अंजू शर्मा
शुक्रवार साहित्यिक वार्षिकी, आलोचना त्रैमासिकी, परिकथा, देशज समकालीन, कृत्या, जनसंदेश टाइम्स (लखनऊ), डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट (लखनऊ), नयी दुनिया (जबलपुर), नेशनल दुनिया, शोधदिशा, ऋचा साहित्यिक पत्रिका (डालमिया ग्रुप), शब्दशिल्पी (सतना), सरिता (दिल्ली प्रेस), द फैक्ट ऑफ़ टुडे आदि पत्र-पत्रिकाओं में कवितायेँ, लेख नियमित प्रकाशित!
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'कविता कोष' में परिचय एवं कवितायेँ।
बोधि प्रकाशन से प्रकाशित "स्त्री होकर सवाल करती है" (काव्य संकलन) में कवितायेँ सम्मिलित।
कविता पाठ से जुड़े विभिन्न साहित्यिक कार्यक्रमों से सक्रिय जुड़ाव!
2013 - लेखन के लिए राजीव गांधी एक्सलेन्स अवार्ड 2013 से सम्मानित
संप्रति : स्वतंत्र लेखन
जिंदगी की कठिन लिपि को आसानी से पढ़ना हो तो कविता पढी जानी चाहिए। जिन्दगी जिसमें होते हैं हमारे संघर्ष, हमारे दुःख, हमारे पराजय और इन सबके साथ थोड़े सुख, आनन्द और जीत के पल। लेकिन कैसा रहे यदि दुःख से ही दोस्ती कर ली जाय। दुःख निवारण का यह उपाय कोई कवि ही कल्पित कर सकता है। अंजू शर्मा हमारे समय की ऐसी कवियित्री हैं जिन्होंने अब अपनी एक ठोस पहचान बना ली हैं। पहली बार पर आप पहले भी इनकी कवितायें पढ़ चुके हैं। आईये एक बार फिर पढ़ते हैं अंजू शर्मा की नयी कवितायें।
जीवन में चिंताएँ
जीवन स्वतः पलटे जाते पृष्ठों वाली
एक किताब न बन जाए,
बोरियत हर अध्याय के अंत पर चस्पा न हो
इसके लिए जरूरी है कुछ सरस बुकटैग्स,
जरूरी है बने रहना, थोड़ा सा नीमपागल
थोड़ा सी गंभीरता
थोड़ा सा बचपना
थोड़ा सी चिंताएँ
और थोड़ा सा सयानापन,
होना ही चाहिए सब कुछ ज़िदगी में पर थोड़ा थोड़ा,
यूं देखा जाए तो जिंदगी वह फिल्म है जिसे समझ आने तक
आप पाते हैं खुद को मध्यांतर में,
ज़िंदगी का अर्थ क्या है और यह सम्मिश्रण है किन पदार्थों का
जूझते हुये लगातार इन सवालों से,
सावधानियों के रैपर में लिपटी जिंदगी पर चिपके
'फ्रेगाईल, केयरफुल' के स्टिकर को ताकते रहने में
आप खो देते हैं जीते रहने का परम सुख
अलगनी पर टांग ही दीजिये खाल बनी जिम्मेदारियाँ,
एक दिन कान से पकड़ कर
बंद कर दीजिये कुछ समय के लिए
चिंताओं को अंधेरी काल कोठरी में,
छत की कड़ियाँ गिनते हुये थामती रहे उंगली,
उकसाती रहे, तारे गिनने को खिलंदड़ अनिद्रा,
तब भी जब बगलगीर हो थोड़ा सा उनींदापन,
खुद से खुद का ही ले लेना चाहिए एक त्वरित अपोइण्टमेंट,
चिंताओं के घने अरण्य में खोने से पहले
किसी प्रिय की तलाश में निकले
एक आवारा सरफिरे बादल का हाथ थामते हुये
ठंडी हवा के अलमस्त झोंको
और बारिश की नन्ही-नन्ही बूंदों के बीच
खो देना चाहिए कभी कभी छाता
तकरीबन भूलते हुये कि वह टंगा है वहीं
स्टोर रूम के ठीक सामने वाली दीवार पर
धीमे से बुला लेना चाहिए इशारे से,
घड़ी की चौबीस-घंटा टिक टिक
और मोबाइल की घण्टियों के बीच
बदहवास पेंडुलम बनी जिंदगी को,
मन के सीलन भरे कोने में रोप देने चाहिए
धूप से खिले, प्रथम चुंबन से ताज़ा, कई खुशनुमा किस्से,
कि मन बदल ही जाए ऐसे कुतुबनुमा में
जिसे लुभा पाएँ खुशियों के कई एक यादगार छोटे छोटे पल,
इससे पहले कि जीवन बदल जाए
कब्र पर खुदी जन्म और मृत्यु की तारीखों के
ठीक बीच में लगे एक हाइफन में
सचमुच जी ही लो बिताई गयी लंबी जिंदगी के कुछ पुरसुकून पल,
जानते हुये भी कि चिंताएँ ही सुखद भविष्य का रिमोट कंट्रोल हैं,
मान ही लीजिये चाहे कुछ पलों के लिए ही सही,
चिंताएँ कल्पना का सबसे बड़ा दुरुपयोग भी तो हैं........
