी सड़क पर एक चौराहे पर लेफ़ तलस्तोय का स्मारक बना हुआ है। भारतीय पाठक और साहित्य प्रेमी जब दिल्ली आते हैं तो लेफ़ तलस्तोय को श्रद्धांजलि देने के लिए उनके स्मारक पर भी जाते हैं। आज भारत में बड़ी संख्या में लेफ़ तलस्तोय की रचनाओं के अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हैं। रूसी साहित्य के प्रसिद्ध हिन्दी अनुवादक मदन लाल मधु ने तलस्तोय के विश्व प्रसिद्ध उपन्यासों युद्ध और शान्ति तथा आन्ना करेनिना का अनुवाद किया है। इससे पहले 1940 में हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक जैनेन्द्र कुमार ने भी आन्ना करेनिना का अनुवाद किया था। प्रसिद्ध लेखक भीष्म साहनी ने तलस्तोय के पुनरुत्थान नामक उपन्यास और नाच के बाद’, क्रूजर सोनाटा’, सुखी दम्पती’, दो हुस्सार’, इंसान और हैवान और इवान इल्यीच की मृत्यु जैसी कहानियों के अनुवाद किए हैं। हाल ही में भारत में हिन्दी के लेखक रूप सिंह चन्देल ने लेफ़ तलस्तोय की पत्नी सोफ़िया तलस्ताया की डायरी का हिन्दी में अनुवाद किया है, जिसका शीर्षक उन्होंने रखा है – लेफ़ तलस्तोय का अन्तरंग संसार। रूप सिंह चन्देल ने ही हेनरी त्रायत द्वारा लिखी गई लेफ़ तलस्तोय की जीवनीका भी अनुवाद किया है।



इस तरह हम कह सकते हैं कि लेफ़ तलस्तोय और भारत का रिश्ता आज भी कायम है। हमें आशा है कि भारतीय पाठकों का लेफ़ तलस्तोय के सृजन के साथ सम्बन्ध का यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। भारत में अनुवादकों की नई पीढ़ी सामने आ रही है और रूस में भारतविज्ञों की नई पीढ़ी उभर रही है। लेफ़ तलस्तोय और महात्मा गांधी आज भी इन लोगों के लिए आदर्श बने हुए हैं। 



(इस पोस्ट में प्रयुक्त तस्वीरें गूगल इमेज से साभार ली गई हैं।)





गुज़ेल स्त्रिलकोवा
प्राच्य विद्या संस्थान, मास्को विश्वविद्यालय
मास्को   


सम्पर्क :   <gstr@mail.ru>

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'।

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

शैलेश मटियानी पर देवेन्द्र मेवाड़ी का संस्मरण 'पुण्य स्मरण : शैलेश मटियानी'