शैलजा










किताबी सिद्धांतों और नियमों से इतर जीवन को महसूस करते हुए लिखी गयी कविता ही वास्तविक कविता होती है. उसमें कहीं कोई बनावट नहीं होती बल्कि  उसमें जीवन की सघन संवेदनाएं अनुस्यूत होती हैं. हिन्दी कविता अब इस बात पर गर्व कर सकती है कि उसमें समाज के अब तक उपेक्षित एवं शोषित तबके अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. महिलायें जो शोषितों में भी शोषित रही हैं अब कविता के प्रदेश में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा रही हैं.

शैलजा पाठक ऐसी ही एक कवियित्री हैं जिनकी कविता में यह स्त्री स्वर साफ़ तौर पर सुना और महसूस किया जा सकता है. वे अपनी बातें बड़े साधारण अंदाज कहती हैं. यह साधारणता उन्होंने अर्जित किया है. जिसे साधना आमतौर पर किसी कवि के लिए दुष्कर होता है. वे महसूस करती हैं कि जो उन्हें नहीं करना था उसे पाप-पुण्य के चक्कर में डाल कर करा लिया गया. अगले जन्म का यह जो खौफ है वह हमारे इस जीवन को ही दुष्कर बना डालता है. वे सचेत हैं उन बाजारवादी शक्तियों से जो सूखे पत्तों पर खडखड़ाते आहट के साथ लुभावनकारी अदा में आती हैं लेकिन उनका मंतव्य तो पेड़ को ही ठूंठ बना देना होता है.

तो आईये रू-ब-रू होते हैं शैलजा की ताजातरीन कविताओं से             

    
          नुचे पंख सी आहें

रात के अँधेरे में
गाँव के पीछे रस्ते पर
दरिंदों की गाड़ी
रुकती है

परिंदे बेचे जाते
हैं
माँ बाप की
मुट्ठी में
कुछ गरम सी
रकम है
बरफ सा ठंडा
पड़ रहा है कलेजा

घुर घुराती सी चल
पड़ती है गाड़ी
मासूमों के रुदन
से चीत्कार उठती है
गरीबी बेबसी लाचारी

परिंदे फडफडा रहे है
नुचे पंख सी आहें
उनकी फैली पड़ी है रास्तों पर ....



मेरी मुट्ठी में


वो अपनी दोनों मुट्ठियाँ
एक जादूगर की तरह
हवा में लहराता
और कहता
एक चुन ले
मैं चुन लेती

कभी पास फे़ल का निर्णय
कभी खेलने पढ़ने का
कभी गद्दे तकिये का

ऐसे तमाम उलझन
झट से सुलझ जाते

वो बता देता जैसा उसे बताना होता
मैं मान जाती

एक दिन वापस बिना बात ही
उसने अपनी बंद मुट्ठियाँ
हवा में लहराई
मुझे चुन लेने को कहा

मैंने पूछा क्या है इनमें ?
उसने कहा किस्मत
 
मैंने पूछा बस इतनी सी?
उसने कहा
हाँ हाँ मेरी भी तो इतनी ही
मैंने चुन ली एक मुट्ठी
 
वो मुस्करा पड़ा
और चिढाने लगा
 
मेरी तो मेरे पास ही है

अब तेरी भी मेरे पास ......

मेरी मुट्ठी में .........



उसके सपनों में


हाथ में पूरे दिन की
कमाई मसलती है
कलेजा कसमसाता है
आँख भर भर ढरकाती है

पर नही खरीद पाती
जिद्दियाये बच्चे की खातिर
वो लाल पीली गाड़ी
जिसे रोज शीशे के पार
देख कर बिसूरता है वो देर तक

जब से देखी है वो गाड़ी
बच्चे के सपने के साथ
उसके सपनों में भी
आती है सीटियों की आवाज

अगले दिन फिर खड़ी
हों जायेगी घडी भर को
दुकान के इस पार
फिर मसलेगी पैसे
कसमसायेगी
बच्चा इंच भर की दूरी पर
पड़ी गाड़ी को निहारेगा

और रख देगा अपनी
नन्हीं हथेलियाँ उसके ऊपर
अपने हाथो में फोटो सी उतार लाएगा

खूब भागेगी गाड़ी सपने में
आएगी सीटियों की आवाज
बच्चा हथेलियों को
आँख पर रख कर
सो जायेगा .......

   

तुम


सूखे पत्तों पर खडखडाती है
तुम्हारी
आहट
तुम पास
आ रहे हो
पेड़ को ठूंठ करने ........



हमारे बीच का शून्य


मैं मिलूंगी तुम से
समय के उस हिस्से में
जब सांसे खोजती है
अपना एकांत मन खंगालता है
अपनी उलझनें
और सोच की स्याही
सफ़ेद पड़ जाती है
लिखने से पहले

मिलने पर कुछ नहीं होता
मुझे पता है
कहने सुनने से परे हम साथ होने के
यकीन को निहारते हैं
कुछ लम्हों के लिए
और बिछड़ने की
रस्में आँखें निभाती हैं सांसें दुरूह चलती हैं
हाथ जड हो जाते हैं

हमारी अलग-अलग
जिंदगियां हमे घसीटती हैं
अपनी-अपनी तरफ

और हमारे बीच का शून्य
अपलक निहारता है
बीच की दूरी को

मिलने पर बिछड जाते हैं
हम बार बार ........




मैंने बेच दिया अपना होना



मैं साथ हूं उसके
मुझे होना ही चाहिए
ये तय किया सबने मिल कर मैंने सहा जो मुझे
नही लगा भला कभी
पर उसका हक था
मैं हासिल थी रातों की देह पर

जमने लगी सावली
परतों को उधेडती
उजालों की नज्म
को अपने अंदर
बेसुरा होते सुनती

इरादों से वो भी किया

उसके लिजलिजे इरादों
की बलि चढ़ी
व्रत उपवास करती हैं
सुहागिने मैंने भी किया

थोपने को रिवाज बना लिया
जो ना करवाना था
वो भी करवा लिया
पाप पुण्य के
चक्र में ..इस जनम उस जनम
के खौफ ने

मैंने बेच दिया अपना होना
तुमने खरीद लिया .......

टिप्पणियाँ

  1. बहत सादगी और संजीदगी से लिखी गईं गंभीर अर्थों वाली कवितायेँ ...

    जवाब देंहटाएं
  2. शैलजा एक ऐसी युवा कवियत्री है जो अपने अंदर असीम सम्भावनाये लिए हुए है ...उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाये

    जवाब देंहटाएं
  3. शैलजा की कविताओं को इधर लगातार पढ़ रहा हूँ ..| उनका विकास आश्वस्तकारी है ..| उम्मीद करता हूँ , कि जैसे जैसे उनकी कविताएँ परिपक्व होती जायेंगी , उनके कथ्य का विस्तार भी होता जायेगा ...| फिलहाल उन्हें बधाई ..|

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

हर्षिता त्रिपाठी की कविताएं