शंकरानंद









जन्म- 08 अक्टूबर 1983   
शिक्षा: हिन्दी में एम00। नया ज्ञानोदय, वर्तमान साहित्य  वसुधा, वागर्थ, कथन, बया, परिकथा आदि पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित।      

भारतीय  भाषा परिषद् कोलकाता से पहला कविता संग्रह  'दूसरे दिन के लिए'  अभी हाल ही में प्रकाशित 



युवा कवियों में शंकरानंद ने अपने कथ्य और शिल्प के बल पर अपनी अलग पहचान बनायी है. इनकी छोटी-छोटी कविताएँ सहज ही हमारा ध्यान आकृष्ट करती हैं. आज जब पूंजीवादी ताकतें आम आदमी का सुख-चैन ही नहीं उसका आने वाला कल भी पूरी तरह अपनी मुट्ठी में कर लेना चाहती हैं. खेती-किसानी के लिए ऐसा बीज ला रहीं हैं जो अगले साल अंकुरित ही न हो और किसान को बाजार की बाट जोहनी पड़े ऐसे कठिन समय में यह कवि उस बीज को बचा लेने के लिए प्रतिबद्ध है जो उसके लिए एकमात्र पूँजी और जीवन है. तो आईये पढ़ते हैं संभावनाओ से भरे हुए इस कवि की अभी हाल ही में लिखी गयी कविताएँ.      



अगर      

ऊँघने लगूँ तो छू कर     
मुझे जगा दो      
ऐसे ही बांधे रहो एक-दूसरे का हाथ कि   
ये उलझ जाएँ      
थका हूँ तो हौसला दो     
चुप हूँ तो दो आवाज    
अगर मेरे पक्ष में हो तो ! 


फिर भी

अभी तो उसका जन्म ही हुआ है
वह सब कुछ देखना चाहता है तुरत
चारो तरफ घूम रही है उसकी आँखें
हाथ उछल रहे हैं उसके
अपने लिए हर चीज थामना चाहता है वह एक साथ
उसे न रास्तों का पता है
न मुश्किलों का
फिर भी नन्हें पाँव मचल रहे हैं चलने के लिए
 अभी जबकि ठीक से उसकी आँख भी नहीं खुली है।


बीज       

जिसे रोपना है      
उसे बचाना है सड़ने से     

जिसे सींचना है
उसे देना है अपनी साँस

देखना है कि चिड़िया चुगे नहीं बीज
वहीं अपनी पूँजी है वहीं अपना जीवन।


अधिकार

जिसके पास सरकार बनाने का अधिकार है
वह तरसता है दाने-दाने के लिए
दौड़ता है जीवन के लिए और
गिर पड़ता है आग की भट्ठी पर

जिसके लिए एक दिन जीना मुश्किल है
उसका फोटो पोस्टर पर वर्षो तक मुस्कुराता रहता है
वह अन्न भी उपजाता है और भूखों भी मरता है।

सारे आंकड़े एक तरफ है और
एक तरफ है सारी घोषनाएँ
दिल्ली से कोसों दूर यहाँ ऋण के बोझ से दबा
मर रहा है किसान
उसके मुँह से निकल रहा है खून और
इसका कोई सीधा प्रसारण नहीं
न ही वित्त मंत्री आ रहे हैं
पूछने उसका हाल-चाल !

    
संपर्क: 
क्रांति भवन, कृष्णा नगर, खगड़िया- 851204 
मो0- 08986933049     


  
 

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