दुख - पाँच कवितायें
दुख - एक
दबे पाँव रेंगता आता है
दुख जीवन में,
स्थायी बने रहने के लिए
लड़ता है सुख से
एक अंतहीन लड़ाई,
दुख को रोक पाने
जब नाकामयाबी मिले
तो कर लेनी चाहिए
एक दुख से दोस्ती
एक छोटा सा दुख
रो लेता है साथ
कभी भी,
कहीं भी
दुख - दो
सुख की क्षणिक लहरों में
डूबते उतरते
एक दुख थामे रहता है
जमीन पर जिंदगी का सिरा,
वह होले से बुहार देता है
तुम्हारे घर और जीवन से
अनचाहे भुलावे,
पकड़ लो कस कर
दुख की उंगली
ताकि पहचान सको
दुख के पीछे की छिपी हंसी,
क्रोध के पीछे छिपा प्यार
और खामोशी के पीछे छिपे गहन अर्थ,
दुख समय के सुनार के हथोड़े की
वो चोटे हैं जो बदल देती हैं
ज़िंदगी को खरे स्वर्णाभूषण में
दुख - तीन
खलील जिब्रान दुख के कंधे
पर रखते हैं अपना सिर,
सहलाते हैं उसकी पीठ
फिर धीमे से बुदबुदाते हैं
कि दुख धीमे धीमे कचोटता है,
कुरेदता है तुम्हारा अन्तर्मन
और बना लेता है बहुत से सुखों के लिए
एक सुरक्षित कोना,
यह वह पात्र नहीं है
जो थामता है तुम्हारी शराब
वह पात्र तो कुम्हार के आवें में
कब का जल चुका,
सुख की मधुर लहरियां पाने को
गुजरना ही होता है बांस को
चाकुओं की पुरखतर नोकों से,
सुख वह मुसाफिर है जिसे एक दिन
खुशी के रास्ते गुज़र जाना है,
इसका स्थायी पता कुछ भी नहीं,
दुख जीवन के समुद्र की रेत पर
लिखा वह नाम है
जिसे हम आंसुओं के ज्वार में
आसानी से बह जाने देते हैं
दुख - चार
दुख ईसा की सलीब पर पैबस्त
दर्द का नाम है,
वहीं सुकरात के जहर भरे प्याले से उठी
तूफान के आमद की आहट भी है दुख,
दुख के पाँव बोझिल हैं बेड़ियों से
और उसके हाथ थाम लेते हैं
कलाई किसी पुराने मित्र की तरह,
सुख के पाँव अक्सर बदल जाते हैं
सुदूर उड़ान भरने को आतुर परों में,
उसकी तोताचश्म बिनाई सदा
ताकती है खुला द्वार
सँजोती है तुम्हें नींद में छोड कर
दूर चले जाने का स्वप्न हौले-हौले
दुख - पाँच
सुख जहां मोनालिसा की
मुस्कुराहट सा छद्म भुलावा है,
दुख के आईने में साफ साफ नज़र आती
हैं अपने और परायों की असली सूरते,
खुद पर मँडराते उदासी के पक्षी को
रोकना मुश्किल हो सकता है
तो भी रोक तो
उसे अपने बालों में
स्थायी घोंसला बनाने से
दुख के उद्गम से ही निकलता है
सुख का एक ठंडा सोता,
एक दुख ही जनक है सुख की सपनीली
उड़ानों का
बना लीजिये दुख को अपना मीत क्योंकि
दुख की कोख से ही जन्मती है
अक्सर एक नन्हें से
सुख की स्वप्निल अभिलाषा..............
