पवित्रन तीकूनी
'पहली बार' पर पिछले महीने हमने एक नए स्तम्भ 'भाषांतर' की शुरूआत की थी. पहली कड़ी में आपने मलयाली कवि ए. अयप्पन की कविताओं का अनुवाद पढ़ा. दूसरी कड़ी में युवा मलयाली कवि पवित्रन तीकूनी की कविताएँ दी जा रहीं हैं. इसे प्रस्तुत किया है हमारे मित्र कवि और अनुवादक संतोष अलेक्स ने.
युवा मलयाली कवि।
1974 में केरल के तीकूनी में जन्म। इंटर तक की पढाई की। घर की पारिवारिक स्थिति के
चलते डिग्री की पढाई बीच में छोडनी पडी। 7 काव्य संग्रह प्रकाशित। कविताओं का
अनुवाद हिंदी एवं अंग्रेजी भाषाओं में हुआ। कविता के लिए आशान पुरस्कार, इंडियन जेसिस
पुरस्कार, केरल साहित्य अकादमी का कनकश्री पुरस्कार से सम्मानित।
युवा मलयालम
कवियों में पवित्रन तीकूनी चर्चित नाम है. पवित्रन की कविताओं का धरातल उनका
जीवनानुभव है. पारिवारिक समस्याएं और गरीबी ने इस कवि को बचपन से ही पीछा किया,
बडा हुआ तो बेराजगारी ने भी. इस अवस्था में
उनकी पीडा कविता के रूप में बाहर निकली. पवित्रन की कविताओं में समकालीन समाज का
ही चित्र द्रष्टव्य है. इसलिए पाठक बहुत आसानी से इनकी कविताओं से रूबरू हो जाते
हैं.
पवित्रन के लिए
कविता हीं जिंदगी है. वे कविता के संप्रेषण के लिए किसी प्रकार के रूपक या
अलंकारों में विश्वास नही करते. अपनी बातों को व्यक्त करने के लिए वे साधारण
शब्दों का उपयोग करते हैं. वे इसी को
कविता की ताकत मानते हैं.
दीवार
मैंने तेरे घर पर
पत्थर नहीं फेंका
कभी उस ओर झांका
नहीं
तेरे आंगन में
या घर पर आ कर
मेरे बच्चों ने
कोई तोड फोड नहीं की
मैंने तुझे पर कोई
आरोप नहीं लगाया
तेरे विश्वास पर
शक नहीं की
तेरे झंडे का रंग
जानने की कोशिश नहीं की
तेरे से किसी प्रकार का
झगडा नहीं किया
चूल्हा न जलने पर भी
मैंने भूख को खा
लिया
लेकिन तेरे से
उधार नहीं मांगा
जब तूने तरक्की
की व मशहूर हुआ
तो मुझे गर्व
होता था
फिर भी मेरे
प्यारे पडोसी
हमारे घरों के
बीच में
दोनों परस्पर न
देख पाने जैसा
इसे तूने क्यों
खडा किया ...?
अंधकार व बारिश
आसमान काला काला सा था
शाम होने लगी थी
राशन की दूकान
में भीड कम होने पर
लडकी आधा लीटर मिटटी
का तेल माँगी
दूकानदार ने कहा
कि
राशन कार्ड के
बिना नहीं मिलेगा
उसका घर पिछवाडे
में था
अंधकार व बारिश
में पगडंडी से हो कर चलने पर
उसने सोचा पिताजी,
होते तो
मोड पर
बिजली उसे छू कर
चली गई
भीग कर घर के
बरामदे में घुसी तो
उसके इंतजार में
थी
लालटेन की बुझी
हुई बत्ती व मां
घाटा
पहली मुलाकात में
अथवा
प्यार के पहले
पहले पर्व में
मेरी आंखे खो गई!
दूसरी मुलाकात में
अथवा
प्यार के दोपहर
में
मेरा दिल खो गया
तीसरी मुलाकात में
अथवा
प्यार के परिपक्व
अवस्था में
मैं खुद को खो
दिया
चौथी मुलाकात के पहले
अथवा
प्यार के अंतिम
पर्व के पहले
मैं आम के पेड की
टहनी पर
लटक कर झूल रहा
था
मुर्गी और लोमडी
मुर्गी और लोमडी
आपस में बहुत
प्यार करते थे
साथ में जीने
के आग्रह के कारण
व
विरोध करने के डर
से
एक दिन रात को
दोनों भाग निकले
घर, गांव व जंगल पार कर
वे एक शहर
के पास थक कर बैठ
गए
‘मेरे हर एक अणु में
तू ही तू है’ मुर्गी ने लोमडी से कहा
लोमडी इस पर भा गया
बाद में
मुर्गी को वह
जिंदा खा गया !
मुर्गी और लोमडी
आपस में बहुत
प्यार करते थे
डर
एक दिन शाम को
ईश्वर छडी के
सहारे
जुलाहे के यहां
पहुंचा
एक बंदूक
एक तलवार
एक चाकू
एक स्टील बम
जुलाहे ने बडे
आदर से पूछा
क्या हुआ?
पहले जैसा
भक्ति का जमाना
नहीं रहा अब
खुद की सुरक्षा
के लिए
कुछ न कुछ तो
इंतजाम करना पडता है
ईश्वर ने धीमी
आवाज
में कहा
*** *** ***
संपर्क -
संतोष अलेक्स
मोबाईल- 09441019410
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसभी एक से बढकर एक
जब भी समय मिले, मेरे नए ब्लाग पर जरूर आएं..
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