हमने मांगी जिंदगी
तो थोपे गए तयशुदा फलसफे,
चाहीं किताबें
तो हर बार थमा दिए गए अड़ियल शब्दकोष,
हमारे चलने, बोलने और हंसने के लिए
तय की गयीं
एकतरफा आचार-संहिताएँ,
हर मुस्कराहट की एवज में
चुकाते रहे हम कतरा-कतरा सुकून
हम इतिहास की नींव का पत्थर हैं
किन्तु हमारे हर बढ़ते कदम के नीचे से
खींचे गए बिछे हुए कालीन
और हर ऊँचाई की कतर-ब्योत को
जन्मना हक समझा गया,
हमसे छीने गए पहचान, नाम और गोत्र तक,
झोली में भरते हुए लाचारगी,
चेहरों पर चिपकाई गयीं कृत्रिम मुस्काने,
सजे धजे हम बदलते रहे दुकानो के बाहर खड़े
36-24-36 के कामुक मेनेक़ुइन्स में,
हद तो तब हुई ज़नाब,
जब हमसे हमारे ही होने के मांगे गए सुबूत,
आंसुओं को गुज़रना पड़ा लिटमस टेस्ट से,
और आहों के किये गए मनचाहे नामकरण,
गढ़ी गयी नयी नयी कसौटियां और
आँचल में बांध दिए गए
कितने ही सूत्र, समीकरण, नियम, सिद्धांत
और सन्दर्भ,
तन तो पहले ही पराये थे
हमारे मनों पर भी कसी गयीं नकेलें
तयशुदा टाइम-टेबल पर बारहोमास यंत्रवत चलते हम
भूलने लगे न्यूटन का गति का तीसरा नियम,
याद दिलाया तो केवल यही
कि जीवन में सापेक्षता के सिद्धांत में
केवल डूबना ही मायने रखता है,
कि हमें बदल जाना है हर जल में घुलनशील एक पदार्थ में,
और हमारी लोच पर लगायी गयी तमाम शर्तें,
हम मानने ही लगे कि इंसान और मशीन के बीच
धड़कते दिल का फर्क बेमानी है,
और हायबरनेशन पर गए हमारे दिल का काम था
सिर्फ और सिर्फ खून साफ़ करना,
हमने सीखा एक औरत का तापमान
अप्रभावित रहता है सभी कारकों से,
हमें बताया गया समकोण त्रिभुज की
दोनों भुजाओं के वर्ग का योग
बराबर होता है तीसरी भुजा के वर्ग के,
और हम सुनिश्चित करते रहे कोण समकोण ही रहे,
तब भी जब बढती रही दोनों भुजाएं विपरीत दिशाओं में
और बदलता रहा हर मोड़ पर तीसरी भुजा का माप,
हमने पढ़ा मांग और पूर्ति के समस्त नियम तय करते हैं
कीमत को,
पर देखिये तो हमारी कीमतें तो बेअसर ही रहीं
ऐसे सभी नियमों से,
हमारे लिए रची गयी "चरित्रहीन" की "सुरबाला" और
हमें बदल जाना था वक़्त आने पर "मर्चेंट ऑफ़ वेनिस" की
"पोर्शिया" में,
हमारी हर उठी आवाज के लिए नजीर थे
अनारकली और लक्ष्मीबाई के दुखद अंत,
चाँद बीबी और रज़िया सुल्तान की कोशिशें
तो भेंट चढ़ा दी गयी साजिशन बलि,
हम तब भी बढ़ते रहे
बार बार काटी गयी, फिर भी उगती, अनचाही खरपतवार से,
हवा, धूप और पानी के बगैर भी
जीने के लिए अनुकूलित हुए हम निर्लज्ज,
बनाते रहे दुनिया के हर कोने में जगह
जैसे कुर्सियों से भरे सभागार में अड़े खड़े हो अनामंत्रित अतिथि
जैसे विपरीत दिशा में बढ़ने को आतुर हो कोई जिद्दी घोडा,
जैसे बारह बरस के जतन के बाद भी मुंह चिढाती हो कुत्ते की टेढ़ी पूंछ,
जैसे डी डी टी से प्रभाव से बेअसर हो बढ़ते ही जाएँ निर्दयी हठीले मच्छर,
जैसे लोककथाओं में बार बार मरने पर भी
अभिशप्त हो लेने के लिए सात जन्म कोई बिल्ली,
जैसे सूखी जमीन पर फलता फूलता जाये बिना पानी यूकेलिप्टस,
हम जानते हैं घोडा, कुत्ते, मच्छर और बिल्ली से इंसान बनने की प्रक्रिया
चूसती ही रहेगी पल पल हमारा पनियल लो-हीमोग्लोबिन वाला खून
तो भी हम जाग उठे हैं सदियों की नींद से,
हम सीख चुके हैं हुनर कमजोरियों को अस्त्र-शस्त्र में बदलने का,
और अपनी नाकामियों को नहीं बनायेगे हम अपनी ढाल
इस बार खून की कमी भी हमें नहीं सुला पायेगी
नकारते हुए संस्कारों की चिरपरिचित अफीम,
हम निकल पड़े हैं अपने स्वाभिमान के लिए विजययात्रा पर............
सम्पर्क
ई-मेल: anjuvsharma2011@gmail.com
जीवन और मृत्यु की तारीखों के बीच लगे हुए हाईफन में बदल जाए जीवन उससे पहले जीना शुरू किया जाए...
जवाब देंहटाएंकितनी सुन्दरता से यह बात कह जाती है कविता!
हाईफन को जब बीते ज़िन्दगी से जोड़ा कविता ने तो शब्दों के इस चमत्कार ने अभिभूत कर दिया!
दुःख की पांच अप्रतिम कवितायेँ व विजययात्रा पर अग्रसर लेखनी!
सुन्दर प्रस्तुति!
अंजू जी को बधाई!
दुःख श्रृंखला की सारी कविताएँ बहुत अच्छी लगी .....बहुत -बहुत बधाई अंजु जी को ....पहलीबार का आभार .
जवाब देंहटाएंनित्यानन्द गायेन
अंजू शर्मा अपनी कविताओं से समकालीन कविता परिदृश्य में जो स्थान बना रही हैं, वह हर कविता प्रेमी को आकर्षित करता हैं। यहां प्रस्तुत अंजू जी की सभी कविताएं बेजोड़ हैं, विशेषकर 'दु:ख'पर लिखी कविताएं। आने वाले समय में इस कवयित्री से अगर हम कोई विशेष आशाएं बांध लें, तो गलत न होगा।
जवाब देंहटाएं-सुभाष नीरव
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंAapko aalochna mein bhee padha.Acchhee kavitain. Mujhe antim bahut acchhi
जवाब देंहटाएंlagee. Haardik badhai Anju jee. Abhaar Santosh
bhai.
दुःख 'सीरिज वाली कवितायें बहुत प्रभावशाली हैं | बधाई आपको | हां ...अंतिम कविता में आने वाला तेवर भी पसंद आया | उम्मीद है कि यह जीवन में आगे भी बरकरार रहेगा |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सभी मित्रों का......कविताओं का आप तक पहुँचना लेखन को सार्थकता प्रदान करता है इसके लिए संतोष जी की आभारी हूँ.......
जवाब देंहटाएंदुःख पर लिखी पहली दो कविताएँ अच्छी लगीं |चिंताओं के प्रभावों परिणामों और कारकों का कविता में आना हिंदी कविता की परम्परा रही है मनोभावों पर लिखी गई कविता कवि का जीवन के प्रति द्रष्टिकोण भी बताती चलती है स्त्री कविता का उठान देखना मुझे हमेशा राहत देता है ढेरों जिम्मेदारियों और घर बाहर कि थकान के बीच वे जिस तरह कविता साधने को दृढ संकल्प हो चली हैं यह अवरोधकों की पराजय ही है अंजू को स्नेह और हार्दिक शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएं"जीवन में चिंताएं" बहुत सुन्दर कविता है। दुःख श्रृंखला की सभी कविताएं बहुत बढ़िया हैं !
जवाब देंहटाएंशाहनाज़ इमरानी